Friday, 3 April 2020

विश्व का कोई देश किसी संक्रामक बीमारी को अब लेगा हल्के में नही लेगा - करोना एक सबक - उत्तम जैन ( विद्रोही)

करोना का सफर चीन से शुरू होकर विश्व के अधिकतर देशो को संक्रमित कर चुका है लाखो लोग विश्व मे इस महामारी के शिकार हुए करोना से लड़ने के लिए सभी संक्रमित देशो ने कमर कस ली अच्छे से मुक़ाबला भी किया मगर कुछ देश थोड़ी लापरवाही से ज्यादा शिकार हुए आगार देखा जाए हमारा देश इस मामले मे भाग्यशाली रहा है यह मोदी सरकार की सतर्कता का परिणाम है इस महामारी ने विश्व को एक सतर्कता का संदेश दिया है विश्व का कोई देश  किसी संक्रामक बीमारी को अब लेगा हल्के में नही लेगा 
   
संक्रामक रोग, रोग जो किसी ना किसी रोगजनित कारकोंं (रोगाणुओं) जैसे प्रोटोज़ोआ, कवक, जीवाणु, वायरस इत्यादि के कारण होते हैं। संक्रामक रोगों में एक शरीर से अन्य शरीर में फैलने की क्षमता होती है। प्लेग, टायफायड, टाइफस, चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं। टाइफस (सन्निपात) नामक बीमारी का पहला प्रभाव 1489 ई. में यूरोप के स्पेन में देखने को मिला था। इसे जेल बुखार या जहाज बुखार के नाम से भी जाना जाता है। ये बीमारी जेलों और जहाज़ों में बहुत बुरी तरह से फैलती थी। 
टाइफस नामक बीमारी मक्खियों से उत्पन्न बैक्टीरियल इन्फेक्शन से होती है। ये जीवाणु जनित बीमारी है। 1542 ई. में फ्रांस और इटली की लड़ाई में 30000 सैनिकों की मृत्यु भी टाइफस नामक बीमारी से हुई थी। बूबोनिक प्लेग और टाइफस ज्वर ने 1618- 1648  में 8 मिलियन जर्मन लोगों के प्राण ले लिए थे। इस बीमारी ने 1812  में रूस में नेपोलियन की गांदरे आर्मी के विनाश में भी एक प्रमुख भूमिका अदा की थी। प्रथम विश्व युद्ध में टाइफस (सन्निपात) महामारी से सर्बिया में 150000 से ज्यादा लोग मरे थे। रूस में  1918  से 1922 तक सन्निपात महामारी से लगभग 25 मिलियन लोग संक्रमित हुए थे और 3 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। 

इन्फ्लुएंजा (श्लैष्मिक ज्वर) एक वायरल संक्रमण है।यह मानव के श्वसन तंत्र -नाक, गले और फेफड़ों पैर हमला करता है। इन्फ्लुएंजा को आमतौर पर 'फ्लू' कहा जाता है, लेकिन यह पेट के फ्लू वायरस के समान नहीं है जो दस्त और उल्टी के कारण बनता है। कोविड-19 और फ्लू दोनों ही वायरल इंफेक्शन हैं। ये एक इंसान से दूसरे इंसान में फ़ैल सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार दोनों कोविड-१९ और फ्लू फैलने वाले वायरस हैं। 

फ्लू की बात करें तो यह एक बहती नाक से शुरू होता है। इसके बाद खांसी और बुखार होता है। कोरोना वायरस से संक्रमित बहुत कम लोगों ने खांसी के साथ एक बहती हुई नाक होने की सूचना दी है। इसमें सांस की बीमारी से लेकर मतली, सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश , बुखार जैसे लक्षण और फिर निमोनिया हो जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के जनक के नाम से विख्यात यूनानी चिकित्सक 'हिप्पोक्रेट्स' ने सबसे पहले  412 ई. में इन्फ्लुएंजा का वर्णन किया था। 

प्रथम इन्फ्लुएंजा विश्व महामारी को  1580 में दर्ज किया गया था। तब से हर वर्ष 10 से 30 वर्ष के भीतर इन्फ्लुएंजा विश्व महामारियों का प्रकोप होता रहा है। कोविड-19 वायरस से पहले भी कई वायरस दस्तक दे चुके हैं जैसे चेचक(वेरियोला), एशियाई फ्लू, स्पेनिश फ्लू, हांगकांग फ्लू, मार्स वायरस, सार्स वायरस, इबोला वायरस, निपाह वायरस, जीका वायरस और स्वाइन फ्लू। चेचक एक विषाणु जनित रोग है।

चेचक बीमारी का सबसे पहला सबूत मिस्र के फिरौन रामसेस वी से आता है। फिरौन की मृत्यु 1157 ई.पू हुई थी। फिरौन के ममीफाइड अवशेष में उनकी त्वचा पर टेल-टेल पॉक्स मार्क दिखते हैं। यह बीमारी बाद में एशिया, अफ्रीका और यूरोप में व्यापार मार्ग पर फ़ैल गई। अंततः अमेरिका तक पहुंच गई। 

यूरोपीय उपनिवेश के दौरान अनुमानित 90 प्रतिशत स्वदेशी दुर्घटनाएं सैन्य विजय के बजाए बीमारी के कारण हुईं।  1950 ई. के दशक में  50 मिलियन मामले इस बीमारी से आते रहे। चेचक बीमारी दो प्रकार के वायरस से मिलकर बनी है, वेरियोला प्रमुख वायरस और वेरियोला नाबालिग वायरस। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने सफल टीका परीक्षण के बाद 1979 में वेरियोला नाबालिग वायरस और 2011 ई. में वेरियोला प्रमुख वायरस का खात्मा कर दिया था। इस प्रकार चेचक बीमारी एकमात्र मानव संक्रामक रोग है जो सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है।

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