Saturday 4 April 2020

कोरोना संकट पूरी दुनिया के मौजूदा स्वरूप को बदलने वाला है

कोरोना संकट पूरी दुनिया के मौजूदा स्वरूप को बदलने वाला है। एक बार स्वास्थ्य से जुड़ा खतरा टल जाए, उन खतरों पर काबू पा लिया जाए तो भी हालात के तुरंत सामान्य होने की संभावना कम दिख रही है। कोरोना संकट के बहुआयामी प्रभावों में एक यह भी होगा कि आम लोग उन सरकारों या राजनीतिक दलों पर नजदीकी से नजर रखेंगे जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगुआई कर रहे हैं। आम जनता यह देखेगी और परखेगी कि अब तक के सबसे बड़े संकट में आम देशवासियों से कनेक्ट करने और उनकी जरूरतों को समझने के मामले में किन सरकार या दलों ने कैसा रुख अपनाया। इसके आधार पर सियासी अंक भी मिलना तय है। इसके पीछे अहम कारण है कि कोरोना संकट के बाद आने वाले दिनों में हर कोई इसके असर से गुजरेगा और उसकी जिंदगी के कई अहम मसले इससे तय होंगे  वेसे  इस महामारी पर हमारी केंद्र व राज्य सरकारे पूरी सावधानी ओर सतर्कता से सराहनिय कार्य कर रही थी  मगर इस बीच तबलीगी जमात का मरकज ने हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी नर्सो डॉक्टर के साथ इनकी हरकत ने पूरी कॉम को बदनाम कर दिया    
दिल्ली का निजामुद्दीन इलाका… यहीं मौजूद है बंगले वाली मस्जिद… और इस मस्जिद में है तबलीगी जमात का मरकज… देश में जब कोरोना के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए सरकारों से लेकर सड़क के किनारे रहकर एक पान की दुकान लगाने वाली 75 साल की एक बूढ़ी महिला भी जब अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी, तब कुछ हजार लोग जो एक खास मजहब से जुड़े थे, वे बेफिक्र होकर मरकज में छिपे बैठे थे… एक जाहिल किस्म के मौलाना ने खांसते हुए लोगों के साथ आम मुसलमानों को भी मेसेज दिया, ‘ये ख्याल बेकार है कि मस्जिद में जमा होने से बीमारी पैदा होगी, मैं कहता हूं कि अगर तुम्हें यह दिखे भी कि मस्जिद में आने से आदमी मर जाएगा तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई और नहीं हो सकती।’
मतलब हद दर्जे की बेपरवाही! कौन होता है मुसलमान? वही ना जो अपने ईमान का पक्का होता है? ये कैसा इस्लाम है जो इंसानियत से ऊपर हो गया? मौलाना साद के मुताबिक, अल्लाह कोई मुसीबत इसलिए ही लाता है कि देख सके कि इसमें मेरा बंदा क्या करता है। अरे मौलाना! अल्लाह मुसीबत नहीं लाता, मुसीबत तो शैतान लाता है… अल्लाह तो अपने बंदों को मुसीबत में लड़ने की ताकत देता है… शायद मौलाना साद और उस मरकज में छिपकर बैठे मुसलमानों पर शैतान हावी हो गया था, शायद वे अल्लाह की दी हुई ताकत को समझ ही नहीं पाए और डरकर, चालाकी से बैठ गए मरकज में छिपकर…बात इतनी सी ही होती तो भी एक बार को मैनेज हो जाता, लेकिन जब सरकारें और प्रशासन लगातार यह कहता रहा कि कोरोना की गंभीरता को समझें तो भी ये लोग वहां से निकले और भागकर देश की अलग-अलग मस्जिदों में छिपकर बैठ गए। लखनऊ, कानपुर, आगरा, मुरादाबाद, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और अंडमान समेत पता नहीं कहां-कहां इन लोगों ने लाखों लोगों तक कोरोना के खतरे को पहुंचा दिया।
जीवन और मौत से जुड़े संकट का समय, ऐसा समय होता है, जब किसी व्यक्ति की नीयत और उसके इरादों को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। यह ऐसा समय है, जिसमें हमारी वास्तविक प्रकृति का पता चलता है। मेरा मानना है कि एक तरफ जहां बड़ी संख्या में बिना दिमाग वाले ट्रोल्स और भक्त हैं, जो किसी भी सूरत में अपने धार्मिक और अतिवादी विचारों को आगे बढ़ाने में लगे हैं,वहीं दूसरी तरफ “बौद्धिक” और “जागृत” समुदाय का एक बड़ा हिस्सा मोदी के प्रति नफरत की भावना से ग्रस्त है तो कोई राहुल व सोनिया को निशाना बना रहे है भारतीय राजनीति में आज जो कुछ भी हो रहा है, वह राजनीति के लिए एक त्रासदी तो है ही, लेकिन सबसे बढ़कर, यह मानवता के लिए एक त्रासदी है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति, अपर्याप्त परीक्षण किट, गरीबी, अनुशासनहीन, अव्यवस्थित और अवैज्ञानिक सोच वाली आबादी जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद मोदी ने महामारी काल  में देश के लिए जो किया है वो अकल्पनीय, अविश्वसनीय और अभूतपूर्व है।

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