कल रक्षाबंधन के पूर्व एक वीडियो मेने देखा जिसमे एक भाई व बहन नाचते हुए
रक्षा सूत्र बांध रहे थे ! प्रथम द्रष्टि मे मेने मज़ाक समझ सूर्यज्योति
पाठशाला व्हट्स अप समूह मे डाल दिया ! उस वीडियो पर गुरुदेव सूर्यसागर जी
अपना मंतव्य दे चुके थे की किस तरफ हमारी संस्कृति का चीरहरण हो रहा है !
मेरा ध्यानकर्षण पाठशाला की सदस्या बहन रिंकू जी ने कराया की इस वीडियो पर
गुरुदेव ने आपति जताई है जब गहराई से वीडियो देखा मुझे खुद आभास हुआ केसे
हमारी संस्कृति का इस पवित्र त्योहार का चीरहरण हो रहा है ! किसी भी सभ्य
समाज के लिए बंधनों की अनिवार्यता को हमारे ऋषियों द्वारा हज़ारों वर्ष
पहले ही जान लिया गया था। बंधनों और वर्जनाओं से ही किसी समाज की सभ्यता और
संस्कृति का उत्थान होता है !
साधारणत: दुनिया का कोई भी प्राणी किसी प्रकार का भी बंधन स्वीकार नहीं करता। मानव जिस बात को बंधन समझता है वह तुरंत उसे काट डालने का प्रयास करता है। प्रेम ही एकमात्र ऐसा बंधन है जिसमें बँधने की इच्छा हर किसी की होती है। इस संदर्भ में राखी एक न्यारा और प्यारा बंधन है। भाई बहन के प्रेम को भारतीय समाज ने सबसे अधिक पवित्र माना है। इसीलिए रक्षा बंधन की सर्वव्यापकता को भाई बहन के परस्पर स्नेह के माध्यम से व्यक्त किया गया है। आज यह एक प्रतीक रूप में विशाल अर्थ ग्रहण कर चुका है। भाई बहन के प्रेम का ऐसा अनूठा उदाहरण विश्व में कहीं अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। प्रारंभ में मानव की इसी भावना को आधार मान कर हमारे मनीषियों ने रक्षा बंधन जैसे त्योहार की कल्पना की होगी। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें बंधन को न केवल मान्यता मिली बल्कि सर्वव्यापकता भी प्राप्त हुई।
सदियों से श्रावण मास की शुक्ल पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस पर्व की भारत के जन-जन को प्रतीक्षा रहती है। पर्व का अभिप्राय ही यह है जो किसी को किसी से बांध दे। इस प्रकार रक्षा बंधन पर्व न हो कर महा पर्व है। यह अपने भीतर सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिकता के अनेक तत्व समेटे हुए है।
रक्षा बंधन का पर्व स्नेह का, प्रेम का और परंपराओं की रक्षा का पर्व है। रक्षा की प्रतिबद्धता का पर्व है। यह भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ा पर्व है। राखी के धागों का जो भाव है, वह जिस विचार के प्रतीक हैं वे भाव जीवन को बहुत ऊंचा बनाने वाले होते हैं। यही मानव और पशु में भेद को रेखांकित भी करते हैं। मनुष्य किसी उच्च विचार को जीवन में धारण करके बहुत उन्नति कर सकता है।
रक्षा बंधन आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर हर कोई किसी न किसी बंधन में बँधने के लिए आतुर दिखाई देता है। गुरू शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरू को। प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परंपरा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए परस्पर एक दूसरे को अपने बंधन में बाँधते हैं। इस प्रकार रक्षा बंधन एक ऐसा बंधन है जहां एक धागा पूरे कर्तव्य को निष्ठा की परिधि में बंध लेता है।
वास्तव में रक्षाबंधन हमारी संस्कृति का एक ऐसा त्योहार है जिसमें केवल भाई बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज के पारस्परिक संबंधों को दृढ़ता देने की पावन भावना निहित है। रक्षा बंधन के माध्यम से एक भयमुक्त समाज की संरचना करना ही हमारे पूर्वजों का अभीष्ट रहा होगा। इसीलिए रक्षा बंधन को हमारी जीवन शैली के साथ जोड़ दिया गया। हमने जिस किसी को भी प्यार अथवा आदर दिया उसे रक्षा के सूत्र में बांध लिया अथवा स्वयं बंध गए। हमने जिस पेड़ को पूजा उसके चारों ओर कच्चे सूत के धागे के अटूट बंधन बांध दिए। देवी देवताओं की देहरी पर धागे बांध कर उनके प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त की और अपने आप को उनके साथ जोड़ लिया। वृक्षों पर धागा लपेटना क्या रक्षा बंधन नहीं है? क्या इस के माध्यम से हम यह व्यक्त नहीं करते कि वृक्ष हमारे रक्षक हों। यह भी सत्य है कि वृक्ष हमारी रक्षा तभी कर पाएँगे जब हम उनकी रक्षा करेंगे। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अधिकतर उन्हीं पेड़ों पर धागा बांधने की परंपरा है जो हमारे स्वास्थ्य की और पर्यावरण की रक्षा के लिए अधिक उपयोगी रहे हैं।
तीर्थों, नदियों और पहाड़ों की परिक्रमा क्या इसी बंधन का व्यापक रूप नहीं है? जहां धागा बांधना संभव नहीं दिखा वहां हमने अपनी भावनाओं की विशालता का आश्रय लिया है। यही कारण है कि हमने नदियों में मां और पर्वतों में देवत्व के दर्शन किए। हमारे बंधन की यही परंपरा हमें वसुधैव कुटुंबकम की ऊंचाई तक ले गई। हमने अपने आप को पूरे विश्व के साथ बांध लिया, कहीं कोई भेद भाव नहीं। इतनी अधिक व्यापकता विश्व के किसी अन्य धर्म अथवा समाज में दिखाई नहीं देती। इतिहास गवाह है कि रक्षा बंधन के कोमल धागों ने वज्र से भी अधिक शक्ति का परिचय दिया है। मज़बूत से मज़बूत तलवार इस बंधन को काटने में असफल रही है। इस प्रकार राखी धागों का एक ऐसा अटूट बंधन है जिसने भारतीय संस्कृति को एक अलग पहचान दी है। बंधन की यह शैली भारतीय समाज को अन्य समाजों से न केवल अलग करती है बल्कि वैशिष्ट्य भी प्रदान करती है। रक्षाबंधन पर्व की सभी को शुभकामना
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
साधारणत: दुनिया का कोई भी प्राणी किसी प्रकार का भी बंधन स्वीकार नहीं करता। मानव जिस बात को बंधन समझता है वह तुरंत उसे काट डालने का प्रयास करता है। प्रेम ही एकमात्र ऐसा बंधन है जिसमें बँधने की इच्छा हर किसी की होती है। इस संदर्भ में राखी एक न्यारा और प्यारा बंधन है। भाई बहन के प्रेम को भारतीय समाज ने सबसे अधिक पवित्र माना है। इसीलिए रक्षा बंधन की सर्वव्यापकता को भाई बहन के परस्पर स्नेह के माध्यम से व्यक्त किया गया है। आज यह एक प्रतीक रूप में विशाल अर्थ ग्रहण कर चुका है। भाई बहन के प्रेम का ऐसा अनूठा उदाहरण विश्व में कहीं अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। प्रारंभ में मानव की इसी भावना को आधार मान कर हमारे मनीषियों ने रक्षा बंधन जैसे त्योहार की कल्पना की होगी। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें बंधन को न केवल मान्यता मिली बल्कि सर्वव्यापकता भी प्राप्त हुई।
सदियों से श्रावण मास की शुक्ल पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस पर्व की भारत के जन-जन को प्रतीक्षा रहती है। पर्व का अभिप्राय ही यह है जो किसी को किसी से बांध दे। इस प्रकार रक्षा बंधन पर्व न हो कर महा पर्व है। यह अपने भीतर सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिकता के अनेक तत्व समेटे हुए है।
रक्षा बंधन का पर्व स्नेह का, प्रेम का और परंपराओं की रक्षा का पर्व है। रक्षा की प्रतिबद्धता का पर्व है। यह भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ा पर्व है। राखी के धागों का जो भाव है, वह जिस विचार के प्रतीक हैं वे भाव जीवन को बहुत ऊंचा बनाने वाले होते हैं। यही मानव और पशु में भेद को रेखांकित भी करते हैं। मनुष्य किसी उच्च विचार को जीवन में धारण करके बहुत उन्नति कर सकता है।
रक्षा बंधन आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर हर कोई किसी न किसी बंधन में बँधने के लिए आतुर दिखाई देता है। गुरू शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरू को। प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परंपरा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए परस्पर एक दूसरे को अपने बंधन में बाँधते हैं। इस प्रकार रक्षा बंधन एक ऐसा बंधन है जहां एक धागा पूरे कर्तव्य को निष्ठा की परिधि में बंध लेता है।
वास्तव में रक्षाबंधन हमारी संस्कृति का एक ऐसा त्योहार है जिसमें केवल भाई बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज के पारस्परिक संबंधों को दृढ़ता देने की पावन भावना निहित है। रक्षा बंधन के माध्यम से एक भयमुक्त समाज की संरचना करना ही हमारे पूर्वजों का अभीष्ट रहा होगा। इसीलिए रक्षा बंधन को हमारी जीवन शैली के साथ जोड़ दिया गया। हमने जिस किसी को भी प्यार अथवा आदर दिया उसे रक्षा के सूत्र में बांध लिया अथवा स्वयं बंध गए। हमने जिस पेड़ को पूजा उसके चारों ओर कच्चे सूत के धागे के अटूट बंधन बांध दिए। देवी देवताओं की देहरी पर धागे बांध कर उनके प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त की और अपने आप को उनके साथ जोड़ लिया। वृक्षों पर धागा लपेटना क्या रक्षा बंधन नहीं है? क्या इस के माध्यम से हम यह व्यक्त नहीं करते कि वृक्ष हमारे रक्षक हों। यह भी सत्य है कि वृक्ष हमारी रक्षा तभी कर पाएँगे जब हम उनकी रक्षा करेंगे। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अधिकतर उन्हीं पेड़ों पर धागा बांधने की परंपरा है जो हमारे स्वास्थ्य की और पर्यावरण की रक्षा के लिए अधिक उपयोगी रहे हैं।
तीर्थों, नदियों और पहाड़ों की परिक्रमा क्या इसी बंधन का व्यापक रूप नहीं है? जहां धागा बांधना संभव नहीं दिखा वहां हमने अपनी भावनाओं की विशालता का आश्रय लिया है। यही कारण है कि हमने नदियों में मां और पर्वतों में देवत्व के दर्शन किए। हमारे बंधन की यही परंपरा हमें वसुधैव कुटुंबकम की ऊंचाई तक ले गई। हमने अपने आप को पूरे विश्व के साथ बांध लिया, कहीं कोई भेद भाव नहीं। इतनी अधिक व्यापकता विश्व के किसी अन्य धर्म अथवा समाज में दिखाई नहीं देती। इतिहास गवाह है कि रक्षा बंधन के कोमल धागों ने वज्र से भी अधिक शक्ति का परिचय दिया है। मज़बूत से मज़बूत तलवार इस बंधन को काटने में असफल रही है। इस प्रकार राखी धागों का एक ऐसा अटूट बंधन है जिसने भारतीय संस्कृति को एक अलग पहचान दी है। बंधन की यह शैली भारतीय समाज को अन्य समाजों से न केवल अलग करती है बल्कि वैशिष्ट्य भी प्रदान करती है। रक्षाबंधन पर्व की सभी को शुभकामना
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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