Thursday 13 June 2019

प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जन्म शताब्दी पर भावो की अभिव्यक्ति -- उत्तम जैन ( विद्रोही )

प्रज्ञा दिवस -प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जन्म शताब्दी पर भावो की अभिव्यक्ति - शत शत वंदन  ---उत्तम जैन ( विद्रोही )  


जैन धर्म के श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाचार्य आचार्य महाप्रज्ञ एक संत , योगी , आध्यात्मिक , दार्शनिक अधिनायक , लेखक ,वक्ता ओर कवि थे ! जिनकी जिव्हा पर सरस्वती का वास था ! उनकी बहुत सी पुस्तके उनके पूर्ण नाम मुनि नथमल के नाम से प्रकाशित हुई तो बहुत सी पुस्तके आचार्य महाप्रज्ञ के नाम से .....     
आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म हिन्दू तिथि के अनुसार विक्रम संवत 1977, आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी को राजस्थान के टमकोर नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम तोलाराम तथा माता का नाम बालू था। आचार्य महाप्रज्ञ का बचपन का नाम नथमल था। उनके बचपन में पिता का देहांत हो गया था। माँ बालू ने उनका पालन-पोषण किया। उनकी माँ धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। इस कारण उन्हें बचपन से ही धार्मिक संस्कार मिले थे। विक्रम संवत 1987, माघ शुक्ल की दशमी (29 जनवरी 1939) को उन्होंने दस वर्ष की आयु में अपनी माता के साथ तेरापंथ के आचार्य कालूगणी से दीक्षा ग्रहण की।
आचार्य कालूगणी की आज्ञा से मुनि तुलसी जो आगे चल कर आचार्य कालूगणी के बाद तेरापंथ के नौवें आचार्य बने, उनके मार्गदर्शन में दर्शन, न्याय, व्याकरण, मनोविज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि का तथा जैन आगम, बौद्ध ग्रंथों, वैदिक ग्रंथों तथा प्राचीन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। वे संस्कृत भाषा के आशु कवि थे। आचार्यश्री तुलसी ने महाप्रज्ञ (तब मुनि नथमल) को पहले अग्रगण्य एवं विक्रम संवत 2022 माद्य शुक्ला सप्तमी (ईस्वी सन् 1965) को हिंसार में निकाय सचिव नियुक्त किया। आगे चल कर उनकी प्रज्ञा से प्रभावित होकर आचार्य तुलसी ने उन्हें महाप्रज्ञ की उपाधि से अंलकृत किया। तब से उन्हें महाप्रज्ञ के नाम से जाना जाने लगा।
विक्रम संवत 2035 राजलदेसर (राजस्थान) मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आचार्यश्री तुलसी ने विक्रम संवत 2035 को राजस्थान के राजलदेसर में उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। और महाप्रज्ञ युवाचार्य महाप्रज्ञ हो गए। जैन इतिहास मे एक पहला उदाहरण था की एक आचार्य ने अपने जीवन मे  आचार्य पद का विसर्जन कर के किसी अपने उत्तराधिकारी को आचार्य पद नियुक्त किया हो !  विक्रम संवत 2050 में राजस्थान के सुजानगढ़ में आचार्य तुलसी ने अपने आचार्य पद का विर्सजन कर दिया और युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य नियुक्त किया। और वे तेरापंथ के दसवें आचार्य बने।
आचार्य महाप्रज्ञ एक जैन धर्म के ही आचार्य नहीं थे उनके अवदानों पर नजर डाली जाए तो सभी धर्मो व सभी धर्माचार्यो मे एक सन्मान की द्रष्टि से देखा जाता था ! आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान के रूप में एक विशिष्ठ वैज्ञानिक साधना-पद्धति का विकास किया। इस साधना-पद्धति के द्वारा सैकड़ों व्यक्ति मानसिक विकृति को दूर हटाकर आध्यत्मिक ऊर्जा एवं शांति प्राप्त करते हैं।
 जैनागमों के अध्ययन के साथ उन्होंने भारतीय एवं भारतीयेत्तर सभी दर्शनों का अध्ययन किया था। संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। वे संस्कृत भाषा के सफल आशु कवि भी थे। आपने संस्कृत भाषा के सर्वाधिक कठिन छंद 'रत्रग्धरा' में 'घटिका यंत्र' विषय पर आशु कविता के रूप में श्लोक बनाकर प्रस्तुत किए। संस्कृत भाषा में संबोधि, अश्रुवीणा, मुकुलम्, अतुला-तुला आदि तथा हिन्दी भाषा में 'ऋषभायण' कविता को आपके प्रमुख ग्रंथ माने जाते हैं। आपने जैन आगम, बौद्ध ग्रंथों, वैदिक ग्रंथों तथा प्राचीन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। जैनों के सबसे प्राचीन एवं अबोधगम्य 'आचारांग सूत्र' पर संस्कृत भाषा में भाष्य लिखकर आचार्य महाप्रज्ञ ने प्राचीन परंपरा को पुनरुज्जीवित किया । 
आतंकवादअशांतिअनुशासनहीनता और अव्यवस्था से विश्व को बचाने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है इस मिशन को लेकर  देश के दूरस्थ गांवों में लाखों कि.मी पदयात्रा कर अहिंसा यात्रा की अलख जगायी ! आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने गुरु आचार्य तुलसी द्वारा 1949 में प्रारम्भ किये गये ‘अणुव्रत आंदोलन’ के विकास में भरपूर योगदान दिया। 1947के बाद जहां एक ओर भारत में भौतिक समृद्धि बढ़ीवहीं अशांतिहिंसा,दंगे आदि भी बढ़ने लगे। वैश्वीकरण भी अनेक नई समस्याएं लेकर आया। आचार्य जी ने अनुभव किया कि इन समस्याओं का समाधान अहिंसा ही है। अतः उन्होंने 2001 से 2009 तक ‘अहिंसा यात्रा’ का आयोजन किया। इस दौरान लगभग एक लाख कि.मी की पदयात्रा कर वे दस हजार ग्रामों में गये। लाखों लोगों ने उनसे प्रभावित होकर मांसमदिरा आदि को सदा के लिए त्याग दिया।
भौतिकवादी युग में मानसिक तनावव्यस्तता व अवसाद आदि के कारण लोगों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन को चौपट होते देख आचार्य जी ने साधना की सरल पद्धति ‘प्रेक्षाध्यान’ को प्रचलित किया। इसमें कठोर कर्मकांडउपवास या शरीर को अत्यधिक कष्ट देने की आवश्यकता नहीं होती। किसी भी अवस्था तथा मतपंथ या सम्प्रदाय को मानने वाला इसे कर सकता है। अतः लाखों लोगों ने इस विधि से लाभ उठाया।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी प्राचीन और आधुनिक विचारों के समन्वय के पक्षधर थे। वे कहते थे कि जो धर्म सुख और शांति न दे सकेजिससे जीवन में परिवर्तन न होउसे ढोने की बजाय गंगा में फेंक देना चाहिए। जहां समाज होगावहां समस्या भी होगीऔर जहां समस्या होगीवहां समाधान भी होगा। यदि समस्या को अपने साथ ही दूसरे पक्ष की दृष्टि से भी समझने का प्रयास करेंतो समाधान शीघ्र निकलेगा। इसे वे ‘अनेकांत दृष्टि’ का सूत्र कहते थे। 
मुझे ज्ञात है एक बार  प्रसिद्ध साहित्यकार कुमार पाल देसाई जी ने कहा जब प्रज्ञा की जरूरत हुई तब प्रज्ञा के अवतार आचार्य महाप्रज्ञ ने अवतार लिया वे प्रज्ञा के शिखर पुरुष थे।देश के प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र ने कहा था - 'अगर मैं महाप्रज्ञ साहित्य को पहले पढ़ लेता तो मेरे साहित्य का रूप कुछ दूसरा होता।' राष्ट्रकवि दिनकर से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की अनेक बार बातचीत हुई। अनेक विषयों में चर्चा-परिचर्चा हुई। वे राष्ट्रकवि महाप्रज्ञ की वैचारिक और साहित्यिक प्रतिभा के प्रति सदैव प्रणत रहे। उन्होंने महाप्रज्ञ की मनीषा का मूल्यांकन करते हुए कहा था, 'हम विवेकानंद के समय में नहीं थे। हमने उनको नहीं देखा, उनके विषय में पढ़ा मात्र है। आज दूसरे विवेकानंद के रूप में हम मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) को देख रहे हैं।' देश के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. राजा रामन्ना महाप्रज्ञ से अनेकांत दर्शन का स्पर्श पा आत्मविभोर हो उठे थे।  
आज आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के   जन्मशताब्दी वर्ष   पर शत शत वंदन  
उत्तम जैन ( विद्रोही ) 
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज / जैन वाणी 

Saturday 8 June 2019

अलीगढ़ में ट्विंकल की हुई नृशंस हत्या अमानवीय अपराध ओर धर्म के नाम सभ्य समाज में घुल रहा सांप्रदायिक ज़हर

 ट्विंकल की हत्या के अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दिलाकर सरकार जनता की भावना समझे कानून मे संशोधन कर के सरकार कड़े कानून ही न बनाकर प्रयास करे की इस तरह के मामले मे जल्दी सजा मिले

अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची की नृशंस और अमानवीय हत्या ने पूरे भारत में जबरदस्त कोहराम मचा दिया है हमेशा की तरह राजनेताओं और बॉलीवुड हस्तियों ने भी इसकी निंदा की है शोशल मीडिया पर आम जनता का जबरदस्त गुस्सा देखा जा रहा है हर व्यक्ति चाहता है इस जघन्य अपराध को अंजाम देनेवाले अपराधियों के लिए कठोर सजा जल्द दे जल्द मिले ! इस मामले में जाहिद और असलम नाम के दो शख्स को गिरफ्तार किया गया है। इस हत्याकांड को लेकर सोशल मीडिया पर व्यापक आक्रोश फैलने के बाद पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया और हत्या की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है। अब तक, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न का कोई संकेत नहीं मिला है, लेकिन जिस भयानक तरीके से इस अपराध को अंजाम दिया गया था, वह बेहद निंदनीय है !
जिस क्रूरता से मारा गया, उसके बारे में क्या कहा जाए.. मेरे अपनी भावना व्यक्त करने के लिए व मन की पीड़ा लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। ये समझ से बाहर है कि कोई इंसान इतनी छोटी फूल सी बच्ची को इस तरह से तड़पाकर कैसे मार सकता है? जिन अपराधियों ने ये काम किया वो इंसान नहीं हो सकते और ऐसे हैवानों को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस केस के आरोपियों के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चलना चाहिए और उन्हें जल्द से जल्द मौत की सजा दी जानी चाहिए। मोदी सरकार पूर्ण बहुमत की सरकार है जल्दी ही ऐसा कानून पास करे ओर इस तरह की हत्या की सुनवाई 15-30 दिनो मे कर के सजा ऐ मोत से कम सजा न हो
पूर्व मे निर्भया के यौन उत्पीड़न पर पूरे देश में गुस्सा था, उसके प्राइवेट पार्ट्स को काट दिया गया और उसे सड़क पर फेंक दिया गया। वह जिंदगी के लिए संघर्ष करती रही और आखिरकार उसकी मौत गई।
अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए हजारों लोग देश की सड़कों पर निकले। यौन उत्पीड़न पर कानून पूरी तरह से बदल दिया गया था और बहुत कड़ी सजा निर्धारित की गई थी, लेकिन यह बेहद दुखद है कि निर्भया मामले के गुनहगार दिल्ली की तिहाड़ जेल में जिंदा हैं, उन्हें अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया गया है। क्यू ? मन मे एक पीड़ा है क्या हम, हमारी सरकार या हमारी न्यायप्रणाली इतनी सक्षम नही है ?
दरिंदों को हम जल्दी सजा देकर यह संदेश दे सके की आगे कोई दरिंदा इस तरह की हरकत करने से पहले खुद अंजाम से कांप उठे ! मैं यहां एक बात ओर कहना चाहता हूं। इस बच्ची के साथ क्रूरता को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम तरह के मैसेज वायरल किए जा रहे हैं। कई लोगों ने जम्मू के पास कठुआ में एक बच्ची के साथ हुए बलात्कार और हत्या की घटना के साथ अलीगढ़ की इस घटना की तुलना करते हुए भड़काऊ संदेश प्रसारित किया है। इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई है। बच्ची की हत्या हो या रेप जैसी घिनौनी वारदात हो, इस तरह की हरकतें करनेवालों का कोई मजहब नहीं होता।
ऐसी हरकतें करनेवाला सिर्फ जघन्य अपराधी होता है और उसे उसके गुनाह की सजा मिलनी चाहिए। लेकिन जो लोग पीड़ित की तस्वीर का उपयोग करके और अपराधियों का नाम लेकर सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल कर रहे हैं, वे लोगों को उकसाने के लिए समान रूप से दोषी हैं और वे सामाजिक वैमनस्य पैदा करते हैं। सरकार को ऐसे लोगों की पहचान करनी चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। धर्म के नाम पर लोगों को उकसाना और सभ्य समाज में सांप्रदायिक ज़हर घोलना अपराध है। हमे चाहिए इसे सांप्रदायिक रंग न देकर बच्ची को न्याय मिले ओर हत्यारो को मोत की सजा मिले कानून मे संशोधन कर के सरकार कड़े कानून ही न बनाकर प्रयास करे की इस तरह के मामले मे जल्दी सजा मिले
लेखक- उत्तम जैन ( विद्रोही )
संपादक - विद्रोही आवाज  

Sunday 2 June 2019

समाजवादी अर्थ व्यवस्था जैन समाज की विघटन की ओर

सुखी और सन्तुलित जीवन के लिए मनुष्य धर्माचरण पूर्वक आदर्श जीवन यापन करने के साथ न्यायोपार्जित धन का संग्रह करे और विवेकपूर्वक परोपकारर्थ व्यय करे।
‘‘यतोऽभ्युदयनिश्रेयससिद्धि: स धर्म:।’’
अपने पारलौकिक धर्म की क्षति/हानि न करता हुआ लौकिक सुख को न्यायपूर्वक व्यवहार करे।
जैनधर्म में संग्रहप्रवृत्ति पर अंकुश है। आवश्यकता से अधिक संग्रह पापबन्ध का कारण माना गया हैं परोपकार और धार्मिक कृत्यों में धन का सदुपयोग अपेक्षित है। यद्यपि संयमी साधु जीवन के लिए पूर्ण धन का त्याग आवश्यक है; परन्तु गृहस्थ जीवन में न्यायनीति से अर्जित किया हुआ धन ही सार्थक हैवह गृहस्थ जो कोड़ी न रखे तो कोड़ी का है; वह श्रमण जो कोड़ी रखे तो कोड़ी का है। एक की शोभा माया और रागरंग और एक की शोभा नग्न काया त्याग संग।
मनुष्य अपने भविष्य की सुरक्षा परिवार के पालनपोषण और सामाजिक दायित्व निभाने के लिए धन संचय करे। जैन धर्मानुसार व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का परिसीमन करके अतिरिक्त धन को लोक कल्याण में लगाये। परिग्रह की मर्यादा का सर्वप्रथम सन्देश भगवान महावीर ने दिया। जिसका प्रयोजन व्यक्ति संयम से लेकर समाज में सम वितरण था। सामाजिक शक्ति के महत्त्व को समझने एवं समानवादी अर्थव्यवस्था का विचारों में सूत्रपात करने वाले महावीर पहले ऐतिहासिक महापुरुष थे।
समाजवादी अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में जैनधर्म के अपरिग्रहवाद को समझना होगा। स्थूलरूप में परिग्रह में धनधान्य, चलअचल, सम्पत्ति आदि है। महावीर के मौलिक और सूक्ष्म चिन्तन ने स्थूल (बाह्य) परिग्रह से आगे बढ़कर उसके अन्तरंग प्रभाव को आंका। उन्होंने आन्तरिक परिग्रह के नियंत्रण पर जोर दिया उन्होंने परिग्रह की सूक्ष्म व्याख्या कीमूच्र्छा परिग्रह: अर्थात् मूच्र्छा (आसक्ति) परिग्रह है। परिग्रह की सूक्ष्म परिभाषा में उन्होंने सम्पत्ति के प्रति आसक्ति को परिग्रह का मूल कारण कहा।
यदि मनुष्य के मन में ममत्व प्रमाद है तो वास्तव में सम्पत्ति पास में न होते हुए भी सम्पत्ति पाने की लालसा तीव्र होगी। तदर्थ उसके प्रयास आक्रामक होंगे। आधुनिक भाषा में वह पूंजीपति नहीं होते हुए भी पूंजीवादी होगा। दूसरी ओर एक मनुष्य के पास अपार सम्पत्ति होते हुए भी यदि उसका उसमें ममत्व नहीं है तो उसका जीवन कीचड़ में रहते हुए कमल के समान हो सकता है, जिससे वह उदार मन होगा। महात्मा गाँधी की भाषा में वह समाज की सम्पत्ति का ट्रस्टी मात्र होगा। इस प्रकार सम्पत्ति के स्वामित्व का प्रश्न परिग्रह में मूच्र्छा की भावना पर निर्भर है। भगवान महावीर ने कहा व्यक्ति सम्पत्ति के प्रति आसक्ति मिटावे और त्याग/दान की प्रवृत्ति अपनावे। परिग्रहपरिमाण व्रत के द्वारा उपभोग्य पदार्थों को समाज में समान रूप से वितरण करे। वस्तुत: महावीर के अपरिग्रहवाद की मूल प्रेरणा में व्यक्तिगत के साथ सामाजिक हित भी समाविष्ट है; जिसमें गृहस्थ में रहते हुए भी व्यक्ति की सामाजिक निष्ठा जागृत रहे।
यहाँ यह विशेष उल्लेखनीय है कि जैनधर्म के अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह के सिद्धान्त स्वयं समाजवादी अर्थव्यवस्था की दार्शनिक रूपरेखा है। इन सिद्धान्तों के परिपाश्र्व में ही आधुनिक समाजवादी दर्शन को भी नवीन रूप देकर सर्वप्रिय बनाया जा सकता है। भगवान महावीर के सिद्धान्तों ने सामाजिक शक्ति की सम्यक् व्यवस्था के अभ्युदय को प्रेरणा दी है। अत: तीर्थंकर वर्धमान महावीर को समाजवादी अर्थव्यवस्था का प्रवर्तक कहा जा सकता है। महावीर के सिद्धान्तों में वह क्षमता विद्यमान है। जो समाजवादी अर्थव्यवस्था को समन्वित रूप प्रदान कर समाज में सामंजस्य पैदा करती है। जैनधर्म के परिप्रेक्ष्य में समाजवादी अर्थव्यवस्था इस प्रकार है
१.परिग्रह और उसके ममत्व का त्यागसमाजवादी अर्थव्यवस्था के लिए यह सर्वाधिक प्रेरणाप्रद है। आसक्ति या ममत्व घटाने या मिटाने का भावनामूलक उपाय तो समाजवादी अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। इसमें व्यक्तिगत स्वामित्व का स्वेच्छापूर्वक त्याग महत्त्वपूर्ण है। व्यक्तिगत स्वामित्व में मोह की सत्ता रहती है। जबकि सामाजिक सम्पत्ति में व्यक्ति का मोह नहीं होता। जब समाजगत अर्थव्यवस्था होती है तो उसमें व्यक्ति का कत्र्तव्य समाज के प्रति सजग रहता है। जैसेएक सेठ का नौकर सेठ की सम्पत्ति संभालते हुए भी उसका मालिक नहीं है। धर्मशाला की सम्पत्ति मैनेजर के अधीन होती है, किन्तु उसमें उसका ममत्व नहीं होता। अत: उसके उपयोग में समानता का व्यवहार होता है।
२. सम्पत्ति के संचय का विरोधसंचयवृत्ति ने समाज की प्रगति में सर्वाधिक प्रभाव डाला है। इस कारण अर्थसंग्रह के आधिक्य को रोकना समाजवादी अर्थव्यवस्था का प्रथम कर्तव्य है। भगवान महावीर ने सम्पत्ति के संचय का विरोध करके आर्थिक विकेन्द्रीकरण का मार्ग प्रशस्त किया है। संचय को पदार्थ के प्रति आसक्ति माना। आसक्ति को आत्मपतन की सूचिका बताया। साधु तो सम्पत्ति का सर्वांशत: त्याग करता ही है। वह सम्पत्ति को किसी रूप में स्पर्श तक नहीं करता। परन्तु गृहस्थ श्रावक को भी सम्पत्ति के सम्बन्ध में अधिकाधिक मर्यादा पूर्वक जीवन व्यतीत करने का निर्देश जैनधर्म में दिया गया है, जो व्यक्ति व समाज के सुख का कारण है।
३. मर्यादा से पदार्थों के सम वितरण की उदात्त भावनागृहस्थ व्यक्ति सम्पत्ति के सहयोग से अपने गृहस्थ जीवन का निर्वाह करता है। परिग्रह परिमाण व्रत का एक उद्देश्य तो यह है कि सम्पूर्ण समाज में पदार्थों का समान रूप से वितरण हो सके, क्योंकि मर्यादा परिग्रहपरिमाण से सीमित हाथों में सीमित पदार्थों का केन्द्रीकरण नहीं हो सकेगा। महावीर को यह मान्य नहीं था कि एक व्यक्ति तो असीम मात्रा में सुखसुविधा के पदार्थों का संग्रह करे और दूसरा उनके अभाव में पीड़ित होता रहे। वितरण के विकेन्द्रीकरण की विचारणा उस समय ही महावीर ने कर ली थी, जो आज समाजवादी अर्थव्यवस्था की दृष्टि से श्रेष्ठ विधि है।
४. स्वैच्छिक अनुशासनसामाजिक अर्थव्यवस्था वही स्थिर हो सकेगी, जो स्वैच्छिक अनुशासन के बल पर जीवित रहेगी ऊपर से थोपी गई श्रेष्ठ बात को भी हृदय सहज में ग्रहण नहीं करता। अत: आधुनिक समाजवादी दर्शन में स्वैच्छिक अनुशासन (निज पर शासन फिर अनुशासन) को अपना लिया जावे, तो समाजवादी अर्थव्यवस्था अधिक स्थिर हो सकेगी।
५. विचार और आचार में समनव्यकिसी भी समाजवादी अर्थव्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आचारविचार को दूसरे के साथ समन्वित करने की चेष्टा करे। यह समन्वय जितना गहरा होगा, उतना ही व्यवस्था का संचालन सहज होगा। अनेकान्त और अहिंसा के सिद्धान्त ऐसे ही समन्वय के प्रतीक हैं। आचरण में अहिंसा, विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्याद्वाद और समाज में अपरिग्रहवादइन्हीं चार मणिस्तम्भों पर जैनधर्म का सर्वोदयी प्रासाद अवस्थित है। जैनाचार्यों ने समयसमय पर इसी प्रासाद की सुरक्षा की हैं
समाजवादी अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में महावीर से माक्र्स तक जो दार्शनिक विचारधारा प्रवाहित हुई, उसमें अधिक विभेद नहीं है, अपितु इस धारा को प्रवाहित करने का अधिक श्रेय महावीर को ही है। यह श्रेय इसलिए भी अधिक महत्त्वपूर्ण है कि ढाई हजार वर्ष पूर्व जिस समय समाजवादी शक्ति का कल्पना में भी आविर्भाव नहीं था, उस समय महावीर ने इस समाजवादी अर्थव्यवस्था के प्रेरक सूत्रों को अपने सिद्धान्तों में समाविष्ट किया। वस्तुत: महावीर के अनेकान्त (स्याद्वाद) अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धान्त समाजवादी अर्थव्यवस्था की दार्शनिक रूपरेखा है, जिनके आलोक में इस अर्थव्यवस्था को सर्वप्रिय बनाया जा सकता है। महावीर द्वारा उपदिष्ट ये सिद्धान्त जैनधर्म के सिद्धान्त समाजवादी अर्थव्यवस्था के सुचारू रूप से निर्धारण की दृष्टि से आज भी प्रभावशाली और प्रासंगिक हैं। ये सिद्धान्त व्यष्टि और समष्टि के हितार्थ पूर्णत: सार्थक हैं। जैनधर्म के श्रावकाचार के पांच अणुव्रतों का अनुपालन सुखमय जीवन निर्वाह का प्रशस्तीकरण है। जैनधर्म का सन्देश है कि सुखी जीवन के लिए संयमाचरण भोगोपभोग की वस्तुओं का नियंत्रण और अल्प आरम्भ परिग्रह मनुष्य जीवन की सार्थकता है।

जैन गृहस्थ अपनी आय में से आहार, औषध, अभय और ज्ञान दान के निमित्त राशि निकालना अपना परम कर्तव्य समझता है। इस प्रकार के दानों से समाज में सन्तुलन रहता है जो समाजवादी विचारधारा का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। समाज के सभी लोकोपकारी कार्यों में अपने अर्जित धन में से वितरण समाज की अर्थव्यवस्था को सन्तुलन देता है। जैनधर्म की यह समाजवादी अर्थव्यवस्था परिग्रहपरिमाण व्रत से पुष्ट होती है जो व्यक्तिगत और समाजगत दोनों के लिए सुखी व्यवस्था का प्रमुख आधार है। मगर समाजवादी अर्थ व्यवस्था जैन समाज की विघटन की ओर जा रही है

Saturday 1 June 2019

मोदी जी को दूसरे कार्यकाल मे समस्याओं का ढूंढना होगा समाधान तब होगा जनादेश का सन्मान


नरेंद्र मोदी जी  ने 30 मई, 2019 की शाम भारत के नए प्रधानमंत्री पद के दूसरे कार्यकाल के रूप में शपथ ली. मंत्रिमंडल के गठन  इसमें अनुभव, विशेषज्ञता और उच्च प्रदर्शन के साथ-साथ उन्होंने अपने मन में निर्धारित किए गए लक्ष्यों को पूरा करने  का खास ख्याल रखा है. पीएम मोदी जानते हैं कि अगर देश के करोड़ों मतदाताओं ने उनकी कार्यशैली और योजनाओं पर अपनी मुहर लगाई है, तो आगे उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती होगी,
केंद्रीय गृह और विदेश मंत्रालय को आंतरिक और बाह्य सुरक्षा सुदृढ़ व सुनिश्चित करने के लिए एकरस होकर काम करना होगा ताकि भारत के राष्ट्रीय हितों की अनदेखी न होने पाए. पीएम मोदी इन आसन्न चुनौतियों और लक्ष्यों से भली-भांति वाकिफ हैं. इसीलिए उन्होंने तमाम कयासों से परे विभिन्न विभागों के मंत्री चुने हैं. वे प्रचंड जीत के नशे का नफा-नुकसान भी समझते हैं. इसीलिए दूसरे कार्यकाल का श्रीगणेश करने से पूर्व उन्होंने संसद के सेंट्रल हॉल में नवनिर्वाचित एनडीए सांसदों को संबोधित करते हुए यह स्पष्ट करने की कोशिश की थी कि अगर सेवा भाव चला गया तो मतदाता अपने दिल से दूर कर देंगे. इसलिए अब पीएम मोदी को सबसे पहले जिन मोर्चों पर डटना है, उनमें शामिल हैं युवा, महिला, दलित, आदिवासी और किसान-मजदूर वर्ग की मुश्किलों का हल खोजना. क्योंकि इन्हीं वर्गों ने पीएम मोदी पर अपना अटूट विश्वास जाहिर किया है.

मोदी जी ने अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की जरूरत बताई है और अपने सांसदों से कहा है कि अल्पसंख्यकों को कथित भय के छल से निकालकर उन्हें साथ लेकर चलना होगा. सबका साथ सबका विकास के नारे में इस बार उन्होंने सबका विश्वास भी जोड़ दिया है. लेकिन इसके साथ-साथ पीएम मोदी को सरकारी योजनाओं के जरिए अल्पसंख्यकों की शिक्षा और रोजगार की समस्याएं भी हल करनी होगी. तभी इस नारे की कोई सार्थकता दिखेगी और लोगों का विश्वास हासिल होगा. उन्हें शिक्षा के तीर्थों को भी बाहरी राजनीतिक दबावों से मुक्त करना होगा. एक स्थिर सरकार लेकर आए नरेंद्र मोदी ने जिस तरह सेंट्रल हॉल में संविधान के सामने और शपथ ग्रहण के बाद महात्मा गांधी की प्रतिमा और वॉर मेमोरियल पर सिर झुकाया वह कड़ा संदेश देता है कि भारत राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए संविधान के आदर्शों और राष्ट्रपिता के पदचिह्नों पर ही चलेगा. और अगर नहीं चलेगा तो हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत ही सिद्ध होगी.

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को देश में व्यापार करना आसान बनाने वाले भरोसेमंद कदम उठाने होंगे, साथ ही साथ घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए आयात शुल्क में कमी लानी होगी. स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप के नियमों को सरल बनाना होगा.देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाले वित्त मंत्रालय के सामने वित्तीय संकट से जूझ रहे बैंकों को मजबूत करने की चुनौती है. उसे सिस्टम में ज्यादा से ज्यादा नकदी उपलब्ध कराने के तरीकों पर फैसला करना होगा और राजकोषीय घाटा संतुलित करते हुए जीडीपी की विकास दर में तेजी लानी होगी. लंबित रणनीतिक विनिवेश को फिर से शुरू करना होगा और हाई प्रोफाइल टैक्स चोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी.
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )