Monday 10 September 2018

ध्यान दिवस -मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही ध्यान है-- लेखक उत्तम जैन ( विद्रोही )



ध्यान एक ऐसी यात्रा है, जिसमें आपको कुछ करना नहीं होता, यह अपने आप होती है जब हम ध्यान करते हैं, चक्रों को जागृत करते हैं तो आपका ध्यान चक्रों पर ही रहता है, इसका मतलब यह होता है कि आप अपने ‘हार्मोन्स एवं ओरा को व्यवस्थित कर रहे हैं। हर आदमी का एक ओरा और एक आभा मंडल है। हमारे शरीर के सभी केन्द्र, ऊर्जा के केन्द्र हैं। 
 ध्यान चार प्रकार के होते हैं भगवान महावीर की साधना के दो अंग तपस्या और ध्यान बताए व आचार्य महाप्रज्ञ ने ध्यान को प्रेक्षाध्यान  बताया  प्रेक्षाध्यान से तनाव मुक्ति व कार्य क्षमता का विकास संभव है। भौतिकवादी युग में तनाव जटिल समस्या है। उन्होंने कहा कि प्रेक्षाध्यान से आत्म साक्षात्कार हो सकता है तथा अपनी सोई शक्ति को जगाया जा सकता है। हमें जीवन  में अधिक से अधिक धर्म आराधना में तप एवं त्याग करके अपने कर्मों का क्षय करना है। मोक्ष में जाने के लिए पहला कदम दान है। जैसा कि सिकंदर कितने धनाढ्य थे, लेकिन उन्होंने कहा था कि मनुष्य खाली हाथ आया और खाली हाथ जाएगा। साथ में यह दानरूपी धर्म ही साथ आने वाला है। दान पुण्य की पूंजी है जो रिजर्व बैंक में जमा हो जाती है
 हमारे मन में एक साथ असंख्य कल्पनाएं और विचार चलते रहते हैं। इससे मन-मस्तिष्क में कोलाहल-सा मचा रहता है। हम नहीं चाहते, फिर भी यह चलता रहता है। इस तरह लगातार सोच-सोचकर हम खुद को कमजोर करते रहते हैं। ध्यान ऐसी गैर जरूरी कल्पनाओं और विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है। ध्यान जैसे-जैसे गहराता है, व्यक्ति साक्षी भाव में आने लगता है। उस पर किसी भी भाव, कल्पना और विचारों का प्रभाव नहीं पड़ता।  वास्तव में मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही ध्यान है। विचार, कल्पना और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान के खिलाफ है। ध्यान कोई क्रिया नहीं है, इसलिए इसमें करने जैसा कुछ भी नहीं। ध्यान बस हो जाता है और इसके लिए कोशिश करने की जरूरत नहीं। ध्यान की अवस्था में पहुंचने पर ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को और खुद को भी भूल जाता है। बेशक ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
 ध्यान का अभ्यास शुरू करने वालों के लिए  विशेष  --

1. ध्यान के लिए ऐसा समय और स्थान चुनें, जिसमें आपको कोई परेशान न कर सके। सूर्योदय और सूर्यास्त का समय इसके लिए आदर्श है। 

2. सीधे बैठें और रीढ़ की हड्डी को सीधी रखें। अपने कंधे और गर्दन को आरामदायक स्थिति में रखें और पूरी प्रक्रिया के दौरान आंखें बंद करके रखें। 
3. अगर शाम के समय में ध्यान करने वाले हैं, तो सुनिश्चित करें कि कम से कम तीन घंटे से कुछ न खाया हो। 
4. ध्यान से पहले सूक्ष्म क्रियाएं कर लेनी चाहिए। इससे शरीर की जड़ता और बेचैनी दूर होती है और शरीर हल्का महसूस होता है। ऐसे में स्थिरता के साथ ज्यादा समय बैठ सकेंगे| 
5. ध्यान से पहले अनुलोम-विलोम प्रणायाम करने लेना अच्छा होता है। इससे सांस की लय स्थिर हो जाती है और मन आसानी से ध्यान में चला जाता है।
 6. चेहरे पर सौम्य मुस्कान बनाकर रखें। इससे आप आराम और शांति महसूस करेंगे। इससे आपका ध्यान का अनुभव बेहतर होगा। 
7. नए लोग निर्देशित ध्यान का सहारा ले सकते हैं। आपको सिर्फ आंखों को बंद करके आराम करना है और निर्देशों को सुनकर उनका पालन करते हुए अनुभव का आनंद लेना है।
 8. ध्यान से कब बाहर आना है, इसके लिए अलार्म का प्रयोग न करें। कुछ दिनों के अभ्यास से आप खुद ही तय समय पर ध्यान से बाहर आने लगेंगे। कभी-कभार कुछ समय कम भी रह जाए तो चिंता न करें।
 9. ध्यान के बाद आंखों को धीरे-धीरे खोलें। आखों को खोलने में जल्दबाजी न करें और आंखें खोलने के बाद अपने और वातावरण के प्रति सजग होने के लिए समय लें। 
10. आदर्श स्थिति यह है कि सुबह और शाम दोनों वक्त 20-20 मिनट के लिए ध्यान किया जाए, लेकिन अगर इतना समय नहीं है, तो कम समय के लिए भी ध्यान में बैठा जा सकता है। आप अपने जीवन केा अनुशासित करो, शरीर को अनुशासित और मन को प्रशिक्षित करें, अपनी ऊर्जा को संतुलित कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो। एक आसन पर बैठकर जब आप अपने मस्तिष्क को खाली कर लेते हैं, जब आपके दिमाग में विचारों का मेला नहीं रहता है तब आप आनंद की धारा में बहने लगते हैं उसी आनंद को थोड़े समय के लिए रोक दें और एक अच्छे विचार पर आप अपने ध्यान को स्थिर कर दें। तब आप एक ऐसे बिन्दु पर पहुंच जाते हैं जहां कोई विचार नहीं रहता, आप निर्विचार हो जाते हैं। जैसे-जैसे आपका ध्यान पक्का होता जाएगा वैसे-वैसे आप ‘समाधि’ की तरफ पहुंचते जाएगें। ध्यान की प्रगाढ़ अवस्था ही ‘समाधि’ है। 
कै
से उतरें ध्यान में --
1. ध्यान में जाने से पहले सूक्ष्म क्रियाएं करें। शरीर के सभी जोड़ों की बारी-बारी से रोटेशन एक्सरसाइज कर लें। 
2. सुखासन में बैठ जाएं। आंखें बंद कर लें और चेहरे पर मुस्कान बनाए रखें। 
3. अब एक लंबी गहरी सांस लें और जाने दें। तीन बार ओम का जाप करें। 
4. इसके बाद अनुलोम-विलोम प्रणायाम के 9 राउंड करें। इसके फौरन बाद ध्यान में उतर जाएं। इसके लिए कोई कोशिश नहीं करनी है, बस अपनी सांसों पर ध्यान लगाना है। आती-जाती सांसों पर अपने मन को ले जाएं। मन में जो विचार आ रहे हैं, उन्हें आने दें, रोकें नहीं। विचार आएंगे और खुद चले जाएंगे। कुछ देर के लिए मन खाली होगा, फिर विचार आएंगे और चले जाएंगे। 20 मिनट के बाद जब मन करे, सहजता से आंखें खोल सकते हैं। 
5. कुछ दिनों के अभ्सास से धीरे-धीरे अपने आप ही विचार आने कम होने लगेंगे और ध्यान लगने लगेगा। 

आत्मसाक्षात्कार प्रेक्षाध्यान के द्वारा, अर्थात प्रेक्षाध्यान द्वारा खुद को खुद से साक्षात्कार करने का अवसर प्राप्त होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने वर्षों तक अपने ऊपर प्रयोग करके प्रेक्षाध्यान पद्धति को प्रतिपादित किया था। उन्होंने ध्यान के लिए मन को एकाग्र करने को जरूरी बताया। मन और इन्द्रियों को पवित्र और स्थिर करने के लिए सबको ‘प्राणायाम’ और ध्यान करना आवश्यक है। इससे मनुष्य में दिव्यशक्तियों का अभ्युदय होता है। प्राणायाम से रोगी भी निरोगी बन जाता है। प्राणायाम करने से मन और इन्द्रियों के दोष दूर हो जाते हैं और मन निर्मल हो जाता है। मन, शांत और स्थिर हो जाता है, चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाता है। आयुष्य (आयु) की वृद्धि होती है। सूक्ष्म और स्थूल दोनों शरीरों का विकास होता है।

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