Wednesday 29 August 2018

विदेशो में भी किया जाता है नवकार मंत्र उच्चारण

विदेशो में भी किया जाता है, नवकार मंत्र का उच्चारण

नवकार मंत्र -- समस्त जैन
धर्मावलंबियों का मुख्य मंत्र है।
णमोकार महामंत्र एक लोकोतर मंत्र है । इस मंत्र को जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं, किन्तु संपूर्ण रूप से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप का ही दर्शन, स्मरण, चिन्तन, ध्यान एवं अनुभव किया जाता है। इसलिए यह अनादि और अक्षयस्वरूपी मंत्र है । लौकिक मन्त्र आदि सिर्फ़ लौकिक लाभ पहुचाते हैं, किन्तु लोकोतर मंत्र लौकिक और लोकोतर दोनों कार्य सिद्ध करते हैं । इसलिए णमोकार मंत्रसर्वकार्य सिद्ध कारक लोकोतर मंत्रमाना जाता है । णमोकार- स्मरण से अनेक लोगों के रोग, दरिद्रता, भय, विपत्तियाँ दूर होने की अनुभव सिद्ध घटनाएँ सुनी जाती हैं । मन चाहे काम आसानी से बन जाने के अनुभव भी सुनें हैं । अत: यह निश्चित रूप में माना जा सकता है कि णमोकार मंत्र हमें जीवन की समस्याओं, कठिनाइयों, चिंन्ताओं, बाधाओं से पार पहुँचाने में सबसे बड़ा आत्मसहायक है । इसलिए इस मंत्र का नियमित जाप करना बताया गया है । इस महामन्त्र को जैन धर्म के अनुसार सबसे प्रभावशाली माना जाता है । ये पाँच परमेष्टी हैं । इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया, यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है । संसार में सबसे उत्तम मंगल है । इस मंत्र के प्रथम पाँच पदों में ३५ अक्षर और शेष दो पदों में ३३ अक्षर हैं । इस तरह कुल ६८ अक्षरों का यह महामन्त्र समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला व कल्याणकारी अनादि सिद्ध मन्त्र है। इसकी आराधना करने वाला स्वर्ग और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।

_सबसे बढ़कर है नवकार, करता है भवसागर पार । चौदह पूरब का यह सार, बारम्बार जपो नवकार ।।_

Monday 27 August 2018

क्यों इतनी जल्दी चिढ़ जाते हो ??

*क्यों इतनी जल्दी चिढ़ जाते हो ?*
*****************************
      ☀ *अधूरा जीवन शिल्प* ☀
-----Poonam Jain

कोई जरा सा कहता है और हमें बहुत बुरा लग जाता है।  कई बार तो कुछ कहा भी नहीं होता। चिढ़ का आलम तो यह है कि दूसरों के चलने, हंसने और काम करने के ढंग से भी चिढ़ मचने लगती है। ना मजाक बर्दाश्त होता है, ना ही प्यार। आखिर इतनी भी चिड़चिड़ाहट क्यों?

चिढ़ संक्रामक रोग की तरह होती है। किसी एक का चिढ़ना, आसपास वालों को भी अपने असर में ले लेता है। और अगर चिढ़ना आदत बन गया हो तो पूरे माहौल में तल्खी आने में देर नहीं लगती। शुरुआत में लोग संभालने और सुधारने की कोशिश भी करते हैं। पर बाद में परवाह करना छोड़ देते हैं। फिर यही सुनने को मिलता रहता है कि ऐसे चिढ़ने से काम नहीं चलता!

   यूं विरले ही होंगे, जिन्हें किसी बात पर चिढ़ नहीं होती हो। आमतौर पर हम मन ही मन खीझते भी रहते हैं और संतुलन भी बनाए रखते हैं। चिढ़ना भी लगा रहता है और काम भी चलता रहता है। समस्या तब होती है, जब हम बात-बात पर उखड़ने लगते हैं। देर तक चिढ़े रहते हैं। एक का गुस्सा दूसरे पर निकाल रहे होते हैं। चेहरा तनने लगता है और वह कहने या करने लगते हैं, जो नहीं चाहते। हमारी खीझ, आंख, कान और दिमाग पर पड़ा एक ऐसा महीन परदा है, जो खुद को और दूसरों को देखने, सुनने और समझने में आड़े आने लगता है। 

बात कुछ तो होती ही है
------------------------
आप भले ही कहें कि गुस्से या चिढ़ने की कोई बात नहीं थी, पर बात होती ही है। छोटी-बड़ी कई वजह हो सकती हैं। कड़वी यादें,  डिप्रेशन,  ब्लड प्रेशर, थाइरॉएड,  भूख, अनिद्रा, तनाव, एंग्जाइटी, डर व असुरक्षा का भाव- कुछ भी झुंझलाने का कारण हो सकता है।

   मनोविज्ञान में  ‘साइकोलॉजिकल प्रोजेक्शन’ की बात की जाती है। इसके अनुसार हम दूसरों की उन कमियों को  देखकर झ़ंुझला जाते हैं, जिन्हें हम अपने भीतर पहचानने से बचते हैं। कई बार दूसरों की उन बातों पर भी खीझ होती है, जिन्हें हम खुद करना चाहते हैं। मसलन, हो सकता है कि आप ऑफिस में किसी ऐसे व्यक्ति से  चिढ़ रहे हों, जो बड़े आराम से हंसते-बतियाते, अपना काम पूरा कर लेता है। लेकिन आप नहीं कर पाते। ना ही खुद को सुधारते हैं, ना अपनाते हैं और ना ही दूसरों से चिढ़ना छोड़ पाते हैं। ‘माई ओन गुरु’ की लेखिका रेजान हुसी कहती हैं,‘आलस्य, मूर्खता, झूठ, अक्षमता, तंग सोच, आदि अनेक बातें, जिनसे हमें चिढ़ होती है, वे दूसरों में नहीं, हममें होती हैं।’

अपनी चिढ़ को सुनें
---------------------
मेग सेलिग लेखिका और ब्लॉगर हैं। ‘चेंज पावर’ उनकी चर्चित किताब है। वह कहती हैं,‘हमारी खीझ हमेशा गलत नहीं होती। बस उन्हें समझकर अपने लिए सही रास्ता बनाना होता है।’ हो सकता है कि आपको अपनी सीमाएं तय करने की जरूरत हो। दूसरों को अपने मामले में कितनी छूट देंगे या लेंगे यह रेखा समझने की जरूरत  हो। ये भी हो सकता है कि आपको समय का प्रबंधन सीखने की जरूरत हो। या फिर ये कि आप खुद से या दूसरों से बहुत उम्मीदें करते हों।

हम सबको नहीं बदल सकते,  सब कुछ हमारे हाथ में भी नहीं होता, पर हम खुद पर काम कर सकते हैं। और इसके लिए जरूरी है कि हम थोड़ा खुद को प्यार करें, थोड़ा दूसरों को। थोड़ा खुद को माफ करें और थोड़ा दूसरों को।

अपनी चिढ़ को घटाएं
----------------------
** चिढ़ या खीझ का एहसास होते ही कुछ देर गहरी सांस लें और छोड़ें।
** खुद को ऐसे काम में लगा लें, जो आपको पसंद है।  जैसे फोन में फोटो देखना या संगीत सुनना।
**    बात को मजाक या हंसी में टाल दें।
** कम से कम शिकायत करें।
** तुरंत कुछ ना कहें।  दूसरों को सुनें।
**    अपनी चिढ़ का कारण जानें। एक बात को दूसरी  से  जोड़ने से बचें।
** साइकोलॉजिस्ट से मिलने में हिचकें नहीं। तनाव और गुस्से को काबू करना  सीखें।
**     अपनी जिंदगी जिएं।  होड़ न करें।

Saturday 25 August 2018

भाई बहन का रिश्ता – रक्षाबंधन - उत्तम जैन ( विद्रोही )

 
  बहना बांधे
 भाई की कलाई पे
 प्रेम का धागा ।
 तोड़े न टूटे
 ऐसा है ये बंधन
 कच्चे धागे का ।
भाई बहन का रिश्ता प्यार भरा होता है इसको शब्दों में बयांन करना नामुमकिन है भाई और बहन का रिश्ता मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम होता है। भाई-बहन की लड़ाई के बीच भी प्यार छिपा होता है बड़ी बहन को तो दूसरी माँ भी कहा जाता है ! इस रिश्ते की मोहक अनुभूति को सघनता से अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, आत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। जो लंबी डगर पर चिलचिलाती प्रचंड धूप में हरे-भरे वृक्ष के समान खड़े हैं। रक्षाबंधन के शुभ पर्व पर बहनें अपने भाई से यह वचन चाहती हैं कि आने वाले‍ दिनों में किसी बहन के तन से वस्त्र न खींचा जाए फिर कोई बहन दहेज के लिए मारी ना जाए, फिर किसी बहन का अपहरण ना हो, फिर किसी बहन के चेहरे पर तेजाब न फेंका जाए। और फिर कोई बहन खाप के फैसले से सगे भाई के हाथों मौत के घाट उतारी ना जाए।यह त्योहार तभी सही मायनों में खूबसूरत होगा जब बहन का सम्मान और भाई का चरित्र दोनों कायम रहे। यह रेशमी धागा सिर्फ धागा नहीं है। राखी की इस महीन डोरी में विश्वास, सहारा और प्यार गुंफित हैं और कलाई पर बंधकर यह डोरी प्रतिदान में भी यही तीन अनुभूतियां चाहती हैं। राखी ऐसा त्यौहार है, जो सिर्फ भाई बहनों के लिए होता है. बहन जब भाई के कलाई पर राखी बाँधती है उस वक़्त भाई को भी और बहन को भी जाने कितने पुराने पल याद आते हैं. घरवाले जो आसपास मौजूद होते हैं, ऐसे मौके पर कुछ न कुछ टिप्पणी पीछे से करते रहते हैं, “कितना लड़ते थे ये दोनों बचपन में”, “और फिर एक दूसरे के लिए भी सब से लड़ लेते थे”, “ हमेशा साथ पढ़ना, साथ खेलना, साथ रहते थे ये”. ऐसे जिक्र, ऐसे किस्से बेसाख्ता ही निकल आते हैं घरवालों के मुहँ से. और राखी बाँधते वक़्त भाई के, बहन के आँखों में वो सारे खूबसूरत पल लड़ना, झगड़ना, प्यार दिखाना, रूठना, मनाना.. एक फिल्म की तरह चलने लगती हैं पैसा, उपहार, आभूषण, कपड़े तो कभी भी, किसी भी समय लिए-दिए जा सकते हैं लेकिन इन तीन मनोभावों के लेन-देन का तो यही एक पर्व है – रक्षाबंधन!भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।…राखी को बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उसकी लंबे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं वहीं भाई ताउम्र अपनी बहन की रक्षा करने और हर दुख में उसकी सहायता करने का वचन देते हैं।अब जब पारिवारिक रिश्तों का स्वरूप भी अब बदलता जा रहा है भाई-बहन को ही ले लीजिए, दोनों में झगड़ा ही अधिक होता है और वे एक-दूसरे की तकलीफों को समझते कम हैं ।आज वे अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते ज्यादा मिलते है लेकिन जब भाई को अपनी बहन की या बहन को अपनी भाई की जरूरत होती है तो वह मौजूद रहें ऐसी सम्भावना कम होती जा रही है..सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक जरूरतों के कारण आज बहुत से भाई अपनी बहन के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते ऐसे में रक्षाबंधन का दिन उन्हें फिर से एक बाद निकट लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन बढ़तीं महंगाई , रिश्तों के खोखलेपन और समय की कमी की बजह से बहुत कम भाई ही अपनी बहन के पास राखी बँधबाने जा पाते हों . सभी रिश्तों की तरह भाई बहन का रिश्ता भी पहले जैसा नहीं रहा लेकिन राखी का पर्व हम सबको सोचने के लिए मजबूर तो करता ही है कि सिर्फ उपहार और पैसों से किसी भी रिश्तें में जान नहीं डाली जा सकती। राखी के पर्व के माध्यम से भाई बहनों को एक दुसरे की जरूरतों को समझना होगा और एक दुसरे की दशा को समझते हुए उनकी भाबनाओं की क़द्र करके राखी की महत्ता को पहचानना होगा। अंत में मैं अपनी बात इन शब्दों से ख़त्म करना चाहूगां …
न स्वार्थ का लेप
न इच्छाओं का अवलंबन
है चट्टान सा मजबूत
भाई-बहन का बंधन
हम बड़े हो गए
अपनी-अपनी गृहस्थी
अपनी-अपनी जिम्मेदारी
पर भाई मेरे
राखी के दिन
व्यस्तताओं के बीच
कुछ पल चुराना
मेरे लिए
हम साथ बैठ
जीएँगे वह पल
जहाँ था न कोई छल….
उत्तम जैन (विद्रोही )
लेखक - संपादक - विद्रोही आवाज़ - जैन वाणी 

Friday 24 August 2018

जब श्री राम को हुआ सत्ता का धमंड

श्री राम लंका विजय के बाद वापस अयोध्या आ गये थे | भरत ने उन्हें राज्य गद्दी  सौप दी थी  | लक्ष्मण ने अपने बड़े भाईराम की  आज्ञा से माता सीता को जंगल में छोड़ आये थे |
आज अयोध्या में  हर्षो उल्लास का माहौल था , क्योंकि श्री राम अश्वमेध यज्ञ की घोषणा करने वाले थे |प्रजा राज महल के सामने एकत्रित  थी | श्री राम अपने मंत्रीयों और कूल गुरु वसिष्ठ  के साथ पधार चुके थे | तभी किसी के ह्रदय विदारक चीख ने सबको चौका दिया | एकबार सब अन्दर तक कांप  गए | इस शुभ घडी में कैसा करुण क्रंदन ?
"एक ब्राह्मण अपने मृत पुत्र के शरीर को लेकर आया था और छाती पीट पीट कर रो रहा था |
"महाराज , वह आपको ..."कहते कहते द्वारपाल रुक गया |
"रुक क्यों गए द्वारपाल ,"राजा राम नें आश्चर्य से पूछा |
"महाराज ,वह क्षुब्ध हो कर बेकार की बात कर रहा था | वह आपको हो अपने पूत्र की मृत्यु का कारण बता रहा था | "
सबने सुना  |सब  स्तब्ध थे | श्री राम के  मुख पर क्रोध की रखायें खिंच आयीं | उन्होंने अपने चारों ओर देखा | उनका मुख खुलता इसके पहले सैनिकों की विशाल भुजाओंसे जकड़ा  हुआ एक ब्राह्मण राम के सामने खड़ा था | उसकी ऑंखें स्थिर थी ,पर मुख फेन से भरा था | उसने श्री राम को सर से पाँव तक देखा और अपने पुत्र के मृत शरीर को धरती पर रख कर चिल्ला उठा ,"राम,आज तक पिता के रहते कोई भी पुत्र मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ| तुम्हारे राज्य में पाप और अधर्म ऐसे पनप रहे हैं जैसे वर्षा ऋतू में धान. मैंने अभी तक ऐसा कोई कार्य नहीं किया हैं जिसका कारण पुत्र शोक हो|   ऐसी अनहोनी घटनाएँ अधर्मी ,पापी और अयोग्य राजा के राज में ही  होती है । तुम मेरे पुत्र के हत्यारे हो राम  |"  उस ब्राह्मण का गला रुद्ध गया |   
वह अपने पुत्र के शरीर को उठाया और विधुत गति से राज महल से बहार चला गया |सारा जन समूह पत्थर की तरह खड़ा रहा   | राम की आँखों के सामने अँधेरा सा  छा गया|  इस समय इनकी  दशा उस वृक्ष के समान थी जो , भयंकर तूफान में खुद को स्थिर रहने का प्रयास कर रहा हो  और उसकी शाखाएँ धरती को छूना चाह  रही हो ,धरती से उखड़ जाना चाहती हो |
महर्षि नारद आगे बढे | निस्त्ब्धा को तोड़ते हुए उन्होंने  कहा ,"राम ,धर्मशास्त्रों के अनुसार तप और जप से मोक्ष से लाभ का अधिकार केवल ब्राह्मण ,क्षत्रिय तथा वैश्य को है इस सतयुग में निश्चय ही कोई पटकी शुद्र अपने दास धर्म को त्याग कर मोक्ष के लिए तपस्या कर रहा है|  "



इनकी बात सुनकर राम की जान में जान आई | उन्होंने कृतज्ञता से नारद की देखा ओर उसके बाद शस्त्रों से सुसज्जित सेनापति की ओर देखा और उच्चे स्वर में कहा ,"सेनापति ,मुझे पाप और अधर्म का मर्दन करना है | सैनिकों से कह दी कि कल सूर्योदय के पहले ही इस अयोध्या को प्रस्थान करना है   |"
राम अपनी चतुरंग्नी सेना केसाथ  ध्वजा से सुसोभित स्वर्ण रथ पर उस अद्भुत और अप्रितम हरे भरे पर्वतों के गोद में समा चुके थे , जहाँ के मनोहर छटा देखकर राम का हृदय गदगद हो गया | सुखद पवन के झोकों से उनका रोम रोम खिल उठा था | उन्होनें दूर गगन चुम्बी धवल चोटी की ओर इशारा करते हुए कहा ,"सेना पति ऐसा जान  पड़ता है कि हम महामुनि नारद द्वारा बताएं प्रदेश में आ चुके हैं "
 सेना पति ने एक बार अपने चारों ओर देखा | ऐसा लग रहा था मानो इस रमणीक दृश्य को अपने आँखों में समा लेना चाहता हो | उसने धीरे धीरे अपने नेत्रों को खोला और कहा ,"महाराज ,यहाँ के पर्वतों का सौंदर्य और वनों की शोभा स्वर्ग जैसा है | यहाँ तो राक्षस भी अपनी राक्षसी प्रवृति छोड़ कर तामस जीवन जीने को लालायित हो जायेगा   अवश्य ही महाराज नारद को कोई भरम हुआ होगा |  "
कुछ पल के लिए सब चुप रहें  घोड़ो की  पद ध्वनि और रथों के पहीये के गडगडाहट के अलावा वहां कुछ सुनाई नहीं दे रही थी
श्री राम ने पर्वतों की गोद में फैलें उन झोपड़ों को देखा और कहा ,"राजगुरु ,वहां सुदूर मनोहर लातिकायों और फूलों से ढाका झोपड़ियों का झुण्ड कैसा है ?"
" कोई ऋषि का आश्रम होगा महाराज | " राज गुरु वसिष्ठ ने उत्तर दिया |
"कैसा शांति का राज्य है ",राम ने कहा और सेना पति को आदेश दिया कि ऋषि आश्रम में हमारे आने की सूचना दे दी जा य | "
जैसे श्री राम के आने के  सन्देश  मिला  ,वृद्ध तपस्वी की एक  टोली  अतिथि सत्कार के लिए  निकल पड़ी | श्री राम अपने रथ से उतरे | उनके साथ रथ पर सवार अन्य गण भी उतरे | राम ने उन वृद्ध तपस्वी को सर झुकाकर प्रणाम किया |
"तपस्वियों ,आपके आश्रम की शोभा अपूर्व है | मैं इस आश्रण के अधिष्ठता के दर्शन करना चाहता हूँ |"श्री राम ने कहा |
राजन  , यह आश्रम चारों वेदों और धर्म  शास्त्रों के प्रकांड विद्वान महर्षी शम्बूक का है हम सब उन्हीं के छत्रछाया में विधा उपार्जन करते हैं  " एक वृद्ध तपस्वी ने कहा |
श्री राम अति प्रसन  हुए और शम्बूक से मिलने चल दिए
कोलाहल सुनकर ध्यानमग्न  महर्षि शम्बूक  का नेत्र पट धीरे -धीरे खुले | श्री राम ने झट आगे बढ़ कर प्रणाम किया और कहा ,"महर्षि मैं दशरथ पुत्र  राम हूँ , आपके आश्रम की  अनुपम शोभा देख कर आपके दर्शनो की अभिलाषा हुयी आपका वंश कौन सा  है ?"
शम्बूक ने खड़े हो कर श्री राम को आशीर्वाद दिया और कहा ,"राम , मैं शम्बूक हूँ  मैं शुद्र हूँ |"
सुनते ही राम की  ऑंखें गुस्से से लाल हो गयी  उनकी भवें धनुष के सामान तन गयी | उन्होंने खडग पर हाथ रखते हुए कहा "शुद्र , तुमनें ब्राह्मण बनने की धृष्टता की है तेरा अपराध अक्षम्य है "
| शम्बूक ने निभिकता से  सर उठाया | उसके मुख परअलौकिक तेज़ था उसने चकित हो कर पूछा ,"कैसा अपराध महाराज ?"
श्री राम ने सर ऊँचा उठाकर  कहा ,"मुर्ख ,तूने धर्मं के नियमों का तोड्नें का दुसाहस किया है | तूने परम्परा और सामाज के विरोध विद्रोह किया हैं  |तूने शुद्र का सेवा धर्मं त्याग कर द्विज बनाने का जघन्य पाप किया हैं  तेरे ही पाप के कारण मेरे राज्य में उस ब्राह्मण का पुत्र अल्पायु में मृत्यु को प्राप्त हो गया है  राज्य दंड के अनुसार तू मृत्यु दंड का भागी है |"
शम्बूक का मुख रक्त के सामान लाल हो गया  उसका कृश शरीर बेल के भांति कांप उठा | उसके होंठ आँधियों में सूखे पत्ते की तरह कांप रहे थे शम्बुंक ने सागर की तरह गंभीर गर्जन करते हुए कहा ,"राम,तुम थोडा अपने मन के दर्पण में झांक कर देखो आज से कुछ वर्ष पहले के आकृति में और आज के आकृति में कितना फर्क हैं |
 दंभ और अज्ञान के अंधकार से कुछ क्षण के बहार निकल कर देखो तुम्हें खुद पता लग जायेगा कि  तुम कितना भ्रष्ट हो गए हो    मैंने सपनों में भी कभी नहीं सोचा थे कि दशरथ पुत्र राम का इतना नैतिक पतन हो जायेगा  और वह अपने कुकर्मो का फल दूसरों के उपर  लाद कर राजदंड की आर में तपस्वी की हत्या करने के लिए उद्धत हो जायेगा | |ब्राह्मण लड़के के मृत्यु का कारण मैं नहीं तुम खुद तुम हो राम | तुम्हारे अपने पाप कर्म है | "
श्री राम का ऊँचा उठा हुआखड्ग  धीरे धीरे नीचे  हो गया  उन्होंने त्रस आँखों से वसिष्ठ  और आस पास खड़े हुए ऋषियों की ओर देखा |
"मेरे पाप कर्म | "राम के मुख से आनायास ही निकल पड़ा |
शम्बूक ने एक बार राज गुरु वसिष्ठ की ओर देखा और स्वाभिमान से कहा ,"हा तुम्हारे पाप कर्म |धर्म कर्म को त्याग कर तुम्हारे राजमहल के स्वादिस्ट भोजन पर पलने वाले ये ब्राह्मण और ऋषिजन तुम्हें क्या बताएगें | ये तो अचेतन वाद्यों के समान है जो तुम जैसा राग छेड़ते हो वैसा ही अल्पाते हैं।  "
इस आसहा प्रहार से राज गुरु वसिष्ठ क्रोधित हो उठे |
शम्बूक के मुखमंडल पर आत्म बल के अलौकिक तेज़ चमक रहा था  | उसने राम को देखते हुए कहा ,"राम ,तुम उस सर्प की तरह हो जो धोखे से किसी राही को डंस लेता है तुमने बालि और सुग्रीव को मल युद्ध में व्यस्त कर सात वृक्षों की आर में बालि को मार डाला | तुमने क्षत्रिय होकर क्षात्र धर्म का पालन नहीं किया |  उस समय किसी ब्राह्मण का पुत्र नहीं मारा | और आज मैं वेदशास्त्रों का अध्ययन ,समाज के सड़े हुई अंग की सेवा शुश्रषा तथा पशुयों से भी अधिक घृणित शूद्रों के उत्थान को चेष्टा को अपराध कह कर तुम मेरी हत्या करना चाह रहे हो | "
सुनकर सब अवाक् रह गए , महाज्ञानी कुलगुरु वसिष्ठ कुछ कदम आगे बढे और चोट खाए हुए सर्प की तरह फुफकारे ,"शुद्र छोटे भाई की पत्नी पुत्री के समान होती है   | बालि ने पशुबल का सहारा लेकर सुग्रीव की पत्नी के साथ गलत सम्बन्ध स्थापित किया | इस कुकृत्य का सजा तो मिलनी ही चाहिए थी | "
शम्बूक के होठों पर एक परिहास की रेखा खींच  आई   | उसने वसिष्ठ को पैनी नज़रों से देखते हुए कहा ,"और जयेष्ट भाई की पत्नी ?"
वसिष्ठ ने तुरंत उत्तर दिया ,"माता के सामान | "
शम्बूक ने गर्व से सर उठाकर कहा ,"राम द्वारा बड़े भाई का वध करवा कर जब सुग्रीव ने बड़े भाई  की पत्नी को भोग विलास की वस्तु बनाकर महल में रखा तब तुम्हारी मर्यादा कहाँ थी तब तुम्हारे  बाण कहाँ थे " ,शम्बूक पल भर के लिये चुप रहा , राम की आँखों में आँख डाल कर कहा ,"सच तो यह था कि तुम दोनों की पत्नियों का हरण हो चूका था. तुम दोनों की समस्या एक ही थी तुम दोनों एक दुसरे के दुःख को समझाते थे  महाबली बलि का सामना करना तुम्हरे बस की बात नहीं थी   |  इस लिए तुमने मर्यादा की आर में उसकी हत्या कर डाली।"
"अपनी जहर उगलती जिह्वा को रोको शम्बूक अन्यथा मेरा यह खड्ग तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर डालेंगें। "राम क्रोध से कांप रहे थे।
"अपने अपराधों को सुनने के लिए धैर्य चाहिए राम।  तुम सत्य को झूठे तर्क से नहीं कुचल सकते।  तुमने अपने पाप की कलिमा को हमेशा  खून से धोया है। तुम्हारे लिये धर्म ,मर्यादा  कोरा पत्थरों की तरह है ,जिन्हें  तुमने अपनी बुद्धि की पैनी छेनी और राज धर्म के भारी भरकम हथोड़े से अपने स्वार्थ हित के मनचाही आकृतियों में गढ़ कर भोली प्रजा  के समाने प्रदर्शित कर दिया है|  तुमने प्रजा की आड़ में एक धोबी  के कहने पर अपनी साध्वी पत्नी सीता का त्याग कर दिया। "
राम ने गर्व से सीना उठाकर कहा ,"मैं अपने हर काम को बुद्धि की कसौटी पर कसकर निश्चय करता हूँ। भावना कर्तब्य से ऊँचा होता है शुद्र। "शम्बूक ने राम को अधखुले नेत्रों से देखा ,"राम कम से कम निज से छल तो न करो।तुम हर एक काम अपनी निज की कसौटी पर कस के करते हो। तुमने अपनी गर्भवती पत्नी को क्रोधान्ध धोंबी के कहने पर घर से निकल दिया यदि राजा के नाते प्रजा का संतुष्ट करना तुम्हारा कर्तब्य है। पत्नी और  पुत्र के प्रति यदि तुम्हारी  धर्म भावना है,तो जब भरत प्रजाजनों ,,मित्रों और सम्बन्धियों के साथ तुम्हीं वन  से लौटा लेने के लिये गए  तो उस समय प्रजा की अनुनयविनय को तुम ने यह कह कर क्यों ठुकरा दिया कि पिता की आज्ञापालन करना मेरा कर्तब्य है और मित्रों ,सम्बन्धियों तथा प्रजा की इच्छा सब कोरी भावना है। "
"वह धोबी का आक्षेप नहीं था शुद्र। वह मेरी निश्चय के विरुद्ध प्रजा के मन में उठती हुई अशांति का प्रतिक संकेत था। "
शम्बूक ने कहा ,"वह प्रजा के मन की नहीं वह तुम्हारे मन की अशांति थी। वह तुम्हारे संकुचित औरअंधकार मन का भ्रम  था.|  तुमने सीता को हजार मनुष्यों के बीच  अग्नि परीक्षा लेकर अपमान किया और कहा कि तुमने एक तुच्छ नारी केलिए  वनों,पहाड़ों और सागरों को पार किया। अपितु तुमने अपने अपमान के बदला लेने के लिये ये सब किया। उस समय तुम्हारे खिलाफ एक संगठित आवाज उठी। तुम झट समझ गये और ऋषियों और मुनियों की एक आवाज से सीता को अमृत के समान पवित्र माना।तुमने यश लाभ के लिए सीता को ग्रहण किया। परन्तु तुम्हारे मन में संशय का बीज तुम्हारी कमजोरियों की खाद पा कर प्रतिदिन फूलनेफलने  लगा और एक दिन वह वृक्ष इतना बड़ा हो गया कि उसकी सघन शाखाओं ने तुम्हारे ज्ञान के प्रकाश को ढक लिया।  तुम बहाना ढूंढते  रहे और एक दिन प्रजा की आड़ में तुमने अपनी गर्भवती स्त्री को  हिंसक पशुओं की दया पर अपरचित  धने वन में छोड़ दिया।  तुमने जब पति धर्म का त्याग किया तब किसी ब्राह्मण का पुत्र अल्पायु में नहीं माराऔर आज मैं युगों युगों से दासता की श्रृखलाओं में जकड़ें हुए इन शुद्र कहे जाने वाले जनों के अंधकारमय जीवन को आलोकित करने के  प्रयास को तुम ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु का कारण  बता रहे हो। "
"मुख बंद करो, शुद्र।"श्री राम घायल सिंह कीतरह  गरजे। उनकी आँखें लाल हो उठी थीं ।  बिजली की तरह चमकता  खड्ग म्यान से बहार निकल आया।
शम्बूक श्री राम सम्मुख खड़ा हो गया |उसके सीने  पर खड्ग की तीखी नोख थी । उसने निडरता से कहा ,"राम ,तुम राजसुख भो रहे हो और तुम्हारे दो पुत्रअनाथों की तरह  वन में दुसरे की दया पर जी रहे हैं । एक संतान के प्रति तुम्हरा पितृ धर्म कहा गया . | राम तुमने क्षत्रिय हो कर क्षात्र धर्म का  पालन नहीं किया। तुमने गृहस्थ होकर गार्हस्थ्य धर्म को त्याग किया।  तब किसी ब्राह्मण का पुत्र अल्पायु में नहीं मारा। आज.... . |
श्री राम की भौंहें तन गईं । उनकी ऑंखें लाल हो गईं ।  वह क्षुब्द होकर बोले,"एक शब्द भी तुम्हारे मुख से और निकला तो....... . "
मुझे धमकाने की चेष्टा मत करो ,राम मुझे मृत्यु का भय  नहीं है। यश और और स्वतंत्रा का लघु जीवन दासता और अपमान से भरी हुई दीर्घ आयु से लाख बार अधिक सुखकर होता है। तुम्हारे खड्ग द्वारा मेरा वध  मुझे सीधा स्वर्ग ले जायेगा ,इसलिए नहीं की तुम  मर्यादा पुरुषोतम राम हो ,बल्कि इसलिए की मैं सत्य पर हूँ और  तुम अधर्म ,पाखंडी ,राजदंड के बल पर भोले भले पंक्षियों का शिकार खेलने वाले एक व्याध हो। "
श्री राम के  खड्ग शम्बूक के ह्रदय स्थल को बेधता हुआ उसके कृश  शरीर के दूसरी ओर निकल गया।  श्री राम ने झटका दे कर खून से लथ  पथ खड्ग खींच लिया और फिर सिर से ऊँचा उठा कर एक भर पुर हाथ शुद्र के शरीर पर मारा। पलक झपकते ही शम्बूक का शरीर धड़ से दूर जा गिर गया। आश्रमवासियों की आँखें शम्बूक के धुलधुसरित सिर पर गड़े हुए थी । मरघट के सन्नाटे को भंग करता हुआ महामुनि वसिष्ठ की जुबान से "महाबली राम की जय "का घोष ऊँचें पर्वतों से टकरा कर गूंज उठा। एकाएक गगन भेदी आवाजें उठीं ,मानों फटे हुए झांझ पर किसी राक्षस ने दनादन गदा प्रहार कर दिया हो। श्री राम के सैनिक चिल्ला उठे ,"अयोध्यापति राम की जय !मर्यादा पुरुषोतम राम की जय  !महाबली राम की जय !राम की जय! "
 

Monday 20 August 2018

जैन समाज के गिरते संस्कार - आडंबर एक चिंतनीय विषय

जैन समाज ने पिछले 2500 वर्षों की यात्रा में हमने क्या पाया और क्या खोया, गहराई से अवलोकन करने का विषय है...सम्पूर्ण जैन समाज के लिए...
गहराई से चिंतन करने पर यह बात सामने आती है कि पाने की बात तो छोड़ दे, सिर्फ खोया ही खोया है। अपने पूर्वजों की संचित संस्कारो जेसी सम्पति को भी हम सम्भालकर नही रख सकें है, योग्यता पर शर्म करने जैसा है।
क्या जैन समाज की कोई सर्वोच्च संस्था है, जिसने कभी यह सर्वें कराया है, जो जैन समाज के सभी वर्गों के बारे चिंतन करती है...?
वेसे समस्या तो अनेक है हमारे बुद्धिजीवी समाज की मगर आज मे सिर्फ एक समस्या पर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा - जैन समाज मे हो रहे शादी ब्याह ओर आडंबर के साथ हमारे गिरते संस्कार
 सबसे बड़ी व बहुत गंभीर समस्या है शादी ब्याह मे आडंबर ,ओर आडंबर के साथ हमारे गिरते संस्कार --- पहले मे अपनी पीड़ा गिरते हुए संस्कारो की तरफ व्यक्त करना चाहूँगा आज सम्पूर्ण जैन समाज चाहे वह दिगंबर हो या श्वेतांबर हमारी पोराणिक परंपरा की तरफ नजर डाली जाए ओर वर्तमान को देखा जाये अमूलचुल परिवर्तन हुआ है ! परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ परिवर्तन होना भी जरूरी है मगर वह परिवर्तन नहीं जिसमे हमारा समाज संस्कार विहीन हो जाए ! मुझे जब भी 70-80 वर्ष के बुजुर्ग से वार्तालाप का अवसर मिला तब उनसे ज्ञात हुआ आज से ठीक 20-25 वर्षो पूर्व हमारे घरो मे शादिया होती थी ! उन शादियो की तरफ नजर डाली जाए अभी की तुलना मे पकवान कम होते थे मगर मेहमान व शादी मे बाराती को सन्मान के साथ बाजोट लगा कर बड़ी मनुहार के साथ खाना खिलाया जाता था ! ओर आज पकवान तो बहुत ज्यादा होते है भले मेहमान मधुमेह से पीड़ित ( यह रोग शादी मे आने वाले मेहमानो मे ओसत 20% तो होता ही है ) नहीं खाते ! साथ मे कंदमूल , रात्रि भोजन ओर साथ मे बुफ़े खाना जेसे भिख मागते थाली हाथ मे लाइन मे खड़े होते है ! क्या मेहमान नवाजी यही है ? मेरी समझ से परे है ! वेसे मेरी बात आप जेसे ओर बुद्धिजीवी समाज को थोथी लगेगी मगर विचारणीय है मेहमानो को सन्मान व मनुहार के साथ खाना खिलाना आपके लिए शर्म की बात है होगी भी क्यू की आप लाखो रुपए खर्च करके 700 से 2500 तक के डिश का ठेका केटर्स को देते है ! भले आपके मेहमान भीख मांगते हुए खाते है क्यू की वह भी आदी हो चुके है इस तरह से खाने को ! बड़ी विडम्बना हमारे जैन समाज पर महालक्ष्मी बड़ी मेहरबान है तभी तो हम उस लक्ष्मी का दुरु उपयोग कर रहे है ! जिस तरह हाथ की पांचों अंगुली एक जेसी नहीं होती उसी तरह हमारे समाज मे उच्च वर्ग , माध्यम वर्ग व निम्न वर्ग के जैन भाई है किसी की कमाई करोड़ो मे तो किसी की लाखो ओर हजारो मे ओर देखा देखी आडंबर नामक दल दल मे फँसते जा रहे है ! आज जरूरत है जैन समाज इस विषय पर चिंतन करे ओर खाने की मर्यादा बनाए ! वेसे बहुत बाते होती है 21 वस्तु से ज्यादा नहीं बनेगी मगर पालन नहीं हो पा रहा है अब समय आ गया है चिंतन का !
अब साधर्मिक भाईयो से सबसे बड़ी गिरते संस्कार की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा हम हमारे संस्कारो को भूलते हुए हमारे बच्चो की फिल्मी स्टाइल प्रिवेडिंग शूटिंग कराते है क्या वह उचित है कमर मे हाथ डाले व अश्लील द्र्श्य हम उसी प्रिवेडिंग शूटिंग के शादी मे आए मेहमानो को स्टेज पर बड़े पर्दे पर बताते है क्या हमारे जैन समाज के यहीं संस्कार है ? इस प्रिवेडिंग के दुष्परिणाम आप सभी को विदित है ज्यादा प्रकाश डालना यह ब्लॉग बहुत बड़ा हो जाएगा ! दूसरा हम संगीत संध्या का आयोजन करते है शादी के एक महीने या उससे अधिक समय पूर्व कोरियों ग्राफर जो मुख्यतया मुस्लिम ज्यादा होते है बंद कमरे मे अपनी बहू बेटियो के कमर मे हाथ डाल कर सीखाते है वाह जेनियों आपके संस्कार उसे आप अपनी प्रतिष्टा समझते है ! बड़ा दर्द होता है हमारा समाज किधर जा रहा है ! तभी तो किस्से सुनने मे आते है कोरियोग्राफर बहू बेटी को भगा ले गया ! फिर आप किसी को मुह बताने लायक नहीं रहते ! अब कोरियोग्राफर का कार्य पूर्ण होने के बाद आपकी बहू बेटियाँ बार बाला जेसी पूरे समाज व मेहमानो के सामने स्टेज पर कमर मे हाथ डाले ठुमके लगाती है ओर आप तालिया बजाते हो ! क्या आपके पूर्वजो ने यही संस्कार दिये ! ज्यादा नही लिखुंगा मगर समाज के चंद ठेकेदारो व समाज के हर व्यक्ति से अनुरोध करूंगा आप इस पर सामाजिक प्रतिबंध लगाए ! साथ मे सभी जैन धर्म के आचार्य भगवंतों साधू संतो से विनम्र प्रार्थना करता हु ! आप अध्यात्म के साथ जैन धर्म को इस तरह के संस्कारो की तरफ ध्यान दे ओर आप पूरी कोसिश करे जैन धर्म मे आडंबर , प्रिवेडिंग शूटिंग , संगीत संध्या पर प्रतिबंध लगे बहुत तीव्रता से निर्णय लेना पड़ेगा, हमें अपने नाम के वास्ते आडम्बर को रोकना होगा, तभी हम भगवान महावीर के अनुयाई कहलाने के हकदार है ! हम सुधरेंगे तो समाज सुधरेगा
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

Wednesday 15 August 2018

हमारी उपलब्धि ... झख मारने में हम अव्वल

हमारी तरक्की मछली पालन यानी  हमारी सरकार  झख मारने में अव्वल आयी बधाई ...दु या मन की पीड़ा व्यक्त करू

  वर्तमान सरकार के शासन  में यह प्रमाणित हो गया है कि हम लोग व हमारी सरकार विश्व मे झख मारने में अव्वल हैं.. आप को झख मारना जैसे शब्द सुन कर यही लगा न कि यह क्या ऊत्तम विद्रोही सटीया गया इतनी घटिया भाषा बोल रहा है..क्यों कि मेरे शोशल मीडिया के मित्र  मुझे वैसे भी सरकार विरोधी मानते आए है तभी पप्पू का चमचा जैसा उदाहरण देते है यदा कदा पक्का कांग्रेसी जैसी उपमा भी प्रदान करते है मगर में तो एक छोटा सा लेखक हु  पत्रकार हु आज ही एक लेखक की पोस्ट देख झख मारने की बात पर कुछ जोड़तोड़ कर लिख दिया   जैसा मुख्य विषय मे मेने लिखा हमारी सरकार झख मारने में अव्वल आयी झख मारना सुन कर गंदे विचार मन मे आते हैं न.. मुझे भी पहले यह लगता था कि यह कोई घटिया शब्द है वैसे ही जैसे कि हम गुस्से ओर आवेश में आ कर किसी की माँ बहन के लिए बोलते हैं.. मगर एक सच जो है सो है आप इतने जल्दी मुझ पर आक्रोशित न हो...विचार पूरे पढ़ तो ले.....
पहले अकबर बीरबल की एक कहानी सुनाता हूं जो कि हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं.. एक दिन रानी ने बीरबल से पूछा कि अकबर बादशाह कहा है तो बीरबल बोले कि अकबर झख मारने गए हैं.. रानी को बीरबल की यह बात नागवार गुजरी ओर उन्होंने अकबर से बीरबल की शिकायत कर दी.. अकबर भी स्वयं के लिए झख मारने गए सुन कर आगबबूला हुए और बीरबल को अपने सामने तलब किया.. तो बीरबल बोले कि उन्होंने जो कहा है सच ही कहा है.. आप तो झख मारने ही गए थे.. यह सुन सभी दरबारियों के मुँह से ठहाके निकल गए.. अब तो अकबर ओर भी लाल पिला हो गया और बीरबल को खा जाने वाली नजरो से घूरने लगा.. बीरबल अकबर के अंदरूनी भाव समझ कर बोले कि बादशाह.. आप को गुस्सा करने की कोई जरूरत नही है.. संस्कृत में झख का मतलब मछली होता है और आप तालाब पर मछली मारने ही तो गए थे.. तो झख का मतलब मछली होता है.. यू तो सँस्कृत में झष का मतलब मछली होता है मगर भाषा की विकृति मनुष्य का स्वभाव है और कालांतर में झष झख में कब बदल गया पता ही नही चला.
       तो  आप समझ गए होंगे कि हम दुनिया मे झख मारने में सब से आगे है..जो हमारे प्रिय  देश के मुखिया ने लाल किले की प्राचीर से यह घोषणा की तो मैं चौक पड़ा.. हम आगे बढ़ रहे हैं और वो भी मछली मारने में.. हम दुनिया मे सब से प्रथम क्रमांक पर है वो भी मछली के उत्पादन में.. सरकार के नजरिये से यह बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है मगर मेरी नजर में यह उपलब्धि देश को शर्मसार करने वाली है.. यह बुद्ध और श्रीराम का देश है.. यह  भगवान महावीर का देश है..जंहा महात्मा गांधी जैसे अहिंसा प्रेमी को राष्ट्रपिता से नवाजा गया  यहाँ ऐसी सफलता दुखदायक है.. यहाँ अव्वल आना त्रासदी है.. मछली के साथ साथ हम मांस निर्यात में भी दुनिया मे सब से आगे है.. अहिंसक देश पर हत्यारा देश का तमगा लग गया है.
      शासन की कुछ नीतियां मेरी समझ से बाहर है.. एक तरफ वो इस देश को गांधी जी का देश कहती है और दूसरी तरफ मत्स्य पालन केंद्र.. कुक्कुट पालन केंद्र.. बकरी पालन केंद्र खोलने हेतु लोगो को प्रोत्साहित करती है.. क्या होता हैं इन पालन केंद्रों में.. पालन केंद्र कोई चुग्गा डालकर धर्म करने का केंद्र तो है नही 
जब इन्हें मारने की नीयत से ही योजना बन रही है तो पालन केंद्र जैसे भृमित करने वाले नाम रखने का क्या औचित्य..? सरकारी अनुदान से लोगो को पाप कार्य के लिए प्रेरित किया जा रहा है..  लोगो को हत्यारा बनाया जा रहा है.
         आखिर हम लोग इन बेहुदा ओर बकवास बातों में ही क्यो आगे है..? क्यो की इन कार्यो में कोई बहुत अधिक बुद्धि की जरूरत नही पड़ती इसलिए..! या इस मे कोई बहुत अधिक श्रम नही करना पड़ता इसलिए..? जो भी हो सच तो मुझे यही लगता है.. अरे तरक्की ही करनी है देश को तो वो तकनीकी के क्षेत्र में करे.. तरक्की ही करनी है तो विज्ञान में करे.. नये नये आविष्कार किये जायें मगर नही.. हम तो खून बहाने में आगे रहेंगे.. हम मूक लाचार जीवो की हत्या में कीर्तिमान रचेंगे.. धिक्कार है ऐसी सफलता पर.. लानत है ऐसे पुरुस्कारों पर.
           आझादी के पर्व पर देश को मछली मारने में अव्वल की उपलब्धि का सन्मान मिला यह सुन मैं दुःखी हु..  परेशान हु.. शायद मेरे बुद्धिजीवी मित्र भी दुखी होंगे। भारत देश यह कलंक कब धुलेंगा..? निकट भविष्य में यह कलंक ओर भी अधिक दागदार होंगा.. क्यो की नित्य नयी योजनाएं बन रही है कि कैसे नदियों में पानी की जगह लहू बहे.. कैसे ओर अधिक से अधिक पशुओं को मारा जाये कांटा जाये.. कैसे लोगो को अधिक से अधिक मांसाहार के लिए प्रेरित किया जाये.. कैसे  अहिंसामय जीवन शैली पर प्रहार किये जायें.. इस उपलब्धि पर मुझे तो नाज नही अब आप क्या सोचते है यह आप पर निर्भर है । अहिंसा परमो धर्म हमारा घोष था हिन्दू जैन   संस्कृति का अभिमान था । हिंदुस्तान की इस सफलता पर मुझे गर्व नही ।मेरे विचार एक लेखक की भावना में जोड़े हुए है
आपका - ऊत्तम जैन( विद्रोही )
मो - 8460783401
नॉट --उपरोक्त विचार अज्ञात लेखक के विचारों से प्रभावित होकर  लिखे गए है इसे राजनीति द्वेष से न लिया जाए
         

Tuesday 14 August 2018

स्वतंत्रता दिवस ओर हमारी स्वतंत्रता का सही अर्थ- उत्तम जैन ( विद्रोही )

                          स्वतंत्रता दिवस ओर हमारी स्वतंत्रता का सही अर्थ
मित्रो आज हम 72 वा स्वतंत्रता दिवस मना रहे है ! हमे जो स्वतंत्रता विरासत में मिली है ! उस स्वतंत्रता के लिए हमारे पुरखो ने पूर्वजो ने बलिदान किया है आज वह एक इतिहास बन गया है ! अंग्रेजो के शासन से मुक्ति दिलाने में कितने वीर शहीद हुए हमने शायद पुस्तको में ही पढ़ा ! मगर पुस्तको में कुछ चंद शहीदों के नाम ही अंकित हुए ! हजारो हजारो स्वतंत्रता सेनानी ने जन्मभूमि भारत माँ के लिए कुर्बानी दी ! तब जाकर हमें आंशिक ( आंशिक क्यों इसका जबाव आगे की पक्तियों में करूँगा ) स्वतंत्रता प्राप्त हुई ! स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले महान सेनानियों के प्रति शुभकामना प्रेषित करना और हर्ष व् उल्लास है साथ हमे इसे मना लेना ही हमारे कर्तव्य की इति श्री समझ लेना काफी नही है !
चंद पंक्तियो ( अज्ञात कवि ) द्वारा अपने विचार संप्रेषित कर रहा हु
लोकतंत्र है आ गया , अब छोड़ो निराशा के विचार को !
बस अधिकार की बात न सोचो , समझो कर्तव्य के भार को !!
भुला न पायेगा काल , प्रचंड एकता की आग को !
शान से फहराकर तिरंगा , बढ़ाएंगे देश की शान को !!
बित जायेगा वक्त भले , पर मिटा न पायेगा देश के मान को !
ऐसी उडान भरेंगे , दुश्मन भी होगा मजबूर , ताली बजाने को !!
एकता ही संबल है , तोड़े झूठे अभिमान को !
कंधे से कन्धा मिलाकर , मजबूत करे आधार को !!
इंसानियत ही धर्म है बस ,याद रखे भारत माता के त्याग को !
चंद पाखंडी को छोड़कर , प्रेम करे हर इन्सान को !!
देश है हम सब का , बस समझे कर्तव्य के भार को !
नव युग आ गया है , अब छोड़ो निराशा के विचार को !!
आज पूरा देश इस दिन देश प्रेम में डूब जाएगा। जगह-जगह अपना तिरंगा झंडा लहराता हुआ नज़र आएगा। लोगों के कपड़ों, घरों, सामानों, गाड़ियों आदि सब जगह अपना तिरंगा झंडा छाया रहेगा। स्वतंत्रता दिवस का यह दिन हर साल लोगों में एक अलग और नया उत्साह लेकर आता है। बच्चों की उत्सुकता तो देखती ही बनती है। आख़िर देशप्रेम होता ही ऐसा है जो हर एक इंसान के चेहरे पर अलग ही झलकता है। आज़ादी की वह खुशी लोगों के चेहरे पर साफ दिखाई पड़ती है। मगर ये स्वतंत्रता मेरी समझ में कुछ कम आ रही है क्यों की मे स्वयम समाचार पत्र का संपादक हु एक विचारक हु समाचार पत्रों व् शोशल मिडिया पर जगह जगह सुन रहा हु देख रहा हु पढ़ रहा हु आज हमारे देश मे वेचारिक स्वतन्त्रता है हमे अपने विचार रखने की पूर्ण स्वतन्त्रता है ओर होनी भी चाहिए मगर आज राजनीतिक महत्वाकांशा ने हमारे नेताओ का स्तर इतना गिर गया की पप्पू व फेंकू जेसे शब्दो के साथ ऐसे ऐसे घटिया शब्दो का उपयोग आम हो गया है ! हम स्वतंत्र जरूर है मगर हमारे संस्कार गुलाम से प्रतीत हो रहे है हमारे देश के जबांज सेना से भले हम पूर्ण सुरक्षित है मगर ... .. एक दशहत के साथ हम स्वतंत्रता दिवस मनाते है यह भी कटु सत्य है इस लिए मेने पहले आंशिक स्वतंत्रता का उलेख किया ! भारत का स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि इस दिन हम राजनीतिक तौर पर आजाद हुए और हमने लोगों के दिल और दिमाग में राष्ट्रीयता का विचार पैदा करना शुरु किया। अगर ऐसा न होता तो लोग अपनी जाति, समुदाय व धर्म आदि के आधार पर ही सोचते रह जाते। हालांकि भारतीय होने का यह गौरव केवल एक भौगोलिक सीमा के ऊपर खड़ा था। भारत का असली व पूरा गौरव, इसकी सीमाओं में नहीं बल्कि इसकी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सार्वभौमिकता में समाया है। भारत दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी है। तीन ओर से सागर तथा एक ओर से हिमालय पर्वत श्रृंखला से घिरा भारत, स्थिर जीवन का केन्द्र बन कर सामने आया है। यहां के निवासी एक हजारों सालों से बिना किसी बड़े संघर्ष के रहते आ रहे हैं, जबकि बाकी संसार में ऐसा नहीं रहा। जब आप संघर्ष की सी स्थिति में जीते हैं तो आपके लिए प्राणों की रक्षा ही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य बना रहता है। जब लोग स्थिर समाज में जीते हैं, तो जीवन-रक्षा से परे जाने की इच्छा पैदा होती है। इस तरह भारत ही ऐसा स्थान है, जहां लंबे अरसे से, स्थिर समाजों का उदय हुआ और नतीजन आध्यात्मिक प्रक्रियाएं विकसित हुईं। आज आप अमेरिका में लोगों के बीच आध्यात्मिकता को जानने की तड़प को देख रहे हैं, उसका कारण यह है कि उनकी आर्थिक दशा पिछली तीन-चार पीढ़ियों से काफी स्थिर रही है। उसके बाद उनके भीतर कुछ और अधिक जानने की इच्छा बलवती हो रही है। इंसान बुनियादी रूप से क्या है, इस मुद्दे पर इस धरती के किसी भी दूसरी संस्कृति ने उतनी गहराई से विचार नहीं किया जैसा हमारे देश में किया गया। यही इस देश का मुख्य आकर्षण है कि हमे पता है कि मानव-तंत्र कैसे काम करता है, हम जानते हैं कि इसके साथ हम क्या कर सकते हैं या इसे इसकी चरम संभावना तक कैसे ले जा सकते हैं। हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि महान मनुष्यों के निर्माण से ही तो महान देश और महान विश्व की रचना हो सकती है।
परंतु अब, लोगों को भौगोलिक सीमाओं में ही गौरव का अनुभव होने लगा है। अंग्रेज़ों के आने से पूर्व, यह सारी धरती अनेक राज्यों में बंटी थी। फिर हमने इसे एक देश बनाया, लेकिन कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कारणों से यह तीन टुकड़ों में विभाजित हो गया है। संसार में कुछ ताकतें हमेशा विभाजन के लिए काम करती रहती हैं क्योंकि इसी में उनका लाभ छिपा होता है। परंतु यदि मानवता परिपक्व हो जाएगी तो सीमाओं के बावजूद उनका इतना अधिक प्रभाव नहीं होगा। सच्ची स्वतंत्रता तभी मिल सकेगी जब हम किसी देश से अपनी पहचान जोड़ने की जरुरत से भी स्वतंत्र हो जाएंगे। अगर कुछ सौ सालों में, हम एक ऐसा दिन मना सकें कि संसार सारी सीमाओं और भेदों से स्वतंत्र हो जाए, तो वह सही मायनों में एक भव्य स्वतंत्रता होगी। अन्यथा, अगर कोई एक देश स्वतंत्र होता है और दूसरा देश गुलाम, तो यह सच्ची स्वतंत्रता नहीं है। जब आप किसी को नीचे दबाते हैं तो आप उसके साथ-साथ अपनी स्वतंत्रता भी गंवा देते हैं। जैसे कोई पुलिस वाला हथकड़ी के एक हिस्से को अपने हाथ में और दूसरे हिस्से को मुजरिम के हाथों मे पहना दे। दोनों ही तो बंधन में बंधे हैं, बस अंतर इतना है कि पुलिसवाले के हाथ में हथकड़ी की चाबी है। परंतु जीवन के साथ ऐसा नहीं है। चाबी तो बहुत पहले कहीं खो गई है। अगर आप किसी को बांधते हैं, तो आप स्वयं भी बंधते हैं और इसे खोलने के लिए कोई चाबी नहीं है। स्वतंत्रता दिवस की असली चाबी सीमाओं को तोड़ने में है, ये सीमाएं केवल राजनीतिक ही नहीं हैं, हमें उन बाधाओं को भी तोड़ना है, जो हमने अपने भीतर बना रखी हैं। जब तक हम अपने गुस्से, भेदभाव, जलन या ऐसी दूसरी सीमाओं से मुक्त नहीं होते, तब तक हमारे लिए स्वतंत्रता कोई मायने नहीं रखती। इस देश की सांस्कृतिक विरासत में, इन बंधनों को तोड़ने की आंतरिक विधियां और तकनीकें हमेशा से मौजूद रही हैं। अब समय आ गया है कि स्वतंत्रता के इन साधनों को संसार के सामने पेश किया जाए। सच्ची स्वतंत्रता तभी मिल सकेगी जब हम किसी देश से अपनी पहचान जोड़ने की जरुरत से भी स्वतंत्र हो जाएंगे। अगर कुछ सौ सालों में, हम एक ऐसा दिन मना सकें कि संसार सारी सीमाओं और भेदों से स्वतंत्र हो जाए, तो वह सही मायनों में एक भव्य स्वतंत्रता होगी अंत में हमारी सुरक्षा के लिए सभी शहीदों को मेरा नमन ... श्रदांजली, पुष्पांजली
हमे आजादी दिलाने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानी को नमन
लेखक - उत्तम जैन (विद्रोही )
संपादक - विद्रोही आवाज
संस्थापक संपादक - जैन वाणी
Email-vidrohiawaznews@gmail.com
Web- www.vidrohiawaz.com
Mo- 8460783401