वाणी संयम मनुष्य जीवन का आभूषण है
तेरापंथ धर्मसंघ पर्युषण पर्व का चतुर्थ दिवस - वाणी संयम
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
एक शिक्षक से शिष्य ने जिज्ञासा वश पूछा सदैव प्रसन्न रहने के लिए क्या करना चाहिए?’
शिक्षक ने कहा, ‘अपनी वाणी से अमृत बिखेरते रहो। सभी से प्रेम करो, निश्चय ही सभी से प्रेम पाते रहोगे। इससे प्रसन्नता मिलेगी।’
कुछ क्षण रुककर उन्होंने एक कथा सुनानी शुरू की, ‘फारस देश में एक स्त्री थी। वह शहद बेचने का काम करती थी। शहद तो वह बेचती ही थी, उसकी वाणी भी शहद जैसी ही मीठी थी। उसकी दुकान पर खरीददारों की भीड़ लगी रहती थी। एक ओछी प्रवृति वाले व्यक्ति ने देखा कि शहद बेचने से एक महिला इतना लाभ कमा रही है, तो उसने भी उस दुकान के नजदीक एक दुकान में शहद बेचना शुरू कर दिया। उसका स्वभाव कठोर था।एक दिन एक ग्राहक ने सहज में ही उससे पूछ लिया कि शहद मिलावटी तो नहीं! उसने भड़ककर कहा कि जो स्वयं नकली होता है, वही दूसरे के सामान को नकली बताता है। ग्राहक उसकी कड़क आवाज से घबड़ाकर लौट गया। वही आदमी फिर महिला के पास पहुंचा और वही सवाल पूछ बैठा। महिला ने मुस्कराते हुए कहा कि जब वह खुद असली है, तो वह नकली शहद क्यों बेचेगी! ग्राहक मुस्कुरा उठा और शहद ले गया।कहानी सुनाने के बाद शिक्षक ने शिष्य को उपदेश देते हुए कहा, ‘विनम्र स्वभाव और मीठी वाणी का हर तरह की सफलता में योगदान रहता है, इसलिए मनुष्य को हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए।
हमेशा याद रखिये कि “वाणी में इतनी शक्ति होती है कि कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है।” वास्तव में मीठी वाणी बोलना न सिर्फ अपने, बल्कि दूसरों के कानों को भी सुकून देता है। किसी ने सत्य ही कहा है,
जरूरी नहीं कि आप केवल मिठाई खिलाकर दूसरों का मुंह मीठा करें,
आप मीठा बोलकर भी लोगों का मुंह मीठा कर सकते हैं!
आप मीठा बोलकर भी लोगों का मुंह मीठा कर सकते हैं!
आदमी को कभी भी बिना पूछे नहीं बोलने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को बोलने में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जब तक कहीं पूछा न जाए आदमी को अपने ज्ञान को उजागर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। मौन को आचार्यश्री ने पंडितों और अपंडितों का विभूषण बताते हुए कहा कि मूखों के बीच में पंडितों को मौन हो जाना चाहिए और पंडितों के बीच मूर्खों को मौन हो जाना चाहिए। इस प्रकार मौन पंडित और अपंडित दोनों का विभूषण होती है। आदमी से जब कुछ पूछा जाए तो आदमी को झूठ नहीं सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए। सत्य बोलना कठिन हो सकता है, किन्तु आदमी को सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए। यदि आदमी सत्य बोलने की हिम्मत न कर सके तो मौन हो जाए तो भी वह अपनी वाणी को संयमित कर सकता है और झूठ बोलने वाले पाप से भी बच सकता है। आदमी को अपने गुस्से को असत्य करने का प्रयास करना चाहिए। मन में कभी गुस्सा भी आए तो वाणी से गाली के रूप में या हाथ से मारपीट में प्रकट करने से रोकने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा प्रकार कर आदमी अपने गुस्से को असत्य कर सकता है। गुस्सा कमजोरी को प्रदर्शित कर सकता है। आदमी को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि मन में भी गुस्सा न आए।
यहां तक कि विभिन्न वेदों और शास्त्रों में भी वाणी संयम को सर्वश्रेष्ठ तप कहा गया है:
या ते जिव्हा मधुमति सुमेधाने देवेषूच्यत उरुचि
यानी, तू मीठी और सद्बुद्धि युक्त वाणी का प्रयोग कर, जिसे देव बोलते हैं। शास्त्र में कहा गया है, ‘झूठ बोलना, कटु बोलना, असंगत बात कहना, अहंकारयुक्त शब्द बोलना, निंदा करना आदि वाणी के ऐसे उद्वेग दोष हैं, जिनसे मनुष्य पग-पग पर संकट में पड़ता है। अत: एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलना चाहिए।असंयमपूर्ण बोलने की अपेक्षा मौन रहना श्रेयस्कर है। सत्य, प्रिय और धर्मयुक्त वचन ही उच्चारित करने चाहिए। मनमाने ढंग से ऊटपटांग बोल देने वाला पग-पग पर शत्रु पैदा करता है।’ मीठे वचनों में इतनी शक्ति और आकर्षण होता है कि पराया आदमी भी मित्र व हितैषी बन जाता है, जबकि कटु वचन बोलने वाला भाई-बांधवों और मित्रों को भी दुश्मन बना लेता है।संत कबीर ने भी कहा था ----
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।
तलवार का घाव देर-सबेर भर जाता है, किंतु कटु वाणी से हुआ घाव कभी नहीं भरता। इसलिए हमेशा “मीठा और उचित बोलिए। खुद भी प्रसन्न होइए और दूसरों को भी प्रसन्न कीजिये।”
वाणी का संयम करने से वचन सिद्धि प्राप्त होती है। व्यक्ति बोली को तोल करके बोले, वाचाल व्यक्ति व अधिक बोलने वाला व्यक्ति इ'जत नहीं पाता, न ही उसकी बात का कोई मोल होता है। बोली के कारण ही महाभारत हुई।मृदुभाषी, मितव्ययी एवं उदारता वाला व्यक्ति विकास कर सकता है।
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