देश के हर राष्ट्रप्रेमी नागरिक की आकांछा है कि गुजरात के लोग भाजपा को विजय श्री पहना कर श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे आर्थिक , सामाजिक तथा सामरिक सुधारों पर मुहर लगायें ताकि देश विदेश को एक संदेश मिल सके कि जिस मोदी ने वर्षों तक गुजरातियों की बेहतरी के लिए साधना किया और जिस जनता ने उन्हें आज प्रधान मन्त्री के पद तक पहुँचाया वे आज भी थोड़ी दुश्वारियों के बावजूद एक दूसरे के लिए चट्टान की भाँति खड़े हैं। याद रहे कि आर्थिक उतार- चढ़ाव तथा मत भिन्नता के बाद भी मोदी जी राष्ट्रवाद ,राष्ट्रभक्ति ,राष्ट्रगौरव व सर्वोपरि -राष्ट्र वाली अवधारणा के बेजोड़ नायक व आशा के किरण पुञ्ज हैं। इस तथ्य को हमें किसी भी पल दृष्टि से ओझल नहीं कर सकते क्योंकि सावधानी हटी कि देश लुटा।दूसरी अर्थात पराजय की स्थिति में स्थिति के कारण महत्वपूर्ण हो जाँयगे और सारे विपक्षी नेता एक होकर देश को सन चौदह से पूर्व की स्थिति में घसीट ले जाने व सत्ता सुख के बंदरबाँट का पुरजोर प्रयास करेंगे।फलतः बचे डेढ़ वर्षों में केंद्र सरकार को उग्र विपक्षी विरोध का सामना करना होगा जिससे सरकार की दृढ इच्छाशक्ति डगमगा सकती है।हार भाजपा की होगी परन्तु खुशियाँ विघटनकारी नेता व पार्टियाँ मनाएगी। जो कारण मतदाताओं को भाजपा के विरोध में जाने को प्रेरित कर सकते हैं वे क्रमशः पाटीदारों का आरक्षण के नाम पर प्रबल विरोध ,दलितों में उकसाया गया छद्म असंतोष ,व्यवसाय पर जीएसटी का कुप्रभाव ,पेट्रोलियम पदार्थों की घटी कीमतों का लाभ जनता को न देना ,स्थानीय भाजपा नेताओं के प्रति विकर्षण तथा सबसे ऊपर राज्य स्तर पर मोदी जी जैसे चमत्कारी नेता की अनुपलब्धता हैं। निश्चय ही राष्ट्रवाद की छाँव में भाजपा यह भूल रही है की सरकार अपनी जनता के लिए एक चुनी हुई कल्याणकारी संस्था होती है और बिना कोई संकट की स्थिति आए वह जनता को आर्थिक बेहतरी के बदले आर्थिक बदहाली नहीं दे सकती।आम जन की जेब पर दबाव पड़ेगा तो समर्थन भी घटेगा।फिर भी दबाव ने कोई लक्ष्मण रेखा नहीं पार किया है कि जिस दल के सरकार ने गुजरात में वर्षों तक बेहतरीन परफॉर्मन्स दिया ,गुजरात को आधुनिक गुजरात बनाया व देश को मोदी जी जैसा अद्वितीय नायक दिया उसे राज्य से सत्ताच्युत कर दिया जाय। विभिन्न वर्ग व समुदाय के लोगों के साथ जब संपर्क का अवसर मिला तो समझ आई कि प्रभु श्रीकृष्ण को द्वारकापुरी रास क्यों आई याकि गाँधी जैसे सत्य एवँ अहिँसावादी और पटेल जैसे लौहपुरुष वहीँ क्यों उपजे। वहीँ समझ सका कि पानी की कमी से जूझते प्रदेश में अमूल जैसी श्वेत क्रान्ति ,खूबसूरत दस्तकारी ,वस्त्रोत्पादन ,हीरा उद्योग या अन्य भारी उध्योग क्यों परवान चढ़ पाए।वास्तव में शुद्ध भारतीय परिवेश व मीठासमयी संस्कृति को सँजोए हुए गुजरातियों में गजब की उद्यमिता एवँ संघर्ष क्षमता है। उन्हें सरकार से मात्र सरकार जैसी व्यवहार की अपेक्षा रहती है। उन्हें सरकार से सार्वजानिक सुविधा ,संरचना ,सुरक्षा और व्यवसाय परक वातावरण चाहिए न कि व्यक्तिगत सुविधाएँ। इस राज्य में मोदी जी के सफलता का मन्त्र भी यही रहा है। आज के संशय का कारण भी स्थानीय भाजपा नेताओं द्वारा इस मंत्र का थोड़ा बहुत विकृत किया जाना लगता है।मोदी जी के बाद की प्रदेश सरकार यदि पूर्ववत जनता के प्रति संकल्पित रही है और स्थानीय भाजपा के नेता जनता से मित्रवत संवाद में रहे हैं तो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए गुजरात के मतदाता भाजपा को विजय श्री देंगे। उभरते भारत में हो रहे बदलाव के दौर में जीएसटी से उत्पन्न अस्थाई व्यावसायिक कठिनाइयोँ के कारण भी वे भाजपा को नहीं नकारेंगे। हिमाँचल प्रदेश की भाँति वहाँ एन्टी इनकम्बेंसी जैसा कोई गुणक भी काम नहीं करेगा। ऐसे में भाजपा के हार की सम्भावना बहुत दूर तक नहीं है। हारेगी तभी यदि सत्तारूढ़ सरकार ने सरकार के लिए निर्धारित लक्ष्मण रेखा का अतिक्रमण किया होगा। जीत से भाजपा नीत केंद्र सरकार के आर्थिक सुधारों व विकास कार्यक्रमों को और तीब्र आवेग (मोमेंटम )मिले गा अन्यथा हार, आवेग में अस्थाई ठहराव का,गुजरात से एक साइरन होगा। फिर सिंहावलोकन की स्थिति बने गी और पुनः नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में इन्हीं सुधारों व विकास को प्रचंड समर्थन मिलेगा क्योंकि भारत को दुनियाँ मेँ अपना मुकाम पाना है और हम आम भारतीयों के लिए सबसे पहले भारत है।
आपका - उत्तम जैन ( विद्रोही )
Wednesday 15 November 2017
गुजरात चुनाव - मोदी और मेरे मन की बात
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