Sunday 5 April 2020

मजदूरो का हुआ ओर होने वाले पलायन का क्या होगा नतीजा - (उत्तम जैन -विद्रोही )

पलायन करते मजदूर 
कोरोना के चलते भारत के 16 राज्यों के 331 शहरों में इन दिनों संपूर्ण लॉकडाउन है। इसके साथ ही बस, ट्रेन और हवाई यातायात भी बंद है। सरकार का तर्क है कि इससे संक्रमण फैलने की दर में कमी आएगी और संक्रमण को नियंत्रित करने में शतप्रतिशत कामयाबी मिलेगी। लेकिन मुंबई जैसे अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहले 2-3 दिन जांच में ढिलाई बरती गई। वहां तैनात डॉक्टरों का कहना था कि स्टांपिंग करके यात्रियों को निजी गाड़ियों या टैक्सी से जाने की दी गई सलाह से महाराष्ट्र में वायरस फैला। जो कैटिगरी बनाई भी गईं, उसमें सावधानियां बरतने के बजाय उसे हल्के में लिया गया। सरकार ने ठोस रणनीति, नियोजन और आबादी की आवश्यकता का कोई अध्ययन नहीं किया।
सरकार ने सिर्फ और सिर्फ लॉकडाउन का आनन-फानन में जो निर्णय लिया, वह कोरोना को रोकने में अभी तक कारगर साबित होता दिखाई नहीं दे रहा है, उलटे इससे अनेक जटिल समस्याएं पैदा हुई हैं। प्रवासियों का पलायन होने लगा। मुंबई सूरत जैसे अनेक महानगरों से हजारों लोगों ने पहले ट्रेन और बस से अपने अपने गांवों की ओर पलायन किया। जब ट्रेनें और बसें बंद हो गईं तो वे पैदल ही अपने-अपने गांवों को निकल पड़े। वहीं जरूरत की चीजों की भीषण कालाबाजारी भी शुरू हुई। लॉकडाउन के पहले ही अगर सरकार राशन, दवा और अन्य जरूरी चीजों की उपलब्धता का समुचित इंतजाम करती तो शायद लोगों के मन में वह अविश्वास और खौफ न होता, जो अभी है।

महानगरों में खड़ी तमाम बड़ी इमारतों में इनका पसीना लगा है। यही हैं वो जिन्होंने महानगर में मेट्रो के सपने को साकार किया। ये मजदूर पिछले दिनों बड़ी संख्या में लौटते दिखे अपने गांव-घर की ओर। झुंड के झुंड अपनी गठरियां, पोटलियां और कनस्तर उठाए लोग, बच्चों को गोद में लिए, कंधे पर बिठाए पैदल चलते स्त्री-पुरुष। विभाजन के बाद आजाद देश के लिए यह बिल्कुल नई तस्वीर है।
22 मार्च का जनता कर्फ्यू ट्रेलर था। कोरोना वायरस के चलते उपजी हेल्थ इमर्जेंसी के मद्देनजर 24 मार्च से देश में 21 दिन के लिए संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया गया। साथ ही यह आश्वाटसन भी दिया गया कि आवश्यक वस्तुओं की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। पर लगता है हर व्यक्ति को बचाने और घरों के अंदर तमाम आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करने का संकल्प नीचे तक पहुंचाने में कहीं कोई चूक रह गई। रोज कमाने और रोज खाने वाले लाखों लोगों तक या तो यह आश्वासन पहुंचा नहीं या पहुंचने के बाद भी उन्हें आश्वस्त नहीं कर सका। नतीजा यह कि दो दिन होते-होते उनकी हिम्मत टूट गई। उन्हें लगा लॉकडाउन की इस अवधि में वे घरों के अंदर बेमौत मर जाएंगे। तब तक बसों ट्रेनों की आवाजाही रोकी जा चुकी थी। सो, हजारों की संख्या में ये लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नापने का इरादा लेकर निकल पड़े कि मरें भी तो कम से कम अपनों के बीच मरें, उन लोगों के बीच जिन्हें हमारे जीने-मरने से फर्क पड़ता है
लॉकडाउन के दुष्प्रभाव और चुनौतियों का जायजा सरकारी स्तर पर नहीं लेने से पलायन और खौफ का मंजर है। सरकार को आम लोगों को आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति पर जोर देना चाहिए। इसके बाद भी अगर कोई लॉकडाउन का उल्लंघन करता है तो कानून अपना काम जरूर करे।

Saturday 4 April 2020

कोरोना संकट पूरी दुनिया के मौजूदा स्वरूप को बदलने वाला है

कोरोना संकट पूरी दुनिया के मौजूदा स्वरूप को बदलने वाला है। एक बार स्वास्थ्य से जुड़ा खतरा टल जाए, उन खतरों पर काबू पा लिया जाए तो भी हालात के तुरंत सामान्य होने की संभावना कम दिख रही है। कोरोना संकट के बहुआयामी प्रभावों में एक यह भी होगा कि आम लोग उन सरकारों या राजनीतिक दलों पर नजदीकी से नजर रखेंगे जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगुआई कर रहे हैं। आम जनता यह देखेगी और परखेगी कि अब तक के सबसे बड़े संकट में आम देशवासियों से कनेक्ट करने और उनकी जरूरतों को समझने के मामले में किन सरकार या दलों ने कैसा रुख अपनाया। इसके आधार पर सियासी अंक भी मिलना तय है। इसके पीछे अहम कारण है कि कोरोना संकट के बाद आने वाले दिनों में हर कोई इसके असर से गुजरेगा और उसकी जिंदगी के कई अहम मसले इससे तय होंगे  वेसे  इस महामारी पर हमारी केंद्र व राज्य सरकारे पूरी सावधानी ओर सतर्कता से सराहनिय कार्य कर रही थी  मगर इस बीच तबलीगी जमात का मरकज ने हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी नर्सो डॉक्टर के साथ इनकी हरकत ने पूरी कॉम को बदनाम कर दिया    
दिल्ली का निजामुद्दीन इलाका… यहीं मौजूद है बंगले वाली मस्जिद… और इस मस्जिद में है तबलीगी जमात का मरकज… देश में जब कोरोना के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए सरकारों से लेकर सड़क के किनारे रहकर एक पान की दुकान लगाने वाली 75 साल की एक बूढ़ी महिला भी जब अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी, तब कुछ हजार लोग जो एक खास मजहब से जुड़े थे, वे बेफिक्र होकर मरकज में छिपे बैठे थे… एक जाहिल किस्म के मौलाना ने खांसते हुए लोगों के साथ आम मुसलमानों को भी मेसेज दिया, ‘ये ख्याल बेकार है कि मस्जिद में जमा होने से बीमारी पैदा होगी, मैं कहता हूं कि अगर तुम्हें यह दिखे भी कि मस्जिद में आने से आदमी मर जाएगा तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई और नहीं हो सकती।’
मतलब हद दर्जे की बेपरवाही! कौन होता है मुसलमान? वही ना जो अपने ईमान का पक्का होता है? ये कैसा इस्लाम है जो इंसानियत से ऊपर हो गया? मौलाना साद के मुताबिक, अल्लाह कोई मुसीबत इसलिए ही लाता है कि देख सके कि इसमें मेरा बंदा क्या करता है। अरे मौलाना! अल्लाह मुसीबत नहीं लाता, मुसीबत तो शैतान लाता है… अल्लाह तो अपने बंदों को मुसीबत में लड़ने की ताकत देता है… शायद मौलाना साद और उस मरकज में छिपकर बैठे मुसलमानों पर शैतान हावी हो गया था, शायद वे अल्लाह की दी हुई ताकत को समझ ही नहीं पाए और डरकर, चालाकी से बैठ गए मरकज में छिपकर…बात इतनी सी ही होती तो भी एक बार को मैनेज हो जाता, लेकिन जब सरकारें और प्रशासन लगातार यह कहता रहा कि कोरोना की गंभीरता को समझें तो भी ये लोग वहां से निकले और भागकर देश की अलग-अलग मस्जिदों में छिपकर बैठ गए। लखनऊ, कानपुर, आगरा, मुरादाबाद, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और अंडमान समेत पता नहीं कहां-कहां इन लोगों ने लाखों लोगों तक कोरोना के खतरे को पहुंचा दिया।
जीवन और मौत से जुड़े संकट का समय, ऐसा समय होता है, जब किसी व्यक्ति की नीयत और उसके इरादों को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। यह ऐसा समय है, जिसमें हमारी वास्तविक प्रकृति का पता चलता है। मेरा मानना है कि एक तरफ जहां बड़ी संख्या में बिना दिमाग वाले ट्रोल्स और भक्त हैं, जो किसी भी सूरत में अपने धार्मिक और अतिवादी विचारों को आगे बढ़ाने में लगे हैं,वहीं दूसरी तरफ “बौद्धिक” और “जागृत” समुदाय का एक बड़ा हिस्सा मोदी के प्रति नफरत की भावना से ग्रस्त है तो कोई राहुल व सोनिया को निशाना बना रहे है भारतीय राजनीति में आज जो कुछ भी हो रहा है, वह राजनीति के लिए एक त्रासदी तो है ही, लेकिन सबसे बढ़कर, यह मानवता के लिए एक त्रासदी है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति, अपर्याप्त परीक्षण किट, गरीबी, अनुशासनहीन, अव्यवस्थित और अवैज्ञानिक सोच वाली आबादी जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद मोदी ने महामारी काल  में देश के लिए जो किया है वो अकल्पनीय, अविश्वसनीय और अभूतपूर्व है।

Friday 3 April 2020

विश्व का कोई देश किसी संक्रामक बीमारी को अब लेगा हल्के में नही लेगा - करोना एक सबक - उत्तम जैन ( विद्रोही)

करोना का सफर चीन से शुरू होकर विश्व के अधिकतर देशो को संक्रमित कर चुका है लाखो लोग विश्व मे इस महामारी के शिकार हुए करोना से लड़ने के लिए सभी संक्रमित देशो ने कमर कस ली अच्छे से मुक़ाबला भी किया मगर कुछ देश थोड़ी लापरवाही से ज्यादा शिकार हुए आगार देखा जाए हमारा देश इस मामले मे भाग्यशाली रहा है यह मोदी सरकार की सतर्कता का परिणाम है इस महामारी ने विश्व को एक सतर्कता का संदेश दिया है विश्व का कोई देश  किसी संक्रामक बीमारी को अब लेगा हल्के में नही लेगा 
   
संक्रामक रोग, रोग जो किसी ना किसी रोगजनित कारकोंं (रोगाणुओं) जैसे प्रोटोज़ोआ, कवक, जीवाणु, वायरस इत्यादि के कारण होते हैं। संक्रामक रोगों में एक शरीर से अन्य शरीर में फैलने की क्षमता होती है। प्लेग, टायफायड, टाइफस, चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं। टाइफस (सन्निपात) नामक बीमारी का पहला प्रभाव 1489 ई. में यूरोप के स्पेन में देखने को मिला था। इसे जेल बुखार या जहाज बुखार के नाम से भी जाना जाता है। ये बीमारी जेलों और जहाज़ों में बहुत बुरी तरह से फैलती थी। 
टाइफस नामक बीमारी मक्खियों से उत्पन्न बैक्टीरियल इन्फेक्शन से होती है। ये जीवाणु जनित बीमारी है। 1542 ई. में फ्रांस और इटली की लड़ाई में 30000 सैनिकों की मृत्यु भी टाइफस नामक बीमारी से हुई थी। बूबोनिक प्लेग और टाइफस ज्वर ने 1618- 1648  में 8 मिलियन जर्मन लोगों के प्राण ले लिए थे। इस बीमारी ने 1812  में रूस में नेपोलियन की गांदरे आर्मी के विनाश में भी एक प्रमुख भूमिका अदा की थी। प्रथम विश्व युद्ध में टाइफस (सन्निपात) महामारी से सर्बिया में 150000 से ज्यादा लोग मरे थे। रूस में  1918  से 1922 तक सन्निपात महामारी से लगभग 25 मिलियन लोग संक्रमित हुए थे और 3 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। 

इन्फ्लुएंजा (श्लैष्मिक ज्वर) एक वायरल संक्रमण है।यह मानव के श्वसन तंत्र -नाक, गले और फेफड़ों पैर हमला करता है। इन्फ्लुएंजा को आमतौर पर 'फ्लू' कहा जाता है, लेकिन यह पेट के फ्लू वायरस के समान नहीं है जो दस्त और उल्टी के कारण बनता है। कोविड-19 और फ्लू दोनों ही वायरल इंफेक्शन हैं। ये एक इंसान से दूसरे इंसान में फ़ैल सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार दोनों कोविड-१९ और फ्लू फैलने वाले वायरस हैं। 

फ्लू की बात करें तो यह एक बहती नाक से शुरू होता है। इसके बाद खांसी और बुखार होता है। कोरोना वायरस से संक्रमित बहुत कम लोगों ने खांसी के साथ एक बहती हुई नाक होने की सूचना दी है। इसमें सांस की बीमारी से लेकर मतली, सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश , बुखार जैसे लक्षण और फिर निमोनिया हो जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के जनक के नाम से विख्यात यूनानी चिकित्सक 'हिप्पोक्रेट्स' ने सबसे पहले  412 ई. में इन्फ्लुएंजा का वर्णन किया था। 

प्रथम इन्फ्लुएंजा विश्व महामारी को  1580 में दर्ज किया गया था। तब से हर वर्ष 10 से 30 वर्ष के भीतर इन्फ्लुएंजा विश्व महामारियों का प्रकोप होता रहा है। कोविड-19 वायरस से पहले भी कई वायरस दस्तक दे चुके हैं जैसे चेचक(वेरियोला), एशियाई फ्लू, स्पेनिश फ्लू, हांगकांग फ्लू, मार्स वायरस, सार्स वायरस, इबोला वायरस, निपाह वायरस, जीका वायरस और स्वाइन फ्लू। चेचक एक विषाणु जनित रोग है।

चेचक बीमारी का सबसे पहला सबूत मिस्र के फिरौन रामसेस वी से आता है। फिरौन की मृत्यु 1157 ई.पू हुई थी। फिरौन के ममीफाइड अवशेष में उनकी त्वचा पर टेल-टेल पॉक्स मार्क दिखते हैं। यह बीमारी बाद में एशिया, अफ्रीका और यूरोप में व्यापार मार्ग पर फ़ैल गई। अंततः अमेरिका तक पहुंच गई। 

यूरोपीय उपनिवेश के दौरान अनुमानित 90 प्रतिशत स्वदेशी दुर्घटनाएं सैन्य विजय के बजाए बीमारी के कारण हुईं।  1950 ई. के दशक में  50 मिलियन मामले इस बीमारी से आते रहे। चेचक बीमारी दो प्रकार के वायरस से मिलकर बनी है, वेरियोला प्रमुख वायरस और वेरियोला नाबालिग वायरस। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने सफल टीका परीक्षण के बाद 1979 में वेरियोला नाबालिग वायरस और 2011 ई. में वेरियोला प्रमुख वायरस का खात्मा कर दिया था। इस प्रकार चेचक बीमारी एकमात्र मानव संक्रामक रोग है जो सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है।