Monday, 21 August 2017

नेकी का मार्ग दिखाता है पर्युषण

ज्ञान, दर्शन और चरित्र की आराधना का पर्व है पर्युषण पर्व। पर्युषण व्यक्ति और समाज को जोड़ने का कार्य करता है। यह पर्व व्यक्ति के अंदर की कलुषित भावना को नष्ट कर आत्मा को शुद्ध कर उसे नेकी का मार्ग दिखाता है। इसीलिए यह कहा गया है कि यह पर्व कोई  त्योहार नहीं है अपितु जीवन शुद्धि का मन्त्र है। पर्युषण इस वर्ष शुरू हो चुके है !
पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है− आत्मा में अवस्थित होना। पर्यूषण जैन धर्म का मुख्य पर्व है। श्वेतांबर इस पर्व को 8 दिन और दिगंबर इसे दस दिन तक मनाते हैं। पर्युषण अंतरआत्मा की आराधना का पर्व है। यह अंतरंग में तप, त्याग और साधना का संदेश देता हैं। आज समाज में असहिष्णुता का बोलबाला है। हमारे ऋषि मुनियों, संतों और गुरुओं ने हमें शांति ,भाईचारा, सद्भावना और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। मगर जैसे जैसे देश और समाज ने भौतिक तरक्की की हमने अपने महापुरुषों के बताये मार्ग को छोड़ दिया जिसके फलस्वरूप समाज कमजोर हुआ। पर्युषण का पर्व ऐसे विषम समय में हमारी आत्मा को शुद्ध कर ईश्वर के बताये नेकी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमारी गलतियों  को रेखांकित कर हमें पश्चाताप का अवसर प्रदान करता है।   
जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व। पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है-आत्मा में अवस्थित होना। पर्युषण का एक अर्थ है-कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी। यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दीवाली की भी संज्ञा दी गई है। जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ- सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं।
पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है । पर्युषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है। पर्युषण पर्व जैन धर्मावलंबियों का आध्यात्मिक त्योहार है। पर्व शुरू होने के साथ ही ऐसा लगता है मानो किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। यह पर्व मैत्री और शांति का पर्व है। यह पर्व अपने आपमें ही क्षमा का पर्व है। इसलिए जिस किसी से भी आपका बैरभाव है, उससे शुद्ध हृदय से क्षमा मांग कर मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें।  
भारतीय संस्कृति का मूल आधार तप, त्याग और संयम हैं। जैन धर्म में दस दिवसीय पर्युषण पर्व एक ऐसा पर्व है जो उत्तम क्षमा से प्रारंभ होता है और क्षमा वाणी पर ही उसका समापन होता है। क्षमा वाणी शब्द का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति और उसकी वाणी में क्रोध, बैर, अभिमान, कपट व लोभ न हो। दशलक्षण पर्व, जैन धर्म का प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण पर्व है। दशलक्षण पर्व संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता हैं। दशलक्षण पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है। दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं। जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती हैं। संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र त्यौहार पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत-उपवास रखते हैं। 
मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं, तथा भगवान महावीर का अभिषेक कर विशाल शोभा यात्राएं निकाली जाती है। इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं जैसे बाहर का खाना पूर्णत वर्जित होता है। दिन में केवल एक समय ही भोजन करना आदिपर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैन धर्मावलंबी अपने कषायों पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलकर अपने अगले भव को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। आइए! हम सभी अपने राग-द्वेष और कषायों को त्याग कर भगवान महावीर के दिखाऐ मार्ग पर चलकर विश्व में अहिंसा और शांति का ध्वज फैलाएं। क्षमा करें और कराएं।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

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