Wednesday 15 August 2018

हमारी उपलब्धि ... झख मारने में हम अव्वल

हमारी तरक्की मछली पालन यानी  हमारी सरकार  झख मारने में अव्वल आयी बधाई ...दु या मन की पीड़ा व्यक्त करू

  वर्तमान सरकार के शासन  में यह प्रमाणित हो गया है कि हम लोग व हमारी सरकार विश्व मे झख मारने में अव्वल हैं.. आप को झख मारना जैसे शब्द सुन कर यही लगा न कि यह क्या ऊत्तम विद्रोही सटीया गया इतनी घटिया भाषा बोल रहा है..क्यों कि मेरे शोशल मीडिया के मित्र  मुझे वैसे भी सरकार विरोधी मानते आए है तभी पप्पू का चमचा जैसा उदाहरण देते है यदा कदा पक्का कांग्रेसी जैसी उपमा भी प्रदान करते है मगर में तो एक छोटा सा लेखक हु  पत्रकार हु आज ही एक लेखक की पोस्ट देख झख मारने की बात पर कुछ जोड़तोड़ कर लिख दिया   जैसा मुख्य विषय मे मेने लिखा हमारी सरकार झख मारने में अव्वल आयी झख मारना सुन कर गंदे विचार मन मे आते हैं न.. मुझे भी पहले यह लगता था कि यह कोई घटिया शब्द है वैसे ही जैसे कि हम गुस्से ओर आवेश में आ कर किसी की माँ बहन के लिए बोलते हैं.. मगर एक सच जो है सो है आप इतने जल्दी मुझ पर आक्रोशित न हो...विचार पूरे पढ़ तो ले.....
पहले अकबर बीरबल की एक कहानी सुनाता हूं जो कि हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं.. एक दिन रानी ने बीरबल से पूछा कि अकबर बादशाह कहा है तो बीरबल बोले कि अकबर झख मारने गए हैं.. रानी को बीरबल की यह बात नागवार गुजरी ओर उन्होंने अकबर से बीरबल की शिकायत कर दी.. अकबर भी स्वयं के लिए झख मारने गए सुन कर आगबबूला हुए और बीरबल को अपने सामने तलब किया.. तो बीरबल बोले कि उन्होंने जो कहा है सच ही कहा है.. आप तो झख मारने ही गए थे.. यह सुन सभी दरबारियों के मुँह से ठहाके निकल गए.. अब तो अकबर ओर भी लाल पिला हो गया और बीरबल को खा जाने वाली नजरो से घूरने लगा.. बीरबल अकबर के अंदरूनी भाव समझ कर बोले कि बादशाह.. आप को गुस्सा करने की कोई जरूरत नही है.. संस्कृत में झख का मतलब मछली होता है और आप तालाब पर मछली मारने ही तो गए थे.. तो झख का मतलब मछली होता है.. यू तो सँस्कृत में झष का मतलब मछली होता है मगर भाषा की विकृति मनुष्य का स्वभाव है और कालांतर में झष झख में कब बदल गया पता ही नही चला.
       तो  आप समझ गए होंगे कि हम दुनिया मे झख मारने में सब से आगे है..जो हमारे प्रिय  देश के मुखिया ने लाल किले की प्राचीर से यह घोषणा की तो मैं चौक पड़ा.. हम आगे बढ़ रहे हैं और वो भी मछली मारने में.. हम दुनिया मे सब से प्रथम क्रमांक पर है वो भी मछली के उत्पादन में.. सरकार के नजरिये से यह बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है मगर मेरी नजर में यह उपलब्धि देश को शर्मसार करने वाली है.. यह बुद्ध और श्रीराम का देश है.. यह  भगवान महावीर का देश है..जंहा महात्मा गांधी जैसे अहिंसा प्रेमी को राष्ट्रपिता से नवाजा गया  यहाँ ऐसी सफलता दुखदायक है.. यहाँ अव्वल आना त्रासदी है.. मछली के साथ साथ हम मांस निर्यात में भी दुनिया मे सब से आगे है.. अहिंसक देश पर हत्यारा देश का तमगा लग गया है.
      शासन की कुछ नीतियां मेरी समझ से बाहर है.. एक तरफ वो इस देश को गांधी जी का देश कहती है और दूसरी तरफ मत्स्य पालन केंद्र.. कुक्कुट पालन केंद्र.. बकरी पालन केंद्र खोलने हेतु लोगो को प्रोत्साहित करती है.. क्या होता हैं इन पालन केंद्रों में.. पालन केंद्र कोई चुग्गा डालकर धर्म करने का केंद्र तो है नही 
जब इन्हें मारने की नीयत से ही योजना बन रही है तो पालन केंद्र जैसे भृमित करने वाले नाम रखने का क्या औचित्य..? सरकारी अनुदान से लोगो को पाप कार्य के लिए प्रेरित किया जा रहा है..  लोगो को हत्यारा बनाया जा रहा है.
         आखिर हम लोग इन बेहुदा ओर बकवास बातों में ही क्यो आगे है..? क्यो की इन कार्यो में कोई बहुत अधिक बुद्धि की जरूरत नही पड़ती इसलिए..! या इस मे कोई बहुत अधिक श्रम नही करना पड़ता इसलिए..? जो भी हो सच तो मुझे यही लगता है.. अरे तरक्की ही करनी है देश को तो वो तकनीकी के क्षेत्र में करे.. तरक्की ही करनी है तो विज्ञान में करे.. नये नये आविष्कार किये जायें मगर नही.. हम तो खून बहाने में आगे रहेंगे.. हम मूक लाचार जीवो की हत्या में कीर्तिमान रचेंगे.. धिक्कार है ऐसी सफलता पर.. लानत है ऐसे पुरुस्कारों पर.
           आझादी के पर्व पर देश को मछली मारने में अव्वल की उपलब्धि का सन्मान मिला यह सुन मैं दुःखी हु..  परेशान हु.. शायद मेरे बुद्धिजीवी मित्र भी दुखी होंगे। भारत देश यह कलंक कब धुलेंगा..? निकट भविष्य में यह कलंक ओर भी अधिक दागदार होंगा.. क्यो की नित्य नयी योजनाएं बन रही है कि कैसे नदियों में पानी की जगह लहू बहे.. कैसे ओर अधिक से अधिक पशुओं को मारा जाये कांटा जाये.. कैसे लोगो को अधिक से अधिक मांसाहार के लिए प्रेरित किया जाये.. कैसे  अहिंसामय जीवन शैली पर प्रहार किये जायें.. इस उपलब्धि पर मुझे तो नाज नही अब आप क्या सोचते है यह आप पर निर्भर है । अहिंसा परमो धर्म हमारा घोष था हिन्दू जैन   संस्कृति का अभिमान था । हिंदुस्तान की इस सफलता पर मुझे गर्व नही ।मेरे विचार एक लेखक की भावना में जोड़े हुए है
आपका - ऊत्तम जैन( विद्रोही )
मो - 8460783401
नॉट --उपरोक्त विचार अज्ञात लेखक के विचारों से प्रभावित होकर  लिखे गए है इसे राजनीति द्वेष से न लिया जाए
         

No comments:

Post a Comment