Wednesday 23 August 2017

जीवन मे जहर भाग 1 अंक 4

जीवन मे जहर भाग 1 अंक 4 गतांग से आगे ..

संतोष के चेहरे पर सदैव दिखावटी हंसी रहती मगर मन मे पारिवारिक कलह को लेकर पीड़ा थी । हर एक तरीके अपनाए की शांति व इंदु देवी का आपसी तालमेल बेठ जाए । इंदुदेवी उम्र के साथ मधुमेह, ब्लड प्रेशर की शिकार थी । इंदुदेवी शारीरिक समस्या के चलते कुछ ज्यादा ही चीड़ चिड़ी हो गयी । उधर शांति भी मानसिक रूप से तो  परेशान थी ही कुछ स्वास्थ्य भी साथ नही देता । हर पल अपने बच्चो की सोचती ओर बच्चो को लेकर छोटी छोटी बातों पर कलह की स्थिति उत्त्पन कर देती वैसे शांति की कुछ हद तक बच्चो की चिंता स्वाभाविक भी थी क्यों कि वह खुद एक माँ थी और माँ की ममता छलकना स्वाभाविक भी था । मगर शांति की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि जिस बात को घर मे संतोष या पूरे परिवार के सामने प्रेम से भी रखकर हर समस्या का समाधान कर सकती थी । मगर शांति प्रेम से बात न कर बात का बतंगड़ बना देती एक कहावत भी है जो कार्य प्यार से होता है लड़ झगड़ कर उसे कभी हांसिल नही किया जा सकता । शांति का एक बार  झगड़ना अर्थात पारिवारिक सामंजस्य को वापस पटरी पर आने में 2 माह लग जाते । वैसे शांति व सास इंदुदेवी दोनो की अनबन इस पारिवारिक मतभेद ने हमेशा ज्यादा बढ़ाया । आचार्य तरुण सागर जी का एक कटु प्रवचन की लड़ लो झगड़ लो मगर बातचीत कभी बन्द मत करो बातचीत बन्द करने से सुलह के सारे रास्ते बंद हो जाते है । आचार्य तरुण सागर जी का यह कथन शांति व सास इंदुदेवी पर सटीक साबित हो रहा था । उधर शांति की एक पुत्री अर्चना भी शांति की हरकतों से बहुत दुखी थी मगर माँ के प्रति ममता ओर डर से बिचारी कुछ बोल ही नही पाती । गुमसुम होकर माँ शांति का साथ देती । कभी कभी माँ शांति को समझाने की कोशिश भी करती मगर शांति की जिद्द के आगे नतमस्तक हो जाती । शांति का पुत्र ज्यादा कुछ बोलता नही । इंदुदेवी का भी पौत्र व पोत्रि अर्चना पर ज्यादा दिल नही था क्यों शांति व इंदु देवी के मतभेदों ने सभी की खुशिया छीन भिन्न कर दी । संतोष भी अर्चना व पुत्र को प्यार तो करता था मगर शांति से होते मतभेद कभी कभार नफरत में बदल जाता । वैसे संतोष अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह समझता भी था और जिम्मेदारी निभाना भी चाहता मगर उसे भी जब क्रोध आता तो वह भी आग बबूला हो जाता और शांति व संतोष के कलह का शिकार बनती अर्चना । अर्चना को भी अब शिकायत रहने लगी कि उसके पापा संतोष व माँ शांति दोनो के झगड़े के बीच मे अर्चना को दोषी ठहरा देता । कुछ हद तक संतोष की भी गलती थी मगर संतोष यही सोचता  कि अर्चना अपनी माँ शांति को समझाती क्यों  नही । अर्चना भी एक छोटा सा जॉब करती वैसे संतोष उससे सहमत नही था कि बेटी अर्चना जॉब करे क्यों कि संतोष को अर्चना की छोटी सी सेलेरी से कोई मतलब नही था । मगर संतोष न चाहते हुए भी अर्चना को जॉब की स्वीकृति दी तो शांति की जिद्द के कारण .. । संतोष से  दबे मन से अर्चना को जॉब की स्वीकृति दी थी यू कहा जाए मजबूरी में स्वीकृति दी । अर्चना घर के कार्य मे माँ शांति का भी साथ देती । मगर छोटी उम्र की होने के नाते इतनी समझ नही थी कि माँ शांति को अच्छे से समझा सके ।
संतोष ........ अगले अंक में
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ).

Tuesday 22 August 2017

डोकलाम समाधान पर राजनाथ की उम्मीद को चीन ने बताया धता, कहा- भारत को पीछे हटना ही होगा

चीन ने डोकलाम गतिरोध के जल्दी हल निकलने के गृह मंत्री राजनाथ सिंह की उम्मीद को खारिज करते हुए कहा है कि भारत को बिना शर्त अपनी सेना हटानी ही होगी. गौरतलब है कि एक दिन पहले ही गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यह उम्मीद जताई थी कि चीन इस मसले को हल करने के लिए कुछ 'सकारात्मक कदम' उठाएगा.सोमवार को राजनाथ सिंह ने कहा था कि डोकलाम गतिरोध का जल्दी ही कोई हल निकलेगा और भारत ने कभी भी किसी देश पर न तो कोई हमला किया है और न ही उसका कोई विस्तारवादी स्वभाव है. राजनाथ सिंह ने उम्मीद जाहिर की थी कि इस गतिरोध को दूर करने के लिए चीन कुछ सकारात्मक कदम उठाएगा.
लेकिन मंगलवार को चीन ने भारतीय गृह मंत्री की इस उम्मीद को धता बताते हुए फिर से दुष्प्रचार का सहारा लिया है. चीन ने आरोप लगाया है कि भारतीय सेना ने 'अवैध तरीके से सीमा पार किया है.'  
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ छुनयिंग ने कहा, 'भारत ने डोकलाम में चीनी सड़क निर्माण गतिविधियों को रोकने के लिए हास्यास्पद तर्क दिए हैं. इसलिए इस समस्या को दूर करने के लिए बस एक पूर्व शर्त है कि भारत अपने सैनिक और साजो-सामान बिना शर्त हटाए.'
गौरतलब है कि सिक्किम सीमा सेक्टर के पास डोकलाम में भारत और चीनी सेना दो महीने से भी ज्यादा समय से आमने-सामने है. यह गतिरोध तब शुरू हुआ जब इस इलाके में चीनी सेना द्वारा किए जाने वाले सड़क निर्माण कार्य को भारतीय सैनिकों ने रोक दिया. भारत की चिंता यह है कि अगर चीन  में सड़क बनाने में कामयाब रहता है तो उसके लिए कभी भी उत्तर-पूर्व के हिस्से तक शेष भारत की पहुंच को रोक देना आसान हो जाएगा. डोकलाम इलाके को भूटान अपना मानता है, लेकिन चीन का दावा है कि यह उसके क्षेत्र में आता है.

युवा CEO के कार्यक्रम में बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कहा- 'विकास' को हम मास मूवमेंट बना कर रहेंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नई दिल्ली में देश के युवा कार्यकारी अधिकारियों (CEO) के साथ बातचीत की

नई दिल्ली: दिल्ली में कई कंपनियों के युवा सीईओ को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि आजादी के लिए दीवानों की कमी नहीं थी. सैकड़ों सालों से लोग देश के लिए बलिदान देते चले आ रहे थे.
उन्होंने कहा कि 2017-2022 तक हमें कहां जाना है. हमें इस पर विचार करना होगा. उन्होंने कहा कि गांधी जी ने क्या किया, लोग दीवाने थे आजादी के लिए. गांधी जी ने सभी को आजादी का सैनिक बना दिया. गांधी जी ने लोगों के मन में आजादी का भाव पैदा किया और सफाई कर्मी अपना काम आजादी के लिए करने लगा. किसान किसानी आजादी के लिए करने लगा. शिक्षक अपना काम आजादी के लिए कर रहा था. यह काम गांधी जी ने किया. इस तरह गांधी जी ने आजादी के मूवमेंट को मास मूवमेंट बनाया
आज हमारे देश में हर सरकार ने आगे बढ़ने का प्रयास किया है. लेकिन आजादी के बाद विकास मास मूवमेंट नहीं बन पाया. हमें यह करना है. हम यह करके रहेंगे.
पीएम मोदी ने कहा कि आज हम 2017 में है और 2022 तक हमें यह संकल्प लेना है कि हमें कहां पहुंचना है. हमें आधुनिक भारत के लिए काम करना है. उन्होंने युवा सीईओ से कहा कि आप भी देश की इस प्रगति में सैनिक बन सकते हैं. प्रयास करने से रास्ते मिलते जाएंगे.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश के हर नागरिक को लगना चाहिए कि ये देश मेरा है. सरकार के लिए जनहित सबसे ऊपर है. उन्होंने कहा कि सरकार ने सोचने का तरीका बदला है. देश कहां जाए ये सरकार की जिम्मेदारी है. सरकार के लिए नागरिकों का कल्याण और उनकी खुशी सर्वोपरि है. उन्होंने कहा कि मेरी इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह है कि हर व्यक्ति को लगे कि यह देश मेरा है

जीवन मे जहर भाग 1 अंक 3 गतांग से आगे

जीवन मे जहर भाग - 1 अंक 3
संतोष सभी को समझाते समझाते खुद नही समझ पाता कि इसका रास्ता क्या निकालू एक असमंजस  की स्थिति में संतोष मानसिक तनाव में रहता था । शांति के पीहर पक्ष के कुछ लोग उसे भी समझाते तो कभी संतोष खुद अपने ससुराल वालों से बात करता मगर शांति व संतोष के इस बंधन को सिर्फ दोनो को ही मिल बैठकर समझने की सलाह शांति के पीहर वाले भी देते । शांति की माँ दुर्गा देवी को शांति इकलौती पुत्री थी सभी माँ जैसे दुर्गा देवी भी शांति को बहुत प्यार करती थी । वैसे बेटी की शादी के बाद माँ का फर्ज यही होता है बेटी को सिर्फ प्यार के खातिर उसकी बात सुनकर अपने दामाद संतोष से प्यार से रहने की सलाह देनी चाहिए मगर दुर्गादेवी बेटी के अतिप्रेम से उसे सलाह न देकर बेटी के दुख का ही रोना रोती थी । शांति का एक भाई शांति की पक्ष लेता तो दो भाई शांति को खरी खोटी सुनाते ओर प्यार से रहने की सलाह भी देते मगर शांति थी कि किसी की नही सुनती ।।इधर ससुराल में शांति की सास इंदुदेवी का ओर शांति का आपसी प्रेम तो संतोष ने देखा नही सिर्फ देखा तो शांति व इंदुदेवी का फुला हुआ मुह । कभी संतोष अपनी माँ इंदुदेवी व शांति को अगर खुश देखता वैसे दोनो को हंसते हुए देखना ईद का चांद जैसा ही होता उस संतोष दिल ही दिल बड़ा खुश होता । संतोष अपने व्यावसायिक कार्य संम्पन कर के घर जाता दोनो के कोप रूपी चेहरे को देख दिन भर थकान और निराश कर देती ।
आगे पढ़ें 23 अगस्त को भाग 1 अंक 4
कथा लेखक - उत्तम विद्रोही ( जैन )

Monday 21 August 2017

जिंदगी में जहर भाग 1 अंक 2

जिंदगी में जहर भाग 1 अंक 2
कोमल ने शांति की सखी होने का फ़र्ज़ निभाते हुए हर सही बात में साथ मे साथ देने का आस्वाशन दिया । उधर शांति अपनी जिद्दी प्रवृति पर अड़ी थी । न संतोष को समझने की कोशिश करती न अपने भविष्य को देख रही थी शांति ने कभी अपने अहम को नजर अंदाज करने का नही सोचा संतोष यही चाहता था येनकेन प्रकारेण शांति न अपने जीवन को बर्बाद करे ओर संतोष चाहता था कि शांति सदा मेरे साथ रहे । उधर संतोष अपने माँ व पिता और बच्चो के प्रेम में इतना उलझ गया कि बहुत बार शांति की खुशियों को नजर अंदाज कर देता संतोष यह जानते हुए भी की में शांति को हर वह खुशी नही दे पा रहा जो शांति सदा उससे अपेक्षा करती थी ।।शांति कुछ हद तक सही भी थी क्यों कि शांति की अपने पति से कुछ तो अपेक्षा थी उसका पति संतोष उसकी हर तकलीफ सुने मगर संतोष ठहरा की शांति को चाहते हुए भी हर बात का समर्थन नही करता  क्यों कि संतोष भी एक मजधार में उलझा हुआ था एक तरफ पत्नी शांति की खुशिया ओर दूसरी तरफ बुजुर्ग माँ व बाप न उसे माँ बाप समझते न शांति बिचारे संतोष की हालत तो यह हो गयी दोनो तरफ से पिसता जा रहा था । जबकि संतोष को शांति भी बहुत प्यार करती और संतोष के माता पिता भी बहुत प्यार करते थे । मगर दोनो पलडो की ना समझी ने संतोष की जिंदगी में जहर गोल दिया ।मरता क्या न करता बिचारा संतोष कभी शांति को समझाता तो कभी अपने माँ पापा को मगर कोई समझने को तैयार नही क्यों कि एक तरफ शांति पढ़ी लिखी होने के बाद जिद्दी थी और दूसरी तरफ संतोष के माता पिता पुराने विचारो के होने के कारण समझने को तैयार नही थे ।
......जिंदगी में जहर भाग 1 अंक 2 
अगला अंक 3 ओर 4 का इंतजार करे   प्रेषित कल 22 अगस्त को
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

नेकी का मार्ग दिखाता है पर्युषण

ज्ञान, दर्शन और चरित्र की आराधना का पर्व है पर्युषण पर्व। पर्युषण व्यक्ति और समाज को जोड़ने का कार्य करता है। यह पर्व व्यक्ति के अंदर की कलुषित भावना को नष्ट कर आत्मा को शुद्ध कर उसे नेकी का मार्ग दिखाता है। इसीलिए यह कहा गया है कि यह पर्व कोई  त्योहार नहीं है अपितु जीवन शुद्धि का मन्त्र है। पर्युषण इस वर्ष शुरू हो चुके है !
पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है− आत्मा में अवस्थित होना। पर्यूषण जैन धर्म का मुख्य पर्व है। श्वेतांबर इस पर्व को 8 दिन और दिगंबर इसे दस दिन तक मनाते हैं। पर्युषण अंतरआत्मा की आराधना का पर्व है। यह अंतरंग में तप, त्याग और साधना का संदेश देता हैं। आज समाज में असहिष्णुता का बोलबाला है। हमारे ऋषि मुनियों, संतों और गुरुओं ने हमें शांति ,भाईचारा, सद्भावना और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। मगर जैसे जैसे देश और समाज ने भौतिक तरक्की की हमने अपने महापुरुषों के बताये मार्ग को छोड़ दिया जिसके फलस्वरूप समाज कमजोर हुआ। पर्युषण का पर्व ऐसे विषम समय में हमारी आत्मा को शुद्ध कर ईश्वर के बताये नेकी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमारी गलतियों  को रेखांकित कर हमें पश्चाताप का अवसर प्रदान करता है।   
जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व। पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है-आत्मा में अवस्थित होना। पर्युषण का एक अर्थ है-कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी। यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दीवाली की भी संज्ञा दी गई है। जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ- सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं।
पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है । पर्युषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है। पर्युषण पर्व जैन धर्मावलंबियों का आध्यात्मिक त्योहार है। पर्व शुरू होने के साथ ही ऐसा लगता है मानो किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। यह पर्व मैत्री और शांति का पर्व है। यह पर्व अपने आपमें ही क्षमा का पर्व है। इसलिए जिस किसी से भी आपका बैरभाव है, उससे शुद्ध हृदय से क्षमा मांग कर मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें।  
भारतीय संस्कृति का मूल आधार तप, त्याग और संयम हैं। जैन धर्म में दस दिवसीय पर्युषण पर्व एक ऐसा पर्व है जो उत्तम क्षमा से प्रारंभ होता है और क्षमा वाणी पर ही उसका समापन होता है। क्षमा वाणी शब्द का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति और उसकी वाणी में क्रोध, बैर, अभिमान, कपट व लोभ न हो। दशलक्षण पर्व, जैन धर्म का प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण पर्व है। दशलक्षण पर्व संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता हैं। दशलक्षण पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है। दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं। जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती हैं। संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र त्यौहार पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत-उपवास रखते हैं। 
मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं, तथा भगवान महावीर का अभिषेक कर विशाल शोभा यात्राएं निकाली जाती है। इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं जैसे बाहर का खाना पूर्णत वर्जित होता है। दिन में केवल एक समय ही भोजन करना आदिपर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैन धर्मावलंबी अपने कषायों पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलकर अपने अगले भव को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। आइए! हम सभी अपने राग-द्वेष और कषायों को त्याग कर भगवान महावीर के दिखाऐ मार्ग पर चलकर विश्व में अहिंसा और शांति का ध्वज फैलाएं। क्षमा करें और कराएं।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

लघुकथा - जीवन मे जहर

लघु कथा - जीवन मे जहर -  भाग 1
एक अच्छे कुल में 3 भाइयो के बाद एक लड़की का जन्म हुआ लड़की का नाम माता पिता ने बड़े प्यार से शांति रखा । शांति जन्म से बहुत रूपवान व पढ़ने में कुशल थी स्वभाव से सदैव हंसमुख थी मगर स्वभाव में एक कमी थी कि बहुत गुस्सेल थी । बचपन में पिता का देहांत हो गया । माँ व भाइयो ने एक अच्छा रिश्ता देखकर शादी भी करा दी । मगर शांति ससुराल में सदैव पारिवारिक संघर्ष में रही । संघर्ष करते करते उसके जीवन मे गुस्सा व चिड़चिड़ापन बहुत बढ़ गया । एक पवन(हवा) का ऐसा झोका आया शांति के पति स्वर्गसिधार गए । कुछ संघर्ष के बाद अपनी मेहनत व होंसले से  बच्चो का व खुद पेट पाल रही थी । कुछ वर्षो बाद शांति की एक अनायास मुलाकात संतोष से हुई संतोष नाम से ओर स्वभाव से संतोषी था मगर थोड़ा भावुक था । शांति और संतोष ने शादी कर ली । कुछ वर्षों तक सब कुछ ठीक चला मगर संतोष अपनी पत्नी शांति को बहुत प्यार करता था दिलोजान से चाहता था मगर वह हजार खुशी देने के बाद शांति से एक अपेक्षा  रखता  था कि शांति सदैव उसके माता पिता व उसके बच्चो को सदैव भरपूर प्यार , मान सन्मान दे । शांति मन की तो अच्छी थी मगर गुस्सा उसके सदैव नाक पर रहता था । बात बात पर शांति नाम के विपरीत  वाद विवाद को जन्म दे देती । परिणाम यह हुआ शांति व संतोष दोनो एक दूसरे से अताह प्यार करने के बावजूद दोनो उखड़े उखड़े रहते उधर संतोष की परेशानी यह थी कि एक तरफ कुवा तो दूसरी तरफ खाई । एक तरफ अपने माता पिता व बच्चो का सोचता दूसरी तरफ शांति से अति प्रेम में उलझा था खुद समझ ही नही पा रहा था कि क्या करूँ ओर सदैव मानसिक तनाव में रहते रहते संतोष भी चिड़चिड़ा हो गया अब शांति द्वारा जब भी कोई वाद विवाद खड़ा होता संतोष ओर शांति दोनो में दूरियां बढ़ती जाती कुछ इसी तरह दोनो के जीवन मे आये दिन कलह ने घर मे निवास स्थान बना लिया । शांति की एक महिला मित्र कोमल कानूनी सलाहकार थी बिल्कुल अपने पेशे से विपरीत स्वभाव जैसा नाम वैसा ही व्यवहार उसने शांति व संतोष दोनो के बीच सामंजस्य बिठाने की सोची ओर दोनो को मार्गदर्शन देती रही ..... आगे अगली कड़ी में
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

समता का आभास है सामायिक का प्रयोग साध्वी श्री गुलाबकंवर


समता का अभ्यास  है सामायिक का प्रयोग साध्वी गुलाबकँवर
पयुर्षण पर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में मनाया
अभातेयुप के निर्देशन में हुआ अभिनव सामायिक का प्रयोग
जसोल - पयुर्षण पर्व का तीसरा दिन सोमवार को सामायिक दिवस के रूप में मनाया गया ! आचार्य महाश्रमण की सुशिष्या साध्वी गुलाबकँवर के सानिध्य में अभिनव सामायिक का प्रयोग करवाया गया !
साध्वी भानुकुमारी ने कहा कि समता की साधना वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं! इसके बिना व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल नही कर सकता ! सामायिक से व्यक्ति पापकारी प्रवृत्ति से बच जाता है !  नए कर्मो का बंधन नही होता हैं!साध्वी ने आगे कहा कि आजकल घर परिवार  व समाज में विषमता के कीटाणु फैल रहे हैं! सास- बहू व बाप- बेटे के साथ पूरा दिन तनाव में बीत रहा है ! ऐसी असन्तुलित जीवन शैली को संतुलित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामायिक का अनुष्ठान अपेक्षित हैं ! सामायिक शांति की  राह है!यह अमूल्य हैं, इसका लाभ वही व्यक्ति जान सकता है,जिससे इसकी सुखद अनुभूति की हैं! सामायिक जैन साधना पद्धति का लोकपिय अंग है !साध्वी ऋतुयशा ने भी सामायिक की साधना पर प्रकाश डाला!
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के निर्देशन में स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा अभिनव सामायिक का प्रयोग साध्वी  हेमरेखा ने विधिवत करवाया ! आज 495 संभागियों ने 865 सामायिक की ! तेरापंथ युवक परिषद जसोल की और से सामायिक दिवस पर गीत का संगान किया !

Friday 18 August 2017

डोकलाम पर भारत के साथ आया जापान तो भड़का चीन, कहा- ऐसी बयानबाजी से बचे

डोकलाम विवाद पर जापान द्वारा बयान देने के बाद चीन बौखला गया है. चीन ने जापान को साफ कहा कि वह इस मामले में बिना सोचे समझे कुछ भी बयान न दे. चीन का जापान से कहा कि अगर वह भारत का साथ देना भी चाहता है तो भी चीन के खिलाफ बयान देने से बचे. वहीं चीन के साथ डोकलाम विवाद पर भारत के कूटनीतिक प्रयासों का रंग दिखना शुरू हो गया है. इस मसले पर चीन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में घिरता दिख रहा है. अमेरिका के बाद जापान ने भी डोकलाम विवाद पर भारत का समर्थन किया है. जापान ने कहा है कि दोनों देशों के बीच विवाद का हल बातचीत के जरिए होना चाहिए. दो महाशक्तियों के समर्थन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष में बन रहे माहौल के बीच चीन भड़क उठा है.
विदेश मंत्रालय ने धमकाया- चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हू चुनयांग प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि उन्होंने देखा कि भारत में जापान के अंबेसडर भारत को सपोर्ट करना चाहते हैं. इसलिए चीन उनसे कहना चाहेगा कि वह ऐसे बिना सोचे समझे बयान न दे और कुछ भी बोलने से पहले फेक्ट चेक कर लें. उन्होंने आगे गुस्से में कहा कि डोकलाम में कोई भी बॉर्डर विवाद नहीं है और दोनों देशों को निर्धारित सीमा के बारे में पता है. ऐसे में भारत की और से स्टेटस क्यू में बदलाव की पहल हुई है न कि चीन की ओर से.
भारत को भी दी धमकी- हू यही नहीं रुकीं और भारत को भी धमकी दी कि भारत डोकलाम से जल्द सेना की टुकड़ी को वापस बुलाए. हू ने कहा कि बिना शर्त वापसी ही आगे किसी भी अर्थपूर्ण बातचीत के लिए दरवाजा खुलेगा.
जापान ने साथ का वादा किया- जापान के राजदूत केंजी हीरामत्सू ने आजतक से बातचीत में कहा, 'डोकलाम को लेकर पिछले करीब दो महीनों से तनातनी जारी है. हमारा मानना है कि इससे पूरे क्षेत्र की स्थिरता प्रभावित हो सकता है, ऐसे में हम इस पर करीबी नजर बनाए हुए हैं.' इसके साथ ही उन्होंने कहा, चीन और भूटान के बीच इस क्षेत्र को लेकर विवाद है. जहां तक भारत की भूमिका की बात है, तो हम मानते हैं कि वह भूटान के साथ अपने द्विपक्षीय समझौते के आधार पर ही इस मामले में दखल दे रहा है.

Thursday 17 August 2017

बीजेपी ने पेन आधार पूछे बिना लिया 159 करोड़ का चन्द

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डॉ सुलक्षणा अहलावत को शिक्षक दिवस पर सरोज शिक्षक सन्मान

मेवात (न्यूज़) आरोही मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल रेवासन में अंग्रेजी प्रवक्ता के पद पर कार्यरत डॉ सुलक्षणा अहलावत को शिक्षक दिवस पर साहित्य सरोज शिक्षक प्रेरक सम्मान से नवाजा जाएगा। उनको यह सम्मान उत्तर प्रदेश के गहमर में आयोजित अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन एवं सम्मान समारोह में प्रदान किया जाएगा। देशभर से केवल ग्यारह शिक्षक/शिक्षिकाओं को यह सम्मान प्रदान किया जाएगा। हरियाणा राज्य से यह सम्मान डॉ सुलक्षणा अहलावत को प्रदान किया जाएगा। यह सम्मेलन 3 सितंबर से 5 सितंबर तक उत्तर प्रदेश के गहमर में आयोजित किया जा रहा है। डॉ सुलक्षणा पिछले कई वर्षों से मेवात में कार्यरत हैं और उनका बोर्ड कक्षाओं का परीक्षा परिणाम सराहनीय रहा है। वे शिक्षाविद के साथ साथ एक उच्च कोटि की कवयित्री तथा समाज सेविका भी हैं। शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में अनेक संस्थाओं द्वारा उनको सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि इस सम्मान के लिए अपने नाम की घोषणा सुनकर वो गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। यह उनका नहीं पूरे शिक्षा जगत का सम्मान है तथा पूरे हरियाणा के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि समय समय पर सम्मान मिलने से उत्साहवर्धन होने के साथ साथ उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है कि आने वाले समय में पहले से भी बेहतर ढंग से कार्य करें। उन्होंने बताया कि इसी कार्यक्रम में महिला सशक्तिकरण को लेकर उन्हें तेजस्वनी सम्मान 2017 से भी नवाजा जाएगा।

Saturday 5 August 2017

मित्रता दिवस-----

हर कर्ज दोस्ती का अदा कौन करेगा....
जब हम ही न रहे तो दोस्ती कौन करेगा।
ऐ खुदा मेरे दोस्त को सलामत रखना....
वरना मेरे जीने की दुआ कौन करेगा।
ऐ बारिश जरा थम के बरस...
जब मेरा यार आए तो जम के बरस।
पहले न बरस कि वो आ न सके...
फिर इतना बरस कि वो जा न सके।.......
कुछ सालों बाद न जाने क्‍या समां होगा
न जाने कौन दोस्त कहां होगा
फिर मिलना हुआ तो मिलेगें यादों में
जैसे सूखे गुलाब मिलते हैं किताबों में।
जीवन मे एक मित्र ही होता है ........
बचपन के मित्र न जाने कहा खो गए .... यदा कदा मिलते भी तो पहचानना दुर्लभ हो जाता है .... कोई ज्यादा मोटे हो गए तो कोई उझड़े चमन सर से बाल ही गायब ... अपनी अपनी ज़िंदगी मे मस्त हो गए है नए मित्रो के रूप मे फेसबूक , व्हट्स अप से जुड़े मित्रो ने ले लिया है मगर निसंदेह मित्रो की सूची बहुत बढ़ गयी अब सच्चे कितने है हितेषी कितने गणना करना बहुत मुश्किल है खेर .... मुख्य विषय पर ले चलता हु मित्रता दिवस मेरे लिए कोई खास मायना नही रखता की उन्हे शुभकामना दु क्यू की मित्र तो सदेव मेरे दिल मे बसे हुए है ......
मित्रता , संवेदना , संवाद है।
मित्रता, उत्सर्ग का उन्माद है।
स्नेह का, विश्वास का ऐश्वर्य है;
आत्मा का रम्य रस - आस्वाद है।।
“दोस्त-सखी दिवस” है। आप सोचेंगे कि पहले से मौजूद इतने सारे “दिवसों” के बीच ये कैसा नया दिवस आ गया जिसका नाम ही कभी नहीं सुना! आपने इसका नाम कभी नहीं सुना क्योंकि “दोस्त-सखी दिवस” को विश्व में केवल दो व्यक्ति ही मनाते हैं और यह बना भी केवल उन्हीं दो व्यक्तियों के लिए है: “दोस्त” यानी मैं… और “सखी”या सखा .... यानी (फेसबूक से जुड़े) मैं अब से दस वर्ष पहले फेसबूक के एक चैटरूम में मिला था। इंटरनेट मेरे लिए उस समय एक नई चीज़ थी। जीवन में अनुभव कम था -सो मन में नए दोस्त बनाने की इच्छा भी प्रबल थी। नतीजतन, चैटरूम्स में आना-जाना लगा रहता था। मैंने इन चैटरूम्स का प्रयोग शायद तब से कर रहा हु और सैंकड़ो नए लोगों से बातचीत की लेकिन उन सब में से मुझे केवल दो व्यक्ति ऐसे मिले जो मेरी तरह ताउम्र मित्रता निबाहने में विश्वास रखते थे। इनमें से एक...... थी। कुछ सखियो से मन इतना गहराई से जुड़ गया एक पवित्र रिश्ते के साथ आज भी हमारी मित्रता गहराई से जुड़ी है ! कुछ सखियो से आत्मीयता से रिश्ता जुड़ा ओर बड़े भाई जेसा मानने लगी .... संजोग ही कहूँगा आज मित्रता दिवस है कल रक्षाबंधन आज मुझे अपना भाई समझ मुझे रक्षा सूत्र भेजती है ! अब इन सभी बहनो का जिक्र करना मे उचित नही समझता ! कुछ मित्र मुझे बड़ा भाई जेसे सन्मान भी देते है ! तो कुछ मित्र छोटा भाई समझकर सदेव प्यार देते है ! आज बड़ा गर्व होता है मेरी मित्रता सूची की असंख्य संख्या है ओर यही मेरी जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है ! मित्रता मेरे जीवन की उपलब्धियों में से एक है। उनके लिए मेरे मन में जो आदर, प्रेम व शुभकामनाएँ हैं सदेव बनी रहे ! आज सभी मित्रो को अनंत शुभकामना
उत्तम जैन ( विद्रोही )  

रक्षाबंधन ओर हमारी संस्कृति ---

कल रक्षाबंधन के पूर्व एक वीडियो मेने देखा जिसमे एक भाई व बहन नाचते हुए रक्षा सूत्र बांध रहे थे ! प्रथम द्रष्टि मे मेने मज़ाक समझ सूर्यज्योति पाठशाला व्हट्स अप समूह मे डाल दिया ! उस वीडियो पर गुरुदेव  सूर्यसागर जी अपना मंतव्य दे चुके थे की किस तरफ हमारी संस्कृति का चीरहरण हो रहा है ! मेरा ध्यानकर्षण पाठशाला की सदस्या बहन रिंकू जी ने कराया की इस वीडियो पर गुरुदेव ने आपति जताई है जब गहराई से वीडियो देखा मुझे खुद आभास हुआ केसे हमारी संस्कृति का इस पवित्र त्योहार का चीरहरण हो रहा है ! किसी भी सभ्य समाज के लिए बंधनों की अनिवार्यता को हमारे ऋषियों द्वारा हज़ारों वर्ष पहले ही जान लिया गया था। बंधनों और वर्जनाओं से ही किसी समाज की सभ्यता और संस्कृति का उत्थान होता है !
साधारणत: दुनिया का कोई भी प्राणी किसी प्रकार का भी बंधन स्वीकार नहीं करता। मानव जिस बात को बंधन समझता है वह तुरंत उसे काट डालने का प्रयास करता है। प्रेम ही एकमात्र ऐसा बंधन है जिसमें बँधने की इच्छा हर किसी की होती है। इस संदर्भ में राखी एक न्यारा और प्यारा बंधन है। भाई बहन के प्रेम को भारतीय समाज ने सबसे अधिक पवित्र माना है। इसीलिए रक्षा बंधन की सर्वव्यापकता को भाई बहन के परस्पर स्नेह के माध्यम से व्यक्त किया गया है। आज यह एक प्रतीक रूप में विशाल अर्थ ग्रहण कर चुका है। भाई बहन के प्रेम का ऐसा अनूठा उदाहरण विश्व में कहीं अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। प्रारंभ में मानव की इसी भावना को आधार मान कर हमारे मनीषियों ने रक्षा बंधन जैसे त्योहार की कल्पना की होगी। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें बंधन को न केवल मान्यता मिली बल्कि सर्वव्यापकता भी प्राप्त हुई।
सदियों से श्रावण मास की शुक्ल पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस पर्व की भारत के जन-जन को प्रतीक्षा रहती है। पर्व का अभिप्राय ही यह है जो किसी को किसी से बांध दे। इस प्रकार रक्षा बंधन पर्व न हो कर महा पर्व है। यह अपने भीतर सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिकता के अनेक तत्व समेटे हुए है।
रक्षा बंधन का पर्व स्नेह का, प्रेम का और परंपराओं की रक्षा का पर्व है। रक्षा की प्रतिबद्धता का पर्व है। यह भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ा पर्व है। राखी के धागों का जो भाव है, वह जिस विचार के प्रतीक हैं वे भाव जीवन को बहुत ऊंचा बनाने वाले होते हैं। यही मानव और पशु में भेद को रेखांकित भी करते हैं। मनुष्य किसी उच्च विचार को जीवन में धारण करके बहुत उन्नति कर सकता है।
रक्षा बंधन आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर हर कोई किसी न किसी बंधन में बँधने के लिए आतुर दिखाई देता है। गुरू शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरू को। प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परंपरा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए परस्पर एक दूसरे को अपने बंधन में बाँधते हैं। इस प्रकार रक्षा बंधन एक ऐसा बंधन है जहां एक धागा पूरे कर्तव्य को निष्ठा की परिधि में बंध लेता है।
वास्तव में रक्षाबंधन हमारी संस्कृति का एक ऐसा त्योहार है जिसमें केवल भाई बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज के पारस्परिक संबंधों को दृढ़ता देने की पावन भावना निहित है। रक्षा बंधन के माध्यम से एक भयमुक्त समाज की संरचना करना ही हमारे पूर्वजों का अभीष्ट रहा होगा। इसीलिए रक्षा बंधन को हमारी जीवन शैली के साथ जोड़ दिया गया। हमने जिस किसी को भी प्यार अथवा आदर दिया उसे रक्षा के सूत्र में बांध लिया अथवा स्वयं बंध गए। हमने जिस पेड़ को पूजा उसके चारों ओर कच्चे सूत के धागे के अटूट बंधन बांध दिए। देवी देवताओं की देहरी पर धागे बांध कर उनके प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त की और अपने आप को उनके साथ जोड़ लिया। वृक्षों पर धागा लपेटना क्या रक्षा बंधन नहीं है? क्या इस के माध्यम से हम यह व्यक्त नहीं करते कि वृक्ष हमारे रक्षक हों। यह भी सत्य है कि वृक्ष हमारी रक्षा तभी कर पाएँगे जब हम उनकी रक्षा करेंगे। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अधिकतर उन्हीं पेड़ों पर धागा बांधने की परंपरा है जो हमारे स्वास्थ्य की और पर्यावरण की रक्षा के लिए अधिक उपयोगी रहे हैं।
तीर्थों, नदियों और पहाड़ों की परिक्रमा क्या इसी बंधन का व्यापक रूप नहीं है? जहां धागा बांधना संभव नहीं दिखा वहां हमने अपनी भावनाओं की विशालता का आश्रय लिया है। यही कारण है कि हमने नदियों में मां और पर्वतों में देवत्व के दर्शन किए। हमारे बंधन की यही परंपरा हमें वसुधैव कुटुंबकम की ऊंचाई तक ले गई। हमने अपने आप को पूरे विश्व के साथ बांध लिया, कहीं कोई भेद भाव नहीं। इतनी अधिक व्यापकता विश्व के किसी अन्य धर्म अथवा समाज में दिखाई नहीं देती। इतिहास गवाह है कि रक्षा बंधन के कोमल धागों ने वज्र से भी अधिक शक्ति का परिचय दिया है। मज़बूत से मज़बूत तलवार इस बंधन को काटने में असफल रही है। इस प्रकार राखी धागों का एक ऐसा अटूट बंधन है जिसने भारतीय संस्कृति को एक अलग पहचान दी है। बंधन की यह शैली भारतीय समाज को अन्य समाजों से न केवल अलग करती है बल्कि वैशिष्ट्य भी प्रदान करती है। रक्षाबंधन पर्व की सभी को शुभकामना
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

Friday 4 August 2017

वर्तमान की सबसे बड़ी पारिवारिक समस्या सास बहू व पति के मतभेद.


                  वर्तमान की सबसे बड़ी पारिवारिक समस्या सास बहू व पति के मतभेद

सफल विवाहित जीवन के लिए पति-पत्नी दोनों में कुछ विशेषताएं होनी चाहिए। परिवार समाज की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण इकाई है। हमारे देश में परिवार का आधार विवाह है। विवाह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो अपरिचित स्त्री-पुरुष सामाजिक विधानों के अनुसार संबंध स्थापित करते हैं तथा उनका शारीरिक एवं भावनात्मक मिलन होता है। पारिवारिक समायोजन न होने की स्थिति में भी द्वंद्व बना रहता है। विवाह के पश्चात स्त्री और पुरुष दोनों को ही नवीन भूमिकाओं से स्वयं को समायोजित करना होता है। पारिवारिक समायोजन में स्त्री जो वधू के रूप में ससुराल जाती है, विवाह के बाद उसका पहला समायोजन पति के साथ होता है और फिर ससुराल के अन्य सदस्यों के साथ समायोजन की समस्या उत्पन्न होती है। आज मेरे विचारो ने पारिवारिक समायोजन की समस्या को उठाया है। वधू को ससुराल में सबसे अधिक समायोजन की समस्या ससुराल की स्त्रियों के साथ होती है जो कि सास, ननद, जेठानी के रूप में होती है। बहुदा बहू और सास में परस्पर मनमुटाव होता रहता है। इस बात पर मेने बहुत शोध किया की सास बहू मे अनबन व आपस मे अनबन के किस्से ज्यादा क्यू होते है ! काफी संशोधन के बाद इस निर्णय पर पहुचा की सास बहू मे मुख्यतया 20 वर्ष का उम्र का फर्क होता ही है ! अब इन 20 वर्ष के फर्क मे सोच का काफी फर्क होता है ! मुख्यतया सास की पढ़ाई 12 या इसके समकक्ष या इससे भी कम होगी ! ओर आज की लडकीया कुछ ज्यादा पढ़ी लिखी ! स्वाभाविक है सोच व विचारधारा मे फर्क होगा ही ! अब यह 20 वर्षो का अंतर तो स्वाभाविक है ! फिर संतुलन की कमी को केसे पूरा किया जाए जब यह सोच का संतुलन पूरा नही हो पाता स्वाभाविक रूप से उनमे यह मनमुटाव होना ही है !
इसका समाधान क्या ?
नव वधू के आगमन पर सास को प्रायः ‘‘असुरक्षा की भावना’’ अनुभव होती है। इसी के वशीभूत हो कर वह अपने मन के रोष, क्षोभ, आशा, स्पर्धा आदि भावों का शिकार हो जाती है। परिवार के पुरुष वर्ग का अधिकांश समय घर के बाहर व्यतीत होता है और प्रायः स्त्रियां सारा दिन घर में रहती हैं इसलिए समायोजन की आवश्यकता उनके साथ अधिक होती है। यद्यपि आज महिलाएं नौकरीशुदा भी हैं। एक अन्य मनोवैज्ञानिक कारण है- स्त्रियों में जाने अनजाने में एक दूसरे के रूप और गुण के प्रति ईर्श्या की भावना का होना। एक और स्थिति में जरा-सी चूक हो जाने पर समायेाजन की समस्या गंभीर होने के साथ-साथ असंभव भी हो जाती है, जहां वर अपने परिवार से बहुत अधिक जुड़ा रहता है। उसके अनुसार आदर्श नारी का रूप उनकी मां और बहनें ही होती हैं और वह उन्हीं की विशेषताओं को अपनी पत्नी में भी देखना चाहता है। वधू का अपना व्यक्तित्व और विशेषताएं होती हैं तथा जब वर के द्वारा अपनी पत्नी तथा परिवार की अन्य स्त्रियों में बहुत अधिक तुलना की जाने लगती है तो कई बार वधू के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है और सहनशीलता की सीमा पार हो जाने पर परिवार टूट जाते हैं। ऐसा कभी-कभी वधू के द्वारा भी हो जाता है कि वह अपने पिता की छवि व विशेषताएं अपने पति में देखना चाहती है। यह भावना ग्रंथी होती है। स्त्री-पुरुष संबंधों में व परिवारों में जिन समस्याओं के कारण तनाव उत्पन्न हो, उन समस्याओं पर मिलकर विचार करना चाहिए। कौन सही है, इस पर नहीं अपितु क्या सही है इस पर विचार किया जाना चाहिये !..........
अकसर छोटी.छोटी बातों को लेकर पति.पत्नी इस हद तक झगड़ पड़ते हैं कि उनकी जिंदगी में सिर्फ तनाव ही रह जाता है जो उन पर इस हद तक हावी हो जाता है कि दोनों का एक छत के नीचे जीवन बसर करना मुश्किल हो जाता है और नौबत तलाक तक पहुंच जाती है। आम जिंदगी में यदि पति.पत्नी कुछ बातों को ध्यान में रखें तो तनाव से बच कर अपने घरेलू जीवन को खुशियों से भर सकते हैं। यदि पति.पत्नी के बीच कभी झगड़ा हो तो दोनों में से एक को शांत हो जाना चाहिए जिससे बात आगे न बढ़े और फिर पति.पत्नी का झगड़ा तो पानी के बुलबुलों की तरह होता है जो पल भर में ही खत्म हो जाता है। युगो से नर-नारी समानता का एक मूल तथ्य परिचालित किया जाता रहा है कि पुरूष स्त्री की अपेक्षा साधारणतया ज्यादा बड़ा और शक्तिशाली होते हैं और सामान्यतः भौतिक हिंसा में जीत उन्हीं की होती है । मानव सभ्यता के शुरू से ही स्त्रियों को पुरूषों के भौतिक हमलों से स्वयं की रक्षा करनी पडी है । यहां तक कि जब वह क्रोधित नर के सामने अपने आप को असहाय महसूस करती है कई पत्नियां अपनी पति की बातों को लेकर काफी कंफ्यूज रहती है कि आखिर उनके पति अपने मन की बात उनसे शेयर क्यों नहीं करते और उनके पति मन ही मन परेशान क्यों रहते है और खुद ही अपनी सारी मुश्किलों को सुलझाने के लिए प्रयत्न करते रहते है और उनसे कोई भी बात शेयर क्यों नहीं करते । इन्ही कारणों से कभी-कभी पति-पत्नी के बीच में मन मुटाव पैदा हो जाता है और कई पत्नियां जो अपने पति के मन की बातों को समझ लेती है उनके पति उनसे खुश हो जाते है परंतु कई बार पत्नी कंफ्यूज हो जाती है कि आखिर उनके पति की खुशी किस बात में है । इन टिप्स की मदद से आप जान सकती है कि एक पति अपनी पत्नी से क्या चाहता है ।
कुछ टिप्स –
हर पति अपनी पत्नी से यह अपेक्षा करता है कि उसकी पत्नी उसके अच्छे कार्य करने पर उसकी तारीफ करें और एसा करने से आपके पति आपसे खुश हो जाएंगे। पति को ये बात सबसे ज्यादा अच्छी लगती है कि जब वो घर पर रहे तो उसकी पत्नी उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें और जितना भी समय उसके साथ व्यतीत करें वो लम्हें हंसी मजाक से भरे होने चाहिए और लड़ाई झगड़े न हो जिससे रिश्तों में तनाव पैदा हो सकता है । पति को ये बात सबसे अच्छी लगती है जब उसकी पत्नी घर के छोटे- छोटे कामों में अपने पति की मदद मांगे और काम करने के साथ- साथ आपस में ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत हो सकता है । हर पति यही चाहता है कि उसकी पत्नी सिर्फ उसी से प्यार करें ! 
उत्तम जैन (विद्रोही )

Thursday 3 August 2017

प्रेम .... जाल .... ( लघु कथा )

प्रेम .... जाल .... ( लघु कथा )
गुप्ता साहब की बिटिया अंजली बड़ी सुंदर थी पढ़ने मे भी काफी तेज थी गुप्ता साहब अपनी बिटिया अंजली के लिए एक अच्छा लड़का तलाश कर रहे थे एक दिन गुप्ता जी ने अंजली से कहा बेटा तेरे लिए एक लड़का देखा है वह इंजीनियर है अच्छे परिवार है अंजली ने तपाक से कहा मे
पापा ...अमित बहुत अच्छा है ...मैं उससे ही शादी करूंगी ....वरना !! ' गुप्ता साहब अंजली के ये शब्द सुनकर एक घडी को तो सन्न रह गए .फिर सामान्य होते हुए बोले -' ठीक है पर पहले मैं तुम्हारे साथ मिलकर उसकी परीक्षा लेना चाहता हूँ तभी होगा तुम्हारा विवाह अमित से ...कहो मंज़ूर है ?'अंजली चहकते हुए बोली -''हाँ मंज़ूर है मुझे ..अमित से अच्छा जीवन साथी कोई हो ही नहीं सकता .वो हर परीक्षा में सफल होगा ....आप नहीं जानते पापा अमित को !' अगले दिन कॉलेज में अंजली जब अमित से मिली तो उसका मुंह लटका हुआ था .अमित मुस्कुराते हुए बोला -'क्या बात है स्वीट हार्ट ...इतना उदास क्यों हो ....तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा .'' अंजली झुंझलाते हुए बोली -'अमित मजाक छोडो ....पापा ने हमारे विवाह के लिए इंकार कर दिया है ...अब क्या होगा ? अमित हवा में बात उडाता हुआ बोला -''होगा क्या ...हम घर से भाग जायेंगे और कोर्ट मैरिज कर वापस आ जायेंगें .'' अंजली उसे बीच में टोकते हुए बोली -''...पर इस सबके लिए तो पैसों की जरूरत होगी .क्या तुम मैनेज कर लोगे ?'' ''......ओह बस यही दिक्कत है ...मैं तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं ...हो सकता है घर से भागने के बाद हमें कही होटल में छिपकर रहना पड़े तुम ऐसा करो .तुम्हारे पास और तुम्हारे घर में जो कुछ भी चाँदी -सोना-नकदी तुम्हारे हाथ लगे तुम ले आना ...वैसे मैं भी कोशिश करूंगा ...कल को तुम घर से कहकर आना कि तुम कॉलेज जा रही हो और यहाँ से हम फुर्र हो जायेंगे ...सपनों को सच करने के लिए !'' अंजली भोली बनते हुए बोली -''पर इससे तो मेरी व् मेरे परिवार कि बहुत बदनामी होगी '' अमित लापरवाही के साथ बोला -''बदनामी .....वो तो होती रहती है ...तुम इसकी परवाह ..'' अमित इससे आगे कुछ कहता उससे पूर्व ही अंजली ने उसके गाल पर जोरदार तमाचा रसीद कर दिया .अंजली भड़कते हुयी बोली -''हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज़ तुझे ये तक परवाह नहीं जिससे तू प्यार करता है उसकी और उसके परिवार की समाज में बदनामी हो ....प्रेम का दावा करता है ....बदतमीज़ ये जान ले कि मैं वो अंधी प्रेमिका नहीं जो पिता की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ा कर ऐय्याशी करती फिरूं .कौन से सपने सच हो जायेंगे ....जब मेरे भाग जाने पर मेरे पिता जहर खाकर प्राण दे देंगें ! मैं अपने पिता की इज्ज़त नीलाम कर तेरे साथ भाग जाऊँगी तो समाज में और ससुराल में मेरी बड़ी इज्ज़त होगी ...वे अपने सिर माथे पर बैठायेंगें ....और सपनों की दुनिया इस समाज से कहीं इतर होगी ...हमें रहना तो इसी समाज में हैं ...घर से भागकर क्या आसमान में रहेंगें ? है कोई जवाब तेरे पास ?....पीछे से ताली की आवाज सुनकर अमित ने मुड़कर देखा तो पहचान न पाया .अंजली दौड़कर उनके पास चली गयी और आंसू पोछते हुए बोली -'पापा आप ठीक कह रहे थे ये प्रेम नहीं केवल जाल है जिसमे फंसकर मुझ जैसी हजारों लडकिया अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं !!'' गुप्ता जी व अंजली दोनों घर की ओर निकल पड़े ओर अमित ........
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )