Monday 11 December 2017

गुजरात मोडल आपको केसा चाहिए क्या यह मोदी का गुजरात मोडल नहीं है ?

गुजरात विधानसभा  चुनाव का एक  चरण सम्पन्न हो चुका है  ! दूसरे चरण  मे चुनाव प्रचार  जोरो शोरों  से चल रहा है ! एक दूसरे  पर आरोप प्रत्यारोप लग रहे है  !कांग्रेस युवराज विकास  को पागल करार दे रहे है तो मोदी जी सीना ठोककर   अपने द्वारा  किए विकास कार्य ओर उपलब्धि  बता रहे है !  2014 के पूर्व से ही नरेंद्र मोदी जी  के गुजरात मॉडल की चर्चाएं काफी गर्म रहती थीं. जहां मोदी के समर्थक गुजरात मॉडल का हवाला देकर वहां भ्रष्टाचार रहित एवं विकास शील व्यवस्था का गुणगान करते थे, वहीं देश की विपक्षी पार्टियों के नेता मोदी के गुजरात मॉडल पर तंज़ करते नज़र आते थे. उत्तर प्रदेश के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि- “हम यू.पी को गुजरात नहीं बनने देंगे”. कमोबेश यही बात हर विपक्षी नेता की जुबान पर भले ही न आयी हो, लेकिन सबके मन में यही डर कहीं न कहीं बैठा हुआ था कि अगर “गुजरात मॉडल” चल पड़ा तो मोदी और देश की जनता के अच्छे दिन आ जाएंगे और उनके लिए सत्ता का स्वाद चखना अगले कई दशकों तक एक दिवा स्वप्न बनकर रह जाएगा.
आपको गुजरात मोडल  समझाने का प्रयास करता हु   कि आखिर यह “गुजरात मॉडल” है किस चिड़िया का नाम  तो आप मुझसे जरूर सहमत होंगे ----  
1.  गुजरात में होने वाला विधान सभा का चुनाव स्वतंत्र भारत का पहला ऐसा चुनाव है जिसमे कोई भी नेता गोल जालीदार टोपी पहने दिखाई नहीं दे रहा है. यही गुजरात मॉडल है.
2. भगवान श्री राम को “काल्पनिक” बताने वाले राहुल गाँधी पिछले दो महीने में 22 बार मंदिरों में जाकर अपनी नाक रगड़ चुके हैं. निश्चित रूप से यही गुजरात मॉडल है.
3. राहुल गाँधी, जिनका अभी तक यह मानना था कि मंदिरों में लोग लड़कियों को छेड़ने जाते हैं, वे खुद इतनी बार मंदिरों के चक्कर काट चुके हैं, जितने चक्कर किसी और कांग्रेसी नेता ने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं लगाए होंगे. यह भी गुजरात मॉडल है.
4.  राहुल गाँधी मंदिर जा रहे हैं लेकिन किसी “सेक्युलर” नेता की इतनी हिम्मत नहीं पड़ रही कि पलटकर उनसे पूछे कि क्या अब मस्जिद भी जाओगे? यही गुजरात मॉडल है.
5.  नेहरू ने जिस सोमनाथ मंदिर का विरोध किया और उसके लिए धन देने से भी मना कर दिया, आज उसी मंदिर में जाकर उनके वंशज अपनी चुनावी जीत की भीख मांगने के लिए विवश हैं. यही गुजरात मॉडल है.
वैसे तो धीरे धीरे सभी नकली “सेक्युलर” नेताओं को पिछले तीन सालों में गुजरात मॉडल की पूरी खबर लग चुकी है. जिन्हे अभी तक गुजरात मॉडल की समझ नहीं हुई है, उन्हें भी 2019 के चुनावों से पहले यह गुजरात मॉडल पूरी तरह समझ में आ जाएगा. घोर जातिवाद और साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वाली मायावती का उत्तर प्रदेश के हालिया निकाय चुनावों में इस्तेमाल किये गए एक चुनावी नारे की झलक मात्र से ही यह बात साफ़ हो जाएगी कि अब “गुजरात मॉडल” सभी को समझ आने लगा है. बहुजन समाज पार्टी का नारा था- “न ज़ात को न धर्म को- वोट मिलेगा कर्म को.” यानि जिनकी पार्टी की बुनियाद ही ज़ात-पात, तुष्टिकरण और साम्प्रदायिकता पर टिकी हो, अब उन्हें भी “कर्म” यानि गुजरात मॉडल का सहारा लेना पड़ रहा है.
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 
मो - 8460783401 

No comments:

Post a Comment