आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोगों के पास समय कम है। यह मेने स्वयं अनुभव किया है ! दिनभर अपने व्यवसाय मे व्यस्त रहना ! एक समाचार पत्र का प्रबंधन भी करना ओर फिर लेखन का शोक इतने कार्य करने के बाद कुछ देर फेसबूक व्हट्स अप भी देखना होता है ! अपने पत्नी बच्चो व माता पिता के लिए कहा समय निकाल पाते है ! कटु सत्य है की यह एक पारिवारिक अन्याय भी है पर क्या करे सत्य को झुठला नही सकता ! यह सिर्फ मेरा ही नही शायद मेरा अधिकतर पाठको ओर मित्रो का यही हाल है
इसके कारण रिश्तों की गर्मजोशी भी कम होती जा रही है। लोग आजकल अपने आपमें इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें आसपास अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों तक का एहसास नहीं रहता ! अकसर हम व्यस्तता के कारण पारिवारिक जिंदगी को प्राथमिकता देना बंद कर देते हैं !
वेसे आजकल व्यस्तता कार्य से ज्यादा व्हट्स अप , फेसबूक पर ज्यादा रहती है ! जो कलह पैदा करती है। सच्ची व निश्चल दोस्ती में हम जीवन का असीम सुख व शांति पा सकते हैं। जीवन संघर्ष में व्यस्त होने पर भी कुछ घड़ियाँ सब कुछ भूलकर हम मित्रों के साथ बिताकर ही जीवन का आनंद बटोर सकते हैं। यही मित्र जीवन पर्यंत हमारे लिए भावनात्मक सहारा व सुरक्षा का एहसास होते हैं। अतः हम सच्चे दोस्त बनाने का प्रयास करे व स्वयं भी अच्छे व सच्चे दोस्त साबित हो तभी दोस्ती का दर्जा तमाम रिश्तों में ऊँचा कहा जा सकता है। तीन-चार वर्ष की उम्र में जब बच्चा माँ की गोद से उतर बाहरी दुनिया में प्रवेश करता है तब हम उम्र दोस्त ही उसके सुरक्षा-कवच होते हैं। उन्हीं में वह सुरक्षित अनुभव करते हुए सहज रूप से संसार में प्रवेश करता है। वह निश्चल दोस्त पड़ोसी हो सकता है या फिर विद्यालय का कोई साथी। बचपन की दोस्ती रबर, पेंसिल, चॉकलेट या खिलौने के आदान-प्रदान से प्रारंभ होती है व यहीं से व्यक्ति चीजों को 'शेयर' करने की, दूसरों के काम आ सकने की व दूसरों के लिए कुछ कर सकने की शिक्षा नैसर्गिक रूप से पाता है। मनुष्य सांसारिक जीवन मे जन्म के साथ ही अनेक रिश्तों के बंधन में बंध जाता है और माँ-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी जैसे अनेक रिश्तों को जिवंत करता है। इन्ही रिश्तों के ताने-बाने से ही परिवार का निर्माण होता है। कई परिवार मिलकर समाज बनाते हैं और अनेक समाज सुमधुर रिश्तों की परंपरा को आगे बढाते हुए देश का आगाज करते हैं। सभी रिश्तों का आधार संवेदना होता है,अर्थात सम और वेदना का यानि की सुख-दुख का मिलाजुला रूप जो प्रत्येक मानव को धूप - छाँव की भावनाओं से सरोबार कर देते हैं। रक्त सम्बंधी रिश्ते तो जन्म लेते ही मनुष्य के साथ स्वतः ही जुङ जाते हैं। परन्तु कुछ रिश्ते समय के साथ अपने अस्तित्व का एहसास कराते हैं। दोस्त हो या पङौसी, सहपाठी हो या सहर्कमी तो कहीं गुरू-शिष्य का रिश्ता। रिश्तों की सरिता में सभी भावनाओं और आपसी प्रेम की धारा में बहते हैं। अपनेपन की यही धारा इंसान के जीवन को सबल और यथार्त बनाती है,वरना अकेले इंसान का जीवित रहना भी संभव नही है। सुमधुर रिश्ते ही इंसानियत के रिश्ते का शंखनाद करते है इंसानी दुनिया में एक दूसरे के साथ जुङाव का एहसास ही रिश्ता है, बस उसका नाम अलग-अलग होता है। समय के साथ एक वृक्ष की तरह रिश्तों को भी संयम,सहिष्णुता तथा आत्मियता रूपी खाद पानी की आवश्यकता होती है। परन्तु आज की आधुनिक शैली में तेज रफ्तार से दौङती जिंदगी में बहुमुल्य रिश्ते कहीं पीछे छुटते जा रहे हैं।स्वयं के अनुभव की वकालत करने वाले लोगों के लिए रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है।उनके लिए तो सबसे बड़ा रुपया है किसी भी रिश्ते में धूप-छाँव का होना सहज प्रक्रिया है किन्तु कुछ रिश्ते तो बरसाती मेंढक की तरह होते हैं, वो तभी तक आपसे रिश्ता रखते हैं जबतक उनको आपसे काम है या आपके पास पैसा है। उनकी डिक्शनरी में भावनाओं और संवेदनाओं जैसा कोई शब्द नही होता। ऐसे रिश्ते मतलब निकल जाने पर इसतरह गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सर से सिंग। परन्तु कुछ लोग अनजाने में ही इस तरह के रिश्तों से इस तरह जुङ जाते हैं कि उसके टूटने पर अवसाद में भी चले जाते हैं। कुछ लोग रिश्तों की अनबन को अपने मन में ऐसे बसा लेते हैं जैसे बहुमुल्य पदार्थ हो। इंसानी प्रवृत्ति होती है कि मनुष्य,रिश्तों की खटास और पीढा को अपने जेहन में रखता है और उसका पोषण करता है।
जिसका मनुष्य के स्वास्थ पर बुरा असर पङता है। इस तरह की नकारात्मक यादें तनाव बढाती हैं। जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को कम करता है। परिणाम स्वरूप मनुष्य कई बिमारियों से ग्रसित हो जाता है। युवावर्ग को खासतौर से ऐसे रिश्तों से परहेज करना चाहिए जो अकेलेपन और स्वार्थ भावनाओं की बुनियाद पर बनते हैं क्योंकि ऐसे रिश्ते दुःख और तनाव के साथ कुंठा को भी जन्म देते है ! जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नही है, पर जो रिश्ते हैं उनमे जीवन होना जरूरी है रिश्तों का जिक्र हो और पति-पत्नी के रिश्तों की बात न हो ये संभव नही है क्योंकि ये रिश्ता तो पूरे परिवार की मधुरता का आधार होता है। इस रिश्ते की मिठास और खटास दोनो का ही असर बच्चों पर पङता है। कई बार ऐसा होता है कि, छोटी-छोटी नासमझी रिश्ते को कसैला बना देती है। जबकि पति-पत्नी का रिश्ता एक नाजुक पक्षी की तरह अति संवेदनशील होता है। जिसे अगर जोर से पकङो तो मर जाता है,धीरे से पकङो अर्थात उपेक्षित करो तो दूर हो जाता है। लेकिन यदि प्यार और विश्वास से पकङो तो उम्रभर साथ रहता है।कई बार आपसी रिश्ते जरा सी अनबन और झुठे अंहकार की वजह से क्रोध की अग्नी में स्वाह हो जाते हैं।
रिश्तों से ज्यादा उम्मीदें और नासमझी से हम में से कुछ लोग अपने रिश्तेदारों से बात करना बंद कर देते हैं। जिससे दूरियां इतनी बढ जाती है कि हमारे अपने हम सबसे इतनी दूर आसमानी सितारों में विलीन हो जाते हैं कि हम चाहकर भी उन्हे धरातल पर नही ला सकतेकिसी ने बहुत सही कहा हैः- "यदि आपको किसी के साथ उम्रभर रिश्ता निभाना है तो, अपने दिल में एक कब्रिस्तान बना लेना चाहिए। जहाँ सामने वाले की गलतियों को दफनाया जा सके।" कोई भी रिश्ता आपसी समझदारी और निःस्वार्थ भावना के साथ परस्पर प्रेम से ही कामयाब होता है। यदि रिश्तों आपसी सौहार्द न मिटने वाले एहसास की तरह होता है तो,छोटी सी जिंदगी भी लंबी हो जाती है। इंसानियत का रिश्ता यदि खुशहाल होगा तो देश में अमन-चैन तथा भाई-चारे की फिजा महकने लगेगी। विश्वास और अपनेपन की मिठास से रिश्तों के महत्व को आज भी जीवित रखा जा सकता है।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज़
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