Sunday 23 December 2018

कडवे घूंट जीवन के ---उत्तम जैन ( विद्रोही )

कडवे घूंट जीवन के ---
हमारी वर्तमान दशा व दिशा सिर्फ अपने कारण से होती है इस दशा मे मुख्य कारण एक चिंता व नकारात्मक भाव है !चिंताओं का विश्लेषण किया जाए तो ४०%- भूतकाल की, ५०% भविष्यकाल की तथा १०% वर्त्तमान काल की होती है ! इस स्वीकार भाव से ही हमारे भाव बदलने शुरू होते हैं। रोग का जन्म ही नकारात्मक भावनाओं में है । विकृत भाव व चिन्तन रोग के माता-पिता है । हम भावनाओं में जीते है । उन्हे बदल कर ही हम सुखी हो सकते है । आज अधिकतर लोग चिन्ता से चिन्तित रहते हैं। पिता को अपनी बेटी की शादी की चिन्ता है। एक गृहिणी को पूरा महीना घर चलाने की चिन्ता है। एक विद्यार्थी को अच्छे अंक प्राप्त करने की चिन्ता है। एक मैनेजर को अपने प्रोमोशन की चिन्ता है। एक व्यापारी को अपने व्यापार में लाभ कमाने की चिन्ता है। एक नेता को चुनाव से पहले वोट लेने और जीतने की चिन्ता है। किसी को अपनी सफलता की दावत देने की चिन्ता है।न जाने इंसान कितनी चिंताओ से ग्रसित रहता है लोगों ने जाने-अनजाने में अपनी जिम्मेदारी के साथ चिन्ता को भी जोड़ दिया है। क्या हर जिम्मेदारी के साथ चिन्ता का होना आवश्यक है? क्या चिन्ता किए बिना जिम्मेदारी का निभना संभव नहीं है? एक मां अपने बच्चे से कहती है, 'तुम्हारी परीक्षा सिर पर आ गई है, अब तो चिन्ता कर लो।' बच्चा शायद समझदार है। वह चिन्ता नहीं करता, पढ़ाई करता है और अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है। जिम्मेदारी है पॉजिटिव और चिन्ता करना है नेगेटिव। हम जब जिम्मेदारी को निभाते हैं तो हमारी ऊर्जा पॉजिटिव काम में लगती है और हमें लाभ देती है। लेकिन जब हम चिन्ता करते हैं तो हमारी ऊर्जा नेगेटिव काम में लगती है और नष्ट हो जाती है। मान लो यदि हमारी 20 प्रतिशत ऊर्जा चिन्ता में चली जाती है तो जिम्मेदारी को निभाने के लिए कितनी बची? यदि साधारण हिसाब की बात करें तो बचती है 80 प्रतिशत। लेकिन यदि हम गहराई में जाएं तो परिणाम कुछ और ही होगा। चिन्ता है नेगेटिव और जिम्मेदारी है पॉजिटिव। जब दोनों एक साथ होंगे तो एक दूसरे की विपरीत दिशा में काम करेंगे। जिस तरह 'टग ऑफ वार' खेल में दो विभिन्न समूह एक मोटे रस्से को दो विपरीत दिशाओं में खींचते हैं तो एक समूह की सामूहिक ऊर्जा, दूसरे समूह की सामूहिक ऊर्जा के साथ बराबर हो जाती है। उसके बाद जिस समूह के पास थोड़ी ऊर्जा ज्यादा बचती है, उसका पलड़ा भारी हो जाता है और वह विजयी घोषित किया जाता है। इसी तरह चिन्ता और जिम्मेदारी के मध्य भी चलता है 'टग ऑफ वार'। यदि 20 प्रतिशत ऊर्जा चिन्ता के पास है तो उसे बराबर करने के लिए 20 प्रतिशत ऊर्जा जिम्मेदारी की ओर से खर्च करनी होगी। इस तरह हमारे पास जिम्मेदारी निभाने के लिए बचती है सिर्फ 60 प्रतिशत ऊर्जा। जितनी ऊर्जा हम लगाएंगे, परिणाम भी वैसे ही आएंगे। 100 प्रतिशत ऊर्जा लगाने के परिणाम अधिक और अच्छे होंगे और 60 प्रतिशत ऊर्जा लगाने के परिणाम कम ही होंगे। लेकिन लोगों को लगता है कि काम चल जाएगा। यदि हमारी 50 प्रतिशत ऊर्जा चली गई चिन्ता की ओर तो चिन्ता शेष 50 प्रतिशत ऊर्जा भी खींच लेगी जिम्मेदारी से। और इस तरह हमारे पास अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए कोई ऊर्जा बचेगी ही नहीं। जब ऊर्जा न हो तो अच्छा से अच्छा उपकरण भी काम नहीं कर पाता। फिर हमारा दिमाग भी बिना ऊर्जा के काम कैसे कर सकता है। हम बहुत छोटी-छोटी जिम्मेदारियां भी नहीं निभा सकते और स्वयं से कहते हैं, 'ये मुझे क्या हो गया है, मेरा दिमाग ही काम नहीं कर रहा।' चिन्ता हमारी ऊर्जा को नष्ट कर देती है, जिससे हम अपनी जिम्मेदारी को निभाने में अपने आप को असमर्थ महसूस करते हैं। हम अपनी जिम्मेदारी से नाता नहीं तोड़ सकते। हमें अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए ऊर्जा चाहिए। इसलिए यह हमारी सबसे बड़ी जरूरत है कि हम अपनी ऊर्जा को चिन्ता में नष्ट होने से रोकें। हमें चिन्ता न करने का अभ्यास करना है। लेकिन कोई भी अभ्यास करने के लिए आवश्यक है अभ्यास करने का अवसर। प्रतिदिन हमारे पास अनगिनत समस्याएं आती हैं, जिनके लिए हम चिन्ता करते हैं। तो हर समस्या आने पर स्वयं से बात करें कि चिन्ता करने पर मेरी मूल्यवान ऊर्जा नष्ट हो रही है, जो मुझे नहीं करनी। सिर्फ अपने मन को इस बात की याद दिला कर भी हम अपनी काफी ऊर्जा नष्ट होने से बचा सकते हैं।
यदि आप चिन्ता मुक्त होना चाहते है तो आपको सकारात्मक विचारों को अपने जीवन में लाना पड़ेगा । चिन्ता जन्मजात नहीं होती है । ये एक आदत है जो पड़ जाती है । जब हम इस आदत को मजबूत बना लेते है तो इसको तोड़ना मुश्किल पड़ जाता है । यदि हमको पता चल जायें कि चिन्ता से डर का जन्म होता है और डर एक बहुत भयानक वस्तु है जो आपको मुर्त्यु का ग्रास बना सकती है!
उत्तम जैन (विद्रोही )

Tuesday 11 December 2018

विधानसभा चुनाव नतीजे कांग्रेस को मोका तो भाजपा को संदेश

अभी हाल मे पाँच विधानसभा चुनाव नतीजे कांग्रेस को मोका तो भाजपा को संदेश की द्रष्टि से देखना उचित होगा ! तीनों राज्यो राजस्थान , मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के चुनाव भाजपा व कांग्रेस के लिए मुछ की लड़ाई बने हुए थी ! ऊपरी तोर पर कयास भी यही था इस बार सत्ता विरोधी लहर काम करेगी ! मतदान के बाद सर्वेक्षणो मे भाजपा की स्थिति मजबूत लग रही थी ! भाजपा ने विशेष कर मध्यप्रदेश व राजस्थान मे अपना किला बचाने मे कोई कसर बाकी नहीं रखी वंही   छत्तीसगढ़  भाजपा को विश्वास था छत्तीसगढ़ की जनता मुख्यमंत्री रमण सिंग के कामकाज से लोग संतुष्ट है इसलिए वहा ज्यादा ज़ोर लगाने की जरूरत नहीं समझी ओर सबसे बड़ी पटखनी भाजपा को वंही से मिली ! इतनी बड़ी पराजय का अंदेशा शायद किसी को नहीं था !पिछले  लोकसभा चुनावो भाजपा  ने जो विजय का परचम लहराया था वह जीत भाजपा की नहीं थी वह विकास के सपनों की जीत थी आम जनता को  हमारे देश मे विकास के सपनों के रूप मे सिर्फ  नरेंद्र मोदी जी नजर आ रहे थे ओर जनता ने मोदी जी के नेतृत्व मे भाजपा को एतिहासिक विजय व समर्थन दिया ! मोदी जी ने काफी हद तक विकास भी किया मगर कुछ फेसले पर उनके होने वाले  परिणामो को नजर अंदाज कर के लिए गए न उसकी पूर्व तेयारी की गयी ओर आनन फानन मे फेसले ले लिए गए जिसके कुछ दुष्परिणाम भी सामने आए ! मोदी जी की विदेश नीति बेशक अच्छी रही विदेशो मे भारत की साख मे काफी हद तक बढ़ोतरी हुई ! इस चुनाव मे सबसे दिलचस्प नतीजे मध्यप्रदेश मे आए आखिरी समय तक बहुमत के पास पहुँचकर भाजपा कांग्रेस आगे पीछे चलती रही बहुत सी सीटो पर मामूली मतो का अंतर रहा बहुत से दिगज धराशाही हुए तो बहुत दिगज्ज मामूली अंतर से जीत पाये ! आखिरकार कांग्रेस बहुमत के निकट पहुँच पायी ! मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज चोहान काफी लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे मगर किसानो की अवेहलना व व्यापम घोटाला उनके लिए कठिन साबित हुआ हालांकि विधानसभा के नतीजे प्रायः लोकसभा की तस्वीर पेश नहीं करते पर आम चुनाव मे महज पाँच महीने बचे है इसलिए  राजस्थान , मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के चुनाव वंहा   की  जनता    मिजाज का संकेत तो देते  है
पूर्व मे गुजरात चुनावो मे भाजपा को चुनाव जीतने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ा इन सभी संकेतो पर अगर हम मंथन करे तो अब जनता न झुमले पसंद करती है न चुनावी वादे जनता को सिर्फ विकास , रोजगार चाहिए वर्तमान भाजपा सरकार को इन विधानसभा चुनावो ने साफ संकेत दिया है आज भी जनता को नरेंद्र मोदी जी से अपेक्षा है उन्हे आत्मवलोकन करने के लिए मोका दिया है की 2019 के चुनाव निकट है मंदिर मस्जिद , आरोप प्रत्यारोप की राजनीति से दूर रहकर विकास की ओर अग्रसर होना है ! हिंदुस्तान की जनता का शिक्षा का स्तर बढ़ा है शोशल मीडिया जब से सक्रिय हुआ ओर आम जनता उसका उपयोग करने लगी है मतदान अब रुपयो व शराब व प्रलोभन पर कम ओर अन्तर्मन की आवाज पर ज्यादा होता है ! जनता जागृत हुई है अगले 2019 आम चुनाव मे हमारे देश का   नेता उन्हे ही चुनेगी जो विकास की ओर अगसर होगा ! अब समय है दोनों मुख्य पार्टी सबक ले की सिर्फ भाषणबाजी से जीत का परचम नहीं लहरेगा आम जनता व किसानो के हित को देखते हुए विकास की ओर अग्रसर होना पड़ेगा ! कांग्रेस जीत का जश्न मनाने मे ही न लगी रहे उनके द्वारा किए गए वादे पूरे करने होंगे आम जनता की नब्ज टंटोलनी होगी की आम जनता क्या चाहती है सिर्फ इस जीत के आधार पर आम चुनाव मे मे सफलता मिल जाएगी इस सपने मे न रहे जनता ने मोका दिया है जनता की अपेक्षा व उसकी कसोटी पर खरा उतरना होगा ! आज भी जनता को मोदी जी से काफी अपेक्षा है मोदी सरकार स्वयम मंथन करे अपनी कमियो को सुधारे देश की अर्थव्यवस्था की दो मूल रीढ़ की हड्डी किसान व व्यापारियो के हित को देखते हुए अमूलचूक परिवर्तन करे ! सरल नीतीय बनाए अब सिर्फ कश्मीर मुद्दे , मंदिर मस्जिद मुद्दे , आरक्षण व झुमलों पर  सत्ता पर काबिज नहीं हो सकते यही  कांग्रेस को मोका तो भाजपा को संदेश है  अब देखो ऊंट किस करवट बेठता है  
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 
संपादक - विद्रोही आवाज