Friday 12 May 2017

मोत -

एक ऐसा विषय जिसकी कल्पना करना या आभास करने से ही मन विचलित हो जाता है कल रात ओमकार तीर्थ प्रणेता 108 आचार्य श्री सूर्यसागर जी का मुझे एक संदेश प्राप्त हुआ उत्तम जी तुम “मोत” इस विषय पर अपनी कलम द्वारा अपने विचारो की अभिव्यक्ति दो बड़ा जटिल विषय मुझे गुरुदेव ने दे दिया ! क्यू की मे पिछले 8 वर्षो से जो ब्लॉग लिखता हु राजनेतिक , सामाजिक पीड़ा पर लिखता हु ओर लिखा भी वही जाता है जिसे हम आभास (महसूस ) करते है ! कभी कभी काल्पनिक विषय पर भी लिखता हु मगर यह विषय तो गुरुदेव ने ऐसा प्रदान किया की मोत की कल्पना जिसे मे क्या कोई सांसारिक व्यक्ति करने से ही दूर भागता है ! मगर गुरुदेव का आदेश था वह भी फर्श पर बेठकर लिखना ! गुरुदेव का आदेश सर्वोपरी होता है ! सोचा कल सुबह इस विषय पर लिखुंगा ! सुबह नित्यक्रम स्नानादी से निवृत होकर घर मंदिर नाकोड़ा पार्श्वनाथ की पुजा के लिए दीया ( दीपक ) जलाया ओर पुजा करने बेठा ही था की मेरे पुत्र ने पंखा चला दिया ! मेरे द्वारा प्रज्वलित दीपक बुझ गया बस इतने समय मे मुझे गुरुदेव द्वारा प्रदत विषय का पूरा सार ( अर्थ ) समझ मे आ गया ! दीपक का प्रज्वलित करना जन्म है ओर दीपक का बुझना मृत्यु ( मोत ) इस बीच का समय है जीवन ! मौत किसी जीवन की प्रक्रिया करने की शक्ति को समाप्त करने की क्रिया को कहते हैं। यह शब्द दो विभिन्न विधियों का उल्लेख करता है, जीवन प्रारम्भ और जीवन समाप्ति।
एक शायरी के माध्यम से कहना चाहूँगा —-
जिंदगी तो हमेशा से ही, 
बेवफा और ज़ालिम होती है मेरे दोस्त, 
बस एक मौत ही वफादार होती है, 
जो हर किसी को मिलती है।
स्तेमाल करना है यह बहुत महत्वपूर्ण है। सबको बचपन से ही मृत्यु के बारे में बताया जाना चाहिए क्योंकि जो मरना नहीं चाहता, वह जी नहीं सकता। ‘मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता’ करते हुए आप जीवन से दूर हो जाएंगे। अगर यह एक कटु सत्य है जन्म के बाद मौत आना निश्चित है मगर हमे यह सोचना है इन दोनों के अंतराल के बीच का समय हमने केसे व किस तरह जिया यह सबसे महत्वपूर्ण है ! …. हम अपने मन की प्रकृति, शरीर की प्रकृति, अपने अंदर जीवन की प्रकृति को समझे बिना यहां एक गैरकुदरती रूप में रहने की कोशिश कर रहे हैं, हम जीवन में दिलचस्पी लिए बिना जीने की कोशिश कर रहे हैं, आप इस तरह नहीं जी सकते। अगर आप जीना चाहते हैं, तो आपको जीवन में दिलचस्पी होनी चाहिए। जीवन में दिलचस्पी होने का मतलब पार्टी में जाना या ऐश मोज करना नहीं है, जीवन में दिलचस्पी होने का मतलब है कि आप यह जानने में दिलचस्पी रखते हैं कि यह जीवन क्या है। जीवन में लिप्त होने का मतलब है कि आपने इसकी गहराई में जाना शुरू कर दिया है क्योंकि आप जीवन के बारे में जानना चाहते हैं। अगर आप इस जीवन की प्रकृति को समझ लें, तो ये बेकार की बातें आपके दिमाग से गायब हो जाएंगी ! मे जीवन ओर मोत के इस बीच के फासले के लिए इतना ही कहना चाहूँगा हम इस जीवन की जिये सिर्फ इस मकसद के साथ की ——
जीवन की कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तो तालियाँ बजाते हुए ! 
छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी
ख़ाली हाथ गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग !
हमे जन्म ओर मोत के बीच इस जीवन के फासले को इस लक्ष्य के साथ जीना है की जन्म हुआ तब खाली हाथ ओर अंत समय मे जाएंगे तब भी खाली हाथ फिर क्यू हम इस फासले ( जीवन ) को सार्थक रूप से नही जीते है !
लेखक – उत्तम जैन ( विद्रोही

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