Tuesday 22 August 2017

जीवन मे जहर भाग 1 अंक 3 गतांग से आगे

जीवन मे जहर भाग - 1 अंक 3
संतोष सभी को समझाते समझाते खुद नही समझ पाता कि इसका रास्ता क्या निकालू एक असमंजस  की स्थिति में संतोष मानसिक तनाव में रहता था । शांति के पीहर पक्ष के कुछ लोग उसे भी समझाते तो कभी संतोष खुद अपने ससुराल वालों से बात करता मगर शांति व संतोष के इस बंधन को सिर्फ दोनो को ही मिल बैठकर समझने की सलाह शांति के पीहर वाले भी देते । शांति की माँ दुर्गा देवी को शांति इकलौती पुत्री थी सभी माँ जैसे दुर्गा देवी भी शांति को बहुत प्यार करती थी । वैसे बेटी की शादी के बाद माँ का फर्ज यही होता है बेटी को सिर्फ प्यार के खातिर उसकी बात सुनकर अपने दामाद संतोष से प्यार से रहने की सलाह देनी चाहिए मगर दुर्गादेवी बेटी के अतिप्रेम से उसे सलाह न देकर बेटी के दुख का ही रोना रोती थी । शांति का एक भाई शांति की पक्ष लेता तो दो भाई शांति को खरी खोटी सुनाते ओर प्यार से रहने की सलाह भी देते मगर शांति थी कि किसी की नही सुनती ।।इधर ससुराल में शांति की सास इंदुदेवी का ओर शांति का आपसी प्रेम तो संतोष ने देखा नही सिर्फ देखा तो शांति व इंदुदेवी का फुला हुआ मुह । कभी संतोष अपनी माँ इंदुदेवी व शांति को अगर खुश देखता वैसे दोनो को हंसते हुए देखना ईद का चांद जैसा ही होता उस संतोष दिल ही दिल बड़ा खुश होता । संतोष अपने व्यावसायिक कार्य संम्पन कर के घर जाता दोनो के कोप रूपी चेहरे को देख दिन भर थकान और निराश कर देती ।
आगे पढ़ें 23 अगस्त को भाग 1 अंक 4
कथा लेखक - उत्तम विद्रोही ( जैन )

No comments:

Post a Comment