Monday 23 December 2019

नागरिकता संशोधन कानून पर आखिर इतना हंगामा क्यों ?

  अनजाने में आप भारत जैसे शांतिप्रिय देश और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने की साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं
                         
नागरिकता संशोधन कानून पर आखिर इतना हंगामा क्यों ? भारत सरकार की तरफ से संसद में और संसद के बाहर यह बार-बार स्पष्ट किया जा चुका है कि इस कानून से किसी भी भारतीय के मूलभूत अधिकारों पर जरा-सा भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। हम सवाल पूछना चाहते हैं इस कानून के नाम पर देश की कानून व्यवस्था बिगाड़ने वालों से कि क्या आपने इस कानून को पढ़ा है ? अराजक तत्वों के बहकावे में आकर भीड़ का हिस्सा मत बनिये, पहले इस कानून को समझिये। आइए  कानून को लेकर आपके मन में उमड़-घुमड़ रहे सभी सवालों के जवाब आपको बेहद आसान तरीके से समझते  हैं।
 
प्रश्न 1- क्या नागरिकता संशोधन कानून भारतीयों खासकर किसी भी हिंदू या मुस्लिम को प्रभावित करता है ?
 
उत्तर- नहीं। नागरिकता कानून में हुए संशोधन का किसी भी भारतीय नागरिक के साथ किसी भी तरह से कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय नागरिकों को भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का इस कानून के जरिये किसी प्रकार का हनन नहीं होगा। यह कानून किसी भी भारतीय नागरिक चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, बौद्ध हो, ईसाई हो या अन्य किसी धर्म का पालन करने वाला हो, किसी के भी अधिकार को जरा-सा भी प्रभावित नहीं करता है।
 
प्रश्न 2- नागरिकता संशोधन कानून किस पर लागू होता है ?
 
उत्तर- नागरिकता संशोधन कानून 2019 पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन कर भारत आये हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई विदेशियों के लिए प्रासंगिक है। यहां यह बात ध्यान रखनी होगी कि इन धर्मों के लोगों ने अगर सिर्फ धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारत में 31.12.2014 तक या उससे पहले प्रवेश किया है तो ही उन्हें नागरिकता मिलेगी।
 
प्रश्न 3- क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-कानूनी रूप से भारत आए मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत वापस भेजा जाएगा?
 
उत्तर- जी नहीं। नागरिकता संशोधन कानून का भारत में वैध या अवैध रूप से रह रहे किसी भी विदेशी को भारत से बाहर भेजने से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ आपको एक बात समझनी होगी कि किसी भी विदेशी नागरिक को देश से बाहर भेजने, चाहे वह किसी भी धर्म या देश का हो, इसकी प्रक्रिया फॉरनर्स ऐक्ट 1946 अथवा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के तहत की जाती है। ये दोनों कानून, सभी विदेशियों- चाहे वे किसी भी देश अथवा धर्म के हों, देश में प्रवेश करने, रिहाइश, भारत में घूमने-फिरने और देश से बाहर जाने की प्रक्रिया को देखते हैं। 
 
अगर किसी विदेशी घुसपैठिये को देश से बाहर निकालना हो तो उसकी क्या प्रक्रिया होती है ? इसे भी समझिये। नागरिकता संशोधन कानून को एक साइड रख दीजिये यह कानून किसी को भी देश से नहीं निकाल सकता। हम यहाँ बात फॉरनर्स ऐक्ट 1946 अथवा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 की कर रहे हैं। इन दोनों कानूनों के तहत सामान्य निर्वासन की प्रक्रिया सिर्फ गैरकानूनी रूप से भारत में रह रहे विदेशियों पर लागू होती है। अवैध रूप से आये लोगों को देश से बाहर भेजने की प्रक्रिया भी तब शुरू होती है जब कोई व्यक्ति द फॉरनर्स ऐक्ट, 1946 के तहत ‘विदेशी’ साबित हो जाये। यहाँ एक बात और समझने की जरूरत है कि यहां सिर्फ केंद्र की ही नहीं चलती बल्कि राज्य सरकारों और उनके जिला प्रशासन के पास फॉरनर्स ऐक्ट के सेक्शन 3 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के सेक्शन 5 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त शक्तियां होती हैं, जिससे वह गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी की पहचान कर सकती हैं, हिरासत में रख सकती हैं और उस घुसपैठिये को उसके देश भेजने को केंद्र से कह सकती हैं।
 
प्रश्न 4– पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को इस कानून से कैसे फायदा होगा ?
 
उत्तर- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न झेलने के बाद भारत आये शरणार्थियों के पास यदि पासपोर्ट, वीजा जैसे दस्तावेजों का अभाव है तो भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। नागरिकता संशोधन कानून ऐसे लोगों को भारतीय नागरिकता का अधिकार देता है लेकिन इसके लिए भारत में एक से लेकर 6 साल तक की रिहाइश अनिवार्य है। भारत में अन्य लोगों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए अभी 11 साल भारत में रहना कानूनी रूप से अनिवार्य है।
 
प्रश्न 5- क्या इसका मतलब यह माना जाये कि इन 3 देशों के मुसलमानों को भारतीय नागरिकता कभी नहीं मिल सकती है ?
 
उत्तर- इस प्रश्न का जवाब है कि यह तीन देश ही क्यों, अन्य देशों के मुसलमान भी कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं यदि वो पात्र हैं। एक बात सभी को स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि नागरिकता संशोधन कानून ने किसी भी देश के किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता लेने से नहीं रोका है बशर्ते कि वह भारतीय कानून के तहत मौजूदा सभी योग्यताओं को पूरा करे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के शासन की ही बात कर लें तो पिछले छह वर्षों के दौरान लगभग 2830 पाकिस्तानी नागरिकों, 912 अफगानी नागरिकों और 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई है। इनमें से कई लोग इन तीन देशों में बहुसंख्यक समुदाय यानि मुस्लिम वर्ग से हैं। विदेशियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त होती रही है और यह जारी रहेगी बस सभी अनिवार्य शर्तों को पूरा करना होगा। यहाँ हम आपको वह आंकड़ा भी बताना चाहेंगे कि नरेंद्र मोदी के भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 में जब बांग्लादेश के साथ सीमा समझौता किया गया था तो बांग्लादेश के पचास से अधिक हिस्सों को भारतीय क्षेत्र में शामिल किया गया और वहां के बहुसंख्यक समुदाय यानि मुस्लिम वर्ग के लगभग 14,864 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी।
 
प्रश्न 6- क्या पाकिस्तान में बलूचियों, अहमदिया और म्यांमार में रोहिंग्याओं को इस कानून के अंतर्गत रियायत नहीं दी जानी चाहिए ?
 
उत्तर- दी जानी चाहिए। बिलकुल दी जानी चाहिए। बलूच, अहमदिया और रोहिंग्या कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं बशर्ते वो नागरिकता अधिनियम-1955 से संबंधित वर्गों में प्रदत्त योग्यता को पूरा करें। एक बार फिर आपको समझा रहे हैं कि नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत नागरिकता संशोधन कानून किसी भी देश के किसी भी नागरिक को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है। 

प्रश्न 7– कुछ लोगों का सवाल है कि क्या शरणार्थियों की देखभाल के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र’ के तहत भारत का दायित्व नहीं बनता है ?
 
उत्तर- शरणार्थियों की देखभाल का दायित्व भारत का बनता है जनाब। भारत तो आजाद होने से पहले से शरणार्थियों की देखभाल करने का शानदार रिकॉर्ड रखता है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत किसी भी शरणार्थी को बाहर नहीं भेजा जायेगा। अभी का आंकड़ा आपको बताएं तो भारत में दो लाख से अधिक श्रीलंकाई तमिल और तिब्बती और पंद्रह हजार से अधिक अफगानी, 20-25 हजार रोहिंग्या और विदेशों से सैंकड़ों अन्य शरणार्थी वर्तमान में रह रहे हैं। भारत को यह उम्मीद है कि जब कभी इन देशों की स्थिति सुधरेगी और हालात अनुकूल पाएंगे तो यह शरणार्थी अपने-अपने देशों को लौट जाएंगे। अभी इन शरणार्थियों को हर प्रकार की सुविधा दी जा रही है और इनके मानवाधिकारों की चिंता की जा रही है। लेकिन यहां एक बात और बताना चाहेंगे कि नागरिकता संशोधन कानून के तहत जिन तीन देशों के अल्पसंख्यकों की बात की गयी है उन देशों के बारे में भारत सरकार का आकलन यह है कि वहां अल्पसंख्यकों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आने वाला है इसलिए उनकी चिंता करते हुए उन्हें भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
 
प्रश्न 8– तमिलनाडु के कुछ साथी पूछ रहे हैं कि भैया श्रीलंका के तमिलों का क्या होगा ?
 
उत्तरः आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1964 और 1971 में प्रधानमंत्री स्तरीय करार के बाद भारत ने चार लाख 61 हज़ार तमिलों को भारतीय नागरिकता प्रदान की है। इस समय 95 हज़ार तमिल लोग तमिलनाडु में रह रहे हैं और केंद्र और राज्य से सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। ये लोग अपनी पात्रता पूर्ण होते ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसलिए श्रीलंकाई तमिलों की आड़ में भारतीय नागरिकता संशोधन कानून की आलोचना करना सही नहीं है।
 
प्रश्न 9- क्या नागरिकता संशोधन कानून में नस्ल, लिंग, राजनीतिक अथवा सामाजिक संगठन का हिस्सा होने, भाषा व जातीयता के आधार पर होने वाले भेदभाव से पीड़ित लोगों को भी संरक्षण देने का प्रस्ताव है?
 
उत्तर- नहीं। नागरिकता कानून सिर्फ भारत के तीन करीबी देशों- जिनका अपना राजधर्म है, के छह अल्पसंख्यक समुदायों की सहायता करने के उद्देश्य से लाया गया है।
 
प्रश्न-10. क्या नागरिकता संशोधन कानून के बाद एनआरसी आयेगा और मुस्लिमों को छोड़कर सभी प्रवासियों को नागरिकता देगा ?
 
उत्तर- नागरिकता संशोधन कानून का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है।
 
प्रश्न 11- क्या नागरिकता संशोधन कानून धीरे-धीरे भारतीय मुस्लिमों को भारत की नागरिकता से बाहर कर देगा?
 
उत्तर- नहीं, नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय नागरिक पर किसी भी तरह से लागू नहीं होगा।
 
प्रश्न 12- क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अलावा अन्य देशों में धार्मिक आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे हिंदू भी नागरिकता कानून के अंतर्गत नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं?
 
उत्तर- नहीं। उन्हें भारत की नागरिकता लेने के लिए सामान्य प्रक्रिया से गुजरना होगा। इसके लिए उन्हें या तो पंजीकरण करवाना होगा अथवा नागरिकता हासिल करने के लिए आवश्यक समय भारत में गुजारना होगा। नागरिकता कानून लागू होने के बाद भी द सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के तहत कोई प्राथमिकता नहीं दी जायेगी।
 
तो इस प्रकार...हमने नागरिकता संशोधन कानून पर सभी प्रमुख प्रश्नों के उत्तर आपके समक्ष रख दिये हैं। जरूरत है कि इन्हें समझिये ना कि हिंसक आंदोलनों का हिस्सा बनिये। आपको खुद से प्रश्न पूछना चाहिए कि कहीं अनजाने में आप भारत जैसे शांतिप्रिय देश और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं।

Tuesday 17 December 2019

वर्तमान में जैन धर्म की प्रासंगिकता

आज के “Logical World” में जैन धर्म हर चीज़ की लॉजिक सहित व्याख्या करता है।कहते है कि पूरा संसार नियमो से चलता है। मनुष्य जगत के भी अपने नियम होते है। यहां तक कि प्रकृति के कण कण में भी अपने नियम है। धर्म क्या है? शायद ही कोई व्यक्ति इसे परिभाषित कर पाए पर अंत में सब इस बात पर सहमत है कि असली धर्म वही है जो मनुष्य को मनुष्य होने का अहसास कराए, धर्म सिर्फ जीने की कला नही सीखता, बल्कि मरने की कला भी सिखाता है। जीवन का अर्थ केवल प्राण धारण करना नही है, सिर्फ सांस लेना नही है, बल्कि किस तरीके से जीवन को जीना है इसी का मार्ग हमे धर्म सीखता है।
जैन धर्म अपने आप मे अद्भुत है, क्योंकि ये विश्व का एक ऐसा धर्म है जो विज्ञान को अपने साथ देता है, या यूं कहें आज के “Logical World” में जैन धर्म हर चीज़ की लॉजिक सहित व्याख्या करता है। महावीर ने जीने के उपाय बताए वे जैन जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग है। महावीर का पहला सूत्र था- हमारे जीवन मे घृणा का कोई स्थान नही होना चाहिए। इसका अर्थ है कि एक आदमी दूसरे आदमी के साथ समानता का व्यवहार करें। आज संसार मे सबसे बड़ा दुख है कि मनुष्य अपने अलावा दुसरो की भूल रहा है, आगे बढ़ने के चक्कर मे वो दुसरो को धक्का देने से नही कतराता। यदि हम स्वस्थ जीवन जीना चाहते है तो सबसे पहले घृणा को त्यागे।
जैन जीवनशैली का दूसरा सूत्र है- शांतवृति। जीवन मे आवेश न हो, उतेजना न हो। जैसे को तैसे की भावना न हो। प्रारम्भ से ही बच्चे में ऐसे संस्कार निर्मित हो जिससे कि शांतिपूर्ण जीवन जीने के सुख का रहस्य वो समझ जाएं। आज समस्या ये है कि लोग छोटी छोटी बातों में आवेश में आ कर न सिर्फ अपना बल्कि अपने परिवार का जीवन भी कष्टमय बना देते है। जैन धर्म सिखाता है कि मन की शांति को जीवन मे कैसे उतारे। हमारी जीवनशैली ऐसी हो, जिसमें हमे कर्तव्यों का भान हो, पर आवेश का भूत सिर पर सवार न हो। शांतवृति का प्रयोग जैन जीवनशैली का महत्वपूर्ण सूत्र है। इसको व्यवहारिक रूप में अमल में लाने वाला व्यक्ति कभी दुखी नही रहता। अगर घर मे शांति हो तो उन्नति अपने आप होगी, बच्चे संस्कारवान होंगे, कलहपूर्ण वातावरण में बच्चे के कोमल मन मे जो घाव पनपते है वो जीवन पर्यंत नही भरते। एक जैन व्यक्ति सोचता है कि पानी छाने बिना नही पीना है, एक चींटी भी मर जाये तो उसका दिल कांप उठता है, उसी समाज मे ये हरकते सोच जताने वाली है, वजह ये है हमने धर्म के मर्म को पहचानना छोड़ दिया है, पाखण्ड औऱ धर्म के वास्तविक रूप में अंतर करना जरूरी है। जैन जीवनशैली का तीसरा रूप है- श्रममय जीवन जीना, श्रमयुक्त जीवन जीना। गांधीजी ने श्रम स्वावलंबन को व्रत के रूप में स्वीकार क़िया। प्रश्न है कि इसका मूलस्रोत कहाँ है? इसका मूलस्रोत है श्रमण परंपरा। भगवान महावीर ने स्वावलंबन पर बहुत बल दिया। उत्तराध्ययन सूत्र में स्वावलंबन से होने वाली उपलब्धियों का वर्णन है। श्रम और स्वावलंबन जैन धर्म के मुलसूत्र है। जिस व्यक्ति के जीवन मे श्रम और स्वावलंबन नही होता क्या वो वास्तव में आत्म कर्तव्य के सिद्धान्त को सही अर्थ में स्वीकार करता है?
जैन दर्शन का सिद्धान्त है- आत्मा ही सुख दुख की कर्ता है। इस संदर्भ में दूसरे का श्रम लेने की बात कहां तक तर्कसंगत है? दूसरे का शोषण करने की बात कहां फलित होती है? जो व्यक्ति स्वावलंबन का विकास करेगा, वह दूसरे के श्रम का शोषण नही करेगा। ज्यादा काम लेना और उसके बदले कम पारिश्रमिक देना शोषण ही तो है। जो जैन धर्म का श्रावक है उसका यह कर्तव्य बनता है कि वो किसी के श्रम का अनादर न करे, किसी के श्रम का मज़ाक न उड़ाए ये बात हमारा जैन श्रावक समझ ले तो शायद उसका जैन होना सफल हो जाएं। हमेशा न्यायोचित तरीके से अर्थ का अर्जन करे, गलत तरीके से अर्जित किया धन कभी व्यक्ति के पास नही ठहरता।वास्तव में देखा जाए आज जैन धर्म की प्रासंगिकता आज सबसे ज्यादा है। अगर हमे अपनी आने वाली पीढ़ी को एक अच्छा जीवन प्रदान करना है तो बचपन से ही उनमें ये संस्कार डाले। जैन धर्म अब सिर्फ धर्म न रहे बल्कि एक आदत बने। विनाश के कगार पर खड़ी ये धरती चीख चीख के आह्वान कर रही है मुझे बचा लो….तो आगे आइये उसकी सहायता कीजिये। अपनाइये जैन धर्म के सार को, अपनाइये जैन जीवनशैली को। जो आत्मिक सुख का आभास आपको होगा, वो शायद लाखो करोड़ो की सुख सुविधाओं से भी नही मिलेगा।