भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वह शिव भी है और शक्ति भी, तभी तो भारतीय संस्कृति में सनातन काल से अर्धनारीश्वर की कल्पना सटीक बैठती है। इतिहास गवाह है कि भारतीय समाज ने कभी मातृशक्ति के महत्व का आकलन कम नहीं किया और जब भी ऐसा करने की कोशिश की तो समाज में कुरीतियाँ और कमजोरियांँ ही पनपीं। हमारे वेद और ग्रंथ नारी शक्ति के योगदान से भरे पड़े हैं।
नारी को आरंभ से ही कोमलता, भावकुता, क्षमाशीलता, सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है पर यही नारी आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी बनने से भी परहेज नहीं करती क्योंकि वह जानती है कि यह कोमल भाव मात्र उन्हें सहानुभूति और सम्मान की नजरों से देख सकता है, पर समानांतर खड़ा होने के लिए अपने को एक मजबूत, स्वावलंबी, अटल स्तंभ बनाना ही होगा। इतिहास गवाह है कि आजादी के दौर में तमाम महिलाओं ने स्वतंत्रता-आंदोलन में बढ़-चढकर हिस्सा लिया। एक तरफ इन्होंने स्त्री-चेतना को प्रज्वलित किया, वहीं आजादी के आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आगे बढ़ीं। कईयों ने तो अपनी जान भी गँवा दी, फिर भी महिलाओं के हौसले कम नहीं हुए। रानी चेनम्मा, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, बेगम हजरत महल, ऊदा देवी जैसी तमाम वीरांगनाओं का उदाहरण हमारे सामने है, ....
अज्ञात कवि की ये चंद लाइन नारी शक्ति का अहसास दिलाती है ......
भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है ,
पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की !
जितने भी इस पुरुष धरा पर ,जन्मे उसकी कोख से ,
उनकी स्मृति दुरुस्त कराना ,कोशिश है हर नारी की !
भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,
संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की !
वेसे नारी शक्ति किसी परिचय की मोहताज नही .... इन्दिरा गांधी , पी टी उषा हो या कल्पना चावला आदि आदि महिलाओ ने अपने अपने क्षेत्र मे अपना नाम रोशन किया है
पूर्व मे जेसे ऐतिहासिक प्रथा जो प्रचलित थी जेसे सती प्रथा , जौहर प्रथा, परदा प्रथा , देवदासी आदि आदि से दूर हुई ! वर्तमान मे नारी का स्वरूप बदला है आज नारी घर से बाहर निकली सामाजिक क्रांति का बिगुल बजाया आज भारत में महिलाएं अब सभी तरह की गतिविधियों जैसे कि शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि में हिस्सा ले रही हैं।भारत में नारीवादी सक्रियता ने 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध के दौरान रफ़्तार पकड़ी. महिलाओं के संगठनों को एक साथ लाने वाले पहले राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों में से एक मथुरा बलात्कार का मामला था। एक थाने (पुलिस स्टेशन) में मथुरा नामक युवती के साथ बलात्कार के आरोपी पुलिसकर्मियों के बरी होने की घटना 1979-1980 में एक बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का कारण बनी. विरोध प्रदर्शनों को राष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से कवर किया गया और सरकार को साक्ष्य अधिनियम, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता को संशोधित करने और हिरासत में बलात्कार की श्रेणी को शामिल करने के लिए मजबूर किया गया। महिला कार्यकर्ताएं कन्या भ्रूण हत्या, लिंग भेद, महिला स्वास्थ्य और महिला साक्षरता जैसे मुद्दों पर एकजुट हुईं ओर एक नयी क्रांति की अलख जगी ज़्यादातर देखा जाता सबसे बड़ी महिला अत्याचार के लिए शराब की भूमिका रही है चूंकि पुरुषो मे शराब की लत को भारत में अक्सर महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जोड़ा जाता है जो शत प्रतिशत सत्य भी है ! महिलाओं के कई संगठनों ने कई राज्यों में शराब-विरोधी अभियानों की शुरुआत की ! मगर फिर भी यह समस्या कम हुई है मगर समस्या का अत नही हुआ है ! महिला शब्द में ही महानता, ममता, मृदुलता, मातृत्व और मानवता की कल्याणकारी प्रवृत्तियों का समावेश है । महिलाओं के कारण ही सृष्टि में सुख-शांति, सहृदयता, सहयोग के संस्कार से संस्कृति का उत्थान और उत्कर्ष हो रहा है ।
जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएँ अपनी श्रेष्ठता-विशिष्टता पुरूषों से बढ़-चढ़कर सिद्ध प्रसिद्ध कर रही है । इसके बावजूद भी आज देश-विदेश में महिला उत्पीड़न का ग्राफ बढ़ता जा रहा है । तरह-तरह की पीड़ा, हत्या और आत्महत्याओं का दौर थम नहीं रहा है । महिलाओं की सहजता, सहनशीलता और संकोच के दबाव को कमजोरी समझा जा रहा है, जबकि महिलाएँ पुरुषों से किसी तरह कमजोर नहीं है पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं को पहले पाव की जूती समझा जाता था । खरीदी हुई कोई वस्तु समझकर उसे चाहे जब चाहे, कुचल-मसल दिया जाता रहा है । किन्तु जैसे-जैसे महिला जागृति बढ़ी मानवाधिकार की आवाज बुलंद हुई,
राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं को आगे बढ़ने में कई बार बाधाएँ उत्पन्न हुई मगर आज महिला जागृति बढ़ी मानवाधिकार की आवाज बुलंद हुई ! महिला सशक्तिकरण, कार्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं द्वारा स्थापित कीर्तिमान यह सिद्ध करता है कि महिलाओं के बढ़ते बदलाव के कदम अब रोके नही जा सकते हैं । महिलाओं द्वारा ही देश को भ्रष्टाचारमुक्त किया जा सकता है । देश को ईमानदार और खुशहाल बनाने के लिए महिलाओं के हाथ में देश का नेतृत्व सौपा जाना समय की बुलंद आवाज है ।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) ( सूरत - थामला )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज़
मो - 8460783401
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