Sunday 19 November 2017

नोटबंदी व जीएसटी ओर गुजरात चुनाव - व्यापारी वर्ग की परीक्षा

नोटबंदी व जीएसटी के बाद परेशान हुए व्यापारी वर्ग अगर सूरत की बात कहु जीएसटी के बाद गुजरात की आर्थिक राजधानी  जो सिल्क सिटी व हीरा बाजार जंहा का अरबों रुपए का कारोबार ठप सा पड़ गया ! टेक्सटाइल मार्केट मे सबसे ज्यादा राजस्थानी व्यापारी , व हिन्दी भाषी जो लोकसभा चुनावो मे मोदी जी के समर्थन मे जोरों शोरों से खड़ा हुआ था ! जीएसटी के समय व्यापारी वर्ग की नहीं सुनी गयी मजबूरन आंदोलन की राह पकड़ी सबसे बड़ी बात इस आंदोलन मे इक्का दुक्का व्यापारी नेता जो किसी न किसी रूप से भाजपा से जुड़े हुए थे ! भूमिगत जेसे ही थे क्यू की या तो हो सकता है उन पर कोई राजनीतिक दबाव था या उन्हे अपना राजनीतिक केरियर खराब होने की आशंका उस मुश्किल की घड़ी मे आंदोलन की बागडोर संभाली युवा व्यापारीयो ने युवा ब्रिगेड बनाकर तीव्र आंदोलन किया भले अपनी बात युवा ब्रिगेड सरकार तक ठीक तरीके से नहीं पहुचा सकी उसका कारण साफ था स्थानीय भाजपा नेताओ ने जितना सहकार देना चाहिए उतना नहीं दिया ! युवा व सभी व्यापारी अपरोक्ष रूप से भाजपा की नीतियो के विरुद्ध हो गए ! एक ही आवाज उठती थी सूरत से अगले विधानसभा चुनावो मे व्यापारी वर्ग से कोई प्रतिनिधि को टिकिट मिले ओर वह चुनकर जाए जिससे व्यापारी वर्ग की समस्या सरकार तक ले जा सके ! सबसे ज्यादा व्यापारी वर्ग मजूरा विधानसभा क्षेत्र मे है भाजपा ने पूर्व पूर्व विधायक युवा श्री हर्ष सिघवी को  एक बार पुनः टिकिट दिया ! वेसे श्री हर्ष सिंघवी के कार्यकाल पर विकास की तरफ नजर डाली जाए तो सराहनिय कार्य किए है मगर इस बार कांग्रेस ने व्यापारी वर्ग से श्री अशोक कोठारी को टिकिट दिया है !                                आज परीक्षा गुजरात के उस व्यापारी वर्ग की है कि वो अपना वोट किसे देता है। उसे जो पूरे देश में अन्तर्राज्यीय व्यापार और टैक्सेशन की प्रक्रिया को सुगम तथा सरल बनाने की कोशिश और सुधार करते हुए अपने काम के आधार पर वोट मांग रहा है या फिर उसे जिसने अभी तक देश में तो क्या अपने संसदीय क्षेत्र तक में इतने सालों तक कोई काम नहीं किया, लेकिन अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्दी द्वारा किए गए कामों में कमियाँ निकालते हुए समर्थन मांग रहे हैं।
आज पूरे देश की नजर गुजरात चुनाव पर टिकी हुई है क्यू की यह चुनाव एक नायक मोदी जी की अग्नि परीक्षा है ! गुजरात जैसे राज्य का विधानसभा चुनाव इस समय देश भर के लिए सबसे चर्चित मुद्दा बना हुआ है। विपक्ष यानी कांग्रेस गुजरात मे बेशाखी के सहारे पूरा दम खम लगा रही है ! राहुल गांधी राज्य में जिस प्रकार, जिग्नेश मेवानी, अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल के साथ मिलकर विकास को पागल करार देते हुए जाति आधारित राजनीति करने में लगे हैं, उससे  यह कहना गलत नहीं होगा कि असली परीक्षा मोदी की नहीं गुजरात के लोगों की है। परीक्षा तो हर एक गुजराती व गुजरात प्रदेश मे रहने वालो की है कि वो अपना होने वाला नेता किसे चुनता है।

जिस प्रकार विकास को पागल करार देते है आखिर इन जैसे लोगों को नेता कौन बनाता है, राजनैतिक दल या फिर जनता ? देश पहले भी ऐसे ही जन आन्दोलनों से लालू और केजरीवाल जैसे नेताओं का निर्माण देख चुका है। इसलिए  विकास के सहारे भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए वोट मांगने वाले को या फिर जाति के आधार पर गुजराती समाज को बांटकर किसी जिग्नेश, हार्दिक या फिर अल्पेश नाम की बैसाखियों के सहारे वोट मांगने वाले को। 
परीक्षा तो उस पाटीदार समाज की भी है, जिसका एक गौरवशाली अतीत रहा है, जो शुरू से ही मेहनतकश रहा है। जिसने देश को सरदार वल्लभ भाई पटेल, शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति लाने वाले माननीय केशवभाई पटेल, लगातार 31 घंटों तक ड्रम बजाकर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली एक 23 वर्षीय युवती  सृष्टि पाटीदार, विश्व के मानचित्र पर देश का नाम ऊँचा करने वाली ऐसी ही अनेक विभूतियाँ देकर देश की प्रगति में अपना योगदान दिया है।
मगर आज वो किसका साथ चुनते हैं, उसका जो उन्हें स्वावलंबी बनाकर आगे लेकर जाना चाहता है या फिर उसका जो उन्हें पिछड़ी जातियों में शामिल करने और आरक्षण के नाम पर एक हिंसक आन्दोलन का आगाज करते हुए कहता है  “यह एक सामाजिक आंदोलन है जिसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है”। मगर पहले ही चुनावों में पाटीदार समाज के अपने फौलोअरस को वोट बैंक से अधिक कुछ नहीं समझते हुए कांग्रेस से हाथ मिलाकर “अपने राजनैतिक कॅरियर” की शुरुआत करके अपनी महत्वाकांक्षाओं  को पूरा करने की कोशिश में लग जाता है। ओर स्वयं संगठन के कनवीनर मे राजनीतिक महत्वाकांशा जागृत हो जाती है ! संगठन का हित सोचे बिना कोंग्रेस के टिकिट पर चुनाव लड़ने को तेयार हो जाते है !   
परीक्षा तो गुजरात की जनता की यह भी है कि वह राहुल से इस प्रश्न का जवाब मांगे कि कांग्रेस के पास ऐसा कौन सा जादुई फार्मूला है, जिससे कुछ समय पहले तक अलग-अलग विचारधाराओं का नेतृत्व करने वाले हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश तीनों को वो अपने साथ मिलाने की क्षमता रखती है? क्योंकि जहाँ एक तरफ हार्दिक का मुद्दा ओबीसी कोटे में आरक्षण का है, वहीं दूसरी तरफ अल्पेश ओबीसी कोटे में किसी दूसरी जाति को आरक्षण देने के खिलाफ हैं। वहीं, जिग्नेश दलित उत्पीड़न रोकने के लिए जिस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, वो उन्हीं जातियों के विरुद्ध है जिनका नेतृत्व हार्दिक और अल्पेश कर रहे हैं।
यह तो समय ही बताएगा कि गुजरात का वोटर अपनी इस परीक्षा में कितना विजयी होता है और राजनैतिक स्वार्थों से उपजी इस एकता के पीछे का सच समझ पाता है कि नहीं। क्योंकि आज पूरे देश में  जब हर जगह पारदर्शिता का माहौल बन रहा है, तो देश को राजनीति में पारदर्शिता का आज भी इंतजार है। आखिर राहुल गांधी और हार्दिक पटेल की मीटिंग्‍स में इतनी गोपनीयता क्यों बरती गई कि सीसीटीवी फुटेज  सामने आने के बावजूद  इन मुलाकातों से इनकार करते रहे?
आज कांग्रेस के पास  जीएसटी और नोटबंदी की कमियों को गिनाने के अलावा कोई भी न तो मुद्दा है और न ही कोई भविष्य की योजना। अपनी इस कमी को जातियों और आरक्षण के पीछे छिपाने की रणनीति अपनाकर राहुल और कांग्रेस दोनों ही गुजरात को कहीं बिहार समझने की भूल तो नहीं कर रहे? जहाँ बिहार को नेताओं के स्वार्थ ने जातिगत राजनीति से कभी भी उठने नहीं दिया, वहाँ गुजरात के लोगों  को मोदी ने 2001  से लगातार जातियों को परे कर विकास के मुद्दे पर एक रखा।
आज गुजरात तो क्या पूरे देश में मोदी का कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि किसी समय देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी रही कांग्रेस के राहुल गांधी तो ‘अपने जवाबों के सवाल’ में ही उलझे हैं और शायद गुजरात की जनता भी इस बात को जानती है कि असली परीक्षा उनकी ही है। क्योंकि आने वाले समय में उनके द्वारा दिया गया जवाब केवल गुजरात ही नहीं, बल्कि 2019 में देश का भविष्य तय करने में भी निर्णायक सिद्ध होगा।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 
संपादक - लेखक 
विद्रोही आवाज 
मो - 8460783401 

No comments:

Post a Comment