Monday, 27 August 2018

क्यों इतनी जल्दी चिढ़ जाते हो ??

*क्यों इतनी जल्दी चिढ़ जाते हो ?*
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      ☀ *अधूरा जीवन शिल्प* ☀
-----Poonam Jain

कोई जरा सा कहता है और हमें बहुत बुरा लग जाता है।  कई बार तो कुछ कहा भी नहीं होता। चिढ़ का आलम तो यह है कि दूसरों के चलने, हंसने और काम करने के ढंग से भी चिढ़ मचने लगती है। ना मजाक बर्दाश्त होता है, ना ही प्यार। आखिर इतनी भी चिड़चिड़ाहट क्यों?

चिढ़ संक्रामक रोग की तरह होती है। किसी एक का चिढ़ना, आसपास वालों को भी अपने असर में ले लेता है। और अगर चिढ़ना आदत बन गया हो तो पूरे माहौल में तल्खी आने में देर नहीं लगती। शुरुआत में लोग संभालने और सुधारने की कोशिश भी करते हैं। पर बाद में परवाह करना छोड़ देते हैं। फिर यही सुनने को मिलता रहता है कि ऐसे चिढ़ने से काम नहीं चलता!

   यूं विरले ही होंगे, जिन्हें किसी बात पर चिढ़ नहीं होती हो। आमतौर पर हम मन ही मन खीझते भी रहते हैं और संतुलन भी बनाए रखते हैं। चिढ़ना भी लगा रहता है और काम भी चलता रहता है। समस्या तब होती है, जब हम बात-बात पर उखड़ने लगते हैं। देर तक चिढ़े रहते हैं। एक का गुस्सा दूसरे पर निकाल रहे होते हैं। चेहरा तनने लगता है और वह कहने या करने लगते हैं, जो नहीं चाहते। हमारी खीझ, आंख, कान और दिमाग पर पड़ा एक ऐसा महीन परदा है, जो खुद को और दूसरों को देखने, सुनने और समझने में आड़े आने लगता है। 

बात कुछ तो होती ही है
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आप भले ही कहें कि गुस्से या चिढ़ने की कोई बात नहीं थी, पर बात होती ही है। छोटी-बड़ी कई वजह हो सकती हैं। कड़वी यादें,  डिप्रेशन,  ब्लड प्रेशर, थाइरॉएड,  भूख, अनिद्रा, तनाव, एंग्जाइटी, डर व असुरक्षा का भाव- कुछ भी झुंझलाने का कारण हो सकता है।

   मनोविज्ञान में  ‘साइकोलॉजिकल प्रोजेक्शन’ की बात की जाती है। इसके अनुसार हम दूसरों की उन कमियों को  देखकर झ़ंुझला जाते हैं, जिन्हें हम अपने भीतर पहचानने से बचते हैं। कई बार दूसरों की उन बातों पर भी खीझ होती है, जिन्हें हम खुद करना चाहते हैं। मसलन, हो सकता है कि आप ऑफिस में किसी ऐसे व्यक्ति से  चिढ़ रहे हों, जो बड़े आराम से हंसते-बतियाते, अपना काम पूरा कर लेता है। लेकिन आप नहीं कर पाते। ना ही खुद को सुधारते हैं, ना अपनाते हैं और ना ही दूसरों से चिढ़ना छोड़ पाते हैं। ‘माई ओन गुरु’ की लेखिका रेजान हुसी कहती हैं,‘आलस्य, मूर्खता, झूठ, अक्षमता, तंग सोच, आदि अनेक बातें, जिनसे हमें चिढ़ होती है, वे दूसरों में नहीं, हममें होती हैं।’

अपनी चिढ़ को सुनें
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मेग सेलिग लेखिका और ब्लॉगर हैं। ‘चेंज पावर’ उनकी चर्चित किताब है। वह कहती हैं,‘हमारी खीझ हमेशा गलत नहीं होती। बस उन्हें समझकर अपने लिए सही रास्ता बनाना होता है।’ हो सकता है कि आपको अपनी सीमाएं तय करने की जरूरत हो। दूसरों को अपने मामले में कितनी छूट देंगे या लेंगे यह रेखा समझने की जरूरत  हो। ये भी हो सकता है कि आपको समय का प्रबंधन सीखने की जरूरत हो। या फिर ये कि आप खुद से या दूसरों से बहुत उम्मीदें करते हों।

हम सबको नहीं बदल सकते,  सब कुछ हमारे हाथ में भी नहीं होता, पर हम खुद पर काम कर सकते हैं। और इसके लिए जरूरी है कि हम थोड़ा खुद को प्यार करें, थोड़ा दूसरों को। थोड़ा खुद को माफ करें और थोड़ा दूसरों को।

अपनी चिढ़ को घटाएं
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** चिढ़ या खीझ का एहसास होते ही कुछ देर गहरी सांस लें और छोड़ें।
** खुद को ऐसे काम में लगा लें, जो आपको पसंद है।  जैसे फोन में फोटो देखना या संगीत सुनना।
**    बात को मजाक या हंसी में टाल दें।
** कम से कम शिकायत करें।
** तुरंत कुछ ना कहें।  दूसरों को सुनें।
**    अपनी चिढ़ का कारण जानें। एक बात को दूसरी  से  जोड़ने से बचें।
** साइकोलॉजिस्ट से मिलने में हिचकें नहीं। तनाव और गुस्से को काबू करना  सीखें।
**     अपनी जिंदगी जिएं।  होड़ न करें।

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