जीवन मे जहर भाग 1 अंक 4 गतांग से आगे ..
संतोष के चेहरे पर सदैव दिखावटी हंसी रहती मगर मन मे पारिवारिक कलह को लेकर पीड़ा थी । हर एक तरीके अपनाए की शांति व इंदु देवी का आपसी तालमेल बेठ जाए । इंदुदेवी उम्र के साथ मधुमेह, ब्लड प्रेशर की शिकार थी । इंदुदेवी शारीरिक समस्या के चलते कुछ ज्यादा ही चीड़ चिड़ी हो गयी । उधर शांति भी मानसिक रूप से तो परेशान थी ही कुछ स्वास्थ्य भी साथ नही देता । हर पल अपने बच्चो की सोचती ओर बच्चो को लेकर छोटी छोटी बातों पर कलह की स्थिति उत्त्पन कर देती वैसे शांति की कुछ हद तक बच्चो की चिंता स्वाभाविक भी थी क्यों कि वह खुद एक माँ थी और माँ की ममता छलकना स्वाभाविक भी था । मगर शांति की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि जिस बात को घर मे संतोष या पूरे परिवार के सामने प्रेम से भी रखकर हर समस्या का समाधान कर सकती थी । मगर शांति प्रेम से बात न कर बात का बतंगड़ बना देती एक कहावत भी है जो कार्य प्यार से होता है लड़ झगड़ कर उसे कभी हांसिल नही किया जा सकता । शांति का एक बार झगड़ना अर्थात पारिवारिक सामंजस्य को वापस पटरी पर आने में 2 माह लग जाते । वैसे शांति व सास इंदुदेवी दोनो की अनबन इस पारिवारिक मतभेद ने हमेशा ज्यादा बढ़ाया । आचार्य तरुण सागर जी का एक कटु प्रवचन की लड़ लो झगड़ लो मगर बातचीत कभी बन्द मत करो बातचीत बन्द करने से सुलह के सारे रास्ते बंद हो जाते है । आचार्य तरुण सागर जी का यह कथन शांति व सास इंदुदेवी पर सटीक साबित हो रहा था । उधर शांति की एक पुत्री अर्चना भी शांति की हरकतों से बहुत दुखी थी मगर माँ के प्रति ममता ओर डर से बिचारी कुछ बोल ही नही पाती । गुमसुम होकर माँ शांति का साथ देती । कभी कभी माँ शांति को समझाने की कोशिश भी करती मगर शांति की जिद्द के आगे नतमस्तक हो जाती । शांति का पुत्र ज्यादा कुछ बोलता नही । इंदुदेवी का भी पौत्र व पोत्रि अर्चना पर ज्यादा दिल नही था क्यों शांति व इंदु देवी के मतभेदों ने सभी की खुशिया छीन भिन्न कर दी । संतोष भी अर्चना व पुत्र को प्यार तो करता था मगर शांति से होते मतभेद कभी कभार नफरत में बदल जाता । वैसे संतोष अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह समझता भी था और जिम्मेदारी निभाना भी चाहता मगर उसे भी जब क्रोध आता तो वह भी आग बबूला हो जाता और शांति व संतोष के कलह का शिकार बनती अर्चना । अर्चना को भी अब शिकायत रहने लगी कि उसके पापा संतोष व माँ शांति दोनो के झगड़े के बीच मे अर्चना को दोषी ठहरा देता । कुछ हद तक संतोष की भी गलती थी मगर संतोष यही सोचता कि अर्चना अपनी माँ शांति को समझाती क्यों नही । अर्चना भी एक छोटा सा जॉब करती वैसे संतोष उससे सहमत नही था कि बेटी अर्चना जॉब करे क्यों कि संतोष को अर्चना की छोटी सी सेलेरी से कोई मतलब नही था । मगर संतोष न चाहते हुए भी अर्चना को जॉब की स्वीकृति दी तो शांति की जिद्द के कारण .. । संतोष से दबे मन से अर्चना को जॉब की स्वीकृति दी थी यू कहा जाए मजबूरी में स्वीकृति दी । अर्चना घर के कार्य मे माँ शांति का भी साथ देती । मगर छोटी उम्र की होने के नाते इतनी समझ नही थी कि माँ शांति को अच्छे से समझा सके ।
संतोष ........ अगले अंक में
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ).