सदियों से ही भारतीय समाज में नारी की
अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है । उसी के बलबूते पर भारतीय समाज खड़ा है ।
नारी ने भिन्न-भिन्न रूपों में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । चाहे
वह सीता हो, झांसी की रानी, इन्दिरा गाँधी हो, सरोजनी नायडू हो । सदियों से
समय की धार पर चलती हुई नारी अनेक विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच जीती
रही है । पूज्जा, भोग्या, सहचरी, सहधर्मिणी, माँ, बहन एवं अर्धांगिनी इन
सभी रूपों में उसका शोषित और दमित स्वरूप । जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के
साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी की सामाजिक स्थिति में फिर भी
परिवर्तन ‘ना’ के बराबर हुआ है । घर बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाने वाली
महिलाओं से यह पुरुष प्रधान समाज चाहता है कि वह अपने को पुरुषो के सामने
दूसरे दर्जे पर समझें ।
आज की संघर्षशील नारी इन परस्पर विरोधी
अपेक्षाओ को आसानी से नहीं स्वीकारती । आज की नारी के सामने जब सीता या
गांधारी के आदर्शो का उदाहरण दिया जाता है तब वह इन चरित्रों के हर पहलू को
ज्यों का त्यों स्वीकारने में असमर्थ रहती है । देश, काल, परिवेश और
आवश्यकताओ का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व है, समाज इनसे प्रभावित हुए
बिना नहीं रह सकता ! जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे भारतीय नारी के
भी कदम आगे बढ़ रहे हैं । आज वह ‘देवी’ नहीं बनना चाहतीं, वह सही और सच्चे
अर्थों में अच्छा इंसान बनना चाहती है । नैतिक मूल्यों और मानवीय मूल्यों
को नकारा नहीं जा सकता । हमारे पारम्परिक चरित्र नैतिक मूल्यों की धरोहर
हैं । नारी घी का कुआँ है और पुरुष जलता हुआ अंगार। दोनों के संयोग से
ज्वाला प्रज्वलित हो उठती है, यानी नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।
नारी के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं। पुरुष के अभाव में नारी का कोई
मूल्य नहीं। दोनों का सम्बन्ध अभिन्न अखण्ड और अनादि है। आदिकाल से लेकर आज
तक का भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि नारी किस प्रकार जीवन के
क्षेत्र में पुरुष की अभिन्न सहयोगिनी के रूप में अपने नारीत्व को दीपित
करती आयी है। नारी के सहयोग के अभाव में पुरुष ने सदा एकाकीपन अनुभव किया
है और जहाँ भी सहयोगिनी के रूप में नारी प्राप्त हुई है वहाँ उसने अभिनव से
अभिनव सृष्टि की है। नारी की इसी प्रतिभा से पराजित हो हमारी श्रद्धा फूट
पडी।
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में ।
पीयूष स्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में ।...... उत्तम विद्रोही
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