Sunday 2 September 2018

क्रांतिकारी मुनि तरुण सागर जी जीवनी व अवदान


तुम्हारी वजह से कोई इ्ंसान दुखी रहे अगर तुम्हारी वजह से कोई इ्ंसान दुखी रहे तो समझ लो ये तुम्हारे लिए सबसे बड़ा पाप है, ऐसे काम करो कि लोग तुम्हारे जाने के बाद दुखी होकर आसूं बहाए तभी तुम्हें पुण्य मिलेगा।

जैन मुनि तरुण सागर जी 1 सितंबर 2018  शनिवार को निधन हो गया। 20 दिन पहले उन्हें पीलिया होने के बाद दिल्ली के मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज चल रहा था लेकिन उनकी सेहत में सुधार नहीं हुआ। कुछ दिन से उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। 
मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज का परिचय --- 
पूर्व नाम : श्री पवन कुमार जैन

जन्म तिथि : २६ जून, १९६७,
ग्राम : गुहजी (जि.दमोह ) म. प्र.
माता-पिता : महिलारत्न  श्रीमती शांतिबाई जैन व  श्रेष्ठ श्रावक श्री प्रताप चन्द्र जी जैन
लौकिक शिक्षा : माध्यमिक शाला तक
गृह - त्याग :८ मार्च , १९८१
शुल्लक दीक्षा : १८ जनवरी , १९८२, अकलतरा ( छत्तीसगढ़) में
मुनि- दीक्षा : २० जुलाई, १९८८, बागीदौरा (राज.)
दीक्षा गुरु : यूगसंत आचार्य पुष्पदंत सागर जी
लेखन : हिन्दी
बहुचर्चित कृति : मृत्यु- बोध
मानद-उपाधि : 'प्रज्ञा-श्रमण (आचार्यश्री पुष्पदंत सागरजी द्वारा प्रदत)
प्रख्यायती : क्रांतिकारी संत कीर्तिमान : आचार्य भगवंत कुन्दकुन्द के पश्चात गत 2000 वर्षो के इतिहास मैं मात्र १३ वर्स की वय में जैन
सन्यास धारण करने वाले प्रथम योगी |
रास्ट्र के प्रथम मुनि जिन्होंने लाल किले दिल्ली से सम्बोधन .टी.वी. के माध्यम से भारत सहित १२२ देशों में महावीर - वाणी ' के विश्व -व्यापी प्रसारन की ऐतिहासिक सुरुआत करने का प्रथम श्रेय

मुख्य - पत्र : अहिंसा - महाकुम्भ (मासिक)
आन्दोलन : कत्लखानों और मांस -निर्यात के विरोध में निरंतर
अहिंसात्मक रास्ट्रीय आन्दोलन

सम्मान : ६ फरवरी ,२००२ को म.प्र. शासन द्वारा' राजकीय अतिथि ' का दर्जा
२ मार्च , २००३ को गुजरात सरकार द्वारा ' राजकीय अतिथि 'का सम्मान

साहित्य :तीन दर्जन से अधिक पुस्तके उपलब्ध और उनका हर वर्ष दो लाख प्रतियो का प्रकाशन
रास्ट्रसंत : म. प्र. सरकार द्वारा २६ जनवरी , २००३ को दशहरा मैदान , इन्दोर में
संगठन : तरुण क्रांती मंच .केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली में देश भर में इकाईया
प्रणेता : तनाव मुक्ति का अभिनव प्रयोग ' आंनंद- यात्रा ' कार्यक्रम के प्रणेता
पहचान : देश में सार्वाधिक सुने और पढ़े जाने वाले तथा दिल और दिमाग को झकजोर देने
वाले अधभुत .प्रवचन
अपनी नायाब प्रवचन शैली के लिए देसभर में विखाय्त जैन मुनि के रूप में पहचान
मिशन : भगवान महावीर और उनके सन्देश " जियो और जीने दो " का विश्व व्यापी प्रचार प्रसार एवम जीवन जीने की .... 

गुलाब कांटों में भी हंसता है गुलाब कांटों में भी हंसता है इसलिए लोग उसे प्रेम करते हैं, तुम भी ऐसे काम करो कि तुमसे नफरत करने वाले लोग भी तुमसे प्रेम करने पर विवश हो जायें।
कड़वे प्रवचनों की वजह से ही क्रांतिकारी संत कहा जाता था :  ‘‘मुनिश्री अपने कड़वे प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध रहे। इसी वजह से उन्हें क्रांतिकारी संत भी कहा जाता था। वहीं, कड़वे प्रवचन नामक उनकी पुस्तक काफी प्रचलित है। समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने में उन्‍होंने काफी प्रयास किए।’’ मुनिश्री मध्यप्रदेश और हरियाणा विधानसभा में प्रवचन भी दे चुके थे।   
कड़वे वचन ---- 
1. हंसते मनुष्य हैं कुत्ते नहीं

हंसने का गुण सिर्फ मनुष्यों को प्राप्त है इसलिए जब भी मौका मिले जी खोल कर मुस्कुराइए। कुत्ते चाहकर भी नहीं मुस्कुरा सकते हैं। 

2. किसी को बदल नहीं सकते हैं
परिवार में आप किसी को बदल नहीं सकते हैं लेकिन आप अपने आप को बदल सकते हैं, आप पर ही आपका पूरा अधिकार है। 
3. कन्या भ्रूण हत्या
जिनकी बेटी ना हो उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए और जिस घर में बेटी ना हो वहां शादी ही नहीं करनी चाहिए। जिस घर में बेटी ना हो उस घर से साधु-संतों को भिक्षा भी नहीं लेनी चाहिए। 
4. धर्म पति तो राजनीति पत्नी
राजनीति को धर्म से ही हम नियंत्रित करते हैं। अगर धर्म पति है तो राजनीति पत्नी। जिस तरह अपनी पत्नी को सुरक्षा देना हर पति का कर्तव्य होता है वैसे ही हर पत्नी का धर्म होता है कि वो पति के अनुशासन को स्वीकार करे। ठीक ऐसा ही राजनीति और धर्म के बीच होना चाहिए। क्योंकि बिना अंकुश के हर कोई बेलगाम हाथी की तरह होता है। 
5. आपके नोट नहीं खोट चाहिए
मैं आपकी गलत धारणाओं पर बुलडोजर चलाऊंगा। आज का आदमी बच्चों को कम, गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है। इसलिए वह खुश नहीं है। इसलिए मुझे आपके नोट नहीं, आपके खोट चाहिए। 
6. दूसरे की प्रार्थना किसी काम की नहीं
तुम्हारी वजह से जीते जी किसी की आंखों में आंसू आए तो यह सबसे बड़ा पाप है। लोग मरने के बाद तुम्हारे लिए रोए, यह सबसे बड़ा पुण्य है। इसीलिए जिंदगी में ऐसे काम करो कि, मरने के बाद तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए किसी और को प्रार्थना नहीं करनी पड़े। क्योंकि दूसरों के द्वारा की गई प्रार्थना किसी काम की नहीं है। 
लाल किले से प्रवचन
2000 में जैन मुनि तरुण सागर ने लाल किले से प्रवचन दिया था
2000 में हरियाणा, 2001 में राजस्थान, 2002 में मध्य प्रदेश से भी प्रवचन दिया
2003 में गुजरात और 2004 में महाराष्ट्र में भी प्रवचन दिया
प्रगतिशील जैन मुनि का दर्जा
2006 में कर्नाटक के बेलगावी से 65 दिन की पैदल यात्रा करने के बाद तरुण सागर श्रवणबेलगोला में महा मस्तक अभिषेक समारोह में पहुंचे। हिंसा, भ्रष्टाचार और रूढ़िवाद की आलोचना के चलते उन्हें प्रगतिशील जैन मुनि का दर्जा मिला। इसके बाद उनके भाषणों को कड़वे प्रवचन कहा जाने लगा। 
2012 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें तरुण क्रांति पुरस्कार से सम्मानित किया
तरुण सागर को उनके कड़वे प्रवचनों के लिए जाना जाता था। वे अपने अनुयायियों को जो प्रवचन देते थे उन्हें कड़वे प्रवचन कहते थे। इन प्रवचनों में तरुण सागर समाज में मौजूद कई बुराइयों की तीखे शब्दों में आलोचना करते थे। उनके प्रवचनों की किताब भी ‘कड़वे प्रवचन’ नाम से प्रकाशित की जाती है।
जैन मुनि तरुण सागर के ग्रहस्थ जीवन की खास बातें--- 
जैन मुनि की बहन माया जैन ने बताया कि तरुण सागर बचपन से ही धार्मिक थे। शरारत के साथ-साथ धर्म में उनकी बचपन से आस्था रही है। आचार्य विद्यासागर से ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेने के बाद वह वापस पीछे मुड़कर नहीं देखा। आचार्य पुष्पदंग सागर ने उन्हें मुनि दीक्षा दी। तभी से वह जनसंत बन चुके थे। भगवान महावीर के आदर्शों पर चलते हुए मुनि तरुण सागर ने समाज को नई दिशा दिखाने का काम किया है। उनके ग्रहस्थ जीवन के परिवार में 4 भाई 3 बहन हैं। 

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