Thursday, 9 November 2017

क्या आप चाहते है आखिर भ्रष्टाचार और अपराध से कैसे मुक्त हुआ जाए ?

जब भी मन मे कोई विचार उठता है मेरे विचार ओर मेरी कलम मुझे लिखने को प्रोत्साहित करती है ! वेसे कलम से लिखने की आदत कुछ कम हो गयी कंप्यूटर पर अंगुलिया चलने लगती है ! अभी आखिर भ्रष्टाचार और अपराध से कैसे मुक्त हुआ जाए के विचारो के साथ लिखने बेठा हूं। समझ में नही आता कि क्या लिखूँ। सुबह से कुछ विचार आन्दोलित कर रहे हैं मनको। भ्रष्टाचार समाप्त करने का बीड़ा उठाया है कुछ लोगों ने, पर यह भ्रष्टाचार रूपी महारानी देश के कोने कोने में विविध स्वरूप धरे ऐसी जड़ जमा कर बैठी है कि किसी के भगाए नहीं भागती। कोई लाख नाक रगड़ ले। अभी नोटबन्दी के दोष गुन फिर से सभी दलों द्वारा गिनाए जा रहे हैं। यह सही है कि बहुत सारे फायदे हुए हैं इसके । लागू होते ही जो कुछ लोगों और कुछ पाटियों में हड़कंप मचा था, विरोध के स्वर उठे थे वे नोटबंदी के प्रभावक्षेत्र मे स्वयं के आ जाने के कारण ही ज्यादा थे। सामान्य जनता ने तब भी उसका समर्थन किया था, आज भी कमोवेश करती है। कुछ लोगों को बड़े बड़े नोटों के आने से कष्ट हुआ पर यह भी सच है कि जिनको अपनी अनैतिक कमाई को बचाना था, उन्होंने बचा ही लिया। और भ्रष्टाचार दूर करने में लगी संस्थाओं ने इसमें भी योगदान दिया ही। और जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम लगायी जा सकती है। यह तो निश्चित है कि दूरगामी प्रभाव अच्छे होंगे। एक बड़ी योजना में योजना के सारे सूत्र सीधे ही रहें,कहीं उलझें नहीं यह बहुत संभव नहीं हो सकता । विपक्ष एक बार गुजरात चुनाव के सुअवसर पर इस मुद्दे को तूल दे रहा है संजोग ही ऐसा आया नोटबंदी की प्रथम पुण्यतिथि भी इस चुनावी अवसर पर आ गयी ! कुछ लोगों का भ्रष्टाचार उजागर नहीं भी हो सका। भ्रष्टाचार मात्र नियम कानून बनाने से समाप्त नहीं हो सकता इसके लिए लोगों की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। इमानदारी को जीवन में प्रश्रय देने की आवश्यकता है। इस देश मे स्वतंत्रता के पश्चात् बेईमानी का क्रमशः विकास और ईमानदारी का ह्रास जितनी तेजी हुआहै उसे विपरीत दिशा मे मोड़ना इतना सहज नहीं।
जी एस टी निश्चय ही आतुरता और व्यग्रता में लागू कर देने के कारण कई अनियमितताओं को जन्म दे रहा है। न उपभोक्ता सन्तुष्ट हैं न व्यापारी। उपभोक्ताओं से बढ् चढ़ाकर मूल्य वसूले जा रहे हैं । किसी क्षेत्र में मूल्यों में राहत नहीं है। दवा विक्रेता कहते हैं अभी तो इसी दर पर जी एस टी जोड़कर दूँगा । नया स्टॉक आने तक तो सहना होगा। ऐसा ही बहुत सारे क्षेत्रों में हो रहा है। आलोचना अवश्यंभावी है। सरकार जी एस टी दरों मे कमी करने का प्रयास कर रही है। पर कितने प्रतिशत व्यापारी उसका लाभ उपभोक्ता तक पहुँचने देंगे, कहना मुश्किल है।यह भ्रष्टाचार है जो हर सुधारवादी योजना से निपटना जानती है और अनपढ़ को तो छोड़िए पढ़े लिखे लोगों को भी वेवकूफ बनाती है।
— प्रश्न है चारो ओर फैले इस भ्रष्टाचार की शिकायत किससे की जाए।सरकारी तंत्र का हर महकमा पुराने रुख पर कायम रहना चाहता है। अपराधियों के बजाय इनकी चौकसी की सख्त आवश्यकता है। थोड़ा भय अवश्य उत्पन्न हुआ है पर वह पर्याप्त नहीं । समाज मे नियम कानून न माननेवालों को पुलिस थाने की धमकी दी जाती है,या सम्बद्ध विभाग के अधिकारी को सूचना दी जाती है। मामले की जाँच पुलिस को सर्वप्रथम सुपुर्द की जाती है और भारतीय पुलिस का मनोबल इतना गिरा है कि थोड़े से प्रलोभन से वे कर्तव्य पथ से विचलित हो जाते हैं।
एक युग था—स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ दिनो पश्चात तक कि हमे पुलिस पर भरोसा था। मातापिता बाहर निकलते वक्त बच्चों को हिदायत देते थे कि जरूरत पड़ने पर वे पुलिस की सहायता लें। पर आज वे रक्षक नहीं भक्षक प्रतीत होते हैं। सामान्य जनता उनका सामना करने से कतराती है—पता नहीं वे किस केस में किसे फँसा दें ,व्यर्थ डंडे लगा दें। साक्षात प्रमाण है वह आरूषि हत्याकांड का केस जिसमें बलात मनगढंत कहानियाँ बना निर्दोष तलवार दम्पति को हत्यारा सिद्ध कर वर्षों जेल मे रहने को विवश कर दिया। मृतका का व्यर्थ ही चरित्र हनन किया। जाने कितने फेक एन्काउन्टर हुआ करते हैं। भ्रष्टाचार से मुक्ति में इनकी सहायता लेना नहीं चाहते लोग।अभी भी जिस घटना ने मन को विशेष उद्वेलित किया है,वह है रेयान के मासूम प्रद्युम्न के हत्याकांड का सीबीआई द्वारा रहश्य उजागर पुलिस ने उनके अनुसार एक निर्दोष बस कन्डक्टर को अपराधी साबित करने की कोशिश की। उस पर अनैतिक आचरण का भी दोषारोपण किया। अभी यद्यपि दोष पूरी तरह प्रमाणित नहीं हुआ पर विद्यालय के ही ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थी ने अपराध स्वीकार किया है। वह छात्र विद्यालय बन्द करवाना चाहता था ताकि पैरेंट टीचर्स मीट न हो सके ओर परीक्षा टल सके। क्या विद्यार्थियों से पुलिस पूछताछ नहीं कर सकती थी। घटनास्थल की ठीक से जाँच नहीं कर सकती थी।? इस प्रकार की स्थितियों से इस महकमें पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है।
तब फिर अपराधों से कैसे मुक्त हुआ जाए और भ्रष्टाचारियों पर कैसे लगाम लगायी जाय –यह एक बड़ा प्रश्न है। अब विषय से अलग बात करू गुजरात चुनाव की घोषणा के साथ ही गुजरात चुनाव का लेकर उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे चक्रव्यूह में अभिमन्यु को फंसाने की तैयारी चल रही हो. इस युद्ध में एक तरफ तो गुजरात और भारत के गौरव मोदी हैं वहीँ दूसरी तरफ विपक्ष के साथ आरक्षण के समर्थक , नोटबंदी के विरोधी ओर जी एस टी विरोधी गुजरात में भी इस समय एकजुट हो गए हैं. ! प्रश्न उठता है कि बिहार में भाजपा को हरा दिया गया था मगर परिणाम क्या हुआ? बिहार का विकास पूरी तरह से ठप्प हो गया और नीतीश कुमार को मन मार कर फिर से भाजपा के साथ जाना पड़ा. मित्रों, मे मानता हु कि कुछ गलतियाँ भाजपा से भी हुई हैं. सेक्स सीडी मामले में एकतरफा कार्रवाई करते हुए पत्रकार को भीतर कर दिया लेकिन मंत्री पर कार्रवाई नहीं की गई. साथ ही मुकुल राय को पार्टी में शामिल करना तो गलत है ही इसकी टाइमिंग भी गलत है. पार्टी को बताना चाहिए कि शारदा मामले में आरोपी मुकुल अब कैसे भ्रष्ट नहीं रहे. साथ ही व्यवसाय प्रधान राज्य होने के कारण कुछ असर तो जीएसटी का भी पड़ेगा.मित्रों, फिर भी अंत में मैं गुजरातियों व प्रवासी हिन्दी भाषियों से पूछना चाहूँगा कि उनको विकसित भारत और गुजरात चाहिए या आरक्षण के नाम पर बर्बादी चाहिए. हम जब बचपन में क्रिकेट खेलते थे तब टॉस के समय सिक्का उछालने के समय हमेशा भारत को ही चुनते थे भले ही हर बार टॉस हार जाएं. जिस तरह से हमने २०११ और २०१६ में पश्चिम बंगाल, २०१२ में यूपी, २०१५ में बिहार की जनता को सचेत किया था उसी तरह से गुजरात की जनता को चेताना चाहेंगे कि अगर वो आरक्षण के चक्कर में पड़ेंगे तो गुजरात का भी विकास रूक जाना निश्चित है फिर अब आपको सोचना है भ्रष्टाचार और अपराध से मुक्त होना है या दल दल मे फसना फेसला आपका मत करेगा ! मेने तो अपने विचार प्रेषित किए है
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
लेखक - संपादक
विद्रोही आवाज

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