Thursday 3 August 2017

प्रेम .... जाल .... ( लघु कथा )

प्रेम .... जाल .... ( लघु कथा )
गुप्ता साहब की बिटिया अंजली बड़ी सुंदर थी पढ़ने मे भी काफी तेज थी गुप्ता साहब अपनी बिटिया अंजली के लिए एक अच्छा लड़का तलाश कर रहे थे एक दिन गुप्ता जी ने अंजली से कहा बेटा तेरे लिए एक लड़का देखा है वह इंजीनियर है अच्छे परिवार है अंजली ने तपाक से कहा मे
पापा ...अमित बहुत अच्छा है ...मैं उससे ही शादी करूंगी ....वरना !! ' गुप्ता साहब अंजली के ये शब्द सुनकर एक घडी को तो सन्न रह गए .फिर सामान्य होते हुए बोले -' ठीक है पर पहले मैं तुम्हारे साथ मिलकर उसकी परीक्षा लेना चाहता हूँ तभी होगा तुम्हारा विवाह अमित से ...कहो मंज़ूर है ?'अंजली चहकते हुए बोली -''हाँ मंज़ूर है मुझे ..अमित से अच्छा जीवन साथी कोई हो ही नहीं सकता .वो हर परीक्षा में सफल होगा ....आप नहीं जानते पापा अमित को !' अगले दिन कॉलेज में अंजली जब अमित से मिली तो उसका मुंह लटका हुआ था .अमित मुस्कुराते हुए बोला -'क्या बात है स्वीट हार्ट ...इतना उदास क्यों हो ....तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा .'' अंजली झुंझलाते हुए बोली -'अमित मजाक छोडो ....पापा ने हमारे विवाह के लिए इंकार कर दिया है ...अब क्या होगा ? अमित हवा में बात उडाता हुआ बोला -''होगा क्या ...हम घर से भाग जायेंगे और कोर्ट मैरिज कर वापस आ जायेंगें .'' अंजली उसे बीच में टोकते हुए बोली -''...पर इस सबके लिए तो पैसों की जरूरत होगी .क्या तुम मैनेज कर लोगे ?'' ''......ओह बस यही दिक्कत है ...मैं तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं ...हो सकता है घर से भागने के बाद हमें कही होटल में छिपकर रहना पड़े तुम ऐसा करो .तुम्हारे पास और तुम्हारे घर में जो कुछ भी चाँदी -सोना-नकदी तुम्हारे हाथ लगे तुम ले आना ...वैसे मैं भी कोशिश करूंगा ...कल को तुम घर से कहकर आना कि तुम कॉलेज जा रही हो और यहाँ से हम फुर्र हो जायेंगे ...सपनों को सच करने के लिए !'' अंजली भोली बनते हुए बोली -''पर इससे तो मेरी व् मेरे परिवार कि बहुत बदनामी होगी '' अमित लापरवाही के साथ बोला -''बदनामी .....वो तो होती रहती है ...तुम इसकी परवाह ..'' अमित इससे आगे कुछ कहता उससे पूर्व ही अंजली ने उसके गाल पर जोरदार तमाचा रसीद कर दिया .अंजली भड़कते हुयी बोली -''हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज़ तुझे ये तक परवाह नहीं जिससे तू प्यार करता है उसकी और उसके परिवार की समाज में बदनामी हो ....प्रेम का दावा करता है ....बदतमीज़ ये जान ले कि मैं वो अंधी प्रेमिका नहीं जो पिता की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ा कर ऐय्याशी करती फिरूं .कौन से सपने सच हो जायेंगे ....जब मेरे भाग जाने पर मेरे पिता जहर खाकर प्राण दे देंगें ! मैं अपने पिता की इज्ज़त नीलाम कर तेरे साथ भाग जाऊँगी तो समाज में और ससुराल में मेरी बड़ी इज्ज़त होगी ...वे अपने सिर माथे पर बैठायेंगें ....और सपनों की दुनिया इस समाज से कहीं इतर होगी ...हमें रहना तो इसी समाज में हैं ...घर से भागकर क्या आसमान में रहेंगें ? है कोई जवाब तेरे पास ?....पीछे से ताली की आवाज सुनकर अमित ने मुड़कर देखा तो पहचान न पाया .अंजली दौड़कर उनके पास चली गयी और आंसू पोछते हुए बोली -'पापा आप ठीक कह रहे थे ये प्रेम नहीं केवल जाल है जिसमे फंसकर मुझ जैसी हजारों लडकिया अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं !!'' गुप्ता जी व अंजली दोनों घर की ओर निकल पड़े ओर अमित ........
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )  

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