Sunday, 19 February 2017

चुनाव- दो महीने-सात चरण “क्यों”

एक मन मे कल्पना आई काफी सोचा ओर समझा चुनाव के इतने चरण क्यू ? भारत में जारी चुनाव के आठं- नो चरण का मतदान होता है. ऐसे में मन मे सवाल उठतेे हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदान को इतना लंबा खींचने की क्या ज़रूरत है.?
भारत के लंबे चुनाव अनपेक्षित परिणामों की तरफ़ ले जाते हैं. इससे चुनाव प्रचार तीखा और कटुतापूर्ण हो जाता है और आदर्श आचार संहिता के कारण विकास कार्य ठप पड़ जाते हैं ! वह सवाल उठाते हैं, "अगर इंडोनेशिया और ब्राज़ील जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश अपना चुनाव एक दिन में समाप्त कर सकते हैं तो क्या भारत अपनी मज़बूत चुनावी मशीनरी के दम पर एक दिन में चुनाव संपन्न नहीं करा सकता?"
"लंबे और कई चरणों में संपन्न होने वाले चुनाव का एकमात्र कारण सुरक्षा है.""स्थानीय पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगता है इसलिए हमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ती है. इन सुरक्षा बलों को उनकी बाक़ी ज़िम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जाता है और चुनावों के दौरान शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए उन्हें पूरे देश में भेजा जाता है. यही कारण है कि इसमें समय लगता है."
"साफ़-सुथरे चुनाव करवाना चुनाव आयोग की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है. जब से कई चरणों में चुनाव प्रारंभ हुए हैं, निश्चित रूप से वे पहले से ज़्यादा स्वतंत्र और निष्पक्ष हो गए हैं.! मगर लंबे चुनावों का असर काँटे की टक्कर वाले मुक़ाबलों में लंबे चरण के चुनावों से अंतिम नतीज़ों पर मुश्किल से ही कोई असर होता है क्योंकि मतदाता "नहीं जानते कि कौन जीत रहा है." इसलिए कई चरणों वाले चुनाव का अंतिम नतीजों पर कोई असर नहीं होता.वेसे चरणों में होने वाले चुनाव से शुरुआती दौर वाले में लड़ने वाले प्रत्याशियों और दलों को नुकसान होता है क्योंकि उन्हें अपने चुनाव अभियान के लिए कम समय मिलता है.!
लेकिन बाद के चरणों में चुनाव लड़ने वाले दलों और प्रत्याशियों को ज़्यादा पैसा ख़र्च करना होता है और चुनावी अभियान में ज़्यादा ऊर्जा लगानी पड़ती है. वास्तव में लंबा चुनावी अभियान किसी के पक्ष में नहीं होता !
भारत के लंबे चुनाव वास्तव में देश की एक सबसे बड़ी कमज़ोरी को उजागर करते हैं. वह है कम वेतन पाने वाली, अव्यवस्थित, कम प्रशिक्षित और अपर्याप्त पुलिस. जब तक कि पुलिस बल को मज़बूत नहीं किया जाता है और इसके स्तर में सुधार नहीं किया जाता है, मतदाताओं को इसी तरह के "अंतहीन चुनावों का सामना" करना होगा.! रविवार 19 फरवरी को उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण का चुनाव संपन्न हो गया. अभी भी चार चरण का चुनाव होना बाकि है. उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में इस बार का चुनाव कार्यक्रम दो महीने से भी अधिक समय तक चलेगा. इसमें सबसे अधिक समय उत्तर प्रदेश में ही लग रहा है. यह चुनाव चार चरणों में भी आसानी से कराये जा सकते थे.
प्रश्न यह उठता है की उत्तर प्रदेश की चार सौ तीन विधानसभा सीटों के चुनाव को सात हिस्सों में क्यों बांटा गया?
क्या इस प्रदेश के नागरिक इतने हिंसक है की चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की आवश्यकता है?
क्या प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पर चुनाव आयोग को पूर्ण भरोसा नहीं था?
क्या एक बार में सौ विधान सभाओं में चुनाव करने लायक वोटिंग मशीने उपलब्ध नहीं थी?
इन सबसे ऊपर एक और यह् प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है की कुछ राजनैतिक दल जिनके पास एक या दो ही स्टार प्रचारक हैं उनकी सहूलियत के लिए ये चुनाव सात चरणों में कराये जा रहे हैं !
अवश्य ही इन प्रश्नों पर विचार कर भविष्य के लिए इनका हल खोजा जाना चाहिए क्योंकि चुनाव के इन दो महीनों में अनेक प्रकार की पाबंदियां भी लगती है जिनका जम कर दुरूपयोग किया जाता है और पीड़ित प्रदेश का छोटा व्यापारी और आम नागरिक ही होता है ! .......
उत्तम जैन ( विद्रोही )

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