''चलो घर से भागकर शादी कर लेते हैं !''महेश के यह कहते ही संगीता का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.भावनाओं और क्रोध दोनों को संयमित करते हुए संगीता कड़े शब्दों में बोली ''वाह ! महेश क्या यही तरीका है अपने सपनों को पूरा करने का ?अगर मेरे माता-पिता समाज के उलाहने सह भी लेंगे तो क्या मैं खुद को कभी माफ़ कर पाऊँगी उन्हें धोखा देने के लिए और ....मेरा भाई ...वो तो जहर ही खा लेगा .'' ......''तो फिर वे मेरे और तुम्हारे विवाह को राजी क्यों नहीं होते ? महेश झुंझलाते हुए बोला ....''ये प्रश्न तो मैं भी तुम से कर सकती हूँ ...आखिर तुम्हारे माता-पिता क्यों तैयार नहीं हैं और ..........फिर तुम कैसे उनकी खिलाफत करकर ये विवाह करना चाहते हो?आखिर एक ऐसी लड़की को वे कभी ''बहु'' का सम्मान कैसे दे पाएंगे जो अपने माता-पिता की इज्जत को मिटटी में मिलाकर घर से भागी हो .'' संगीता के प्रश्न के उत्तर में महेश उदास होता हुआ बोला ''तो क्या अपनी प्रेम-कहानी का अंत समझूं ?''.....''नहीं अब तो यह कहानी शुरू हुई है .हमें न घर से भागना है और न घुटने टेकने हैं .हमें बस अपने परिवार से धोखा नहीं करना है .''आँखों से आश्वस्त करती संगीता ने अपना पर्स उठाया और महेश से विदा ली .अभी संगीता को गए एक घंटा ही हुआ था की महेश के मोबाईल पर उसकी कॉल आई .सुनकर महेश हक्का-बक्का रह गया .उसने पास खड़ी अपनी बाइक स्टार्ट की और संगीता के घर की ओर दौड़ा दी .संगीता के घर पहुँचते ही बाहर खड़ी एम्बुलेंस देखकर उसके हाथ-पैर सुन्न पड़ने लगे .संगीता को घर के अन्दर से उसके पिता व् भाई किसी तरह सहारा देकर एम्बुलेंस तक ला रहे थे .महेश ने बाइक वहीँ छोड़ी और उसी ओर बढ़ लिया .संगीता के करीब पहुँचते ही वो सबकी परवाह छोड़ कर उसे झंकझोरते हुए बोला ''संगीता ये तुमने क्या किया ?तुम तो किसी को धोखा नहीं देना चाहती थी फिर जहर खाकर मुझे क्यों धोखा दिया ?...संगीता थोडा होश में आते हुए बोली ....''महेश मैंने तो सबका मान रखना चाहा था ......पर...मेरे माता-पिता ने ही मुझे धोखा दे दिया ...ये मेरे मना करने पर भी मेरा रिश्ता कहीं ओर तय कर आये .....मैं उस नए बंधन को भी धोखे में नहीं रखना चाहती थी ...और ..इसीलिए ये जहर ......'''यह कहते -कहते संगीता निष्प्राण हो बुझ गयी
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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