गुजरात चुनावी रंग के आरोप प्रत्यारोप के बीच भाजपा की गोलबंदी मे लगी कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी के धर्म को लेकर विवाद पैदा हो गया है ! चुनावी मौसम के बीते डेढ़ महीने में राहुल जब जब मंदिर में दर्शन के लिए गए भाजपा व कांग्रेस विरोधी ने निशाना साधा राहुल ने द्वारका में माथा टेककर गुजरात में अपनी नवसर्जन यात्रा शुरू की थी. सोमनाथ और द्वारकाधीश के अलावा राहुल गांधी अब तक अक्षरधाम मंदिर, कबीर
मंदिर, चोटिला देवी मंदिर, दासी जीवन मंदिर, शंकेश्वर जैन मंदिर, पावागढ़ महाकाली, वीर मेघमाया, बादीनाथ मंदिर, कागवड के खोडलधाम, नाडियाड के संतराम मंदिर, नवसारी में ऊनाई मां के मंदिर, बहुचराजी मंदिर, राजकोट के जलाराम मंदिर और वलसाड के कृष्णा मंदिर में जाकर दर्शन कर चुके हैं. राहुल ने कहा भी था कि मैं शिवभक्त हूं और सत्य में विश्वास रखता हूं. इस विवाद से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भी राहुल गांधी के मंदिर जाने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि आज जिन्हें सोमनाथ याद आ रहे हैं उन्हें इसका इतिहास भी नहीं पता. तुम्हारे परनाना, तुम्हारे पिता जी के नाना, तुम्हारी दादी मां के पिता जी, जो इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे. जब सरदार पटेल सोमनाथ का उद्धार करा रहे थे तब उनकी भौहें तन गईं थीं.”
मगर एक बड़ी विडम्बना है देश की आज़ादी के सात दशक बाद भी 21वीं सदी में मूल मुद्दे से दूर चुनाव जाति और धर्म के नाम पर ही हो रहे हैं. भले हम विश्व शक्ति बनने की चाहत रखते हैं या विश्व मे नया आयाम बनाने की बात करे लेकिन यह निराशाजनक है कि चुनाव में जाति और धर्म ही मुख्य राजनीतिक भूमिका के केंद्र में होती हैं. जिस राज्य के विकास मॉडल पर मोदी जी ने मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री का सफर तय किया उस राज्य गुजरात चुनाव जाति और धर्म के नाम पर हो रहे है इसका जीवंत उदाहरण है.
एक तरफ कांग्रेस जाति की बिसात पर भाजपा को मात देने की जुगत में है तो भाजपा अपने हिन्दू कार्ड के भरोसे कांग्रेस को क्लीन बोल्ड करने की चाहत लिए है. जाति फ़ॉर्मूले में उलझ कर भाजपा बिहार का चुनाव गवां चुकी है लेकिन वहां परिस्तिथियां दो विरोधी लालू ओर नीतीश के साथ आने से अलग बन गयी थी. लेकिन गुजरात के तीनों लड़कों हार्दिक,अल्पेश और जिग्नेश को साथ लेकर राहुल मोदी को जातीय गणित में उलझाना चाहते हैं. ऐसे में भाजपा भी कभी हिन्दू आतंकवाद जैसे पुराने मुद्दे और अब राहुल के धर्म पर सवाल उठाकर धार्मिक गोलबंदी बनाने की कोशिश में हैं. क्योंकि गुजरात का पुराना इतिहास रहा है कि जब-जब यहां धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ है तो सारे समीकरण धरे के धरे रह गए हैं. बहरहाल गुजरात के चुनावी फिजां में जाति फैक्टर काम करता है या धर्म कार्ड इसका सही विश्लेषण चुनाव परिणाम के दिन यानि 18 दिसंबर को ही पता चलेगा
विचार - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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