Monday, 13 February 2017

प्रेम दिवस ---

प्रेम दिवस ---किसी शायर की ये पंक्तिया... अपना दिल पेश करूं, अपनी वफा पेश करूं कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करुं ! जो तेरे दिल को लुभाए वो अदा मुझ में नहीं क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करुं ! कहते हैं कि अगर किसी शायर को आप से मोहब्बत हो जाए तो आप कभी मर नहीं सकते...... जीवन मे रिश्ते किसी त्योहार या पर्व , डे के मोहताज नही होते बस यह तो अभिव्यक्ति व्यक्त करने का अवसर होता है ! प्यार एक ऐसा शब्द है जिसे व्यक्त नही किया जा सकता प्यार तो दिल मे बसा होता है जो स्वयं प्रकट होता है ! प्यार अपनी माँ से भी होता है प्यार अपनी संतान से भी होता है प्यार हमे मातृ भूमि , जन्मभूमि से , दोस्तो से , सखियो से , प्रभु से , धर्म से व अपनी प्रेयसी से भी होता है ..... मगर जेसा भी हो प्यार सच्चा हो निस्वार्थ हो यह जरूरी है ! अफसोस आज इस युग मे यह प्यार सिर्फ एक स्वार्थ से परिपूर्ण होता है ! प्यार तो हम करते है मगर यह प्यार सच्चा नही स्वार्थ से जुड़ा प्यार होता है ! इसलिए आज प्यार की परिभाषा बदल गयी ओर हमे पश्चिम संस्कृति के अनुरूप यह वेलंटाईन डे के रूप मे मनाना पड़ता है ! प्यार जताना किसी एक दिन के लिए निहित नही होता प्यार तो हर पल हर क्षण होता है वही प्यार सच्चा प्यार है ! प्यार जो हमारे सामने हो उसे ही हम करे यह नही जो आज हमारे साथ नही है उनसे भी आप प्यार करते हो आज मेरी पूर्व पत्नी कुसुम मेरे साथ नही है इसका तात्पर्य यह नही मे उसे आज प्यार नही करता मेरा हर पल हर क्षण मेरे रोम रोम मे बसा है ! मेरा प्यार सच्चा है उसी फलस्वरूप उसी पत्नी के रूप मे मुझे मेरी अर्धांगिनी के रूप मे ममता मिली ! ओर मुझे जीवन संगिनी के रूप मे प्यार दे रही है ! सच प्यार प्रभु का दिया हुआ तोहफा है जिसे संभालकर सँजोए रखना हमारा कर्तव्य है जब हम इस कर्तव्य से विमुख हो जाते है ! एक दोहा है ... पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोइ ! ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होइ ! अर्थात प्यार से जीवन मे एक नया जोश व जीने का साहस मिलता है प्यार जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है ! हम जीवन मे सभी से प्यार करे जीवन को सफल बनाए प्यार को सिर्फ एक वेलंटाईन डे तक ही सीमित न रखे ! आज मेरी पत्नी ममता के नाम चंद लाइन..... प्रेम का मतलब है तुम्हारे साथ रहना। तुम मुझे माफ नहीं करती पर सारे अपमान पी कर भी मैं तुम्हें मना लेता हूं। हालांकि तुम कहती हो कि इसका उल्टा ही सच है। मैं बांहें फैलाकर जरा-सा मुस्करा देता हूं। ओह ख्वाईशें प्रेम दिवस की तुम्हें कोई यादगार तोहफ़ा दूँ तो तोहफ़ा समझ में नहीं आता इसलिये मैंने खुद को ही तुम्हें तोहफ़े में अपने आप को सौंप दिया है उम्मीद है कि अब तो.. तुम्हें तोहफ़े की कोई उम्मीद मुझसे न.. रहती होगी… और अगर हो तो… दफ़न कर लो उसे क्योंकि अब मैं तुम्हारा हूँ........ उत्तम जैन (विद्रोही)

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