Tuesday, 21 November 2017

कांग्रेस के राजकुमार भोले बाबा राहुल गांधी के नए युग की होगी शुरुआत, क्या चुनौतियो का सामना कर पाएंगे

सोमवार को 10 जनपथ पर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमे पार्टी का नया अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया का ऐलान कर दिया गया. वेसे यह चुनाव प्रक्रिया एक नाम मात्र का पार्टी संविधान की रक्षा करने के लिए है कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव के लिए 4 दिसंबर को नामांकन होगा. राहुल गाँधी पिछले कई माह से कह रहे हैं कि वो पार्टी का अध्यक्ष बनने को तैयार हैं, इसलिए उनका नामांकन पत्र भरना तो तय है. यदि राहुल गांधी के अलावा कोई और नामांकन करता है तब 16 दिसंबर को मतदान होगा, 19 दिसंबर को मतगणना होगी और उसी दिन अध्यक्ष के नाम का ऐलान होगा.

यदि राहुल गांधी के अलावा किसी और का नामांकन नहीं होता है तब 11 दिसंबर को ही उनके अध्यक्ष बनने का ऐलान कर दिया जाएगा, जो कि नामांकन पत्र वापस लेने की आखिरी तारीख होगी. कल से सोशल मिडिया पर कांग्रेस कार्यसमिति के इस फैसले की खिल्लियां उड़ाई जा रही हैं, क्योंकि सारी दुनिया को पता है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होंगे. उनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत किसी कांग्रेसी में नहीं है.पूर्व में गाँधी परिवार के खिलाफ अध्यक्ष पद के लिए खड़े होने वाले जीतेन्द्र प्रसाद और राजेश पायलट का क्या हश्र हुआ, ये सभी कांग्रेसियों को पता है. कि कांग्रेस में दो ही अगले अध्यक्ष हो सकते हैं, एक मां और एक बेटा. कांग्रेस में इनका कोई विरोधी ही नहीं तो फिर कोई दूसरा कैसे अध्यक्ष बन सकता है? अगर कोई विरोध करे तो भी कोई महत्व नहीं क्यूकी गाँधी परिवार के प्रति कांग्रेसियों के समर्पण के आगे ये सारे सवाल महत्वहीन है

कांग्रेस पार्टी में गाँधी परिवार के राजतंत्र को फ़िलहाल कोई चुनौती नहीं दे सकता है, क्योंकि मोदी की सुनामी में डूबते हुए जहाज सरीखी कांग्रेस पार्टी के खेवनहार आज भी गाँधी परिवार ही है. कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव के लिए किया जा रहा सारा चुनावी ड्रामा देश और दुनिया को महज यह दिखाने के लिये है कि कॉंग्रेस भी एक लोकतांत्रिक पार्टी है.

उम्मीद यही है कि राहुल गांधी सर्वसम्मति से कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए जाएंगे, क्योंकि कोई विरोधी खड़ा ही नहीं होगा तो एक ही उम्मीदवार में कैसे चुनाव होगा? राहुल गांधी के समर्थन में पार्टी के कई दिग्गज नेता काफी समय से बोलते रहे हैं और उनको अध्यक्ष बनाए जाने की मांग करते रहे हैं. इसलिए राहुल गाँधी को कोई कांग्रेसी नेता अध्यक्ष पद के चुनाव में चुनौती देगा, ऐसा संभव नहीं दिखता है. उनका निर्विरोध चुना जाना तय है.

यहाँ तक कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र दिखाने के लिए अगर चुनाव होता भी है तब भी उनका अध्यक्ष बनना तय है. सोशल मिडिया पर एक सवाल उठाया जा रहा है कि कांग्रेस यदि राष्ट्रध्यक्ष (राष्ट्रपति) पद के लिए मीरा कुमार जैसे वरिष्ठ नेता को खड़ा कर सकती है तो फिर उन्हें या फिर मणिशंकर अय्यर जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को पार्टी का अध्यक्ष क्यों नहीं बना सकती है? ऐसे सवालों का दरअसल एक ही जबाब है कि कांग्रेस को गाँधी परिवार की वैशाखी के सहारे ही आगे बढ़ने की बुरी लत लग चुकी है, जो छूटने वाली नहीं.

राहुल गाँधी के नेतृत्व को चुनौती देने की हिम्मत फ़िलहाल किसी कांग्रेसी नेता में नहीं, इसलिए यह तय माना जा रहा है कि अगले महीने (दिसम्बर) में अध्यक्ष पद पर उनकी ताजपोशी पूरे धूमधाम से होगी. इस राजनितिक ड्रामे से गुजरात के चुनावों में लाभ उठाने की भरपूर कोशिश भी की जाएगी. हिमाचल और गुजरात के चुनाव में पार्टी की जीत हुई तो राहुल गाँधी की वाह वाह और हार हुई तो बलि के बकरे तलाश लिए जाएंगे यानि इसकी जिम्मेदारी स्थानीय नेताओं के मत्थे मढ़ दी जाएगी. एक बात कह दु हार हुई तो बली गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत की होगी कांग्रेस अपने अब तक के राजनीतिक इतिहास में इतना बुरा दौर कभी नहीं देखी है.

कभी केंद्र के साथ साथ अधिकतर राज्यों में भी उसी की हुकूमत चलती थी और आज ये आलम है कि केंद्र की सत्ता से तो वो कोसो दूर है ही, कुछ छोटे राज्यों सहित पंजाब और कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में ही उसकी सत्ता सिमट के रह गई है. राहुल गांधी को कांग्रेस की खिसकी हुई राजनीतिक जमीन वापस दिलाने के लिए मोदी जैसी लोकप्रिय शख्सियत से जूझना आसान नहीं होगा.

अब ये तो तय है कि कांग्रेस में अब राहुल युग की शुरुआत होगी. अध्यक्ष बनकर चुनाव हारते जाने पर राहुल गांधी के खिलाफ पार्टी के भीतर भी कई तरह की चुनौतियां पैदा होंगी. पिछले साढ़े तीन साल में मात्र पंजाब का चुनाव जीतने वाली कांग्रेस के समक्ष आज कई तरह की चुनौतियां हैं. देखें अब राहुल गांधी इन सबसे कैसे निपटते हैं? सबसे बड़ी चुनौती देश-विदेश भर में मोदी के बढ़ते हुए वर्चस्व को तोड़ना है, जो कि आसान नहीं है.

दूसरी तरफ भाजपा के अध्यक्ष और आधुनिक राजनीति के चाणक्य अमित शाह की अकाट्य राजनीतिक कूटनीति की भी काट उन्हें ढूंढनी होगी, वो भी सरल नहीं है. सोशल मीडिया पर लोग मजे ले रहे हैं कि राहुल गांधी अब जल्दी से शादी कर लें, नहीं तो अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की तरह कांग्रेस राजवंश के अंतिम बादशाह साबित होंगे. अजीब इत्तेफाक है कि दिल्ली की मुग़ल सल्तनत जब बेहद कमजोर हो गई थी, तब बहादुर शाह ज़फ़र सम्राट बने थे.एक विडम्बना है आज के समय में देशभर में कांग्रेस की स्थिति भी वही है.
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

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