Tuesday 23 May 2017

मानवता है मनुष्‍य का सर्वोतम आभूषण


मानव के समक्ष दो ही रास्ते हैं। एक मानवता का और दूसरा दानवता का। ज्यों ही मनुष्य मानवता से हटता है, त्यों ही उसमें दानवता आ जाती है। दानवता आकर्षित जरूर करती है, लेकिन इसकी उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती, जबकि मानवता मृत्यु के बाद भी आपको जिंदा रखती है। स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद सरस्वती, विनोबा भावे, महात्मा गांधी आदि महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन मानवता के नाम कर दिया, जिससे उन्हें आज भी श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है।
 मानवीयता  मनुष्य का आभूषण  है। मानवीयता किसी मनुष्य की सुंदर देह से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से आंकी जाती है। दूसरों को दु:ख-दर्द देने वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रह सकता, जबकि दूसरों की सहायता करने वाले व्यक्ति की मदद स्वयं ईश्वर करते हैं। कहते हैं कि स्वर्ग-नर्क कहीं और नहीं, बल्कि इसी धरती पर हैं। महाभारत-काल में पांडवों ने दुर्योधन से केवल पांच गांव मांगे थे, लेकिन दुर्योधन ने सुई की नोंक के बराबर जमीन भी देने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ। मानवता जीती और दानवता हारी। दूसरों का हक मारकर दुर्योधन बनने में कतई समझदारी नहीं है।
दरअसल, मानव धर्म ही धर्म का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है। मानव धर्म यही सिखाता है कि सभी वर्गों को एक होकर अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग अहिंसा, विकास और सत्य को उजागर करने में करना चाहिए। इस धरा पर जितने भी महान व्यक्ति हुए, उन्होंने निश्चित रूप से मानव धर्म का पालन किया। महावीर ने जीवों पर अत्याचार होते देखा, तो उनकी रूह कांप उठी और उन्होंने लोगों को समझाया कि जीव हत्या मत करो, क्योंकि उन्हें भी वैसी ही पीड़ा होती है, जैसी तुम्हें। कभी कसाई की दुकान पर जाकर जानवर को कटते देखना! यदि आपकी रूह नहीं जागी, तो समझ लेना कि आपके भीतर से मानवता निकल गई है। और जब मानवता खत्म हो जाती है, तो वह इंसान भी खत्म हो जाता है। हमारा-आपका अस्तित्व ही नष्ट न हो जाए, इसलिए मानवीय बने रहने में भलाई है। किसी का जीवन छीन लेना जिंदगी नहीं है, बल्कि किसी को जीवन देना जिंदगी है।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

Monday 22 May 2017

मुझे समझाये यह राजनीति है या बोर्ड परीक्षा

आप सभी को उपर दिया गया विषय थोड़ा परेशान कर सकता है। क्योंकि बोर्ड परीक्षा से सभी को थोड़ा डर जो जरूर लगता है। जब आप दे रहे होते हैं। उसके बाद जब आपके बच्चे दे रहे होते हैं। खैर मुख्य मुद्दे पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा । देश की राजनीति भी मौजूदा समय में किसी बोर्ड की परीक्षा से कम नहीं रह गर्इ है। इसकी सबसे खास बात ये है कि जो सत्ता में है वो इस परीक्षा को देने वाला आैर जो विपक्ष में हैं वो सवाल पूछने वाला। स्वाभाविक है डर उसी को होता है जो परीक्षा देता है। यही इसकी विलक्षणता भी है कि सत्ता में काबिज होने के बाद इस परीक्षा के सामने सभी पसीने छूट जाते हैं। पिछले तीन सालों की राजनीति को देखा जाए तो कुछ एेसा ही देखने को मिला है। जिसकी तैयारी पूरी है वो पास हो जाता है आैर तैयार नहीं है वो फेल।
चर्चा की शुरूआत वर्षा 2013-14 से करते हैं। सत्ता में काबिज यूपीए सरकार उस अबोध बोर्ड परीक्षार्थी की तरह थी, जिसे विपक्ष सीबीएसर्इ एवं यूपी बोर्ड की भांति कठिन सवाल पूछ रहा था। जिसका जवाब देते यूपीए के बड़े नेताआें के अलावा यूपीए समर्थित प्रधानमंत्री उस नादान आैर भोले बच्चे की तरह चुप था जैसे क्लास टीचर ने उसे डांटकर घर से मम्मी-पापा से रिपोर्ट कार्ड पर हस्ताक्षर करवाने के लिए कहा। खैर यूपीए की वो पोजिशन सत्ता में काबिज रहने के करीब 8-9 साल के बाद अार्इ। ट्वीटर आैर फेसबुक जैसे पर्यवेक्षकों को बिठाकर विपक्ष ने सवाल पूछे। सवाल एेसे थे कि जैसे अभी गर्दन को उड़ा देंगे। मैंने क्या किसी ने भी एेसे सवाल पूछने वाले नहीं देखें होंगे। कोर्इ प्रधानमंत्री के कारण एेसे पूछ रहा था, जैसे कोर्इ क्लास में एक बच्चा दूसरे बच्चे का टिफन खाकर चुप हो जाता है आैर क्लास का मोनिटर उससे सवाल करता है। उसमें कोर्इ हद नहीं होती है। क्लास माॅनिटर उस बच्चे का काॅलर पकड़ने के अलावा उस हद को भी पार कर देता है जो क्लास टीचर ने उसे नहीं दी होती है। एेसा करीब उस दौरान एक-सवा साल तक चला। खैर उस समय विपक्ष रूपी परीक्षा बोर्ड ने सत्ता में काबिज उन तमाम बोर्ड परीक्षार्थियों के सेल्फ कांफिडेंस की धज्जियां उड़ा दी।
खैर फ्लैशबैक की बातें काफी बातें हो गर्इ। मौजूदा समय में आते हैं।सत्ता में बीजेपी की सरकार है। जिस सोशल मीडिया पर्यवेक्षकों के बल सत्ता में आए थे, आज वो ही पर्यवेक्षक उनके सामने बैठे हैं आैर कल बोर्ड परीक्षार्थी सवाल लिए बैठा है। अंतर यहां देखिये कि यूपीए सरकार को जिस बोर्ड परीक्षा का सामना सत्ता के रहने के 8-9 साल के बाद करना पड़ा था वो मौजूदा सरकार को सत्ता में आने के २ सालों में करना पड़ रहा है। जो लोग विपक्ष को कमजोर मानकर चल रहे थे उन्हें भी एेसे सवालों की उम्मीद नहीं थी। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस बात की ट्यूसन लेने का वक्त भी नहीं मिला ताकि उनका जवाब सत्ता में बैठे लोग दे सकें। अब जरा सवालों की आेर आते हैं.…
1- कितने करोड युवाओं को रोजगार दिया?
2- गंगा मैया कितनी साफ हुई?
3- बुलेट ट्रेन के कितने कोच तैयार हुए?
4- मेक इन इंडिया का क्या परिणाम रहा?
5- कितने दागी नेता जेल गए?
6- धारा 370 पर क्या हुआ?
7- कितने कश्मीरी पंडितों को उनके घर मिले ?
8- डीजल पैट्रोल कितने सस्ते हुए ?
9- मंहगाई कितनी कम हुई?
10- आम जनता के लिए क्या किया गया?
11- लाहौर और करांची पर कंहा तक कब्जा किया?
12- सेना को कितनी छूट दी गई?
13- चीन थर थर कांपा क्या?
14- देश ईमानदार देशों की श्रेणी में आया क्या?
15- किसानों की फांसी बंद हुई क्या?
16- जवानों का खाना सुधरा क्या?
17- बिहार को 125 लाख करोड़ का पैकेज दिया क्या?
18- अलगाववादी नेताओं की सुविधाएं बंद की क्या?
19- ओवैसी और वाड्रा जेल गए क्या?
20- मोदी के विदेशी दौरों से कुछ फायदा हुआ क्या?
21- राम मन्दिर बना क्या?
22- गुलाबी क्रांति गौ हत्या रुकी क्या?
23- डॉलर का मूल्य रूपये के मुकाबले कम हुआ क्या?
24- कितने स्मार्ट सिटी तैयार हो गये?
25- कितने गाँवों की काया पलट हुई संसादों के गोद लेने से?
26- महिलाओं पर अत्याचार रुक गया क्या?
27- बीफ एक्सपोर्ट में भारत को एक नम्बर किसने बनाया?
28- 100 दिनों के अंदर विदेशों से काला धन आया क्या?
29- कितने लोगों को 15 लाख मिले?
30- नोटबन्दी से आतंकवाद और नक्सलवाद का कमर टूटा क्या?
31- देश के अंदर से घूसखोरी बंद हो गई क्या?
32- भारत में कितनी खुशहाली आई?
33- स्वच्छता अभियान का क्या परिणाम रहा?
ये सवाल इसलिए जरूरी हैं क्योंकि देश की जनता रूपी बोर्ड की काॅपी चेक वाले टीचर्स के उस पैनल ने अच्छे नंबर्स देकर सत्ता में बिठाया था, जो उनके हर सवाल का जवाब होगा। लेकिन अभी तक उन्हें इन सवालों के जवाब का इंतजार है। इस क्लास का सबसे होशियार बच्चा जो मुहावरों के अलावा बोलने में, पढ़ने में, खेल में, बात करने में, दोस्त बनाने में, तारीफ पाने आैर करने में अव्वल है वो कुछ नहीं कर रहा मौन है। हमें उम्मीद है कि इन सवालाें का जवाब जरूर मिलेगा। अगर नहीं मिला तो देश की जनता समझदार है कुछ आगे कहने की जरुरत नहीं। जय हिंद, जय भारत।......... उत्तम जैन ( विद्रोही )

Friday 12 May 2017

मोत -

एक ऐसा विषय जिसकी कल्पना करना या आभास करने से ही मन विचलित हो जाता है कल रात ओमकार तीर्थ प्रणेता 108 आचार्य श्री सूर्यसागर जी का मुझे एक संदेश प्राप्त हुआ उत्तम जी तुम “मोत” इस विषय पर अपनी कलम द्वारा अपने विचारो की अभिव्यक्ति दो बड़ा जटिल विषय मुझे गुरुदेव ने दे दिया ! क्यू की मे पिछले 8 वर्षो से जो ब्लॉग लिखता हु राजनेतिक , सामाजिक पीड़ा पर लिखता हु ओर लिखा भी वही जाता है जिसे हम आभास (महसूस ) करते है ! कभी कभी काल्पनिक विषय पर भी लिखता हु मगर यह विषय तो गुरुदेव ने ऐसा प्रदान किया की मोत की कल्पना जिसे मे क्या कोई सांसारिक व्यक्ति करने से ही दूर भागता है ! मगर गुरुदेव का आदेश था वह भी फर्श पर बेठकर लिखना ! गुरुदेव का आदेश सर्वोपरी होता है ! सोचा कल सुबह इस विषय पर लिखुंगा ! सुबह नित्यक्रम स्नानादी से निवृत होकर घर मंदिर नाकोड़ा पार्श्वनाथ की पुजा के लिए दीया ( दीपक ) जलाया ओर पुजा करने बेठा ही था की मेरे पुत्र ने पंखा चला दिया ! मेरे द्वारा प्रज्वलित दीपक बुझ गया बस इतने समय मे मुझे गुरुदेव द्वारा प्रदत विषय का पूरा सार ( अर्थ ) समझ मे आ गया ! दीपक का प्रज्वलित करना जन्म है ओर दीपक का बुझना मृत्यु ( मोत ) इस बीच का समय है जीवन ! मौत किसी जीवन की प्रक्रिया करने की शक्ति को समाप्त करने की क्रिया को कहते हैं। यह शब्द दो विभिन्न विधियों का उल्लेख करता है, जीवन प्रारम्भ और जीवन समाप्ति।
एक शायरी के माध्यम से कहना चाहूँगा —-
जिंदगी तो हमेशा से ही, 
बेवफा और ज़ालिम होती है मेरे दोस्त, 
बस एक मौत ही वफादार होती है, 
जो हर किसी को मिलती है।
स्तेमाल करना है यह बहुत महत्वपूर्ण है। सबको बचपन से ही मृत्यु के बारे में बताया जाना चाहिए क्योंकि जो मरना नहीं चाहता, वह जी नहीं सकता। ‘मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता’ करते हुए आप जीवन से दूर हो जाएंगे। अगर यह एक कटु सत्य है जन्म के बाद मौत आना निश्चित है मगर हमे यह सोचना है इन दोनों के अंतराल के बीच का समय हमने केसे व किस तरह जिया यह सबसे महत्वपूर्ण है ! …. हम अपने मन की प्रकृति, शरीर की प्रकृति, अपने अंदर जीवन की प्रकृति को समझे बिना यहां एक गैरकुदरती रूप में रहने की कोशिश कर रहे हैं, हम जीवन में दिलचस्पी लिए बिना जीने की कोशिश कर रहे हैं, आप इस तरह नहीं जी सकते। अगर आप जीना चाहते हैं, तो आपको जीवन में दिलचस्पी होनी चाहिए। जीवन में दिलचस्पी होने का मतलब पार्टी में जाना या ऐश मोज करना नहीं है, जीवन में दिलचस्पी होने का मतलब है कि आप यह जानने में दिलचस्पी रखते हैं कि यह जीवन क्या है। जीवन में लिप्त होने का मतलब है कि आपने इसकी गहराई में जाना शुरू कर दिया है क्योंकि आप जीवन के बारे में जानना चाहते हैं। अगर आप इस जीवन की प्रकृति को समझ लें, तो ये बेकार की बातें आपके दिमाग से गायब हो जाएंगी ! मे जीवन ओर मोत के इस बीच के फासले के लिए इतना ही कहना चाहूँगा हम इस जीवन की जिये सिर्फ इस मकसद के साथ की ——
जीवन की कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तो तालियाँ बजाते हुए ! 
छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी
ख़ाली हाथ गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग !
हमे जन्म ओर मोत के बीच इस जीवन के फासले को इस लक्ष्य के साथ जीना है की जन्म हुआ तब खाली हाथ ओर अंत समय मे जाएंगे तब भी खाली हाथ फिर क्यू हम इस फासले ( जीवन ) को सार्थक रूप से नही जीते है !
लेखक – उत्तम जैन ( विद्रोही

Wednesday 10 May 2017

जीवन को सुख से जीने की कला


जीवन एक यात्रा के सजब सपने हमारे हैं तो कोशिशें भी हमारी होनी चाहिए। जब पहुंचना हमें है तो यात्रा भी हमारी ही होनी चाहिए। पर सच तो यह है जीवन की यह यात्रा सीधी और सरल नहीं है इसमें दुख हैं, तकलीफें हैं, संघर्ष और परीक्षाएं भी हैं। ऐसे में स्वयं को हर स्थिति-परिस्थिति में, माहौल-हालात में सजग एवं संतुलित रखना वास्तव में एक कला है। इसे सफलता से जीना एक कला है. अपने उत्साह और दूसरों की प्रशंसा करने का मौका कभी नहीं छोड़ना चाहिए.! जीवन जीना भी एक कला है अगर हम इस जीवन को किसी Art-Work की तरह जिए तो बहुत सुन्दर जीवन जिया जा सकता है ! वर्तमान में जब चारों ओर अशांति और बेचैनी का माहौल नजर आता है । ऐसे में हर कोई शांति से जीवन जीने की कला सीखना चाहता है । जीवन अमूल्य है ! जीवन एक यात्रा है ! जीवन एक निरंतर कोशिश है ! इसे सफलता पूर्वक जीना भी एक कला है ! जीवन एक अनंत धडकन है ! जीवन बस एक जीवन है ! एक पाने-खोने-पाने के मायाजाल में जीने और उसमे से निकलने की बदिश है ! इसे किस तरह जिया जाये कि एक सुखद, शांत, सद्भावना पूर्ण जीवन जीते हुये, समय की रेत पर हम अपने अमिट पदचिन्ह छोड़ सकें ? प्रतिदिन हम सुबह शाम तक ही नही बल्कि देर रात तक हमारे मित्र अनर्गल वार्तालाप, अनर्गल सोच विचार, करते रहते है, ऑफिस में सहकर्मियों से, दोस्तों से, बाजार में दुकानदार, घर में परिवार के सदस्यों से कंही मतभेदतो कही मनभेद करते है क्यों ? क्‍या आपने कभी यह सोचा है कि - जीवन का उद्देश्य क्या है ? क्या है यह जीवन ? इस तरह के प्रश्न बहुत कीमती हैं । जब इस तरह के प्रश्न मन में जाग उठते हैं तभी सही मायने में जीवन शुरू होता है । ये प्रश्न आपकी जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं ! आप यहां शिकायत करने नहीं आए हो,अपने दुखड़े रोने नहीं आए हो या किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं आए हो । ना ही आप नफ़रत करने के लिए आए हो । ये बातें आपको जीवन में हर हाल में खुश रहना सिखाती हैं । उत्साह जीवन का स्वभाव है । दूसरों की प्रशंसा करने का और उनके उत्साह को प्रोत्साहन देने का मौका कभी मत छोड़ो । इससे जीवन रसीला हो जाता है । जो कुछ आप पकड़ कर बैठे हो उसे जब छोड़ देते हो, और स्वकेंद्र में स्थित शांत हो कर बैठ जाते हो तो समझ लो आप के जीवन में जो भी आनंद आता है, वह अंदर की गहराइयों से आएगा । किसी भी उपलब्धि को पाने का शार्ट कट पथ के राहगीर न बने जीवन में ये शार्ट कट भले ही त्वरित क्षुद्र सफलतायें दिला दें पर स्थाई उपलब्धियां सच्ची मेहनत से ही मिलती हैं । कहना तो बड़ा आसान है, लेकिन करना बड़ा कठिन । हमारा छोटे से छोटा कृत्य भी अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहता है । इसलिए हर कार्य को सोच समझ कर करें ।आज से एक सीधी सी बात कहूँगा कि- जीवन में छोटी छोटी बातो में खुशियाँ ढूंढें ! क्योंकि अक्सर बड़ी बड़ी चीजे हमें दुःख देती है ! जरूरत है अंतर्मन की गहराइयों तक जाकर आत्मनिरीक्षण के जरिए आत्मशुद्धि की इस साधना को अपनाना होगा ! हमे हमें अपने अतीत से प्रेरणा लेनी चाहिए , भविष्य की योजनाएं बनाना चाहिए एवं वर्तमान का आनंद लेना चाहिए। हम वर्तमान में जी रहे हैं इसलिए वर्तमान का आनंद लेना ही हमें जीवन जीने की कला सीखा सकता है। ......
उत्तम जैन विद्रोही

Sunday 7 May 2017

पाकिस्तान की करतूत व आतंक

  
जम्मू कश्मीर की कृष्णा घाटी से नियन्त्रण रेखा पार करने के लिए सीमा सुरक्षा दल के गश्ती दस्ते का ध्यान बटाने के लिए पहले मोर्टार से गोले गये उसकी आड़ में पाकिस्तान की बार्डर एक्शन टीम शहीद हुये दो सैनिकों के सिर काट कर ले गयी |शत विक्षत शव को अंतिम विदाई देते समय पूरा देश क्षोभ और गुस्से से भर गया | जनेवा समझौते के अनुसार युद्ध के नियम है दुश्मन देश के शहीद सैनिक जिनके शरीर पर अपने देश की वर्दी है उनका दुश्मन की सेना से कोई वैर नहीं था वह सैनिक धर्म का पालन कर रहे थे अत : युद्ध के दौराने मारे गये या बंदी बनाये गये सैनिकों का अपमान नहीं होना चाहिए |शहीदों के शव का सम्मानित अंतिम संस्कार करना इंसानियत का धर्म है लेकिन सीमा रेखा पार कर शहीदों के शव की बेहुरमती की गयी भारत के शहीद सैनिकों का सिर काटना नई बात नहीं हैं ,उसी दिन हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने पांच पुलिसकर्मियों और दो बैंक कर्मचारियों को मौत के घाट उतार कर कैश ले जाती वैन लूट ली यह भी महज संयोग नहीं था|
शायद पाकिस्तान उस युग में लौटने की तैयारी कर रहा है जब भूखों की भीड़ घोड़ों की पीठ पर चढ़ कर सीमाओं को रौंदती किसी भी देश में घुस जाती थी दहशत फैलाने के लिए सिर काट कर भाले की नोक पर लगा कर आतंक फैलाते थे शांति प्रिय नागरिक भयानक दृश्य को देख कर डर जाते थे शायद अपने ही नागरिकों को आतंकी बनाते – बनाते पाक नेतृत्व आदिम काल में पहुंच रहा हैं | ‘जेहाद के लिए जा रहे हो निर्दोष इंसानों का कत्ल करते जेहाद की राह पर शहीद हो जाने पर सीधी जन्नत मिलेगी’? काफिर किसे कहते है ? पाकिस्तानी आतंकियों के मसीहा तय करते हैं |
हैरानी की बात है अपने ही मरे आतंकी नागरिकों के शवों को लेने से पाकिस्तान साफ़ इंकार करता है
भारत की संस्कृति विश्व कल्याण और सद्भावना में विशवास रखती हैं आतंकवादियों के शवों के साथ भी दुर्व्यवहार नहीं किया जाता ऐसे वहशी धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को भारत भूमि में एक इंच भी जगह नहीं मिलनी चाहिए उन आतंकियों का मौलवियों से विधिवत संस्कार कराया जाता रहा है आखिरत तक इंतजार करने के लिए अपनी धरती दी गयी यदि इन शवों का विद्युत् शव गृह दाह में अंतिम संस्कार किया जाता उनकी जन्नत का ख़्वाब अधूरा अधर में लटका रह जाता इस्लाम के अनुसार वह जन्नत से महरूम रह जाते क्योकि काफिर जलते हैं | आतंकी बेटों के कृत्य को शहादत का नाम दे कर गर्वित होने वाले माता पिता उनके मरने के बाद दावत देकर गर्वान्वित महसूस करते हैं उनकी भी रूह कांप जाती | फिदायीन बनाये गये आतंकी डर जाते मर जाने पर उनके शव को उनका देश लेने से मना कर देता है उनके लिए जन्नत का दरवाजा दुश्मन मुल्क बंद कर रहा है जेहादी विचलित हो जाते| इस्लाम के नाम पर बना पाकिस्तान और ऐसी नापाक हरकतें देश की सोच बन गयी है भारत के सैनिकों के सिर काट कर ले जाना पाकिस्तान के दीनी मुसलमानों को भी पसंद नहीं आयेगा हाँ अपने लोगों ख़ास कर आतंकवादियों का मौरल बढ़ाने की सोच अवश्य हो सकती है |
भारत की जनता की सोचती है पाकिस्तान की नापाक हरकतों के विरोध में भारत में बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाता है उसके बाद और भी बड़ी घटना होती है| भारत की विदेश नीति सिद्धांत पड़ोसियों के साथ प्रेम सम्बन्ध बढ़ाने की नीति व पाकिस्तान से सदैव मधुर सम्बन्ध बनाने की चाह हर सरकार पर हावी रहती है उसकी कीमत भी देते रहे हैं | क्या पड़ोसी कभी समझता है ?भारत की सेना की तरफ से सर्जिकल स्ट्राईक की गई | सेना की कार्यवाही की प्रशंसा होनी चाहिए थी उस पर भी प्रश्न उठाये गये थे दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कूटनीतिक ढंग से प्रूफ मांगे गये उसी राह पर कांग्रेस जैसा दल जिसका गौरव पूर्ण इतिहास रहा है चल पड़ा शायद देश से अधिक वोट बैंक अधिक हावी था दुःख होता है काश पूरा देश एक साथ सैनिकों की कार्यवाही पर गर्व महसूस करता हम कुछ समय के लिए राजनीति भूल जाते, नहीं भूले लेकिन जनता ने वोट के ही रास्ते जबाब दिया |
शहीद परम जीत के भाई ने कहा जब सेना की भर्ती होती है एक इंच कम होने पर सेना में जाने के इच्छुक जवान को रिजेक्ट किया जाता लेकिन शहीद के घरवालों को अंतिम संस्कार करने के लिए एक फुट कम शव क्यों सौंपा गया ? शहीद परिवार और भारत वासी चीख रहा है हमें भी पाकिस्तानी सैनिकों के कटे सिर चाहिए पाकिस्तान की धरती पर भी केवल धड़ को कब्र दी जाये बिना सिर के शहीद का अंतिम संस्कार कितना दुखद है| इतिहास में ऐसे उदाहरण पहले भी पढ़े गये हैं लेकिन सभ्यता के विकास के साथ शवों का सम्मान करने की परम्परा बनी हैं |
अब भारत में पड़ोसी की नापाक हरकतों से पूरा देश आंदोलित है विरोधी दल भी राजनीति भूल कर कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं |बहस पर बहस हो रही हैं पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए किन विकल्पों को अपनाया जाए क्या युद्ध अंतिम विकल्प है ?क्या अभी हम पाकिस्तान को दंडित नहीं कर सकते ? भारत की भूमि से पाकिस्तान जाने वाली नदियों का पानी रोक दिया जाये अर्थात सिंधु जल संधि भंग की जाये| इन नदियों का जल सबसे अधिक पाकिस्तान के सेना के उच्च पदाधिकारी सैनिक अफसरों के फ़ार्म हाउसों को सींचता है | पाकिस्तान भारत के खिलाफ छद्म युद्ध से बाज नहीं आ रहा| अभी विरोध में ‘जल रोकना बिना रक्त पात का पाकिस्तान के विरुद्ध अघोषित युद्ध होगा |

Monday 1 May 2017

प्रकृति ओर मनुष्य

मनुष्य सदियों से प्रकृति की गोद में फलता-फूलता रहा है! मानव और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मानव अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए प्रकृति की ओर देखता है और उसकी सौन्दर्यमयी बलवती जिज्ञासा प्रकृति सौन्दर्य से विमुग्ध होकर प्रकृति में भी सचेत सत्ता का अनुभव करने लगती है। हमारे धार्मिक ग्रंथ, ऋषि-मुनियों की वाणियाँ, कवि की काव्य रचनाएँ, सन्तों-साधुओं के अमृत वचन सभी प्रकृति की महत्ता से भरी पड़ी है। विश्व की लगभग सारी सभ्यता का विकास प्रकृति की ही गोद में हुआ और तब इसी से मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध भी स्थापित हुए, किन्तु कालान्तर में हमारी प्रकृति से दूरी बढ़ती गई। इसके फलस्वरूप विघटनकारी रूप भी सामने आए। तभी तो प्रकृति की महत्ता को बतलाते हुए कहा गया है- सौ पुत्र एक वृक्ष समान। प्रकृति के संरक्षण का हम अथर्ववेद में शपथ खाते हैं- "हे धरती माँ, जो कुछ भी तुमसे लूँगा, वह उतना ही होगा जितना तू पुनः पैदा कर सके। तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूँगा।" मनुष्य जब तक प्रकृति के साथ किए गए इस वादे पर कायम रहा सुखी और सम्पन्न रहा, किन्तु जैसे ही इसका अतिक्रमण हुआ, प्रकृति के विध्वंसकारी और विघटनकारी रूप उभर कर सामने आए। सैलाब और भूकम्प आया। पर्यावरण में विषैली गैसें घुलीं। मनुष्य का आयु कम हुआ। धरती एक-एक बूँद पानी के लिए तरसने लगी, लेकिन यह वैश्विक तपन हमारे लिए चिन्ता का विषय नहीं बना। तापमान में बढ़ोत्तरी के कारण दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हमारे यहाँ प्रतिवर्ष 15 लाख हेक्टेयर वन नष्ट हो रहे हैं, जबकि प्रतिवर्ष वन लगाने की अधिकतम सीमा 3 लाख 26 हजार हेक्टेयर है। यही हाल रहा तो आगामी कुछ दशकों में हमारी धरती वन विहीन हो जाएगी। जब पाप अधिक बढ़ता है तो धरती काँपने लगती है। यह भी कहा गया है कि धरती घर का आंगन है, आसमान छत है, सूर्य-चन्द्र ज्योति देने वाले दीपक हैं, महासागर पानी के मटके हैं और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। हमारा प्रकृति के साथ किया गया वादा है- वह जंगल को नहीं उजाड़ेगा, प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ नहीं करेगा, ऐसी फसलें नहीं उगाएगा जो तलातल का पानी सोख लेती है, बात-बेबात पहाड़ों की कटाई नहीं करेगा। याद रखिए, प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती। इसके द्वार सबके लिए समान रूप से खुले हैं, लेकिन जब हम प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करते हैं तब उसका गुस्सा भूकम्प, सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान की शक्ल में आता है, फिर लोग काल के गाल में समा जाते हैं। प्रकृति ईश्वर की शक्ति का क्षेत्र है और जीवात्मा उसके प्रेम का क्षेत्र। प्रकृति की इसी महत्ता को प्रतिस्थापित करते हुए एक कथन है कि जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा जलाशयों के तट पर वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक फलता-फूलता है, जितने वर्षों तक वह वृक्ष फलता-फूलता है। इसी कारण हमारे यहाँ वृक्ष पूजन की सनातन परम्परा रही है। यही पेड़ फलों के भार से झुककर हमें शील और विनम्रता का पाठ पढ़ाते हैं साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है जो जीवन में प्रकृति का है। प्रकृति से मनुष्य का सम्बन्ध अलगाव का नहीं है, प्रेम उसका क्षेत्र है। सचमुच प्रकृति से प्रेम हमें उन्नति की ओर ले जाता है और इससे अलगाव हमारे अधोगति के कारण बनते हैं। एक कहावत भी है- कर भला तो हो भला।

उत्तम जैन (विद्रोही )