जैन समाज ने पिछले 2500 वर्षों की यात्रा में हमने क्या पाया और क्या खोया, गहराई से अवलोकन करने का विषय है...सम्पूर्ण जैन समाज के लिए...
गहराई से चिंतन करने पर यह बात सामने आती है कि पाने की बात तो छोड़ दे, सिर्फ खोया ही खोया है। अपने पूर्वजों की संचित संस्कारो जेसी सम्पति को भी हम सम्भालकर नही रख सकें है, योग्यता पर शर्म करने जैसा है।
क्या जैन समाज की कोई सर्वोच्च संस्था है, जिसने कभी यह सर्वें कराया है, जो जैन समाज के सभी वर्गों के बारे चिंतन करती है...?
वेसे समस्या तो अनेक है हमारे बुद्धिजीवी समाज की मगर आज मे सिर्फ एक समस्या पर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा - जैन समाज मे हो रहे शादी ब्याह ओर आडंबर के साथ हमारे गिरते संस्कार
✅ सबसे बड़ी व बहुत गंभीर समस्या है शादी ब्याह मे आडंबर ,ओर आडंबर के साथ हमारे गिरते संस्कार --- पहले मे अपनी पीड़ा गिरते हुए संस्कारो की तरफ व्यक्त करना चाहूँगा आज सम्पूर्ण जैन समाज चाहे वह दिगंबर हो या श्वेतांबर हमारी पोराणिक परंपरा की तरफ नजर डाली जाए ओर वर्तमान को देखा जाये अमूलचुल परिवर्तन हुआ है ! परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ परिवर्तन होना भी जरूरी है मगर वह परिवर्तन नहीं जिसमे हमारा समाज संस्कार विहीन हो जाए ! मुझे जब भी 70-80 वर्ष के बुजुर्ग से वार्तालाप का अवसर मिला तब उनसे ज्ञात हुआ आज से ठीक 20-25 वर्षो पूर्व हमारे घरो मे शादिया होती थी ! उन शादियो की तरफ नजर डाली जाए अभी की तुलना मे पकवान कम होते थे मगर मेहमान व शादी मे बाराती को सन्मान के साथ बाजोट लगा कर बड़ी मनुहार के साथ खाना खिलाया जाता था ! ओर आज पकवान तो बहुत ज्यादा होते है भले मेहमान मधुमेह से पीड़ित ( यह रोग शादी मे आने वाले मेहमानो मे ओसत 20% तो होता ही है ) नहीं खाते ! साथ मे कंदमूल , रात्रि भोजन ओर साथ मे बुफ़े खाना जेसे भिख मागते थाली हाथ मे लाइन मे खड़े होते है ! क्या मेहमान नवाजी यही है ? मेरी समझ से परे है ! वेसे मेरी बात आप जेसे ओर बुद्धिजीवी समाज को थोथी लगेगी मगर विचारणीय है मेहमानो को सन्मान व मनुहार के साथ खाना खिलाना आपके लिए शर्म की बात है होगी भी क्यू की आप लाखो रुपए खर्च करके 700 से 2500 तक के डिश का ठेका केटर्स को देते है ! भले आपके मेहमान भीख मांगते हुए खाते है क्यू की वह भी आदी हो चुके है इस तरह से खाने को ! बड़ी विडम्बना हमारे जैन समाज पर महालक्ष्मी बड़ी मेहरबान है तभी तो हम उस लक्ष्मी का दुरु उपयोग कर रहे है ! जिस तरह हाथ की पांचों अंगुली एक जेसी नहीं होती उसी तरह हमारे समाज मे उच्च वर्ग , माध्यम वर्ग व निम्न वर्ग के जैन भाई है किसी की कमाई करोड़ो मे तो किसी की लाखो ओर हजारो मे ओर देखा देखी आडंबर नामक दल दल मे फँसते जा रहे है ! आज जरूरत है जैन समाज इस विषय पर चिंतन करे ओर खाने की मर्यादा बनाए ! वेसे बहुत बाते होती है 21 वस्तु से ज्यादा नहीं बनेगी मगर पालन नहीं हो पा रहा है अब समय आ गया है चिंतन का !
अब साधर्मिक भाईयो से सबसे बड़ी गिरते संस्कार की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा हम हमारे संस्कारो को भूलते हुए हमारे बच्चो की फिल्मी स्टाइल प्रिवेडिंग शूटिंग कराते है क्या वह उचित है कमर मे हाथ डाले व अश्लील द्र्श्य हम उसी प्रिवेडिंग शूटिंग के शादी मे आए मेहमानो को स्टेज पर बड़े पर्दे पर बताते है क्या हमारे जैन समाज के यहीं संस्कार है ? इस प्रिवेडिंग के दुष्परिणाम आप सभी को विदित है ज्यादा प्रकाश डालना यह ब्लॉग बहुत बड़ा हो जाएगा ! दूसरा हम संगीत संध्या का आयोजन करते है शादी के एक महीने या उससे अधिक समय पूर्व कोरियों ग्राफर जो मुख्यतया मुस्लिम ज्यादा होते है बंद कमरे मे अपनी बहू बेटियो के कमर मे हाथ डाल कर सीखाते है वाह जेनियों आपके संस्कार उसे आप अपनी प्रतिष्टा समझते है ! बड़ा दर्द होता है हमारा समाज किधर जा रहा है ! तभी तो किस्से सुनने मे आते है कोरियोग्राफर बहू बेटी को भगा ले गया ! फिर आप किसी को मुह बताने लायक नहीं रहते ! अब कोरियोग्राफर का कार्य पूर्ण होने के बाद आपकी बहू बेटियाँ बार बाला जेसी पूरे समाज व मेहमानो के सामने स्टेज पर कमर मे हाथ डाले ठुमके लगाती है ओर आप तालिया बजाते हो ! क्या आपके पूर्वजो ने यही संस्कार दिये ! ज्यादा नही लिखुंगा मगर समाज के चंद ठेकेदारो व समाज के हर व्यक्ति से अनुरोध करूंगा आप इस पर सामाजिक प्रतिबंध लगाए ! साथ मे सभी जैन धर्म के आचार्य भगवंतों साधू संतो से विनम्र प्रार्थना करता हु ! आप अध्यात्म के साथ जैन धर्म को इस तरह के संस्कारो की तरफ ध्यान दे ओर आप पूरी कोसिश करे जैन धर्म मे आडंबर , प्रिवेडिंग शूटिंग , संगीत संध्या पर प्रतिबंध लगे बहुत तीव्रता से निर्णय लेना पड़ेगा, हमें अपने नाम के वास्ते आडम्बर को रोकना होगा, तभी हम भगवान महावीर के अनुयाई कहलाने के हकदार है ! हम सुधरेंगे तो समाज सुधरेगा
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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