मित्रों, मिर्जा ग़ालिब साहब की यह लाइन एक बार पढ़ा था बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना. सच कितने दूरदर्शी थे ग़ालिब साहब .....
मित्रों, अस्तित्ववाद कहता है कि हम जीवनभर अप्रामाणिक जीवन जीते हैं. हम बनना कुछ और चाहते हैं लेकिन बनते कुछ और हैं,हम करना कुछ और चाहते हैं लेकिन करते कुछ और हैं. जेसे मुझे ही देख लीजिये सोचा था पढ़ लिख कर कोई प्रशासनिक अफसर बनूँगा ओर वक्त को मंजूर क्या हुआ बन गया प्राकृतिक चिकित्सक साथ मे पत्रकार , लेखक....ओर लिख रहा हु मेरे विचार
मित्रों, अस्तित्ववाद कहता है कि हम जीवनभर अप्रामाणिक जीवन जीते हैं. हम बनना कुछ और चाहते हैं लेकिन बनते कुछ और हैं,हम करना कुछ और चाहते हैं लेकिन करते कुछ और हैं. मित्रों, सौभाग्यवश हमारा भारतीय दर्शन इस मामले में भी अतिवादी नहीं है. गीता में श्रीकृष्ण ने साफ शब्दों में हजारों साल पहले ही कहा था कि तेरे वश में परिणाम है ही नहीं बस कर्म है यद्यपि परिणाम वैसे ही होते हैं जैसे हमारे कर्म होते हैं.
मित्रों, तो हम बात कर रहे थे ग़ालिब की और आदमी के चाहकर भी इंसां नहीं हो पाने की मजबूरी की. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मजबूरियों के आगे मजबूर नहीं होते बल्कि उत्तरोत्तर मजबूत होते जाते हैं. ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है नरेन्द्र दामोदरदास मोदी. बहुत गरीबी में उनका बचपन गुजरा लेकिन गरीबी उनके मनोबल को तोड़ न सकी और उसका बालमन सपना देखने लगा गरीबी विहीन भारत का. गृहस्थ जीवन के छोटे-से दायरे में सिमटना उसने स्वीकार नहीं किया और पत्नी की रजामंदी से गृह त्याग दिया...... (
जेसे मेने सुना ) मित्रो विवेकानंद की तरह हर क्षण भारत के लिए चिंतित रहनेवाला वो युवक पूरी जवानी भारत की खाक छानता रहा और भारत को समझने का प्रयास करता रहा. फिर अचानक उसके जीवन में गुजरात के भूकंप के रूप में भूकंप आया और उसने खुद को तबाह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पाया. पहले से कोई राजनैतिक अनुभव नहीं. कभी विधायक भी नहीं रहा था लेकिन वो घबराया नहीं और कुछ ही महीनों में गुजरात को फिर से खड़ा कर दिया और खड़ा भी कहाँ किया-चीन के आगे ले जाकर.... जिस अमेरिका ने वीजा देने के लिए मना किया उसी अमेरिका ने सर आंखो पर बैठा दिया ...( एक बात साफ कह दु मे वेचारिक रूप से कांग्रेस विचार धारा से जुड़ा हु मगर एक पत्रकार व लेखक के नजरिए से लेखन कर रहा हु )
मित्रों, फिर ट्रेन में आग लगाकर आततायी मुसलमानों ने जिनमें से कई कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे कई दर्जन निर्दोष हिन्दुओं को जिंदा जलाकर मार डाला और भड़क उठी दंगे की आग. जिन लोगों ने ट्रेन में यात्रियों को जलाकर दंगों की शुरुआत की उनको बचाने और मोदी को फंसाने की साजिश प्रधानमंत्री निवास और १० जनपथ में रची जाने लगी क्योंकि तब तक दिल्ली में सोनिया-मनमोहन की सरकार बन चुकी थी. वे लोग भूल गए कि हिन्दू कभी दंगों की शुरुआत नहीं करते. मोदी को रोजाना दरिंदा, खूनी, खूंखार आदि कहा जाने लगा. मानो उस समय केंद्रीय सत्ता के पाम दो ही काम रह गए थे -एक घोटाला करना और दूसरा योजना बनाना कि मोदी को कैसे जेल में डाला जाए और गुजरात से उखाड़ फेंका जाए. लेकिन मोदी डरे नहीं, घबराए नहीं, लडखडाए भी नहीं और ६ करोड़ गुजरातियों के विश्वास के बल पर सारी साजिशों को नाकाम कर दिया.
मित्रों, मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने तब उनके माथे पर उम्मीदों का भारी बोझ नहीं पहाड़ था. जीडीपी को गति देनी थी, भ्रष्टाचार को कम करना था, बेरोजगारी दूर करनी थी, दुनिया में भारत के मान को पुनर्स्थापित करना था आदि. कुछ मोर्चों पर काम हुआ है तो कुछ पर अभी बहुत-कुछ होना है.
मित्रों, मोदी से इस दौरान कुछ गलतियाँ भी हुई हैं जेसे नोटबंदी व जी एस टी को सही तरीके व योजनाबद्ध तरीके से लागू करना फिर भी हम ऐसा नहीं कह सकते कि मोदी की नीयत में खोट है यद्यपि उनसे नीतिगत भूल हुई है. मोदी का सीना कल भी भारत के लिए धड़कता था और आज भी केवल भारत के लिए ही धड़कता है. वाजपेयी की तरह ही आगे नाथ न पीछे पगहा. आज भी भारत की जनता ही मोदी का परिवार है, भारत के लोगों का प्यार ही मोदी की संपत्ति है.
मित्रों, इस बीच कुछ नेता उर्फ पप्पू मोदी की नक़ल करके खुद को मोदी साबित करने में जुट गए हैं. मोदी मंदिर जाते हैं इसलिए वे भी मंदिर जाते हैं आज तो मेने एक समाचार पत्र मे राहुल गांधी जी को यह बयान देते हुये पढ़ा की मे शिव भक्त हु मगर उन्हे कभी पूर्व मे तो मंदिर याद नहीं आया अभी गुजरात चुनाव मे मंदिर केसे याद आया ओर शिव भक्त कब व केसे बने मे नहीं जानता खेर इन राजनीतिक चालाकी को समझने की न मेने कभी कोशिश की न मेरे बस की बात है ! अगर देखा जाये वे न तो जन्मना और न ही कर्मना हिन्दू हैं. वे लोग जो इन दिनों अपने आपको विशुद्ध हिन्दू साबित करने में लगे हैं कुछ समय पहले ही सभी हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध करने में जी जान से लगे थे और कहते थे कि लोग मंदिरों में पूजा करने नहीं लड़कियों के साथ छेड़खानी करने जाते हैं. जाहिर है कि रावण साधू बनकर सीतारुपी जनता को ठगने के लिए फिर से आया हुआ है और हर दरवाजे को खटखटाता फिर रहा है. शायद इस रावण को पता नहीं है कि नक़ल करके कोई मोदी नहीं बन सकता बल्कि ५६ ईंच का सीना लेकर जियाले माँ के पेट से पैदा होते हैं.
मित्रों, हो सकता है कि भविष्य में मोदी के लिए भी आज का मोदी बने रह पाना संभव न रह जाए. सब जनता के विश्वास पर निर्भर करेगा कि आगे मोदी और मजबूत होंगे या फिर खूँटी में टंगे अपने झोले को उठाकर फिर से देशाटन पर चल देंगे जैसा कि वे पहले कह भी चुके हैं. यद्यपि अगर ऐसा होता है तो यही समझा जाएगा कि भारत की जनता मोदी जैसे महान राष्ट्रभक्त के नेतृत्व के लायक है ही नहीं उसे तो लल्लू-पंजू चोर-बेईमान-लुटेरा-राष्ट्रद्रोही नेतृत्व ही चाहिए.! मित्रो यह विचार मे भाजपा का समर्थक न होते हुए भी मन की बात लिख रहा हु ! मुझे मालूम है शायद मेरे कुछ मित्र इस मेरे ब्लॉग को पढ़कर मुझे भरतपुरी लोठा की उपाधि प्रदान करे मगर मुझे पूरा यकीन है मेरे बुद्धिजीवी मित्र मुझे एक लेखक व पत्रकार समझकर मेरे विचारो को पसंद जरूर करेंगे ओर मेरी निष्पक्षता पर कोई अंगुली नहीं उठाएंगे
आपका - उत्तम जैन ( विद्रोही )
संपादक - विद्रोही आवाज
लेखक
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