कांग्रेस उपाध्यक्ष युवराज श्री राहुल गांधी को एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी देने का व अब उन सभी अटकलों पर विराम लगाने का समय आ गया है जो वर्ष में कम से कम दस बार सुर्खियाँ बनती थी. राहुल गाँधी का कॉंग्रेस अध्यक्ष बनना अब तय माना जा रहा है. यूँ तो कहा जा रहा है कि चुनाव के ज़रिए उन्हें चुना जाएगा परंतु यह एक औपचारिकता मात्र ही है. इसकी संभावना काफ़ी कम ही है कि कोई उनके खिलाफ नामांकन भरेगा क्योंकि उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए उन्हीं लोगों को चुना गया है जो 10 जनपथ के वफ़ादार हैं. 2013 में कॉंग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद से लेकर अभी तक राहुल गाँधी के नाम कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं रही है. कॉंग्रेस लगातार अपना जनाधार खो रही है और एक के बाद एक लगभग सभी चुनाव हार रही है. इसके बावजूद राहुल गाँधी को इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौपना निश्चित रूप से कॉंग्रेस के व्यापक वंशवाद का प्रतीक है. राहुल गाँधी अगर अध्यक्ष बनते हैं तो वह इस पद को ग्रहण करने वाले नेहरू-गाँधी परिवार से छठें व्यक्ति होंगे और यह शायद दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में पहली बार होगा ! राहुल गाँधी के पार्टी अध्यक्ष बनने की बात तब शुरू हुई है जब गुजरात का चुनाव प्रचार जोरों पर है. राहुल गाँधी के लिए यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है. गुजरात के तीन युवा नेताओं हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी का समर्थन कॉंग्रेस के साथ है. जीएसटी को लेकर कई व्यापारियों में आक्रोश है जिसे कॉंग्रेस भुना रही है ! मतदाताओं की भले बीजेपी के प्रति नाराज़गी हो परंतु नरेंद्र मोदी के प्रति नहीं है. राहुल गाँधी गुजरात में मंदिर-मंदिर घूमकर सॉफ्ट हिंदुत्व के ज़रिए बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश भी की हैं. यदि कॉंग्रेस अपनी परंपरागत वोट बैंक के साथ इस कोशिश में कामयाब होती है तो बीजेपी को थोड़ी बहुत चुनौती दे सकती है. अगर कॉंग्रेस यहाँ 70-80 सीटें जीतने में कामयाब होती है तो यह राहुल गाँधी के लिए बड़ी उपलब्धि होगी !देश कि राजनीति में कॉंग्रेस लंबे समय तक सत्ता में रही है. यही कारण है कि कॉंग्रेस सत्ता को अपनी जागीर समझती आई है और विपक्ष में रहकर उसे संघर्ष करना नहीं आया. यदि यूपीए के कार्यकाल को याद करें तो बीजेपी ने विपक्ष की भूमिका काफ़ी आक्रमक तरीके से निभाई थी. यही कारण था कि वह तत्कालीन शासन के विरुद्ध लहर बनाने में कामयाब हुई थी जिसके फलस्वरूप 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ वह सत्ता में आई. परंतु यदि हम उसकी तुलना आज के विपक्ष से करे तो यह बहुत कमजोर दिखाई देता है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गाँधी इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. स्वास्थ्य वजहों से सोनिया गाँधी पहली जैसी सक्रिय रही नहीं और अब राहुल गाँधी ही नीति निर्माण की बैठकों में अहम फ़ैसले लेते हैं परंतु अभी भी उनके राजनीतिक समझ पर सवाल उठते रहते हैं. बड़ा सवाल यह है कि लगातार जनाधार खोने के बावजूद केवल राहुल गाँधी को अध्यक्ष बना देने से क्या कॉंग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती दे पाएगी? इससे पहले, देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में मिली भारी-भरकम जीत के बाद भाजपा के हौसले बुलंद हैं. उसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से सत्ता में लौटने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं. लेकिन, वह वर्ष 2004 के अति आत्मविश्वास को दोहराना नहीं चाहती. यही वजह है कि उसने अभी से एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. जहां भी उसे संभावना दिख रही है, वह पूरी मेहनत कर रही है. वह अटल बिहारी वाजपेयी के ‘इंडिया शाइनिंग’ कैंपेन के बाद मिली जबरदस्त हार को दोहराना नहीं चाहती.
अभी गुजरात विधानसभा चुनाव मे अपने ही गढ़ में बीजेपी को तगड़ी चुनौती मिल रही है कंही न कंही भाजपा मे गुजरात चुनाव मे दशहत है ! जिसके संकेत से सोशल मीडिया पर साफ मिल रहे हैं ! पिछले दिनों से कांग्रेस सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर भारतीय जनता पार्टी को पटकने की तैयारी में लगी है ! कांग्रेस को काफ़ी देर से सोशल मीडिया की ताक़त का अंदाज़ा हुआ है. 2014 में नरेंद्र मोदी ने अपनी आधी लड़ाई तो सोशल मीडिया पर ही जीत ली थी. उन लोगों ने काफ़ी आक्रामक रणनीति अपनाई थी. कांग्रेस उस गैप को भरने की कोशिश तो ज़रूर कर रही है, लेकिन बीजेपी जितना आगे निकल चुकी है, ऐसे में उसे पछाड़ना आसान नहीं होगा.
गुजरात में सोशल मीडिया पर जिस तरह का गुस्सा लोग दिखा रहे हैं, कांग्रेस उसे विपक्ष के तौर पर भुनाने की कोशिश कर रही है. दरअसल नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद गुजरात में दो मुख्यमंत्री बन चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस इसे अपने लिए अवसर के तौर पर देख रही है, लेकिन क्या वह सोशल मीडिया पर बीजेपी जितना दमदार कैंपेन चला नहीं पा रही है ! हमे नतीजो का इंतजार करना है
कांग्रेस के सामने संकट ये है कि उनके पास नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे फ़ैसले लेने वाले नेता नहीं हैं. अगर ये दोनों कोई फ़ैसला कर लेते हैं तो पूरा संगठन उसे लागू करने में लग जाता है, लेकिन राहुल गांधी के स्तर पर भी कांग्रेस में कोई फ़ैसला होता है तो उसे लागू करने में कई अड़चनें सामने आती हैं. इसके अलावा हमने ये भी देखा है कि आम लोग नरेंद्र मोदी की बातों का भरोसा करते हैं. ये उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान दिखा जब नोटबंदी को लेकर इतनी आलोचना हो रही थी, लेकिन लोगों ने नरेंद्र मोदी की बातों पर भरोसा किया. तो ये भी देखना होगा कि क्या कांग्रेस पार्टी दमदार ढंग से ये बता पाएगी कि नरेंद्र मोदी जो कह रहे हैं वो सही नहीं है अब देखना है गुजरात की जनता युवराज को कांग्रेस अध्यक्ष का ताज पहनने के साथ केसा तोहफा देती है
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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