Saturday, 25 August 2018

भाई बहन का रिश्ता – रक्षाबंधन - उत्तम जैन ( विद्रोही )

 
  बहना बांधे
 भाई की कलाई पे
 प्रेम का धागा ।
 तोड़े न टूटे
 ऐसा है ये बंधन
 कच्चे धागे का ।
भाई बहन का रिश्ता प्यार भरा होता है इसको शब्दों में बयांन करना नामुमकिन है भाई और बहन का रिश्ता मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम होता है। भाई-बहन की लड़ाई के बीच भी प्यार छिपा होता है बड़ी बहन को तो दूसरी माँ भी कहा जाता है ! इस रिश्ते की मोहक अनुभूति को सघनता से अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, आत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। जो लंबी डगर पर चिलचिलाती प्रचंड धूप में हरे-भरे वृक्ष के समान खड़े हैं। रक्षाबंधन के शुभ पर्व पर बहनें अपने भाई से यह वचन चाहती हैं कि आने वाले‍ दिनों में किसी बहन के तन से वस्त्र न खींचा जाए फिर कोई बहन दहेज के लिए मारी ना जाए, फिर किसी बहन का अपहरण ना हो, फिर किसी बहन के चेहरे पर तेजाब न फेंका जाए। और फिर कोई बहन खाप के फैसले से सगे भाई के हाथों मौत के घाट उतारी ना जाए।यह त्योहार तभी सही मायनों में खूबसूरत होगा जब बहन का सम्मान और भाई का चरित्र दोनों कायम रहे। यह रेशमी धागा सिर्फ धागा नहीं है। राखी की इस महीन डोरी में विश्वास, सहारा और प्यार गुंफित हैं और कलाई पर बंधकर यह डोरी प्रतिदान में भी यही तीन अनुभूतियां चाहती हैं। राखी ऐसा त्यौहार है, जो सिर्फ भाई बहनों के लिए होता है. बहन जब भाई के कलाई पर राखी बाँधती है उस वक़्त भाई को भी और बहन को भी जाने कितने पुराने पल याद आते हैं. घरवाले जो आसपास मौजूद होते हैं, ऐसे मौके पर कुछ न कुछ टिप्पणी पीछे से करते रहते हैं, “कितना लड़ते थे ये दोनों बचपन में”, “और फिर एक दूसरे के लिए भी सब से लड़ लेते थे”, “ हमेशा साथ पढ़ना, साथ खेलना, साथ रहते थे ये”. ऐसे जिक्र, ऐसे किस्से बेसाख्ता ही निकल आते हैं घरवालों के मुहँ से. और राखी बाँधते वक़्त भाई के, बहन के आँखों में वो सारे खूबसूरत पल लड़ना, झगड़ना, प्यार दिखाना, रूठना, मनाना.. एक फिल्म की तरह चलने लगती हैं पैसा, उपहार, आभूषण, कपड़े तो कभी भी, किसी भी समय लिए-दिए जा सकते हैं लेकिन इन तीन मनोभावों के लेन-देन का तो यही एक पर्व है – रक्षाबंधन!भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।…राखी को बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उसकी लंबे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं वहीं भाई ताउम्र अपनी बहन की रक्षा करने और हर दुख में उसकी सहायता करने का वचन देते हैं।अब जब पारिवारिक रिश्तों का स्वरूप भी अब बदलता जा रहा है भाई-बहन को ही ले लीजिए, दोनों में झगड़ा ही अधिक होता है और वे एक-दूसरे की तकलीफों को समझते कम हैं ।आज वे अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते ज्यादा मिलते है लेकिन जब भाई को अपनी बहन की या बहन को अपनी भाई की जरूरत होती है तो वह मौजूद रहें ऐसी सम्भावना कम होती जा रही है..सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक जरूरतों के कारण आज बहुत से भाई अपनी बहन के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते ऐसे में रक्षाबंधन का दिन उन्हें फिर से एक बाद निकट लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन बढ़तीं महंगाई , रिश्तों के खोखलेपन और समय की कमी की बजह से बहुत कम भाई ही अपनी बहन के पास राखी बँधबाने जा पाते हों . सभी रिश्तों की तरह भाई बहन का रिश्ता भी पहले जैसा नहीं रहा लेकिन राखी का पर्व हम सबको सोचने के लिए मजबूर तो करता ही है कि सिर्फ उपहार और पैसों से किसी भी रिश्तें में जान नहीं डाली जा सकती। राखी के पर्व के माध्यम से भाई बहनों को एक दुसरे की जरूरतों को समझना होगा और एक दुसरे की दशा को समझते हुए उनकी भाबनाओं की क़द्र करके राखी की महत्ता को पहचानना होगा। अंत में मैं अपनी बात इन शब्दों से ख़त्म करना चाहूगां …
न स्वार्थ का लेप
न इच्छाओं का अवलंबन
है चट्टान सा मजबूत
भाई-बहन का बंधन
हम बड़े हो गए
अपनी-अपनी गृहस्थी
अपनी-अपनी जिम्मेदारी
पर भाई मेरे
राखी के दिन
व्यस्तताओं के बीच
कुछ पल चुराना
मेरे लिए
हम साथ बैठ
जीएँगे वह पल
जहाँ था न कोई छल….
उत्तम जैन (विद्रोही )
लेखक - संपादक - विद्रोही आवाज़ - जैन वाणी 

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