Sunday 30 April 2017

रिश्ता व परिवार का महत्व

आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोगों के पास समय कम है। यह मेने स्वयं अनुभव किया है ! दिनभर अपने व्यवसाय मे व्यस्त रहना ! एक समाचार पत्र का प्रबंधन भी करना ओर फिर लेखन का शोक इतने कार्य करने के बाद कुछ देर फेसबूक व्हट्स अप भी देखना होता है ! अपने पत्नी बच्चो व माता पिता के लिए कहा समय निकाल पाते है ! कटु सत्य है की यह एक पारिवारिक अन्याय भी है पर क्या करे सत्य को झुठला नही सकता ! यह सिर्फ मेरा ही नही शायद मेरा अधिकतर पाठको ओर मित्रो का यही हाल है
इसके कारण रिश्तों की गर्मजोशी भी कम होती जा रही है। लोग आजकल अपने आपमें इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें आसपास अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों तक का एहसास नहीं रहता ! अकसर हम व्यस्तता के कारण पारिवारिक जिंदगी को प्राथमिकता देना बंद कर देते हैं !
वेसे आजकल व्यस्तता कार्य से ज्यादा व्हट्स अप , फेसबूक पर ज्यादा रहती है ! जो कलह पैदा करती है। सच्ची व निश्चल दोस्ती में हम जीवन का असीम सुख व शांति पा सकते हैं। जीवन संघर्ष में व्यस्त होने पर भी कुछ घड़ियाँ सब कुछ भूलकर हम मित्रों के साथ बिताकर ही जीवन का आनंद बटोर सकते हैं। यही मित्र जीवन पर्यंत हमारे लिए भावनात्मक सहारा व सुरक्षा का एहसास होते हैं। अतः हम सच्चे दोस्त बनाने का प्रयास करे व स्वयं भी अच्छे व सच्चे दोस्त साबित हो तभी दोस्ती का दर्जा तमाम रिश्तों में ऊँचा कहा जा सकता है। तीन-चार वर्ष की उम्र में जब बच्चा माँ की गोद से उतर बाहरी दुनिया में प्रवेश करता है तब हम उम्र दोस्त ही उसके सुरक्षा-कवच होते हैं। उन्हीं में वह सुरक्षित अनुभव करते हुए सहज रूप से संसार में प्रवेश करता है। वह निश्चल दोस्त पड़ोसी हो सकता है या फिर विद्यालय का कोई साथी। बचपन की दोस्ती रबर, पेंसिल, चॉकलेट या खिलौने के आदान-प्रदान से प्रारंभ होती है व यहीं से व्यक्ति चीजों को 'शेयर' करने की, दूसरों के काम आ सकने की व दूसरों के लिए कुछ कर सकने की शिक्षा नैसर्गिक रूप से पाता है। मनुष्य सांसारिक जीवन मे जन्म के साथ ही अनेक रिश्तों के बंधन में बंध जाता है और माँ-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी जैसे अनेक रिश्तों को जिवंत करता है। इन्ही रिश्तों के ताने-बाने से ही परिवार का निर्माण होता है। कई परिवार मिलकर समाज बनाते हैं और अनेक समाज सुमधुर रिश्तों की परंपरा को आगे बढाते हुए देश का आगाज करते हैं। सभी रिश्तों का आधार संवेदना होता है,अर्थात सम और वेदना का यानि की सुख-दुख का मिलाजुला रूप जो प्रत्येक मानव को धूप - छाँव की भावनाओं से सरोबार कर देते हैं। रक्त सम्बंधी रिश्ते तो जन्म लेते ही मनुष्य के साथ स्वतः ही जुङ जाते हैं। परन्तु कुछ रिश्ते समय के साथ अपने अस्तित्व का एहसास कराते हैं। दोस्त हो या पङौसी, सहपाठी हो या सहर्कमी तो कहीं गुरू-शिष्य का रिश्ता। रिश्तों की सरिता में सभी भावनाओं और आपसी प्रेम की धारा में बहते हैं। अपनेपन की यही धारा इंसान के जीवन को सबल और यथार्त बनाती है,वरना अकेले इंसान का जीवित रहना भी संभव नही है। सुमधुर रिश्ते ही इंसानियत के रिश्ते का शंखनाद करते है इंसानी दुनिया में एक दूसरे के साथ जुङाव का एहसास ही रिश्ता है, बस उसका नाम अलग-अलग होता है। समय के साथ एक वृक्ष की तरह रिश्तों को भी संयम,सहिष्णुता तथा आत्मियता रूपी खाद पानी की आवश्यकता होती है। परन्तु आज की आधुनिक शैली में तेज रफ्तार से दौङती जिंदगी में बहुमुल्य रिश्ते कहीं पीछे छुटते जा रहे हैं।स्वयं के अनुभव की वकालत करने वाले लोगों के लिए रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है।उनके लिए तो सबसे बड़ा रुपया है किसी भी रिश्ते में धूप-छाँव का होना सहज प्रक्रिया है किन्तु कुछ रिश्ते तो बरसाती मेंढक की तरह होते हैं, वो तभी तक आपसे रिश्ता रखते हैं जबतक उनको आपसे काम है या आपके पास पैसा है। उनकी डिक्शनरी में भावनाओं और संवेदनाओं जैसा कोई शब्द नही होता। ऐसे रिश्ते मतलब निकल जाने पर इसतरह गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सर से सिंग। परन्तु कुछ लोग अनजाने में ही इस तरह के रिश्तों से इस तरह जुङ जाते हैं कि उसके टूटने पर अवसाद में भी चले जाते हैं। कुछ लोग रिश्तों की अनबन को अपने मन में ऐसे बसा लेते हैं जैसे बहुमुल्य पदार्थ हो। इंसानी प्रवृत्ति होती है कि मनुष्य,रिश्तों की खटास और पीढा को अपने जेहन में रखता है और उसका पोषण करता है।
जिसका मनुष्य के स्वास्थ पर बुरा असर पङता है। इस तरह की नकारात्मक यादें तनाव बढाती हैं। जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को कम करता है। परिणाम स्वरूप मनुष्य कई बिमारियों से ग्रसित हो जाता है। युवावर्ग को खासतौर से ऐसे रिश्तों से परहेज करना चाहिए जो अकेलेपन और स्वार्थ भावनाओं की बुनियाद पर बनते हैं क्योंकि ऐसे रिश्ते दुःख और तनाव के साथ कुंठा को भी जन्म देते है ! जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नही है, पर जो रिश्ते हैं उनमे जीवन होना जरूरी है रिश्तों का जिक्र हो और पति-पत्नी के रिश्तों की बात न हो ये संभव नही है क्योंकि ये रिश्ता तो पूरे परिवार की मधुरता का आधार होता है। इस रिश्ते की मिठास और खटास दोनो का ही असर बच्चों पर पङता है। कई बार ऐसा होता है कि, छोटी-छोटी नासमझी रिश्ते को कसैला बना देती है। जबकि पति-पत्नी का रिश्ता एक नाजुक पक्षी की तरह अति संवेदनशील होता है। जिसे अगर जोर से पकङो तो मर जाता है,धीरे से पकङो अर्थात उपेक्षित करो तो दूर हो जाता है। लेकिन यदि प्यार और विश्वास से पकङो तो उम्रभर साथ रहता है।कई बार आपसी रिश्ते जरा सी अनबन और झुठे अंहकार की वजह से क्रोध की अग्नी में स्वाह हो जाते हैं।
रिश्तों से ज्यादा उम्मीदें और नासमझी से हम में से कुछ लोग अपने रिश्तेदारों से बात करना बंद कर देते हैं। जिससे दूरियां इतनी बढ जाती है कि हमारे अपने हम सबसे इतनी दूर आसमानी सितारों में विलीन हो जाते हैं कि हम चाहकर भी उन्हे धरातल पर नही ला सकतेकिसी ने बहुत सही कहा हैः- "यदि आपको किसी के साथ उम्रभर रिश्ता निभाना है तो, अपने दिल में एक कब्रिस्तान बना लेना चाहिए। जहाँ सामने वाले की गलतियों को दफनाया जा सके।" कोई भी रिश्ता आपसी समझदारी और निःस्वार्थ भावना के साथ परस्पर प्रेम से ही कामयाब होता है। यदि रिश्तों आपसी सौहार्द न मिटने वाले एहसास की तरह होता है तो,छोटी सी जिंदगी भी लंबी हो जाती है। इंसानियत का रिश्ता यदि खुशहाल होगा तो देश में अमन-चैन तथा भाई-चारे की फिजा महकने लगेगी। विश्वास और अपनेपन की मिठास से रिश्तों के महत्व को आज भी जीवित रखा जा सकता है।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज़

विश्व मजदूर दिवस


मजदूरों के अन्तर्राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है - मजदूर दिवस पर शुभकामना 
 
विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस “1 मई” के दिन मनाया जाता है। किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर / कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत “नीव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज, देश, उद्योग, संस्था, व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारीयों) की विशेष भूमिका होती है ! मजदूर वर्ग अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में मील का पत्थर है इस कम्प्यूटर युग में मजदूर को मजदूरी के लाले पडे है। मजदूरों से ज्यादा से ज्यादा समय तक काम करवाना इनकी फितरत हो गई थी। मजदूरों से 16-16 घण्टे, 18-18 घण्टे तक काम करवाया जाता था। आराम नाम की चीज उन्हें हासिल नहीं थी। परिणामस्वरूप अधिकांश मजदूर बीमारी के शिकार होकर मृत्यु के शिकार हो जाते थे, परिवार की देखभाल के लिए भी समय नहीं मिलता था। आज मजदूर हर रोज सुबह शाम बढती महंगाई से परेशान है ऐसा नहीं की इस महगॅाई की मार सिर्फ में सिर्फ मजदूर ही आया है इस महगॉई रूपी ज्वालामुखी की तपिश में हर कोई झुलस रहा है छटपटा रहा है खाद्यान्न, सब्जी , फल, व तेलो के दाम हर समय आसमान छूते है खाने पीने की चीजों के दाम बेतहाशा बढ रहे है ऐसे में अगर 1 मई को मजदूर दिवस मनाये तो शाम को मजदूर के घर चूल्हा कैसे जले। आज मजदूर दिवस मात्र औपचारिकता बन कर रह गया। कल तक बडी बडी मिले थी, कल कारखाने थे, कल कारखानो एंव औधोगिक इकाईयों में मशीनो का शोर मचा रहता था मजदूर इन मशीनों के शोर में मस्त मौला होकर कभी गीत गाता तो कभी छन्द दोहे गुनगुनाता था। पर आज ये सारी मिले कल कारखाने मजदूरों की सूनी ऑखो और बुझे चूल्हों की तरह वीरान पडे है। जिन यूनियने के लिये मजदूरो ने सडको पर अपना लहू पानी की तरह बहाया था उन सारी यूनियने के झन्डे मजदूरो के बच्चो के कपडों की तरह तार तार हो चूके है। फिर भी 1 मई को हम लोग अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर ‘‘मजदूर दिवस ’’ का आयोजन करते है। इस दिन केन्द्र और राज्य सरकारो द्वारा मजदूरो के कल्याणार्थ अनेक योजनाये शुरू की जाती है पर आजादी के 70 साल बाद भी ये सारी योजनाये गरीब मजदूर को एक वक्त पेट भर रोटी नहीं दे सकी। आज इस कम्प्यूटर युग ने मशीनों की रफ्तार तो तेज कर दी परन्तु कल कारखानो और औधोगिक इकाईयो की रौनक छीन ली मजदूरो से भरी रहने वाली ये मिले कारखाने कम्प्यूटरीकृत होने से एक ओर जहॉ मजदूर बेरोजगार हो गया वही ये इकाईया बेरौनक हो गई। या यू कहा जाये की मजदूर के बगैर बिल्कुल विधवा सी लगती है। मजदूर आज भी मजदूर है चाहे कल उसने ताज महल बनाया हो ताज होटल बनाया हो या फिर संसद भवन,उसे आज भी सुबह उठने पर सब से पहले अपने बच्चो के लिये शाम की रोटी की फिक्र होती है
लेखक - उत्तम जैन
संपादक - विद्रोही आवाज़ 

Saturday 29 April 2017

रिश्ते दाम्पत्य जीवन के…..

ऐसा माना जाता है कि पति और पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता है। कई विपरित परिस्थितियों में भी पति-पत्नी एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। यदि पत्नी सर्वगुण संपन्न है तो तब तो दोनों का जीवन सुखी बना रहता है लेकिन पत्नी हमेशा क्रोधित रहने वाली है तो दोनों के जीवन में हमेशा ही मानसिक तनाव बना रहता है। ऐसे बहुत सारे परिवार हैं जिनमें पति-पत्नी के बीच अधिकतर तनाव रहता है ! इस तरह की समस्याएं न उत्पन्न हों, पति-पत्नी व संतानों का जीवन नरक न बने इसके लिए प्रारम्भ से ही ध्यान रखा जाना चाहिए। पति पत्नी विचारधारा में समानता हो पूरी कोसिश करनी चाहिए । आजकल समाज में धन और जाति बस दो ही बात देखी जाती हैं विचारधारा की समानता की ओर कम ही ध्यान दिया जाता है जबकि सफल गृहस्थ जीवन के लिए विचारधारा में समानता होना अति महत्वपूर्ण है। दाम्पत्य कहते किसे हैं? क्या सिर्फ विवाहित होना या पति-पत्नी का साथ रहना दाम्पत्य कहा जा सकता है। पति-पत्नी के बीच का ऐसा धर्म संबंध जो कर्तव्य और पवित्रता पर आधारित हो। इस संबंध की डोर जितनी कोमल होती है, उतनी ही मजबूत भी। जिंदगी की असल सार्थकता को जानने के लिये धर्म-अध्यात्म के मार्ग पर दो साथी, सहचरों का प्रतिज्ञा बद्ध होकर आगे बढऩा ही दाम्पत्य या वैवाहिक जीवन का मकसद होता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों पर स्त्री और पुरुष दोनों ही अधूरे होते हैं। दोनों के मिलन से ही अधूरापन भरता है। दोनों की अपूर्णता जब पूर्णता में बदल जाती है तो अध्यात्म के मार्ग पर बढऩा आसान और आनंद पूर्ण हो जाता है। दाम्पत्य की भव्य इमारत जिन आधारों पर टिकी है वे मुख्य रूप से सात हैं। रामायण में राम सीता के दाम्पत्य में ये सात बातें देखने को मिलती हैं- संयम : यानि समय-समय पर उठने वाली मानसिक उत्तेजनाओं जैसे- कामवासना, क्रोध, लोभ, अहंकार तथा मोह आदि पर नियंत्रण रखना। राम-सीता ने अपना संपूर्ण दाम्पत्य बहुत ही संयम और प्रेम से जीया। वे कहीं भी मानसिक या शारीरिक रूप से अनियंत्रित नहीं हुए। संतुष्टि : यानि एक दूसरे के साथ रहते हुए समय और परिस्थिति के अनुसार जो भी सुख-सुविधा प्राप्त हो जाए उसी में संतोष करना। दोनों एक दूसरे से पूर्णत: संतुष्ट थे। कभी राम ने सीता में या सीता ने राम में कोई कमी नहीं देखी। संतान : दाम्पत्य जीवन में संतान का भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान होता है। पति-पत्नी के बीच के संबंधों को मधुर और मजबूत बनाने में बच्चों की अहम् भूमिका रहती है। राम और सीता के बीच वनवास को खत्म करने और सीता को पवित्र साबित करने में उनके बच्चों लव और कुश ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संवेदनशीलता : पति-पत्नी के रूप में एक दूसरे की भावनाओं का समझना और उनकी कद्र करना। राम और सीता के बीच संवेदनाओं का गहरा रिश्ता था। दोनों बिना कहे-सुने ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे। संकल्प : पति-पत्नी के रूप अपने धर्म संबंध को अच्छी तरह निभाने के लिये अपने कर्तव्य को संकल्पपूर्वक पूरा करना। सक्षम : सामर्थ्य का होना। दाम्पत्य यानि कि वैवाहिक जीवन को सफलता और खुशहाली से भरा-पूरा बनाने के लिये पति-पत्नी दोनों को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत होना बहुत ही आवश्यक है। समर्पण : दाम्पत्य यानि वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी का एक ..... आगे पढ़े 

Friday 28 April 2017

सफलता की और कदम

चलते रहे चलते रहे ...
ग़मों के कांटे चुभते रहे,
फिर भी हम चलते रहे|
मिलते रहा सभी से मगर,
अपने दायरों में सिमटता रहा
फिर भी में चलता रहा !
गिरना तो फितरत ही थी,
गिर गिर के संभालता रहा |
फिर भी में चलता रहा …
क्या है तेरा वजूद ‘विद्रोही ’,
मौसम से तुम बदलते रहे |
फिर भी हम चलते रहे …
मित्रो ये पंक्तिया मेरे जीवन में बहुत बड़ा सन्देश देती है क्यों की सफलता और असफलता का मेरे जीवन चोली दामन का साथ रहा है --- समय के साथ खुद ही ढलते गये हम । चलते रहे बहुत सम्भलकर फिर भी फिसल ही गये हम ।किसी ने विश्वास तोड़ा , किसी ने दिल। किसी ने हाथ छोड़ा तो किसी ने मुह मोड़ा । फिर भी लोगों ने यही कहा बदल गये हम ! सँभलकर कर चलते रहे उम्र भर अनजानी राहों पर पैर लड़खड़ाए वहीं जहाँ राहें जानी पहचानी थी ! एक अनचाहा सा खाली पन , जब भी कुछ लम्हे ज़िन्दगी के सुकून से बिताने को मन करता है जो कुछ पाने कुछ खोने ,किसी को अपना बनाने ,किसी के होने का मन करता है बस एक साथी है जो मेरा हर समय मेरे सुख मेरे दुःख में रंग भरने का काम करता है वो है मेरी डायरी और उस का प्रेमी 'कलम " जब दोनों एक दुसरे से मिल जाते है तो बिछड़ने का नाम ही नहीं लेते है ! बचपन से शोख कहू या सपना जब कोई समाचार पत्र पढता था ! हमेशा सोचता था में भी एक ऐसा समाचार पत्र का प्रकाशन करूँगा ! एक बार कोशिस भी मगर सफल नही हो पाया ! मात्र 2 अंक के बाद कुछ कारण से प्रकाशन बंद हो गया ! मगर होंसला था जज्बा बुलंद था की एक दिन प्रकाशन फिर से करूँगा और फिर शुरू हुआ .... हुआ तो बढ़ता ही गया बढ़ता ही गया और बढ़ता ही जा रहा है ... महापुरुषों की , लेखको की लिखित साहित्य पढने का शोख ने कुछ लिखने को प्रेरित किया अब कुछ वर्षो से लिखने भी लगा हु ! अच्छा लिखू या नही में नही जानता मगर जो लिखता हु आप सभी मित्रो से जरुर साझा करता हु आप सबकी प्रतिक्रिया मुझे हमेशा नया लिखने का साहस प्रदान करती है ! अब कुछ विषय के मुख्य बिंदु की और मित्रो जब हम किसी सफल व्यक्ति को देखते हैं तो केवल उसकी सफलता को देखते हैं। इस सफलता को पाने की कोशिश में वह कितनी बार असफल हुआ है, यह कोई जानना नहीं चाहता। जबकि असफलता का सामना करे बिना शायद ही कोई सफल होता है। असफलता, सफलता के साथ-साथ चलती है। आप इसे किस तरह से लेते हैं, यह आप पर निर्भर करता है, क्योंकि हर असफलता आपको कुछ सिखाती है। असफलता में राह में मिलने वाली सीख को समझकर जो आगे बढ़ता जाता है वह सफलता को पा लेता है। सफलता के लिए जितना जरूरी लक्ष्य और योजना है, उतना ही जरूरी असफलता का सामना करने की ताकत भी।
जिस दिन आप तय करते हैं कि आपको सफलता पाना है, उसी दिन से अपने आपको असफलता का सामना करने के लिए तैयार कर लेना चाहिए, क्योंकि असफलता वह कसौटी है जिस पर आपको परखा जाता है कि आप सफलता के योग्य हैं या नहीं। यदि आप में दृढ़ इच्छाशक्ति है और आप हर असफलता की चुनौती का सामना कर आगे बढ़ने में सक्षम हैं तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। तो हो जाइए तैयार सफलता की राह में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए, क्योंकि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसकी असफलताओं की भी कहानी होती है।
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में ।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले ।।
अंग्रेज़ी की एक प्रेरक कहावत है- 'स्ट्रगल एंड शाइन।' यह वाक्य हमें बड़ी शक्ति देता है, जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। जीवन में कठिनाईयां तो आती ही हैं और कभी-कभी तो इतने अप्रत्याशित कि संभलने का भी पूरा समय नहीं मिलता। यही तो जीवन की ठोकरें हैं जिन्हें खाकर ही हम संभलना सीख सकते हैं। उनसे बचने की कोशिश तो करना है, पर ठोकर कहते ही उसे हैं जो सावधानी के बाद भी लगती है और आखिर एक नई सीख भी दे जाती है। रसायन शास्त्र का एक नियम है, जो जिंदगी पर भी लागू होता है। जब कोई अणु टूटकर पुन: अपनी पूर्व अवस्था में आता है तो वह पहले से अधिक मज़बूत होता है। इसी तरह हम जब किसी परेशानी का सामना करने के बाद पहले से अधिक मज़बूत हो जाते हैं और जीवन में और भी तरक्की करते हैं।
मंजिल मिल ही जायेगी भटकते ही सही,
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं........
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
नोट - इन विचारो को तोेड मरोडकर या नाम हटाकर ..कही पोस्ट न करे

Thursday 27 April 2017

एटीएस ने मुझे प्रताड़ित किया- साध्वी प्रज्ञा का आरोपः

मालेगांव ब्लास्ट केस में जमानत के बाद जेल से बाहर आईं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि आज बंधन से मुक्त हुई हूं। मैं नौ साल से अन्याय की शिकार हुई हूं। उन्होंने कहा कि भगवा आतंक शब्द कांग्रेस की देन है। प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में ये बातें कही।
साध्वी ने कांग्रेस पर आरोप लगात हुए कहा कि कांग्रेस ने मेरे खिलाफ साजिश रची। उन्होंने कहा कि एटीएस मुझे बिना बात के लिए उठा के ले गई और एटीएस ने मुझे गैर कानूनी तरह से प्रताड़ित किया था। एटीएस ने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से मुझे पूरी तरह तोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि मैं संन्यासी हूं इसलिए मैंने इस सब को सहन कर लिया। 
भोपाल के एक अस्पताल में ढाई साल से भर्ती प्रज्ञा ठाकुर के डॉक्टरों का दावा है कि वो बेहद बीमार हैं। प्रज्ञा ठाकुर भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा शासकीय (स्वशासी) आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं संस्थान भोपाल में अपना इलाज करा रही हैं। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर उमेश शुक्ला के अनुसार प्रज्ञा ठाकुर बिना व्हील चेयर के कहीं आ-जा नहीं सकतीं।
उनको रीढ़ की हड्डी में समस्या है। शुक्ला के अनुसार प्रज्ञा ठाकुर को स्तन का कैंसर भी प्रारंभिक अवस्था में है. इसका इलाज भी संस्थान में चल रहा है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपनी बीमारी के इलाज के लिए कई महत्वपूर्ण चिकित्सा संस्थानों में चेकअप करा चुकी हैं। 
प्रज्ञा ठाकुर का भोपाल कनेक्शन
मालेगांव में ब्लास्ट 29 सितंबर 2008 में हुआ था। ब्लास्ट के लिए बम को मोटर साईकिल में लगाया गया था। ब्लास्ट में आठ लोग मारे गए थे और 80 से अधिक लोग घायल हुए थे। प्रारंभ में घटना की जांच महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस ने की थी। बाद में मामला जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया।
एनआईए ने अपनी जांच में यह पाया कि घटना की साजिश अप्रैल 2008 में भोपाल में रची गई थी। प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी भी एटीएस ने की थी। गिरफ्तारी का आधार ब्लास्ट में उपयोग की गई मोटर साईकिल थी। यह मोटर साईकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम रजिस्टर्ड थी। प्रज्ञा ठाकुर लगभग नौ साल से जेल में थीं।

Wednesday 26 April 2017

नारी शक्ति के अवदान ओर पीड़ा - उत्तम विद्रोही की जुबानी

भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है नारी शक्ति की चेतना का प्रतीक है। साथ ही यह प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो जड़ स्वरूप पुरुष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। साथ ही संसार की सार्थकता सिद्ध करती है। महिला शब्द में ही महानता, ममता, मृदुलता, मातृत्व और मानवता की कल्याणकारी प्रवृत्तियों का समावेश है । महिलाओं के कारण ही सृष्टि में सुख-शांति, सहृदयता, सहयोग के संस्कार से संस्कृति का उत्थान और उत्कर्ष हो रहा है । जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएँ अपनी श्रेष्ठता-विशिष्टता पुरूषों से बढ़-चढ़कर सिद्ध प्रसिद्ध कर रही है । इसके बावजूद भी आज देश-विदेश में महिला उत्पीड़न का ग्राफ बढ़ता जा रहा है तरह-तरह की पीड़ा, हत्या और आत्महत्याओं का दौर थम नहीं रहा है । महिलाओं की सहजता, सहनशीलता और संकोच के दबाव को कमजोरी समझा जा रहा है, जबकि महिलाएँ पुरुषों से किसी तरह कमजोर नहीं है ।
पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं को पहले पाव की जूती समझा जाता था । खरीदी हुई कोई वस्तु समझकर उसे चाहे जब चाहे, कुचल-मसल दिया जाता रहा है । किन्तु जैसे-जैसे महिला जागृति बढ़ी मानवाधिकार की आवाज बुलंद हुई, संयुक्त राष्ट्र संघ, लोकसभा, विधानसभा और पंचायतों में महिलाओं को आंशिक प्राथमिकता दिए जाने के अनुसार हर क्षेत्र में पूर्ण आरक्षण दिए जाने में पुरूषों की आना-कानी, हीले-हवाले व बहानेबाजी रोड़ा बनी हुई है । राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं को आगे बढ़ने में कई बार बाधाएँ उत्पन्न होती है । महिला सशक्तिकरण, कार्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं द्वारा स्थापित कीर्तिमान यह सिद्ध करता है कि महिलाओं के बढ़ते बदलाव के कदम अब रोके नही जा सकते हैं । महिलाओं द्वारा ही देश को भ्रष्टाचारमुक्त किया जा सकता है ।आज हमे स्वीकार करना होगा महिलाओं को बाल्यकाल से ही अहसास करवाया जाता है कि वे लड़की हैं और उन्हें एक सीमित दायरे में ही कैद रहना है तथा जितनी उड़ान उनके माँ – बाप चाहें बस उतना ही उड़ना है । बाल्यकाल अभिभावकों के संरक्षण में उनके अनुसार ही गुजारना होता हैं ।
लडकियों को इतनी स्वतंत्रता अभी भी नहीं हैं कि वे अपने लिए स्वतंत्र निर्णय ले सकें । एक तरह से उन्हें हर निर्णय के लिए अभिभावकों का मुँह देखना पड़ता है और हर कदम आगे बढ़ाने के लिए उनकी सहमति लेनी पड़ती है । अभिभावक उदारवादी रवैये वाले हुए तो ठीक है कि लड़की अपने हित में सोच सकती हैं और कुछ कर सकती है, परन्तु इसका प्रतिशत अभी ज्यादा नहीं हैं । शहरों और महानगरों को छोड दें तो गाँवो में स्थिति अभी भी ज्यादा नहीं सुधरी है । लड़की को साधारण पढा-लिखा कर कम उम्र में ही उनका ब्याह रचा दिया जाता है । गाँवों में अभी भी लड़की की सहमति या असहमति से कोई मतलब नही होता । शहरों में भी कुछ ही परिवार उन्नत विचारों और मानसिकता वाले है, जो एक सीमा तक पढ़ाई-लिखाई की छूट और उन्हें नौकरी करने की आजादी देते है । अभी भी शहर से बाहर जाकर नौकरी बहुत कम लडकियाँ कर पाती हैं
बचपन से ही लड़कियों का आत्मविश्वास और मनोबल क्षीण या कमजोर कर दिया जाता है कि वे कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाती तथा दब्बू प्रवृत्ति की बन जाती है । यह प्रारम्भिक कमजोरी मन पर सदैव हावी रहती है यदि ससुराल पक्ष और पति उदारवादी दृष्टिकोण के हुए तो ठीक, वरना यहाँ भी उसे परतंत्रता का घूंट पीना पड़ता है । ससुराल वालों के अनुसार ही बहू को चलना पड़ता हैं । वरना जीवन दूभर हो जाता है । वैसे भी प्रारंभ से मिली शिक्षा और व्यवहार उसे अपने आकाश गढ़ने नहीं देते, जिसमें वह मनचाही कल्पनाओं के इन्द्रधनुष रच सकें । जीवन यहाँ भी औरों के बस में ही होता है जिसे वह एक समझौते के साथ अपने रिश्ते-नातों के धागों को सहेजते हुए जीती है । विरोध केवल कलह और अशांति को जन्म देता हैं, इसलिए वह साहस नहीं कर पाती कि अपने हित में निर्णय आसानी से ले सके । यहाँ महिलाओं की कमजोरी साबित होती है कि चाहते हुए भी मनचाहे क्षेत्र में आगे नही बढ़ सकती अपवादस्वरूप कुछ साहस कर पाती है परन्तु उसका प्रतिशत बहुत कम है, क्योंकि प्रवृति उनकी प्रारम्भ से ही ऐसी बना दी जाती है कि वे विरोध कर नहीं सके । इसलिए महिलाओं को दोष नहीं दिया जा सकता है कि वे कमजोर क्यों हैं? बुजुर्ग अवस्था में भी महिलाओं को सुकून नही मिल पाता  यहाँ भी उन्हें समझौता करना पड़ता है और दब कर रहना पड़ता है । कई बार तो अपमान सहने तक की नौबत आ जाती है । उस अवस्था में जबकि आर्थिक आधार इतना सुदृढ़ नहीं हो । कुछ भी करने के लिए बेटे या पति का मुँह देखना पड़ता है । अगर अपने हिसाब से जीना चाहें तो नहीं जी सकती हैं । महिलाएँ अपने खातें में परतंत्रता की जंजीरें ही लिखाकर लाई हैं, जिन्हें काटना उनके लिए आसान या संभव नहीं है । हर अवस्था में उन्हें कमजोर बनाया जाता है । इसलिए यह प्रश्न बेमानी सा है कि महिलाओं में कमजोरी क्यों?
इसी प्रकार एक लड़की को किसी भी क्षेत्र में जाने से पहले जूझना है और लोगों के व्यंग्य भी सहने पड़ते हैं, परन्तु जब सफलता मिलती है, तो सब सिर आँखों पर बिठाते हैं । यही महिला जीवन की त्रासदी है क्योंकि सभी लड़कियाँ दृढ़ता से अपने हक में निर्णय नहीं ले पाती । पुलिस विभाग में महिलाओं की नौकरी अच्छी नहीं मानी जाती थी, परन्तु सुश्री किरण बेदी ने जो साहस और क्षमता दिखाई कि वे मील का पत्थर बन गई तथा औरों को भी उन्होंने प्रेरणा दी कि महिलाएँ भी सब कुछ करने में समर्थ है । वैसे तो महिला सशक्तिकरण की बातें तो बहुत हो रही हैं परन्तु बदलाव इतनी जल्दी और आसानी से नहीं होने वाला है, जब तक कि यह जागृति की लहर हर तरफ न फैल जाए ।अभी तो अँगुली पर गिने जाने वाले नाम ही हैं, जो महिलाओं की शक्ति का प्रतीक है और उनके सामर्थ्य को दर्शाते हैं । बेटों की तरह बेटियों का भी दुनिया में आगमन (बैंड बाजे बजवाकर) और पालन-पोषण हो तो निश्चित ही वे अपनी सफलता की बानगी दिखला सकती है ।
महिलाओं को जेवर, कपड़ों का शौक होता है, जो उनकी कमजोरी नहीं, अपितु रूचियाँ हैं, वही कई बार स्त्रियों में ईर्ष्या प्रवृति (किसी में कम, किसी में ज्यादा) भी देखी गई है जो पुरूषों में भी पाई जाती है । देखा-देखी या होड़ा-होड़ी की भावना भी सभी में होती है । जो स्वभाव के अनुसार कम या ज्यादा होती है, इसलिए महिलाओं को सिर्फ कमजोरी का पुतला ही न समझें, बल्कि उनकी क्षमता, सामर्थ्य व परिस्थितियों को भी समझें ।
जहाँ तक भ्रूण हत्या का सवाल है कोई भी महिला अपने अंश को आसानी से जाया नही करेंगी । परन्तु पारिवारिक दबाव और महिलाओं की सामाजिक स्थिति देख वे अपने कलेजे पर पत्थर रखकर ऐसा निर्णय लेने हेतु कमजोर पड जाती है । इसे कमजोरी नहीं कहा जाएगा, क्योंकि वे स्वयं महिला होने के नाते बचपन से पाबंदियों और पक्षपात (बेटे व बेटी में) के दौर से गुजरी है तथा वे नहीं चाहती कि उनकी बेटी को ऐसे त्रासदी भरे दौर से गुजरना पड़े, इसलिए वे ऐसे दुःखद निर्णय ले लेती है । आगे जाकर दहेज प्रथा उनके जीवन का नासूर साबित होती है तथा समाज या जाति के दबाव में कम योग्य वर से ब्याह दी जाती है या दहेज के लालची ऐसे कठोर लोगों का शिकार बन जाती है, ताकि कोई अबला जीवन की कहानी नहीं दोहराई जा सके । इसे कमजोरी नहीं अपितु मजबूरी या विवशता कहा जाएगा कि वे अपना ही अंश गर्भ में ही समाप्त कर दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा । जब तक ऐसी मानसिकता समाज की रहेगी, यह कमजोरी या विवशता रहेगी ।
 लेखक - उत्तम जैन विद्रोही 

Tuesday 25 April 2017

पुस्तकों से पाठको की बढ़ती दूरी एक चिंताजंक समस्या

आज सूचना तकनीक ने भले ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, पर पुस्तकें आज भी विचारों के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम हैं। आम आदमी के विकास के लिए जरूरी शिक्षा और साक्षरता का एकमात्र साधन किताबें हैं। यह सच है कि सूचनाओं के प्रसार में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मुद्रण माध्यमों पर भारी पड़ रहा है। पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी कोने में कंप्यूटर या टीवी स्क्रीन पर सूचनाओं को पहुंचाया जा सकता है। मगर इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि किताबें सर्वाधिक संयमित माध्यम हैं। वे पाठक को उनकी क्षमता के अनुरूप ज्ञान का आकलन करने और जानकारियों का गहराई से विश्लेषण और समालोचना का मौका प्रदान करती हैं। संचार माध्यम बदलते हुए विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली अस्त्र बनते जा रहे हैं। पिछले दो दशक में सूचना तंत्र अत्यधिक सशक्त हुआ है, उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं, लेकिन पुस्तक का महत्त्व इस विस्तार के बावजूद अक्षुण्ण है। यही नहीं, कई स्थानों पर तो पुस्तक व्यवसाय में काफी प्रगति हुई है। भले क्षणिक सूचना या शैक्षिक उद्देश्य से इंटरनेट का सहारा लेने वाले लोग बढ़े हों, लेकिन विभिन्न व्यापारिक वेबसाइटों से पुस्तकें खरीदने वालों की संख्या भी बढ़ी है। मगर इसका यह अर्थ नहीं कि पुस्तक मेलों या प्रदर्शनियों की संख्या कम हुई या वहां भीड़ कम हुई है। विकासमान समाज पर आधुनिक तकनीक का गहरा असर हो रहा है। इनसे जहां भौतिक जीवन आसान हुआ है, वहीं पर निर्भरता भी बढ़ी है। इससे हमारे जीवन का मौलिक सौंदर्य प्रभावित हो रहा है। रचनात्मकता पिछड़ और असहिष्णुता उपज रही है। ऐसे में पुस्तकें आर्थिक प्रगति और सांस्कृतिक मूल्यों के बीच संतुलन बिठाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
भारत में महंगाई, प्रतिकूल सांस्कृतिक-सामाजिक-बौद्धिक परिस्थितियों के बावजूद पुस्तक प्रकाशन एक क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है। छपाई की गुणवत्ता में परिवर्तन के साथ-साथ विषय में विविधता आई है। विश्व में भारत ही शायद एकमात्र ऐसा देश है, जहां चौबीस भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित होती हैं।
इसके बावजूद आज भी आम घरों में किताबें घर या बच्चों के लिए ‘आवश्यक’ की सूची में नहीं आ पाई हैं। इसके दो पहलू हैं- एक तो पुस्तक साबुन-तेल की तरह उपभोक्ता वस्तु नहीं है और न ही उसका इस तरह प्रचार होता है। दूसरा, आम पाठक के लिए पुस्तक महज उसकी जरूरत पर याद आने वाली वस्तु है। इसका एक विपरीत असर भी हुआ है- खासकर हिंदी और कई भारतीय भाषाओं में पुस्तकों की विशाल संख्या में ‘स्वांत: सुखाय’ वाला हिस्सा ज्यादा बड़ा हो गया है। कई वरिष्ठ और नवोदित लेखक अपना पैसा लगा कर एक हजार किताबें छपवाते हैं। फिर यार-दोस्तों की चिरौरी कर अखबार-पत्रिकाओं में उनकी समीक्षा प्रकाशित कराते हैं। जुगत से कुछ सरकारी खरीद कराने या फिर सरकार पोषित पुरस्कार जुटाने तक सिमट कर रह गई है पुस्तकों की दुनिया। फिर सब यही रोना रोते रहते हैं कि पुस्तकें बिकती नहीं हैं। कई लोगों के लिए तो पुस्तकें आयकर बचाने और काला धन सफेद करने का औजार हैं।
यह भी एक चिंता की बात है कि देश के बड़े हिस्से में बच्चों के लिए किताब का अर्थ पाठ्यपुस्तक से अधिक नहीं है। वहां न तो पुस्तकालय हैं और न पाठ्येतर पुस्तकों की दुकानें। यदा-कदा जब वहां तक कुछ पठनीय पहुंचता है, तो खरीदा भी जाता है और पढ़ा भी।
यह देश के आम मध्यवर्ग की मानसिकता है। बच्चों के मानसिक विकास की समस्याओं को आज भी गंभीरता से नहीं आंका जा रहा है। मध्यवर्ग अपने बच्चों की शिक्षा और मानसिक विकास के लिए अँग्रेजी स्कूल में पढ़ाई और अच्छा खाने-खिलाने से आगे नहीं सोच रहा है। यही कारण है कि ‘अपने प्रिय को उपहार में पुस्तकें दें’ नारा व्यावहारिक नहीं बन पाया है। इन दिनों दुनिया का व्यापारिक जगत भारत में अपना बाजार तलाशने में लगा हुआ है। दैनिक उपभोग की एक चीज बिकते देख दर्जनों कंपनियां वही उत्पाद बनाने-बेचने लग जाती हैं। होड़ इतनी कि ग्राहकों को रिझाने के लिए छूट, ईनाम, फ्री सर्विस की झड़ी लग जाती है। आम आदमी की खरीद क्षमता बढ़ रही है। पैसे के बहाव के इस दौर में भी किताबें दीन-हीन-सी हैं। इतनी निरीह कि हिंदी प्रकाशक को अपनी पहचान का संकट सता रहा है।
किताबों की लोकप्रियता में कई बातें आड़े आ रही हैं- प्रकाशकों में अच्छी पुस्तकें छापने और उन्हें बेचने की इच्छाशक्ति का अभाव, पढ़े-लिखे समाज का किताबों की अनिवार्यता को न समझना और बाजार की अनुपस्थिति। यह कड़वा सच है कि प्रकाशक किताबों के लिए डीलर, विक्रेता तलाशने के बजाय एक जगह कमीशन देकर ‘सरस्वती’ का सौदा करना अधिक सहूलियत समझते हैं। आखिर यह क्यों नहीं सोचा जाता कि लोकप्रिय कहे जाने वाले साहित्य की लाखों में बिक्री का एकमात्र कारण यह है कि वह हर गांव-कस्बे के छोटे-बड़े स्टॉलों पर बिकता है। तथाकथित दोयम दर्जे का साहित्य प्रकाशित करने वाला प्रकाशक जब इतनी दूर तक अपना नेटवर्क फैला लेता है, तो सात्विक साहित्य क्यों नहीं? हमारे देश की तीन-चौथाई आबादी गांवों में रहती है और दैनिक उपभोग का सामान बनाने वाली कंपनियां अपने उत्पाद का नया बाजार वहां खंगाल रही हैं। दुर्भाग्य है कि किताबों को वहां तक पहुंचाने की किसी ठोस कार्य-योजना का दूर-दूर तक अता-पता नहीं है। गांव की जनता भले कम पढ़ी-लिखी है, मगर वह सुसंस्कृत है। वह सदियों से दुख-सुख झेलती आ रही है। इसके बावजूद वह तीस-चालीस रुपए की रामायण वीपीपी से मंगवा कर सुख महसूस करती है। आजादी के इतने साल बाद भी गांव वालों की रुचि परिष्कृत कर सकने वाली किताबें प्रकाशित नहीं हो सकीं। कुल मिला कर पुस्तकों को पाठकों तक पहुंचाने के लिए लेखक, प्रकाशक और वितरकों की सक्रियता जरूरी है।
लेखक - उत्तम जैन
संपादक - विद्रोही आवाज़


Sunday 23 April 2017

हिन्दी साहित्य विवेचना ओर मेरा प्रेम --


मेरा अध्ययन वेसे कोई ज्यादा नही मगर मेरा साहित्य पढ्ना पसंदीदा विषय रहा है ! विभिन्न लेखको के साहित्य पढना मेेरा नित्यक्रम है ! मुझे हिन्दी साहित्य लिखना व पढना बहुत अच्छा लगता है ! अँग्रेजी पर मेरा अधिकार नही क्यू की मेरी शिक्षा छोटे गाव मे हिन्दी माध्यम से हुई हा अँग्रेजी विषय पर मेरी तुलना अगर की जाये तो मुझे अनपढ़ कहा जा सकता है ! हिन्दी मेरा सदेव पसंदीदा विषय रहा है ! पिछले पाँच वर्षो से ब्लॉग लिखता हु ! मेरे लिए सबसे बड़ा शुकुन यह रहा मेरे आदर्श व हिन्दी साहित्य प्रेमी श्री गणपत जी भसाली जी मेरा परिचय जब से हुआ मेरे लेखन मे के प्रति ओर रुचि बढ़ गयी ! उनके द्वारा संचालित व्हट्स अप समूह हिन्दी साहित्य सोरभ मे मुझे जोड़ा तब से मेरे सूरत के दिग्गज हिन्दी साहित्य प्रेमी से परिचय हुआ जिसमे कवयत्री व लेखिका दीदी पूनम गुजरानी जी , कवयत्री मनीषा जी ,कवयत्री रश्मि जी , कवयत्री एकता जी , कवयत्री सोनल जी , कवयत्री उर्मिला उर्मि जी , कवि अभिषेक जी , कवि सुरेन्द्र जी , कवि विनोद जी (वीनू) , राज शर्मा जी , प्रदीप जी जोशी आदि आदि बहुत से साहित्य प्रेमी से सदेव प्यार व अपनत्व मिला मुझे कुछ नया सीखने को मिला व काफी मित्रो की अनुमोदना से हमेशा कुछ नया ब्लॉग के माध्यम से लिखने को प्रेरित होता हु ! जिनको लगता है कि ब्लाग पर लिखा गया साहित्य नहीं है उनको ही इस प्रश्न का उत्तर ही ढूंढना चाहिए। पहले गैर अंतर्जाल लेखकों की चर्चा कर लें। वह आज भी प्रकाशकों का मूंह देखते हैं। उसी को लेकर शिकायत करते हैं। उनकी शिकायतें अनंतकाल तक चलने वाली है और अगर आज के समय में आप अपने लेखकीय कर्म की स्वतंत्र और मौलिक अभिव्यक्ति चाहते हैं तो अंतर्जाल पर लिखने के अलावा कोई चारा नहीं है। वरना लिफाफे लिख लिखकर भेजते रहिये। एकाध कभी छप गयी तो फिर उसे दिखा दिखाकर अपना प्रचार करिये वरना तो झेलते रहिये दर्द अपने लेखक होने का। अब साहित्य के बारे मे अपने विचार आप तक संप्रेषित करना चाहूँगा ----
साहित्य एक लोकधर्मी विधा है और समाज में समरसता, सहिष्णुता, सहअस्तित्व और सौहार्द्र बनाये रखने में इसकी भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। हमारे लोक साहित्य से वर्तमान साहित्य तक इसी भावना से प्रेरित रहे हैं। आज भी जन-जन में साहित्य की वो धारा चाहे कथा के रूप में हो, गीत के रूप में हो, धार्मिक या लोकोक्तियों के रूप में हो, बहुतायत में आज भी लोगों की जुबान पर विद्यमान है। साहित्य के इसी महत्व को देखते हुए हजारों साल पूर्व से ही हमारे देश में बच्चों को दादी नानी द्वारा कहानी सुनाने की परम्परा रही थी जिसके माध्यम से उनके अन्दर नैतिक मूल्य, उच्च जीवन आदर्श, प्रकृति और पर्यावरण, के साथ क्षमा, दया, करुणा, शील, शिष्टाचार, जैसे अच्छे संस्कार विकसित संरक्षित और स्थापित किये जाते रहे जिससे समाज में प्रेम और सौहार्द्र की भावना बनी रही। पर वर्तमान में इस लोक शिक्षण की लुप्त होती प्रवृत्ति ने इस भावना को बहुत चोट पहुचायी है परिणाम स्वरुप आज समाज में विद्वेष और विखंडनवादी शक्तियां प्रबल हो गयी हैं और सामाजिक समरसता और सौहार्द्र चरमरा गया है। लोकहित की इस भावना को आधुनिक हिंदी साहित्य ने भी आत्मसात किया तथा अनेक जन आन्दोलनों और समाज सुधार की आवाज बनी है। साहित्य शब्द को परिभाषित करना कठिन है। जैसे पानी की आकृति नहीं, जिस साँचे में डालो वह ढ़ल जाता है, उसी तरह का तरल है यह शब्द। कविता, कहानी, नाटक, निबंध, जीवनी, रेखाचित्र, यात्रा-वृतांत, समालोचना बहुत से साँचे हैं। परिभाषा इस लिये भी कठिन हो जाती है कि धर्म, राजनीति, समाज, समसमयिक आलेखों, भूगोल, विज्ञान जैसे विषयों पर जो लेखन है उसकी क्या श्रेणी हो?
क्या साहित्य की परिधि इतनी व्यापक है?
संस्कृत के ही एक आचार्य कुंतक व्याख्या करते हैं कि जब शब्द और अर्थ के बीच सुन्दरता के लिये स्पर्धा या होड लगी हो, तो साहित्य की सृष्टि होती है। केवल संस्कृतनिष्ठ या क्लिष्ट लिखना ही साहित्य नहीं है न ही अनर्थक तुकबंदी साहित्य कही जा सकेगी। वह भावविहीन रचना जो छंद और मीटर के अनुमापों में शतप्रतिशत सही भी बैठती हो, वैसी ही कांतिहीन हैं जैसे अपरान्ह में जुगनू। अर्थात, भाव किसी सृजन को वह गहरायी प्रदान करते हैं जो किसी रचना को साहित्य की परिधि में लाता है।
कितनी सादगी से निदा फ़ाज़ली कह जाते हैं----
मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख नें दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
यहाँ शब्द और अर्थ के बीच सादगी की स्पर्धा है किंतु भाव इतने गहरे कि रोम रोम से इस सृजन को महसूस किया जा सकता है। यही साहित्य है। साहित्य शब्द की चीर-फाड करने पर एक और छुपा हुआ आयाम दीख पडता है वह है इसका सामाजिक आयाम। बहुत जोर दे कर एक परिभाषा की जाती है कि “साहित्य समाज का दर्पण है”। रचनाकार अपने सामाजिक सरोकारों से विमुक्त नहीं हो सकता, यही कारण है कि साहित्य अपने समय का इतिहास बनता चला जाता है।
अपने समय पर तीखे हो कर दुष्यंत कुमार लिखते हैं:---
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये।
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये।
संक्षेप में “साहित्य” - शब्द, अर्थ और भावनाओं की वह त्रिवेणी संगम है जो जनहित की धारा के साथ उच्चादर्शों की दिशा में प्रवाहित है।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
संपादक - विद्रोही आवाज

Saturday 22 April 2017

एक किसान का सवाल सरकार से किसान का मूत्र पीना एक आत्मकथा उत्तम जैन (विद्रोही ) के माध्यम से ----

एक किसान का सवाल सरकार से किसान का मूत्र पीना  एक आत्मकथा उत्तम जैन (विद्रोही ) के माध्यम से ----
दो तीन दिन पूर्व मेने किसान की आत्मकथा नामक एक ब्लॉग लिखा था मेरे कुछ मित्रो व प्रशंसकों ने वाह वाह भी किया मुझे वाह वाह या तारीफ करना जितना अच्छा नही लगता उससे अच्छा मुझे लगता है मेरे विचारो को पढ़कर अपनी अभिव्यक्ति प्रदान करे ! उसी क्रम मे मेरे आदरणीय अग्रज भ्राता व मेरे मार्गदर्शक युवा गोरव श्रीमान राजेश जी सुराना सा ने मुझे ब्लॉग पढ़ने के बाद कहा मे विनम्रता के साथ कहना चाहूँगा की आज किसानो की यह स्थिति नही है मुझे महसूस भी हुआ शायद आज किसानो की स्थिति शायद बदल गयी हो मगर फिर जेसे ही सुना की जंतर-मंतर पर कर्जमाफी को लेकर तमिलनाडु के किसानों ने 22 अप्रैल 2017 को अपना मूत्र पीकर मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। पिछले 38 दिनों से प्रदर्शन कर रहे इन किसानों का कहना है कि यदि केंद्र सरकार अब भी किसानों प्रति बेरुखी रखती है तो रविवार को ये किसान अपना मल खाकर प्रदर्शन करेंगे। यह खबर कुछ ही घंटो में सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई। सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक और ट्विटर पर इस घटना ने नई बहस खड़ी कर दी है। किसानों के समर्थन में अनेक यूजर्स ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साध रहे हैं और अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। तो मंथन किया मुझे फिर से किसानो की आत्मकथा अपने विचारो के माध्यम से व्यक्त करनी चाहिए ---- एक किसान का सवाल सरकार से .......
मैं किसान हूं। पेशाब पीना मेरे लिए खराब बात नहीं है। जहर पीने से बेहतर है पेशाब पीना। जहर पी लिया तो मेरे साथ मेरा पूरा परिवार मरेगा पर पेशाब पीने से केवल आपकी संवेदनाएं मरेंगी। मेरा परिवार शायद बच जाए। कई बार लगता है आपकी संवेदनाएं मेरे लिए बहुत पहले ही मर गईं थीं लेकिन कई बार मुझे यह मेरा वहम भी लगता है। उत्तर प्रदेश के किसानों को बिना मांगे बहुत कुछ मिल गया लेकिन हम अपनी एक मांग के लिए अनशन किये, भूखे रहे, कपड़े उतारे और पेशाब तक गटक लिए लेकिन आप तक कोई खबर नहीं पहुंची। यह भेद-भाव क्यों? क्या मेरी भाषा आपके समझ में नहीं आती या मैं आपके 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का हिस्सा नहीं हूं? मैं तो कश्मीरियों की तरह पत्थरबाज भी नहीं हूं, नक्सलियों की तरह हिंसक भी नहीं हूं। मैं तो गांधी की तरह सत्याग्रही हूं । मेरी पुकार आप तक क्यों नहीं पहुंचती? आप भारत के सम्राट हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक आपके साम्राज्य का विस्तार है। आपकी इजाजत के बिना भारत में पत्ता तक नहीं हिलता तो क्या आपने, अपने कानों और आंखों पर भी ऐसा दुर्जेय नियंत्रण कर लिया है? मेरी चीखें आपके कानों के पर्दों तक क्यों नहीं पहुंचती? मैं चीखते-चीखते मर जाऊंगा और आपके सिपाही मेरी लाशों को कुचलते हुए आगे बढ़ जाएंगे लेकिन आप तक मेरे मरने की खबरें नहीं पहुंचेंगी। आप तो वस्तविक दुनिया के सापेक्ष चलने वाली आभासी दुनिया के भी सम्राट हैं। पूरी आभासी दुनिया आपके और आपके प्रशंसकों से भरी पड़ी है। ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, ऑनलाइन वेब पोर्टल हर जगह तो आप ही आप छाए हुए हैं। क्या मेरी अर्ध नग्न तस्वीरें आपको नहीं मिलतीं? मेरे दर्द से आप सच में अनजान हैं? शायद कभी गलती से आप ख़बरें भी देखते होंगे, अख़बार भी पढ़ते होंगे, क्या कहीं भी आप मेरी व्यथा नहीं पढ़ते?
हर साल मैं मरता हूं। जय जवान और जय किसान का नारा आज सार्थक नही लग रहा है वह मुझे चुभता है। क्यू की जवान अगर कुछ कह दे तो उसका कोर्ट मार्शल हो जाता है और किसान कुछ कहने लायक नहीं रहा है। क्या हमारी बेबसी पर आपको तरस नहीं आती? मैं हार गया हूं कर्ज से। मुझसे कर्ज नहीं भरा जाएगा। न बारिश होती है, न अनाज होता है। पेट भरना मेरे लिए मुश्किल है कर्ज कहां से भरूं? सूदखोरों, व्यापारियों, दबंगों से जहां तक संभव हो पाता है मैं कर्ज लेता हूं, इस उम्मीद में कि इस बार फसल अच्छी होगी। न जाने क्यों प्रकृति मुझे हर बार ठेंगा दिखा देती है।
मैं भी इसी राष्ट्र का नागरिक हूं। भारत निर्माण में मेरा भी उतना ही हाथ है जितना भगोड़े माल्या जैसे कर्जखोर लोगों का। वो आपको उल्लू बना कर भाग जाते हैं। आप उन्हें पकड़ने का नाटक भी करते हैं। दुनिया भर का हवाला देते हैं पर उन्हें पकड़ नहीं पाते हैं। वे हजारों करोड़ों का कर्ज लेकर विदेश भाग जाते हैं। विदेश में गुलछर्रे उड़ाते हैं लेकिन मैं कर्ज नहीं चुका पाता तो मेरी नीलामी हो जाती है। घर, जमीन, जायदाद सब छीन लिया जाता है। मैं बिना मारे मर जाता हूं। आज मूत्र पिया है कल मल भी खाऊँगा ओर आत्महत्या भी कर सकता हु ! आगे जेसे पूर्व मे मेरे मेरी बिरादरी करती आई है अब आत्महत्या न करूं तो अपने परिवारों को अपनी आँखों के सामने भूख से मरते देखूं। यह देखने का साहस नहीं है मुझमें।
मैं भी इसी राष्ट्र का नागरिक हूं। भारत निर्माण में मेरा भी उतना ही हाथ है जितना भगोड़े माल्या जैसे कर्जखोर लोगों का। वो आपको उल्लू बना कर भाग जाते हैं। आप उन्हें पकड़ने का नाटक भी करते हैं। दुनिया भर का हवाला देते हैं पर उन्हें पकड़ नहीं पाते हैं। वे हजारों करोड़ों का कर्ज लेकर विदेश भाग जाते हैं। विदेश में गुलछर्रे उड़ाते हैं लेकिन मैं कर्ज नहीं चुका पाता तो मेरी नीलामी हो जाती है। घर, जमीन, जायदाद सब छीन लिया जाता है। मैं बिना मारे मर जाता हूं। आप गाय को तो कटने से बचाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं लेकिन जब मुझे बचाने की बात आती है तब आपके दरवाजे बंद क्यों हो जाते हैं?
जितनी पवित्रता गाय में है उतनी मुझमें भी है। गाय को तो आप बचाने के लिए समिति पर समिति बनाये जा रहे हैं लेकिन मेरे लिए कुछ करने से आप घबराते क्यों हैं? मैं ही सच्चा गौरक्षक हूं। अगर मेरे पास कुछ खाने को रहेगा तभी न मैं गायों की रक्षा कर पाऊंगा। आप मुझे बचा लीजिए मैं गाय बचा लूंगा। मां की तरह ख्याल रखूँगा। बस मेरा कर्ज माफ कर दीजिए। मुझे जी लेने दीजिए। असमय मर जाना, आत्महत्या कर लेना मेरी मजबूरी है शौक नहीं। मैं भी जीना चाहता हूं। आपके सपनों के भारत का हिस्सा बनना चाहता हूँ। आपके मिट्टी की सेवा करना चाहता हूं। मैं भी राष्ट्रवादी हूं। भारत को गौ धन, अन्न धन से संपन्न करना चाहता हूं लेकिन ये सब तभी संभव हो सकता है जब मैं जिन्दा रहूंगा। क्या आप मुझे मरने से रोक लेंगे?
लेखक - उत्तम जैन
संपादक - विद्रोही आवाज़ - सूरत

Friday 21 April 2017

दशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ महाप्रयाण दिवस - एक छोटा सा परिचय

आज आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के महाप्रयाण दिवस पर आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के सूरत चातुर्मास की स्मृति जेहन मे आ गयी है वो अवसर सूरत के सिटिलाइट के प्रांगण मे पूर्व राष्ट्रपति व वेज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपना जन्मदिवस आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के सानीध्य मे मनाया साथ मे सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमे सभी धर्मगुरु ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के अहिंसा यात्रा की प्रशंशा की ओर उसे समय की जरूरत बताया आज उस महामानव का सक्षिप्त परिचय ---
तेरापंथ धर्म संघ के एक आचार्य प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जो सिर्फ जैन धर्मसंघ श्वेतांबर तेरापंथ के ही आचार्य नही थे महान दार्शनिक थे आप अपनी माता बालूजी के साथ विक्रम संवत्‌ 1987 में अष्टमाचार्य कालूगणी के पास सरदार शहर (राजस्थान) में दीक्षित हो गए। दीक्षा प्राप्ति के बाद आपकी शिक्षा मुनि तुलसी (आचार्य तुलसी) के कुशल नेतृत्व में प्रारंभ हुई। आपके कर्तव्य का मूल्यांकन करते हुए आपको आचार्यश्री तुलसी द्वारा सन्‌ 1944 में अग्रगण्य बनाया गया। आपकी निर्मल प्रज्ञा से संघ, देश, विश्व लाभान्वित हुए इसलिए आपको 12 नवंबर 1978 को गंगा शहर में 'महाप्रज्ञ' का संबोधन अलंकरण प्रदान किया गया। सब दृष्टि से सक्षम महाप्रज्ञ को आचार्य तुलसी ने 3 फरवरी 1979 को राजलदेसर में युवाचार्य पद पर मनोनीत किया। आचार्यश्री तुलसी एक प्रयोग धर्माचार्य थे। उन्होंने स्वयं के आचार्य पद का विसर्जन कर 18 फरवरी 1994 में सुजानगढ़ में युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर आसीन कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।देश के प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र ने कहा था- 'अगर मैं महाप्रज्ञ साहित्य को पहले पढ़ लेता तो मेरे साहित्य का रूप कुछ दूसरा होता।' राष्ट्रकवि दिनकर से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की अनेक बार बातचीत हुई।  अनेक विषयों में चर्चा-परिचर्चा हुई। वे राष्ट्रकवि महाप्रज्ञ की वैचारिक और साहित्यिक प्रतिभा के प्रति सदैव प्रणत रहे। उन्होंने महाप्रज्ञ की मनीषा का मूल्यांकन करते हुए कहा था, 'हम विवेकानंद के समय में नहीं थे हमने उनको नहीं देखा, उनके विषय में पढ़ा मात्र है। आज दूसरे विवेकानंद के रूप में हम मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) को देख रहे हैं।' देश के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. राजा रामन्ना महाप्रज्ञ से अनेकांत दर्शन का स्पर्श पा आत्मविभोर हो उठे थे। विश्व के मानचित्र का प्रत्येक व्यक्ति अपना एक सुंदर चित्र देखना चाहता है। अपनी विशेष छवि बनाना चाहता है अपनी विशेष पहचान बनाने के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार अपेक्षित है। व्यक्तित्व के निखार के 3 आधार हैं- आचार, विचार और व्यवहार में श्रेष्ठता। इनकी श्रेष्ठता व्यक्तित्व को शिखर-सी ऊंचाई और समुद्र-सी गहराई देती है। तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी के यशस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, मनस्वी पट्टधर आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अपने श्रेष्ठ व्यक्तित्व से अखिल विश्व में खास पहचान बनाई थी। ऐसे युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का विक्रम संवत् 2067, द्वितीय वैशाख, कृष्ण एकादशी को सरदार शहर में महाप्रयाण हो गया था
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

एक किसान की आत्मकथा-

कभी खेतों में गेंहूॅ और धान बोता था, अब आत्महत्या का सामान बोता हॅू। मेरे पर कलम चलाते हुये न जाने कितने लेखको / बुद्धिजीवी कि स्याही सूख गयी पर कोई हमारी दीन दशा को खुशहाल नही लिख सका। मैं किसान हूॅ। कृषिप्रधान देश में एक तपोनिष्ठ ऋषि की तरह बिना फल की ईच्छा किये कृषि कर्म को अनवरत करता रहता हॅू। ब्रहम मुहूर्त में सूरज के जगने से पहले खेतों में पहूंचकर धरती के सीने पर अपने पसीने से भारत की भूख का समाधान लिखता हॅू। चिलचिलाती धूप में जब वातानुकूलित कमरों में बैठे हुये बडे लोग, पालतु कुत्तों के सिर पर हाथ फिराते हुये मैडम से पूछते है कि डार्लिंग आज लन्च में क्या बना है तब मैं नीम के नीचे मेंड पर बैठा आसमान को निहारता हुआ भगवान से गुहार करता हूॅ कि हे भगवान ! इस बार मौसम की मार से हमारी फसल बरबाद न होने पाये। लेकिन गरीब की तो थानेदार नही सुनता, सरकार नही सुनती तो बहरा भगवान कैसे सुन लेंगे। कर्ज से झुकी कमर, महाजन का तगादा, बैंक की नोटीस जब कुछ नही कर पाते तो आत्महत्या करते है। मुझे न परवाह की कोनसी सरकार आई है या आएगी न मेरे लिए महत्वपूर्ण है मंदिर बने या मस्जिद न मुझे उन सरकारी योजना से वास्ता जो किसानो के लिए सरकार घोषणा होती है क्यू की मुझे मालूम है घोषणा हो भी गयी तो हम जेसे किसानो तक पहुचते न जाने मेरी दूसरी पीढ़ी आ जाएगी ओर पहुच भी गयी तो योजना का कितना फायदा मिले यह तो हम किसान खुद जानते है
आज किसान का प्रयोग सरकारें वोट लेने के लिये, नारे गढने के लिये, और रैलियों में भीड जुटाने तथा भाषण सुनने के लिये करती है। जैसे कोई चरित्रहीन व्यक्ति सच्चरित्रता का पाठ पढाता है,कोई चोर ईमानदारी का उपदेश देता हो, वैसे ही जिसने कभी हल नही देखा किसान की समस्यायों का किसान रैली कर के हल निकालता है। उधर बजट सत्र में कर्ज माफी की घोषणा हुयी नही कि इधर बेहया की फूल की तरह मुस्कराता हुआ नेता चुनाव क्षेत्र में मुंह दिखाने चला आता है। जब भी हमारी उपजाउ जमीनें अनुपयोगी लगने लगती है तब कोई सरकारी दमाद उसे औने पौने दामों में हडप लेता है। या तो फिर हमारी वह भूमि जिससे होने वाले पैदावार से बिटिया की सगाई की रस्में जुडी है। बेटे की पढाई जुडी है, बाबुजी की दवाई जुडी है सरकार उसका अधिग्रहण कर लेती है। जिस जमीन को हम अपनी माॅ मानते है उसके नाम पर सहानुभूति के साथ मुआवजा लेकर मनमसोस कर रह जाते है। और देश का तथाकथित बुद्धजीवी इसे विकास की दिशा में एक और अभिनव कदम बतलाता है। मै एक किसान हॅू मैं इस देश के प्र्रधान से, चिन्तकों से, विचार कों से, मे एक लेखक उत्तम विद्रोही के हवाले पूछना चाहता हूॅ-
धान से गेहूं से जब गोदाम सारे भर गये
पूछते हो पेड को इन पत्तियों ने क्या दिया।
जो चरागों में जरा सी रौशनी है हमसे है।
देश को इन लाल नीली बत्तियों ने क्या दिया।।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

Thursday 20 April 2017

नाकोड़ा जैन तीर्थ अधिष्टायक श्री नाकोड़ा भैरव देव : इतिहास कथा संकलन

भैरव का मूल स्वरुप- भैरव एक अवतार हैं।उनका अवतरण हुआ था।वे भगवान शंकर के अवतार हैं। 
भैरव देव के दो रूप----
1) काला भैरव या काल भैरव (उनके रंग के कारण नाम काला भैरव पड़ा)।जिसने काल को जीत लिया वो काल भैरव हैं।आधी रात के बाद काल भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। श्री काल भैरव का नाम सुनते ही बहुत से लोग भयभीत हो जाते है और कहते है कि ये उग्र देवता है। लेकिन यह मात्र उनका भ्रम है। प्रत्येक देवता सात्विक, राजस और तामस स्वरूप वाले होते है, किंतु ये स्वरूप उनके द्वारा भक्त के कार्यों की सिद्धि के लिए ही धारण किये जाते है। श्री कालभैरव इतने कृपालु एवं भक्तवत्सल है कि सामान्य स्मरण एवं स्तुति से ही प्रसन्न होकर भक्त के संकटों का तत्काल निवारण कर देते है।

हिन्दू देवी देवताओं में सिर्फ ऐसे दो देव माने जाते हैं जिनकी शक्ति का सामना कोई नहीं कर सकता । एक माँ काली और दूसरा भैरव देव।इसीलिए इनकी शक्ति साधना में प्रथम स्थान है।माँ काली के क्रोध को रोकने के लिए भगवान शिव ने बालक रूप धारण कर लिया था जो बटुक भैरव कहलाया और जो काल भैरव के बचपन का रूप माना जाता है। बटुक भैरव को काली पुत्र इसलिए कहा जाता है क्यूँकी ये शिव का रूप हैं और इन्होंने काली में ममता को जगाया था। काल भैरव के मुकाबले ये छोटे बच्चे हैं।इसीलिए इनमें ममत्व है जो माफ़ कर देते हैं लेकिन उग्र रूप के कारण ये रुष्ट बहुत जल्दी होते हैं। काल भैरव अकेले शांति में रहना पसंद करते हैं, बटुक भैरव भीड़ में।दोनों की भक्ति साधना बहुत जल्द फलदायी होती है। ये अतिवेगवान देव हैं।ये भक्ति के भूखे हैं।बटुक भैरव को ही गोरा भैरव कहा जाता है।
नाकोड़ा तीर्थ में विराजित भैरव
प.पू. गुरुदेव हिमाचल सुरिश्वर जी म.सा. तीर्थ का विकास एवं देखभाल की व्यवस्था में जुटे थे।एक दिन रात्रि के समय अपने उपाश्रय में पाट पर सो रहे थे*। *सुबह ब्रह्ममुहूर्त में एक छोटा सा बालक पाट के आसपास घूमता हुआ दिखाई दिया।गुरुदेव पाट पर बैठ गए। फिर बालक को बुलाया और पूछा," अरे बालक यहाँ क्यूँ घूमता है ? किसका है तू ?" उसी वक़्त वह बालक बोला," मैं यहाँ का क्षेत्रवासी भैरवदेव हूँ।आप महान आचार्य श्री हैं।आप इस तीर्थ का विकास करें। मैं आपके साथ हूँ।परन्तु मुझे भगवान पार्श्वनाथ जी के मंदिर में एक आले में विराजमान करो। ऐसा बोलकर भैरव जी अदृश्य हो गए। गुरुदेव विचार में पड़ गए। परमात्मा के मंदिर में भैरव जी को कैसे बिठाया जाए ? क्यूंकि भैरवजी को सिन्दूर, बलि, मदिरा आदि सब चढ़ते हैं।जैन मंदिर में यह सारी चीजों की बिलकुल अनुमति नहीं हैं। गुरुदेव दुविधा में पड़ गए की क्या करना ?
फिर एक दिन भैरव देव को जाग्रत करने के लिए साधना में बैठ गए। साधना पूर्ण होने पर भैरव देव प्रत्यक्ष हुए और कहा," बोलो गुरुदेव* ?" गुरुदेव ने कहा," आपको हम मंदिर में विराजमान करेंगे परन्तु हमारे जैन धर्म के नियमों में प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। तब भैरव देव बोले," ठीक है, जो भी आप नियम बतायेंगे वो मैं स्वीकार करूँगा।" गुरुदेव बोले," आपको जो अभी वस्तुएं भोग रूप में चढ़ती हैं, वो सब बंद होंगी।आपको हम भोग रूप में मेवा, मिठाई कलाकंद तेल आदि चढ़ाएंगे।आपको जनेउ धारण करनी पड़ेगी। विधि विधान के साथ समकित धारण करवाकर आपको ब्रहामण रूप दिया जाएगा ।

भैरवदेव बोले," मेरा रूप बनाओ।" " आपका रूप कैसे बनायें ?" तब भैरवदेव ने कहा कि जैसलमेर से पीला पत्थर मंगवाकर कमर तक धड़ बनाओ। नाकोड़ा जैन श्वेताम्बर समुदाय की अथाह जाँचच के पश्चात यह जानकारी मिली कि, गुरुदेव ने मुनीमजी भीमजी को जैसलमेर भेजा और वहां से पीला पत्थर मँगवाया। पत्थर भी इतना अच्छा निकला।सोमपुरा मूर्तिकार को बुलाकर मूर्ति का स्वरुप बताया। पिंडाकार स्वरुप को मुंह का स्वरुप देकर मुँह और धड़ को जोड़ा और अति सुन्दर मोहनीय भैरवजी की मूर्ति बनायी*ं। *नयनाभिरम्य मूर्ति को देखकर सब खुश हो गए। सन्दर्भे समायोजनकर्ता श्री अक्षय जी जैन ने नाकोड़ा तोर्थ से जुड़े अनेक लोगो से चर्चाओ और जारी पत्रको पर आधारित होकर , वि.सं.1991 माघ शुक्ला तेरस गुरु पुष्ययोग में भैरवजी को विधि विधान के साथ नियमों से प्रतिबद्ध करके जनोउं धारण करवाकर शुभ वेला में पार्श्वनाथ प्रभु के मूल गम्भारे के बाहर गोखले में विराजमान किया गया*। *भैरवजी का स्थान खाली ना रहे इसलिए हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की। इस प्रकार नाकोड़ा तीर्थ के मूल गम्भारे में बटुक भैरव ( बाल स्वरुप) विराजित हैं।
लेखन -सन्दर्भ :-अक्षय जैन
राष्ट्रीय अध्यक्ष
श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस

Wednesday 19 April 2017

मेरा देश महान - जहा है सो मे अस्सी बेईमान


हमारे देश में भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जिससे हर भारतीय का सामना जरूर होता है.ये एक राष्ट्रीय महामारी है जिसका कारगर इलाज़ अभी तक कोई नेता कोई समाज सेवी या कोई अधिकारी भी नहीं निकाल पाया है.समाज सेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में २०११ में भारत ने एक बड़ा भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन देखा लेकिन उसका परिणाम भी ज्यादा उत्साहजनक नहीं निकला.इस भ्रष्टाचार रुपी समुन्द्र के मंथन से जन लोकपाल नामक अमृत निकला जो की संसदीय कमेटियों में ही फंसा पड़ा है और जनता उसका आनंद लेने का अभी तक इंतज़ार कर रही है.इस सागर मंथन से अरविन्द केजरीवाल और उसके गणो के रूप में विष भी निकला जिसे दिल्ली की जनता ने आत्मसात कर लिया.
पिछले दिनों सरकार ने एक आंकड़ा निकाला कि तीन वर्षो में मोदी सरकार ने १.३७ लाख करोड़ की टैक्सचोरी पकड़ी है और सरकार अभी बेनामी सम्पति वालो पर भी ठोस कार्यवाई शुरू करने वाली है.ये आंकड़ा आप स्वयं देख सकते है कि कितना बड़ा है और कितना बड़ा होने वाला है.अभी सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओ जो कि भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात है उन पर कोई ठोस कार्यवाई नहीं की है ना ही कोई प्रभावी कार्यवाई विदेशो में कला धन जमा करने वालो पर हुई है. नोटबंदी के आकड़े भी इसमें जुड़ने है जिसकी रिपोर्ट सरकार ने अभी तक सार्वजनिक नहीं की है.
भ्रष्टाचार आज इस कदर हमारे देश में फ़ैल चूका है कि ये कहावत बन गयी है कि ईमानदार वही है जिसको बेईमानी करने का मौका नहीं मिला.जिसको भी मौका मिला वो चूका नहीं.सरकारी नौकरी का जुनून आम जनता में केवल इसी लिए हावी है कि कोई भी पद हो,कोई भी विभाग हो लड़का ऊपरी कमा ही लेगा.सरकारी नौकरी के लिए पद अनुसार लोग रिश्वत भी दे रहे है और उसी लड़के से ये उम्मीद भी करते है कि वो अपना काम ईमानदारीपूर्वक करेगा.हमारे देश में रिश्वत लेने से पाप नहीं लगता लेकिन प्याज और लहसुन खाने से जरूर लगता है.महाभारत में एक प्रसंग में भीष्म पितामह से कोई पूछता है कि जब कौरव सभा में द्रौपदी का अपमान हो रहा था तो भीष्म पितामह ने विरोध क्यों नहीं किया? तब भीष्म पितामह ने उत्तर दिया कि मैं पापी का अन्न ग्रहण कर रहा था जिससे मेरी नैतिकता क्षीण हो गयी गयी थी.ठीक इसी तरह आज धीरे धीरे ये अधिकतर भारतीयों में फ़ैल रहा है.भ्रष्टाचार का नैतिक विरोध इसी लिए क्षीण पड़ता जा रहा है और भ्रष्टाचार भारत का राष्ट्रीय चरित्र बनता जा रहा है.
हम सरकार से भ्रष्टाचार रुपी राक्षस पर प्रभावी कार्यवाई की उम्मीद कर रहे है लेकिन हमें ये समझाना होगा की भ्रष्टाचार करने वाले आप के और हमारे बीच से ही आते है चाहे वो नेता हो,अधिकारी हो या ठेकेदार हो.हमें अपने बच्चो को नैतिकता का पाठ पढ़ना होगा तथा अपनी भी नैतिकता का स्तर ऊँचा रखना होगा.देश के नागरिको के नैतिकता का स्तर अगर ऊँचा होगा तो देश की कई तरह की समस्याओ का समाधान हो जायेगा.कानून द्वारा सख्त सजा को प्रावधान भी पूर्णतया प्रभावी नहीं होगा क्युकि कई देशो में भ्रष्टाचार करने पर मौत की सजा दी जाती है लेकिन उन देशो में भी भ्रष्टाचार पूर्णता समाप्त नहीं हुवा है.
ये समस्या इतनी विकराल है कि ९० के दशक में हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गाँधी जी ने कहा था कि केंद्र से भेजे जाने वाले हर रूपये में से केवल १७ पैसा ही आम आदमी तक पहुंच पा रहा है.और आज भी इस आकड़े में ज्यादा सुधार नहीं है.अब देखना है कि हमारा समाज और देश की सरकार हमारी अगली पीढ़ियों को इस महामारी से बचाने के लिए क्या उपाय करती है? इन परिस्थितियों को देखते हुवे नाना पाटेकर साहब का एक फ़िल्मी डायलॉग याद आता “सौ में अस्सी बेईमान फिर भी मेरा देश महान “
उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

Sunday 16 April 2017

सुखी बहू गाव की

 मे यदा कदा ब्लॉग लिखता हु ... विचारो की अभिव्यक्ति व्यक्त करता हु ... कहानी कभी लिखी नही प्रथम बार कोशिश की कोई शिक्षाप्रद कहानी लिखू आज की वर्तमान समस्या पर अच्छी लगे होसला बढाये ....सभी नाम व स्थान काल्पनिक है
शीर्षक - सुखी बहू गाव की
एक छोटा सा गाव था उस गाव मे एक स्कूल था वह भी 10 वी तक गाव की लड़कियो की ज्यादा से ज्यादा शिक्षा 10 वी तक ही होती थी माँ बाप कम शिक्षित थे लड़कियो को पड़ोस के शहर मे शिक्षा के लिए भेजना पसंद नही करते थे क्यू की सोचते थे शहर मे जाकर लडकीया गलत राह पर न चली जाये ! गाव की बहुए भी ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी ! 10 वी तक पढ़ी हुई तो मुश्किल से 2-4 होगी ! गाव की महिलाओ की दुनिया गाव तक ही सीमित थी ! यदा कदा शहर की ओर जाना होता था ! मगर गाव की बहुये खुद मस्ती मे रहती थी ! कभी घर मे सास बहू मे अनबन होती रहती थी एक बहू गाव मे ऐसी थी जो ज्यादा पढ़ी लिखी थी उसके सास व परिवार किसी से नही जमती थी आए दिन किसी न किसी बात पर सास बहू देवरानी जेठानी से झगडा होता रहता था ! गाव की एक अनपढ़ बहू ऐसी भी थी उसे सास सहित पूरे परिवार का सन्मान मिलता था पढ़ी लिखी बहू से एक दिन अनपढ़ बहू से अनायास मुलाक़ात हो गयी पढ़ी लिखी बहू ने अनपढ़ बहू से पूछा बहन तू मुझसे कम पढ़ी लिखी है मुझ जितना ज्ञान भी नही फिर भी तेरा नसीब कितना अच्छा तुझे सास सहित पूरे परिवार का सन्मान मिलता है मुझे देख न सास का प्यार न परिवार का प्यार मिलता है ओर तो ओर मेरा पति भी खुद की माँ की तरफदारी करता है अनपढ़ बहू सुनती रही निशब्द थी बार बार पढ़ीलिखी बहू बार बार प्रश्न करती रही तो अनपढ़ बहू बोली बहन मेरी सास व पूरा परिवार मुझे प्यार देता है इसका कारण यह है की मे अपने पति से निश्चल अटूट प्यार करती हु उसकी हर भावनाओ का ख्याल रखती हु जब मुझे लगा मेरा पति मेरी सास व ससुर को सदेव खुश देखना चाहते है ओर मुझे लगा मेरे पति की खुशियो मे क्यू नही मे शामिल हो जाऊ मे अपने पति से ज्यादा मेरी सास ससुर सभी की इज्जत करने लगी उनकी हर भावनाओ का ख्याल रखने लगी उनकी सेवा को अपना धर्म समझने लगी मुझे मेरा पति अपनी माँ व पिता की सेवा करते हुए देखता बड़ा खुश होता था खुद को शोभाग्यशाली समझने लगा ओर मुझे अथाह प्यार करने लगा ! आज मुझे मेरा पति भी प्यार करता है पूरा परिवार सन्मान करता है उसका रहस्य यही है मेने अपने पति की भावनाओ को समझा ओर उनके माँ पिता को सन्मान व प्यार दिया पूरी सेवा करती हु तो मेरा पति मुझ पर गर्व महसूस करता है ओर मुझे अथाह प्यार करता है बहन मेरी खुशी व घर मे मिलता सन्मान का रहस्य यही है पढ़ी लिखी बहू स्तब्ध थी खुद सोचने लगी मे इतनी शिक्षित होने के बाद भी कभी पति की भावनाओ को नही समझी सास व ससुर को अनदेखा करती गयी जिससे न परिवार मे सन्मान पायी न पति का प्यार मिला खुद मे परिवर्तन करने का मिशन लेकर अनपढ बहू से विदा ली .....
सार - हर पत्नी चाहे पति को कितना भी प्यार करे मगर पति की भावनाओ का सन्मान नही करेगी उसे न पति का प्यार मिलता है न परिवार का
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

Sunday 9 April 2017

महावीर जन्म कल्याणक पर महावीर के सिद्धांतो जीवन में उतारे तभी सार्थक है जन्म कल्याणक मनाना -----

आज हम सभी ने भगवान महावीर जयंती का परम पावन पर्व मनाया l मेने फेसबूक व व्हट्सअप व शोशल मीडिया पर देखा देश विदेश मे बड़े हर्ष के साथ भगवान महावीर जन्म कल्याणक मनाया गया! सभी समाजबंधू इस महापर्व को हर्षोल्लासपूर्वक मनाने की तैयारियों में जुटे बड़ा गर्व भी हुआ l इस बार भव्य शोभायात्राएं व् चल समारोह निकलें, भगवान महावीर के आदर्शों व् सिंद्धांतों पर चलने की शपथ ली , संकल्प लिये l जिस तरह इन कार्यक्रमों की भव्य रूप से मनाया गया है, उसे देखते हुए प्रतीत होता है की समाज का प्रत्येक संगठन और प्रत्येक व्यक्ति भगवान महावीर का सच्चा अनुयायी है l बड़े गर्व की अनुभूति हुई ! एक विचार आया स्वयं को भगवान महावीर के सिद्धांतों के लिये सर्वाधिक प्रतिबद्ध सिद्ध करने का अवसर भला महावीर जयंती से अधिक अनुकूल दूसरा क्या होगा, इसीलिए प्रत्येक संगठन, प्रत्येक मंदिर के पदाधिकारी और प्रत्येक समाजबंधू अपने घरद्वार और कारोबार की चिंता छोड़ इस बार भी धूमधाम के साथ भगवान महावीर जयंती मनाई अपने प्रतिष्ठान भी बंद रखे l
एक बड़े अभियान या लक्ष्य को हासिल करने जैसा वातावरण निर्मित कर भव्यता के मामले मे एक-दुसरे को पीछे छोड़ने की तैयारी है l महावीर जयंती मनाने की तैयारियों में जुटे भक्तों से मेरा प्रश्न है की तुमने भौतिक रूप से तो महावीर को अंगीकार कर लिया लेकिन क्या आत्मिक रूप से तुमने महावीर को अपनाया है, क्या वाकई में तुम महावीर की शिक्षाओं अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रम्हचर्य पर चले हो या चलने का प्रयत्न किया है, नहीं न, तो फिर महावीर जयंती को एक दुसरे से अधिक भव्य स्वरुप में मनाएं जाने वाले इस उत्सव का उत्साह क्यों?……..
अरे भई, मैं आपसे महावीर बनने के लिए नहीं कह रहा हूँ l हम या आप लाख जतन करके भी महावीर जैसे विरत व्यक्तित्व के जेसे नही हो सकते लेकिन महावीर के साथ जिया तो जा सकता है, उन जैसा बनने का प्रयत्न तो किया ही जा सकता है, और यह तभी संभव है जब हम उनकी शिक्षाओं और सिंद्धांतो को अपने जीवन में आत्मसात करें और अपने दैनिक व्यवहार में उन्हें क्रियान्वित करें l महावीर जयंती मनाने में व्यस्त आप सभी में से कितने लोगों ने ऐसा किया है या करने की कौशिश की है l नहीं न l आप तो महावीर के सूत्रों का उपयोग समाज में दूसरों को आईना दिखने के लिए करते हो, स्वयं उन सूत्रों को अपने जीवन में क्रियान्वित क्यों नहीं करते! महावीर के सिद्धांतों का उदाहरण देकर दूसरों पर तो दोषारोपण करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते लेकिन क्या कभी स्वयं के चेहरे पर लगी कालिख को देखने की भी कौशिश की है? जबकि महावीर की प्रतिमा की झुकी हुई निगाहें कहती है की स्वयं को देखो जबकि हम हर समस्या का उत्तरदायी दूसरों को बनाते है l भगवान महावीर कहते है की हम जो भी है, किस भी हाल में है, उसके हम की एकमेव कारण है l
क्या आप महावीर के इस दर्शन को जीते हो की अपनी स्थिति और परिस्थिति के लिए सिर्फ हम ही कारण है और जवाबदेह है l दुसरो पर अपनी समस्याओं का आरोपण करने के बजाय जब हम अपने अन्तर्मन में झांककर कारणों की तलाश करने लगेगे, उस दिन तुम कुछ हद तक स्वयं को महावीर के निकट पाने लगेगे l मैं प्रभावना करने से नहीं रोक रहा और न ही मैं महावीर जयंती महोत्सव मनाने का विरोध कर रहा हूँ, खूब हर्षोल्लास के साथ मनायी है ओर मनाना भी है लेकिन महावीर को भी जियो l शोभायात्रा में बैंडबाजों के साथ चलो लेकिन कुछ पल महावीर के साथ भी चलो, यह भौतिक रूप से संभव नहीं होगा, इसके लिए तुम्हे अपनी आत्मा से द्वार खोलना पड़ेंगे l मैं पुरे विश्वास के साथ कहता हूँ की महावीर को पूजने वाला मोक्ष जाए या न जाए लेकिन महावीर को जीने वाला मोक्ष जरुर जाएगा l जरा सोचो, हमने जो जीवनशैली अपनाई है, अपने आसपास जो दिखावटी सुन्दर सा आवरण ओढ़ रखा है, क्या वह भगवानमहावीर को भाएगा?
आज यदि भगवान महावीर दुनिया में लौट आएं तो क्या वे हमे पसंद करेंगे l महावीर को तो सारा विश्व पसंद करता है लेकिन क्या तुम्हारे कर्म और आचरण ऐसा है की महावीर तूम्हे पसंद करेंगे l नहीं न, तो क्यों नहीं बदल लेते स्वयं को और प्रभावना के बजाए साधना को महत्व क्यों नहीं दे रहे हो? 
क्या इसी समाज की कल्पना की थी भगवान महावीर ने :-क्या जब महावीर मोक्ष गए होंगे, तब क्या उन्होने ऐसे ही समाज की कल्पना की होगी! क्या उन्होंने इसी के लिए समोशरण में बैठकर संदेश दिया होगा l तुम्हारी कथनी और करनी में जो बड़ा विभेद है, उसी के कारन तुम्हे महावीर का वह तप, महावीर की तपस्या व्यर्थ नजर आती है l ऐसा लगता है जैसे सभी ने महावीर को बांट दिया है l पहले लोगों ने धर्म में पंथ बांटे, फिर संत l अब भगवान की मूर्तियों को ही बांटने लगे l बांटने और समाज को विभाजित करने का यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है l हमे महावीर जन्मकल्याणक पर दृढ़ संकल्प लेना होगा की भगवान महावीर के दिये संदेश को जीवन मे उतारे तभी महावीर जयंती मनाना हमारे लिये सार्थक होगी ....... जय महावीर
फिर से आपको महावीर जन्म कल्याणक पर शुभकामना
उत्तम जैन ( विद्रोही )
संपादक - विद्रोही आवाज़  

Saturday 8 April 2017

डिनर विवाद: केजरीवाल सरकार की पार्टी में 13 हजार रुपये की थाली-बीजेपी

बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजेन्द्र गुप्ता ने आम आदमी पार्टी (आप) पर जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा बर्बाद करने का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने आवास पर दो दिनों में 80 मेहमानों को भोजन कराने में 11,04,357 रूपये खर्च किए जो अपने आप में सरकारी लंच का रिकार्ड है।
विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने दो दिनों में 80 मेहमानों को भोजन कराने में 11,04,357 रूपये खर्च किये यानि एक मेहमान के लंच पर 13,805 रूपये खर्च आया। नियम के अनुसार सरकार गैर सितारा होटल में आयोजित होने वाले लंच पर 1250 रूपये खर्च कर सकती है लेकिन सभी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए दिल्ली सरकार ने 1100 प्रतिशत ज्यादा रूपये खर्च किये।
उन्होंने दावा किया कि केजरीवाल सरकार ने एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित समारोह में यह खर्च किया। केजरीवाल पर चुटकी लेते हुए दिल्ली विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए एक वर्ष की उपलब्धियों को गिनाने के लिए यह राशि तो कुछ भी नहीं है।
उन्होंने कहा कि आप सरकार जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा दोनों हाथों से लुटा रही है। किसी भी सरकार के लिए टैक्स जनता की अमानत होता है और उसे सुनिश्चित करना होता है कि इसे ठीक ढंग से खर्च किया जाए। लेकिन केजरीवाल सरकार पिछले दो वर्षों में अमानत में खयानत का रिकॉर्ड बना चुकी है।
AAP की सफाई
हालांकि आम आदमी पार्टी ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया है। उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बिल जारी करने वाले वेंडर के खिलाफ जांच के आदेश दिये हैं। उनका कहना है कि जांच पूरी होने तक बिल नहीं चुकाया जाएगा।
सिसोदिया ने कहा कि एक साल पहले अफसरों ने 13 हजार रुपये प्रति प्लेट कीमत के खाने के बिल की फाइल मेरे पास मंजूरी के लिए भेजी थी, लेकिन मैंने इसे मंजूरी देने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा कि छह महीने पहले यह फाइल पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने तलब की थी। तब से यह फाइल राजनिवास में पड़ी है।
सिसोदिया ने पिछले कुछ दिनों से हो रहे इस तरह के खुलासों के पीछे राजनिवास को भी निशाने पर लेते हुये कहा कि खाने के बिल की फाइल छह महीने से जानबूझ कर चुनाव के समय लीक करने के लिये उपराज्यपाल कायार्लय में रोक कर रखी गयी थी। सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा कि एलजी ऑफिस के अफसर बीजेपी के इशारे पर सरकार को बदनाम करने के लिये आधी जानकारी के साथ फाइलें लीक कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लीक किए गए दस्तावेजों में यह नहीं बताया गया है कि दस महीने पहले बिल के भुगतान को रोकने के लिये उन्होंने फाइल पर क्या लिखा था। सिसोदिया ने बीजेपी को इस मामले से जुड़ी पूरी फाइल और इस पर उनके नोट को भी सार्वजनिक करने की चुनौती दी।

महावीर जयंती पर हार्दिक शुभकामना.

जब जब मनुष्य अज्ञानता के भंवर जाल फंसता है,तब तब किसी महापुरुष का अवतार इस धराधाम पर होता है।ऐसे ही मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले महापुरुष भगवान महावीर का जन्म ईसा से 600 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को हुआ था। हमारे देश में वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयंती के रुप मे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री आदिनाथ की परंपरा में चौबीसवें तीर्थंकर हुए थे। वर्धमान महावीर का जन्म एक क्षत्रिय राजकुमार के रूप में एक राज परिवार में हुआ था।इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम प्रियकारिणी देवी था। इनका जन्म बिहार के वैशाली राज्य में हुआ था।
कहते हैं तीस वर्ष की उम्र में महावीर स्वामी ने घर-बार छोड़ दिया और कठोर तपस्या द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया।महावीर स्वामी जी ने श्रद्धा एवं विश्वास द्वारा जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा स्थापित की तथा आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी जी को जाता है।संपूर्ण संसार को ज्ञान का संदेश देने वाले भगवान महावीर जी ने अपने कार्यों से अपने जीवनकाल में सभी का कल्याण करते रहे।जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयंती के रूप में परंपरागत तरीके से बड़े ही हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्ति से मनाते हैं।जैन मतावलंबियों का मानना है कि वर्धमान जी ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी, जिस कारण वह विजेता और उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी संसार में जैन कहलाए।देशभर में तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। श्रद्धालु मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं, जो कि अभिषेक कहलाता है।वहीं भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठा कर उत्साह और हर्षोउल्लास पूर्वक जुलूस निकाले जाते हैं। जिसमें बड़ी संख्या में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं।श्वेतांबर संप्रदाय जो मूर्तिपुजा मे विश्वाश नही करते वह भी बड़े हर्षो उल्लास से महावीर जयंती मानते है चौबीस ‍तीर्थंकरों के अंतिम तीर्थंकर महावीर के जन्मदिवस प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। जैन समाज द्वारा दिन भर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है महावीर का जन्मोत्सव संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।आपको बता दें कि वर्धमान महावीर जी को 42 वर्ष की अवस्था में जूभिका नामक गांव में ऋजूकूला नदी के किनारे घोर त्पस्या करते हुए जब अनेकों वर्ष बीत गए तब उन्हें मनोहर वन में साल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ल दशमी की पावन तिथि के दिन कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिसके पश्चात वह महावीर स्वामी बने।और देश भर में भ्रमण करके लोगों में फैली कुरूतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने का निरंतर प्रयास किया साथ ही धर्म की वास्तविकता को स्थापित कर सत्य एवं अहिंसा का समाज में संदेश दिया।इस वर्ष महावीर जयंती 9 अप्रैल 2017, को देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाएगी।आप सभी स्नेहीजनो को महावीर जयंती की हार्दिक
शुभकामनाएं ओर बधाई।
उत्तम जैन ( विद्रोही ) 
विद्रोही आवाज़ समाचार - प्रधान संपादक