Wednesday, 19 April 2017

मेरा देश महान - जहा है सो मे अस्सी बेईमान


हमारे देश में भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जिससे हर भारतीय का सामना जरूर होता है.ये एक राष्ट्रीय महामारी है जिसका कारगर इलाज़ अभी तक कोई नेता कोई समाज सेवी या कोई अधिकारी भी नहीं निकाल पाया है.समाज सेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में २०११ में भारत ने एक बड़ा भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन देखा लेकिन उसका परिणाम भी ज्यादा उत्साहजनक नहीं निकला.इस भ्रष्टाचार रुपी समुन्द्र के मंथन से जन लोकपाल नामक अमृत निकला जो की संसदीय कमेटियों में ही फंसा पड़ा है और जनता उसका आनंद लेने का अभी तक इंतज़ार कर रही है.इस सागर मंथन से अरविन्द केजरीवाल और उसके गणो के रूप में विष भी निकला जिसे दिल्ली की जनता ने आत्मसात कर लिया.
पिछले दिनों सरकार ने एक आंकड़ा निकाला कि तीन वर्षो में मोदी सरकार ने १.३७ लाख करोड़ की टैक्सचोरी पकड़ी है और सरकार अभी बेनामी सम्पति वालो पर भी ठोस कार्यवाई शुरू करने वाली है.ये आंकड़ा आप स्वयं देख सकते है कि कितना बड़ा है और कितना बड़ा होने वाला है.अभी सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओ जो कि भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात है उन पर कोई ठोस कार्यवाई नहीं की है ना ही कोई प्रभावी कार्यवाई विदेशो में कला धन जमा करने वालो पर हुई है. नोटबंदी के आकड़े भी इसमें जुड़ने है जिसकी रिपोर्ट सरकार ने अभी तक सार्वजनिक नहीं की है.
भ्रष्टाचार आज इस कदर हमारे देश में फ़ैल चूका है कि ये कहावत बन गयी है कि ईमानदार वही है जिसको बेईमानी करने का मौका नहीं मिला.जिसको भी मौका मिला वो चूका नहीं.सरकारी नौकरी का जुनून आम जनता में केवल इसी लिए हावी है कि कोई भी पद हो,कोई भी विभाग हो लड़का ऊपरी कमा ही लेगा.सरकारी नौकरी के लिए पद अनुसार लोग रिश्वत भी दे रहे है और उसी लड़के से ये उम्मीद भी करते है कि वो अपना काम ईमानदारीपूर्वक करेगा.हमारे देश में रिश्वत लेने से पाप नहीं लगता लेकिन प्याज और लहसुन खाने से जरूर लगता है.महाभारत में एक प्रसंग में भीष्म पितामह से कोई पूछता है कि जब कौरव सभा में द्रौपदी का अपमान हो रहा था तो भीष्म पितामह ने विरोध क्यों नहीं किया? तब भीष्म पितामह ने उत्तर दिया कि मैं पापी का अन्न ग्रहण कर रहा था जिससे मेरी नैतिकता क्षीण हो गयी गयी थी.ठीक इसी तरह आज धीरे धीरे ये अधिकतर भारतीयों में फ़ैल रहा है.भ्रष्टाचार का नैतिक विरोध इसी लिए क्षीण पड़ता जा रहा है और भ्रष्टाचार भारत का राष्ट्रीय चरित्र बनता जा रहा है.
हम सरकार से भ्रष्टाचार रुपी राक्षस पर प्रभावी कार्यवाई की उम्मीद कर रहे है लेकिन हमें ये समझाना होगा की भ्रष्टाचार करने वाले आप के और हमारे बीच से ही आते है चाहे वो नेता हो,अधिकारी हो या ठेकेदार हो.हमें अपने बच्चो को नैतिकता का पाठ पढ़ना होगा तथा अपनी भी नैतिकता का स्तर ऊँचा रखना होगा.देश के नागरिको के नैतिकता का स्तर अगर ऊँचा होगा तो देश की कई तरह की समस्याओ का समाधान हो जायेगा.कानून द्वारा सख्त सजा को प्रावधान भी पूर्णतया प्रभावी नहीं होगा क्युकि कई देशो में भ्रष्टाचार करने पर मौत की सजा दी जाती है लेकिन उन देशो में भी भ्रष्टाचार पूर्णता समाप्त नहीं हुवा है.
ये समस्या इतनी विकराल है कि ९० के दशक में हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गाँधी जी ने कहा था कि केंद्र से भेजे जाने वाले हर रूपये में से केवल १७ पैसा ही आम आदमी तक पहुंच पा रहा है.और आज भी इस आकड़े में ज्यादा सुधार नहीं है.अब देखना है कि हमारा समाज और देश की सरकार हमारी अगली पीढ़ियों को इस महामारी से बचाने के लिए क्या उपाय करती है? इन परिस्थितियों को देखते हुवे नाना पाटेकर साहब का एक फ़िल्मी डायलॉग याद आता “सौ में अस्सी बेईमान फिर भी मेरा देश महान “
उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

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