Thursday, 30 November 2017

देश की आज़ादी के सात दशक बाद भी गुजरात चुनाव मे जाति और धर्म की राजनीति एक विडम्बना

गुजरात में चुनाव प्रचार चल रहा है कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी मन्दिरों में दर्शनार्थ जा रहे हैं | सोमनाथ के मन्दिर के अतिथि रजिस्टर में गैर हिन्दू को दर्शन से पहले रजिस्टर में नाम दर्ज कराना पड़ता है यह नियम सुरक्षा कारणों से 2015 से बनाया गया है राहुल गांधी का नाम अहमद पटेल के साथ इसी रजिस्टर में दर्ज था राजनीतिक गलियारों चैनलों में चर्चा होने लगी | चुनाव के समय हर बात का महत्व होता है वैसे धर्मनिरपेक्ष देश में किसका क्या धर्म है महत्वहीन है लेकिन चुनाव का समय है
गुजरात चुनावी रंग के आरोप प्रत्यारोप के बीच भाजपा की गोलबंदी मे लगी कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी के धर्म को लेकर विवाद पैदा हो गया है ! चुनावी मौसम के बीते डेढ़ महीने में राहुल जब जब मंदिर में दर्शन के लिए गए भाजपा व कांग्रेस विरोधी  ने निशाना साधा  राहुल ने द्वारका में माथा टेककर गुजरात में अपनी नवसर्जन यात्रा शुरू की थी. सोमनाथ और द्वारकाधीश के अलावा राहुल गांधी अब तक अक्षरधाम मंदिर, कबीर
मंदिर, चोटिला देवी मंदिर, दासी जीवन मंदिर, शंकेश्वर जैन मंदिर, पावागढ़ महाकाली, वीर मेघमाया, बादीनाथ मंदिर, कागवड के खोडलधाम, नाडियाड के संतराम मंदिर, नवसारी में ऊनाई मां के मंदिर, बहुचराजी मंदिर, राजकोट के जलाराम मंदिर और वलसाड के कृष्णा मंदिर में जाकर दर्शन कर चुके हैं. राहुल ने कहा भी था कि मैं शिवभक्त हूं और सत्य में विश्वास रखता हूं. इस विवाद से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भी राहुल गांधी के मंदिर जाने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि आज जिन्हें सोमनाथ याद आ रहे हैं उन्हें इसका इतिहास भी नहीं पता. तुम्हारे परनाना, तुम्हारे पिता जी के नाना, तुम्हारी दादी मां के पिता जी, जो इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे. जब सरदार पटेल सोमनाथ का उद्धार करा रहे थे तब उनकी भौहें तन गईं थीं.”
मगर एक बड़ी विडम्बना है देश की आज़ादी के सात दशक बाद भी 21वीं सदी में मूल मुद्दे से दूर चुनाव जाति और धर्म के नाम पर ही हो रहे हैं. भले हम विश्व शक्ति बनने की चाहत रखते हैं या विश्व मे नया आयाम बनाने की बात करे  लेकिन यह निराशाजनक है कि चुनाव में जाति और धर्म ही मुख्य राजनीतिक भूमिका के केंद्र में होती हैं. जिस राज्य के विकास मॉडल पर मोदी जी ने मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री का सफर तय किया उस  राज्य गुजरात  चुनाव जाति और धर्म के नाम पर हो रहे है इसका जीवंत उदाहरण है.
एक तरफ कांग्रेस जाति की बिसात पर भाजपा को मात देने की जुगत में है तो भाजपा अपने  हिन्दू कार्ड के भरोसे कांग्रेस को क्लीन बोल्ड करने की चाहत लिए है. जाति फ़ॉर्मूले में उलझ कर भाजपा बिहार का चुनाव गवां चुकी है लेकिन वहां परिस्तिथियां दो विरोधी लालू ओर नीतीश के साथ आने से अलग बन गयी थी. लेकिन गुजरात के तीनों लड़कों हार्दिक,अल्पेश और जिग्नेश को साथ लेकर राहुल मोदी को जातीय गणित में उलझाना चाहते हैं. ऐसे में भाजपा भी कभी हिन्दू आतंकवाद जैसे पुराने मुद्दे और अब राहुल के धर्म पर सवाल उठाकर धार्मिक गोलबंदी बनाने की कोशिश में हैं. क्योंकि गुजरात का पुराना इतिहास रहा है कि जब-जब यहां धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ है तो सारे समीकरण धरे के धरे रह गए हैं. बहरहाल गुजरात के चुनावी फिजां में जाति फैक्टर काम करता है या धर्म कार्ड इसका सही विश्लेषण चुनाव परिणाम के दिन यानि 18 दिसंबर को ही पता चलेगा
विचार - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

Wednesday, 29 November 2017

गुजरात चुनावों में पूरा सफ़ाया होना ही है - चाहे जो दम लगा दे ---- उत्तम जैन ( विद्रोही )

पिछले कुछ दिनो से शोशल मीडिया , प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रोनिक मीडिया मे चर्चा अगर हो रही है तो सिर्फ गुजरात ओर गुजरात ! वेसे चुनावो के समय यह होता ही है मगर गुजरात चुनाव पर सिर्फ गुजरात व हिंदुस्तान की ही नहीं पूरे विश्व की नजर है आमजन को इंतजार है चुनाव परिणाम का !  लोकतंत्र में हार और जीत तो लगी ही रहती है और जनता अपने विवेक और समझ का इस्तेमाल करते हुए किसी एक पार्टी को सत्ता के सिंहासन तक पहुँचाने का काम करती है. उस तरह से देखा जाए तो गुजरात चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाली पराजय पर किसी को भी हैरानी नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस पार्टी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह पार्टी और इसके नेता अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि जनता ने जब इस पार्टी को २०१४ में सत्ता से बाहर किया था तो उसे पिछले ६० सालों के कुशासन , भ्रष्टाचार और देशद्रोह का दंड दिया था. २०१४ का सत्ता परिवर्तन कोई मामूली सत्ता परिवर्तन नहीं था. जो लोग पिछले कई दशकों से देशद्रोहियों के तलवे चाट चाट कर देश के बहुसंख्यकों का लगातार अपमान कर रहे थे और जो लोग अपने कुशासन और भ्र्ष्टाचार से लगातार जनता और देश को लूटने का काम कर रहे थे, जनता ने २०१४ में उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था.
२०१४ में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी को ज्यादातर राज्यों में भी उसी तरह की शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा लेकिन इस पार्टी ने न तो अपनी हार से कोई सबक लेने की कोशिश की और न ही कभी अपनी भ्रष्टाचार,कुशासन और देशद्रोही मानसिकता के लिए देश की जनता से माफी माँगी. चोरी और सीनाजोरी की तर्ज़ पर इस पार्टी के नेता लगातार अपनी इन नीतियों का समर्थन करते रहे और मोदी, भाजपा और संघ की नीतियों का पुरजोर विरोध करते रहे. अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए यह पार्टी इस हद तक नीचे गिर गयी कि इसने मुस्लिम आतंकवादियों को खुश करने के लिए कुछ देशभक्त हिन्दुओं को फ़र्ज़ी मामलों में गिरफ्तार करके उन्हें “हिन्दू आतंकवादी” के नाम से पुकारना शुरू कर दिया. इन लोगों के खिलाफ दायर फ़र्ज़ी मामले अदालतों में नहीं टिक सके और उन्हें अदालतों को बाइज़्ज़त बरी करना पड़ा. लेकिन इस पार्टी ने बहुसंख्यक समुदाय को जलील करने की अपनी नापाक कोशिश लगातार जारी रखी. जहां एक ओर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के सभी संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहला हक़ होने की बात कही, वहीं कांग्रेस पार्टी एक ऐसे कानून को लागू करना चाहती थी जिसके तहत सांप्रदायिक हिंसा होने पर दोष चाहे किसी भी समुदाय का हो, उसके लिए बहुसंख्यक समुदाय को ही दोषी माने जाने की व्यवस्था थी. कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तो पाकिस्तान में जाकर यह भी गिड़गिड़ाए कि मोदी को हारने में हमारी पार्टी की मदद करो. अगर यह देशद्रोह नहीं है तो फिर देशद्रोह किसे कहते हैं ?
पिछले ३ सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से देश के सर्वांगीण विकास के लिए ठोस कदम उठाये हैं और जिस तरह से नोटबंदी और जी एस टी के जरिये काले धन पर लगाम लगाई है, उससे इस पार्टी के नेता पूरी तरह बौखलाए हुए हैं विकास को पागल करार दिया  और उस बौखलाहट में न सिर्फ इस पार्टी के अपने नेता बल्कि इसकी सहयोगी पार्टियों के नेता भी अनाप शनाप बयानबाज़ी में जुटे हुए है. पिछले ६० सालों में जिस बड़े पैमाने पर गोलमाल और भ्रष्टाचार हुआ था , उसके चलते सभी नेताओं ने मोटा माल बनाया था. नोटबंदी का असर यह हुआ कि पिछले ६० सालों में जोड़ा हुआ सारा “मोटा माल” या तो बेकार हो गया या फिर बैंकों में जमा करवाना पड गया. अब जब बैंकों में यह “मोटा माल” जमा हो गया तो उसका मतलब यह नहीं है कि उसका रंग “काले” से “सफ़ेद” हो गया. आयकर विभाग ने अब जब इस जमा किये गए “काले धन” का हिसाब माँगना शुरू किया तो इन सभी विपक्षी नेताओं की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी. जब नोटबंदी के समय यह विपक्षी नेता अपना मूर्खतापूर्ण विरोध कर रहे थे, तभी मैंने यह लिखा था कि विपक्षी नेताओं का इस तरह से छाती पीट पीट कर विधवा विलाप करना ही इस बात का सुबूत है कि इन लोगों ने इस देश को पिछले ६० सालो  में किस तरह से लूट लूट कर काला धन इकठ्ठा किया है. एक तरफ जहां नोटबंदी ने पिछले ६० सालों में कमाए गए काले धन का सफाया कर दिया, दूसरी तरफ जी एस टी ने यह भी सुनिश्चित कर दिया कि आज के बाद काले धन की उपज कम से कम हो या फिर न के बराबर हो. बेनामी संपत्ति के कानून को लागू करके मोदी जी ने इन लोगों के नीचे से रही सही जमीन भी खिसका दी है. नतीजा यह है कि न सिर्फ कांग्रेस पार्टी और उसके नेता बल्कि इसकी सभी सहयोगी पार्टियां और उसके नेता भी पी एम् मोदी का इस तरह से विरोध कर रहे हैं मानों मोदी ने इन लोगों के काले कारनामों पर लगाम लगाकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो.
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने क्योंकि पिछले ६० सालों में सत्ता का सुख मिल बाँट कर भोगा है और अपने लिए चाटुकारों की एक बहुत बड़ी फौज भी तैयार की है जो समय समय पर इन तथाकथित विपक्षी राजनीतिक दलों और उनके तथाकथित नेताओं की हाँ में हाँ मिलाकर मोदी, भाजपा कर संघ को बदनाम करने का षड्यंत्र रचती रहती है. यह लोग कभी कलाकार और लेखक बनकर अपने अपने “अवार्ड” वापस करना शुरू कर देते हैं, कभी अर्थशास्त्री बनकर भारत की अर्थव्यवस्था पर गैर जरूरी टीका टिप्पणी करना शुरू कर देते हैं.  इन लोगों को यह लगता है कि यह सारी बातें जो इस ब्लॉग में लिखी गयी हैं, वे इस देश की आम जनता तक नहीं पहुंचेगी और जनता को वही समाचार मालूम पड़ेंगे जो इनके नेता या इनके पाले हुए मीडिया के लोग जनता तक पहुंचाएंगे. लेकिन सोशल मीडिया ने इन लोगों के मंसूबों पर अब पानी फेर दिया है. गुजरात की जनता हो या देश के किसी अन्य राज्य की जनता, कांग्रेस और इसकी सहयोगी पार्टियों के कारनामों से सभी पूरी तरह वाकिफ है और हर आने वाले चुनाव में जनता इस पार्टी को दण्डित करने के लिए पहले से भी अधिक आतुर दिखाई देती है. गुजरात में हालांकि कांग्रेस पार्टी तरह तरह की “नौटंकियां ” करके जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रही है लेकिन गुजरात जैसे राज्य की जनता “कांग्रेस की इस प्रायोजित नौटंकी” का शिकार होगी, इस पर कांग्रेस पार्टी को शायद खुद भी यकीन नहीं होगा. अब वह समय दूर नहीं आने वाले नए कांग्रेस अध्यक्ष को गुजरात की जनता यह अपरोक्ष संदेश प्रदान कर दे की नोटबंदी व जीएसटी से ज्यादा हमे देशहित के लिए  मोदी मे विश्वास व उम्मीद है 
लेखक - प्रधान संपादक 
उत्तम जैन ( विद्रोही ) 
विद्रोही आवाज 
मो - 8460783401       

Saturday, 25 November 2017

जैन समाज के लिए विचारणीय - मन की पीड़ा अपनों के साथ

जैन धर्म का मूल स्वरुप क्या था ? और आज जैन धर्म का क्या स्वरूप हो गया है ? भगवान महावीर के समय का एक अखंड जैन समाज आज विभिन्न पंथो मे बिखरा पड़ा है. दिगम्बर, श्वेताम्बर तक तो ठीक था, पर अब ना जाने कितने गच्छ, कितने पंथ ? जैन धर्म के नाम पर कुछ लोगो ने तो कमाने की दुकान तक खोल दी है. धर्म के प्रति लोगो की अज्ञानता का फायदा उठाकर अपने स्वार्थो की पूर्ति के अनुसार धर्म की परिभाषा का अर्थघटन करके खुले आम जैन धर्म के सिदान्तो का माखोल उडाया जा रहा है. खेर मुख्य विषय पर चलते है
जैन समाज के लिए विचारणीय---- 
आज जैन समाज ने अपने अवदानों से देश मे ही नही सम्पूर्ण विश्व मे एक अलग पहचान बनाई है ! दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है. जैन धर्म जो कि अनादिकाल से चलता रहा है। इसकाे और आगे बढ़ाने की जरूरत है। जैन धर्म की शिक्षा देना आज की युवा पीढ़ी और छोटे बच्चों को अनिवार्य हो गया है। इससे उनमें त्याग ,तपस्या और संस्कारी होने की भावना आती है। जिस प्रकार स्कूल में छात्र को पढ़ाने के लिए अध्यापक जरूरी है वैसे उसकी प्रकार धर्म का प्रभावना करने के लिए समाज में जैन गुरु का होना जरूरी है। आज जैन समाज के दोनों प्रमुख घटक श्वेतांबर व दिगंबर मे सभी गुरु भले अलग अलग पंथ के अनुगामी है मगर सभी जैन धर्म गुरुओ का मिशन एक ही है ! जैन समाज काफी स्मृध है ! जैन समाज मे भामाशाहों की कमी भी नही दोनों खुले हाथो व दिमाग से कमाते है ! खुले हाथो से सेवा कार्यो मे दान भी देते है मगर कहावत है जहा माँ लक्ष्मी मेहरबान होती है वहा विवेक अनिवार्य है !  मगर अफसोस लक्ष्मी तो जैन समाज पर काफी मेहरबान है मगर विवेक की कमी जरूर महसूस हो रही है ! जैन समाज धार्मिक प्रसंगो पर सफ़ेदपॉश राजनेताओ को सादर आमंत्रित करती है ! जिनके कपड़े तो दूध से चमकते सफ़ेद है मगर दिल व नियत कोयले से भी काला ! ज्यादातर सफेदपोश नेता (कुछ को छोड़कर ) सूरा व सुंदरी का सेवन करते हुए मिल जाएंगे ! मांसाहार व मदिरा सेवन से अछूते नही होंगे ! भला इनका धार्मिक व सामाजिक मंच पर क्या जरूरत मेरी समझ से बाहर है ! आज जैन समाज मे साधू ,संत, आचार्य हमे चातुर्मास काल या अतिरिक्त काल  मे लीलोत्री (हरी सब्जी ) , ज़मीकंद आदि का त्याग करने की प्रेरणा देते है ! ओर जब हमारे साधू साध्वी आचार्यगण जो मांसाहार करते है उनके यहा गोचरी ( आहार) नही लेते है केसी विडम्बना है उन्हे हमारा जैन समाज साधू संतो के प्रवचनो व आयोजनो मे अग्रिम पंक्ति मे सादर आमंत्रित करता है ! क्या कभी इन राजनेताओ को आमंत्रण प्रेषित करने से पहले पूछता है की आप मांसाहार का सेवन करते हो या नही अगर करते हो तो हम आपको आमंत्रण नही दे सकते ! समाज के चंद ठेकेदारो को तो नेताओ की नजर मे आना है ! बड़े खुश होते है की हमारी पहचान बढ़ेगी आखिर पहचान बनेगी को कभी काले कारनामे मे नेता जी मददगार बनेंगे ! जरूरत है समाज के साधू संतो व आचार्यो को आगे आकार इन भ्रष्ट राजनेताओ को बुलाने पर प्रतिबंध लगाना होगा ! अरे ये नेता हमे क्या सहायता करेंगे हमारा समाज ही बुद्धिजीवी है भले हम कुछ समय के लिए मार्ग से भटक गए है ! क्या आज जैन समाज शिक्षा मे अग्रणी होने के बाद भी राजनीति मे प्रवेश का पूर्ण अधिकारी नही है ! आज जैन समाज से बहुत ही कम लोग राजनीति मे मिलेंगे ! कुछ राजनीति मे पहुँच भी गए तो विवेक बुद्धि व सेवाभावना व मेहनत से नही अपनी काली कमाई से विवेक को त्याग कर राजनीतिक कुर्सी तक पहुंचे है ! ओर राजनीति के शीर्ष तक पहुँचते पहुचते विवेक से दूर विवेकहीन हो गए है ! फिर वहा पहुचने के बाद भी गिनेचुने को छोड़कर समाज के लिए कोई कुछ खास योगदान प्रदान नही किया ! आज जैन समाज मे साधू संतो के आयोजन व प्रवचन मे बड़े बड़े नेताओ को बुलाने की होड सी लगती है पर क्यू ? मेरी समझ मे नही आता ! उन्ही नेताओ को समाज के अग्रिम पंक्ति मे बेठने वाले सफ़ेदपॉश समाज के नेता कहु तो आतिशयोक्ति नही होगी ! क्यूकी गुण तो उनमे भी नेताओ से कम नही काली कमाई से समाज मे एक उच्च स्थान पा लिया ! मुझे उनसे भी शिकायत नही पर आज समाज मे उभरती प्रतिभा को क्यू नही सन्मान दिया जाता है ! क्यू नही उनकी होंसला अफजाई करके आगे बढ्ने को प्रेरित करते है ! जैन समाज के बहुत नही तो भी कुछ लोग तो उच्च पद पर या ख्याति प्राप्त मिल ही जाएंगे हा उन्हे कभी कभार समाज कुछ सन्मान जरूर प्रदान कर देता है ! मगर जरूरत है आज समाज मे उभरती प्रतिभा को सन्मान प्रदान किया जाये ! उन्हे आगे बढ्ने को प्रेरित किया जाये ! शिक्षा के क्षेत्र मे हो या व्यावसायिक क्षेत्र मे या पत्रकारिता के क्षेत्र मे या उच्च अधिकारी के क्षेत्र मे उनके इस संघर्ष के समय मे होंसला बढ़ाने की जरूरत है न की टांग खींचने की ! आज जैन समाज अनदेखा कर रही है यह एक सोचनीय विषय है ! अपने दायित्व से दूर भाग रहा है हमारा यह जैन समाज जरूरत है समाज के अग्रणी को अपने अभिमान को त्यागकर समाज की उभरती प्रतिभा को आगे लाने का प्रयास करना होगा ओर उन्हे उचित सन्मान प्रदान कर के आगे बढ्ने को प्रेरित करना होगा ! उन्ही मे से जनता के सेवक , राजनीतिज्ञ , डॉक्टर , वकील , पत्रकार , इंजीनियर , वेज्ञानिक व समाज सेवी की सेना बनेगी फिर हमे जरूरत नही पड़ेगी की भ्रस्ट राजनेताओ व अधिकारियों को हमारे धार्मिक मंच पर बुलाकर मंच पर दाग लगाए ! खेर मुझे मालूम है समाज के मोटी चमड़ी के लोगो को मेरी यह बात गले नही उतरेगी एक विद्रोही या पागल समझकर कुटिल हंसी समर्पित कर देंगे ! आज के युवा को सोचना होगा मनन करना होगा क्यू की युवा ही देश का भविष्य है समाज का भविष्य है ! आप सभी से मेरा अनुरोध मेरे विचारो को अन्यथा न लेकर मेरी भावनाओ को समझे ! जय जिनेन्द्र जय महावीर ……………….
उत्तम जैन विद्रोही
mo-8460783401

Thursday, 23 November 2017

जैन समाज के गिरते संस्कार - आडंबर एक चिंतनीय विषय


जैन समाज ने पिछले 2500 वर्षों की यात्रा में हमने क्या पाया और क्या खोया, गहराई से अवलोकन करने का विषय है...सम्पूर्ण जैन समाज के लिए...
गहराई से चिंतन करने पर यह बात सामने आती है कि पाने की बात तो छोड़ दे, सिर्फ खोया ही खोया है। अपने पूर्वजों की संचित संस्कारो जेसी सम्पति को भी हम सम्भालकर नही रख सकें है, योग्यता पर शर्म करने जैसा है।
क्या जैन समाज की कोई सर्वोच्च संस्था है, जिसने कभी यह सर्वें कराया है, जो जैन समाज के सभी वर्गों के बारे चिंतन करती है...?
वेसे समस्या तो अनेक है हमारे बुद्धिजीवी समाज की मगर आज मे सिर्फ एक समस्या पर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा - जैन समाज मे हो रहे शादी ब्याह ओर आडंबर के साथ हमारे गिरते संस्कार
सबसे बड़ी व बहुत गंभीर समस्या है शादी ब्याह मे आडंबर ,ओर आडंबर के साथ हमारे गिरते संस्कार --- पहले मे अपनी पीड़ा गिरते हुए संस्कारो की तरफ व्यक्त करना चाहूँगा आज सम्पूर्ण जैन समाज चाहे वह दिगंबर हो या श्वेतांबर हमारी पोराणिक परंपरा की तरफ नजर डाली जाए ओर वर्तमान को देखा जाये अमूलचुल परिवर्तन हुआ है ! परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ परिवर्तन होना भी जरूरी है मगर वह परिवर्तन नहीं जिसमे हमारा समाज संस्कार विहीन हो जाए ! मुझे जब भी 70-80 वर्ष के बुजुर्ग से वार्तालाप का अवसर मिला तब उनसे ज्ञात हुआ आज से ठीक 20-25 वर्षो पूर्व हमारे घरो मे शादिया होती थी ! उन शादियो की तरफ नजर डाली जाए अभी की तुलना मे पकवान कम होते थे मगर मेहमान व शादी मे बाराती को सन्मान के साथ बाजोट लगा कर बड़ी मनुहार के साथ खाना खिलाया जाता था ! ओर आज पकवान तो बहुत ज्यादा होते है भले मेहमान मधुमेह से पीड़ित ( यह रोग शादी मे आने वाले मेहमानो मे ओसत 20% तो होता ही है ) नहीं खाते ! साथ मे कंदमूल , रात्रि भोजन ओर साथ मे बुफ़े खाना जेसे भिख मागते थाली हाथ मे लाइन मे खड़े होते है ! क्या मेहमान नवाजी यही है ? मेरी समझ से परे है ! वेसे मेरी बात आप जेसे ओर बुद्धिजीवी समाज को थोथी लगेगी मगर विचारणीय है मेहमानो को सन्मान व मनुहार के साथ खाना खिलाना आपके लिए शर्म की बात है होगी भी क्यू की आप लाखो रुपए खर्च करके 700 से 2500 तक के डिश का ठेका केटर्स को देते है ! भले आपके मेहमान भीख मांगते हुए खाते है क्यू की वह भी आदी हो चुके है इस तरह से खाने को ! बड़ी विडम्बना हमारे जैन समाज पर महालक्ष्मी बड़ी मेहरबान है तभी तो हम उस लक्ष्मी का दुरु उपयोग कर रहे है ! जिस तरह हाथ की पांचों अंगुली एक जेसी नहीं होती उसी तरह हमारे समाज मे उच्च वर्ग , माध्यम वर्ग व निम्न वर्ग के जैन भाई है किसी की कमाई करोड़ो मे तो किसी की लाखो ओर हजारो मे ओर देखा देखी आडंबर नामक दल दल मे फँसते जा रहे है ! आज जरूरत है जैन समाज इस विषय पर चिंतन करे ओर खाने की मर्यादा बनाए ! वेसे बहुत बाते होती है 21 वस्तु से ज्यादा नहीं बनेगी मगर पालन नहीं हो पा रहा है अब समय आ गया है चिंतन का !
अब साधर्मिक भाईयो से सबसे बड़ी गिरते संस्कार की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा हम हमारे संस्कारो को भूलते हुए हमारे बच्चो की फिल्मी स्टाइल प्रिवेडिंग शूटिंग कराते है क्या वह उचित है कमर मे हाथ डाले व अश्लील द्र्श्य हम उसी प्रिवेडिंग शूटिंग के शादी मे आए मेहमानो को स्टेज पर बड़े पर्दे पर बताते है क्या हमारे जैन समाज के यहीं संस्कार है ? इस प्रिवेडिंग के दुष्परिणाम आप सभी को विदित है ज्यादा प्रकाश डालना यह ब्लॉग बहुत बड़ा हो जाएगा ! दूसरा हम संगीत संध्या का आयोजन करते है शादी के एक महीने या उससे अधिक समय पूर्व कोरियों ग्राफर जो मुख्यतया मुस्लिम ज्यादा होते है बंद कमरे मे अपनी बहू बेटियो के कमर मे हाथ डाल कर सीखाते है वाह जेनियों आपके संस्कार उसे आप अपनी प्रतिष्टा समझते है ! बड़ा दर्द होता है हमारा समाज किधर जा रहा है ! तभी तो किस्से सुनने मे आते है कोरियोग्राफर बहू बेटी को भगा ले गया ! फिर आप किसी को मुह बताने लायक नहीं रहते ! अब कोरियोग्राफर का कार्य पूर्ण होने के बाद आपकी बहू बेटियाँ बार बाला जेसी पूरे समाज व मेहमानो के सामने स्टेज पर कमर मे हाथ डाले ठुमके लगाती है ओर आप तालिया बजाते हो ! क्या आपके पूर्वजो ने यही संस्कार दिये ! ज्यादा नही लिखुंगा मगर समाज के चंद ठेकेदारो व समाज के हर व्यक्ति से अनुरोध करूंगा आप इस पर सामाजिक प्रतिबंध लगाए ! साथ मे सभी जैन धर्म के आचार्य भगवंतों साधू संतो से विनम्र प्रार्थना करता हु ! आप अध्यात्म के साथ जैन धर्म को इस तरह के संस्कारो की तरफ ध्यान दे ओर आप पूरी कोसिश करे जैन धर्म मे आडंबर , प्रिवेडिंग शूटिंग , संगीत संध्या पर प्रतिबंध लगे बहुत तीव्रता से निर्णय लेना पड़ेगा, हमें अपने नाम के वास्ते आडम्बर को रोकना होगा, तभी हम भगवान महावीर के अनुयाई कहलाने के हकदार है ! हम सुधरेंगे तो समाज सुधरेगा
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )