लाख खंडी सोनातणी, लाख वर्ष दे दान।
सामायिक तुल्य नहीं, कहा ग्रन्थ दरम्यान !
सामायिक तुल्य नहीं, कहा ग्रन्थ दरम्यान !
साधना की पहली सीढ़ी सामयिक हैलेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
एक शुद्ध सामायिक की साधना से अन्तर्मुहूर्त में अनन्त कर्मों की मोटी मोटी शिलाएँ चकनाचूर हो जाती है ।एक शुद्ध सामायिक का फल हम जानते हैं ।पूणिया श्रावक की एक शुद्ध सामायिक की क़ीमत के सामने सम्राट श्रेणिक के पूरे राज्य की सम्पदा , वैभव सब नगण्य - तुच्छ । तभी तो कहा है कि -
लाख खण्डी सोना तणी
लाख बरस दें दान
एक सामायिक ना तुले
भाख गये भगवान
लाख बरस दें दान
एक सामायिक ना तुले
भाख गये भगवान
सामायिक का फल --एक शुद्ध सामायिक करने से --92 करोड़ ,59 लाख ,25 हजार ,925 पल्योपम नरक गति का अशुभ - बंध टूटता है और देव - गति रुप पुण्य बँधता है ।कोई व्यक्ति अगर कहें कि मैं रोजाना सामायिक करता हूँ , तो वो चिन्तन करें कि - रोजाना सामायिक करने से
• क्या मेरे कषायों का उद्दीपन कम हुआ ?
• आत्मशुद्धि व व्यवहारशुद्धि हुई ?
• क्या सबको आत्मतुला समझा ?
• आत्मशुद्धि व व्यवहारशुद्धि हुई ?
• क्या सबको आत्मतुला समझा ?
कथा -एक युवक जंगल में लकड़ी काटने गया । शाम को ख़ाली हाथ लौटा । माँ ने उपालम्भ देते हुए कहा - क्या जंगल में एक भी पेड़ नहीं मिला ?युवक ने बहुत ही मार्मिक उत्तर दिया - माँ अनुभव जरुर मिला ।
मां कुछ समझी नहीं । युवक ने कहा - माँ , मैंने जैसे ही पेड़ को कुल्हाड़ी से काटना चाहा , मुझे अनुभव हुआ कि जैसी प्राणधारा मुझमें है वैसी ही इस पेड़ में है । पेड़ को काटने में मेरे हाथ काँप उठे , मैं पेड़ काट न सका ।यह है समता की साधना ,यह है सामायिक की निष्पत्ति । हम भी ऐसी समतामय सामायिक की साधना करके मोक्ष की मंज़िल की ओर तीव्र गति से क़दम आगे और बढ़ायें
धार्मिक जीवन का सबसे बड़ा सूत्र है - समता का साधना , सामायिक की आराधना सामायिक साधना तब प्राप्त होती है जब हम मन को निर्विचार कर लेते हैं ।सामायिक संवर की प्रक्रिया है । इससे प्रकम्पन बन्द हो जाते हैं और तब चाहे लाभ अलाभ ,सुख -दुख निन्दा -प्रशंसा हमारे लिए कुछ नहीं है । क्योंकि उन प्रकम्पनों को ग्रहण करने के द्वार हमने बंद कर दिये । खिड़की बंद कर दी , अब चाहे तूफ़ान आये या आँधी , तूफ़ान भीतर नहीं आयेगा । हम सुरक्षित हैंं ।मालिक जाग जाता है ,यानि व्यक्ति में जागरण घटित हो जाता है तब तब चोर घर में नहीं रह सकते । वैसे ही व्यक्ति में समता की लौ जग जाती है तब क्रोध , मान , माया ,लोभ यानि कषायों का लश्कर भी विदाई ले लेते हैं ।समता यानि अमृत की वर्षा ।आत्मिक उन्मेष होना ही सामायिक है ।जागना ही सामायिक है ।निर्विचारता की स्थिति में केवल सामायिक होती है ।सामायिक का होने का मतलब है - समता में होना ।समय का अर्थ है - आत्मा ।आत्मा में होना ही सामायिक है ।
सामायिक करते करते समता के नए अंकुर प्रस्फुटित होने लगते हैं । एक दिन ऐसा आ जाता है कि समता का कल्पवृक्ष हरा - भरा , शीतल छाँव और मनोकामना की पूर्ति करने वाला बन जाता है , जिसकी छाया में आनन्ूपुर्वक जीवन जीया जा सकता है ।यदि हम सही मायने में सामायिक करना जान लें तो कामधेनु हो या चिन्तामणि रत्न हो या समता का कल्पवृक्ष हो सब हमारे हाथ में है ।सम्भव है इसकी प्राप्ति में कुछ समय लगे । किसान भी फ़सल उगाता है तो फ़सल तैयार होने में पुरुषार्थ व समय लगता है ।सामायिक का अभ्यास करते करते समता का कल्पवृक्ष हमारे जीवन में आनन्द ही आनन्द भर देता है ।
सामायिक केवल मुँह बाँध कर बैठ जाना ही नहीं है । सामायिक में १८ पाप का त्याग करते हैं , जैसे - प्राणातिपात पापस्थान है , उस वृत्ति को कैसे मिटाएँ , उस गाँठ को कैसे खोला जाए , यह चिन्तन सामायिक में होना चाहिये ।सामायिक की साधना में एक एक वृत्ति पर चिन्तन ,मंथन ,अनुप्रेक्षा की जाए तो चिन्तन करते- करते चिन्तामणि हाथ में आ जाती है ।सामायिक उसके होती है जो सब प्राणियों के प्रति सम रहता है , जहाँ कषाय आ गया वहाँ सामायिक नहीं होती ।
सामायिक का तो स्वरुप ही है - समभाव ।
एक शब्द में कषाय का शमन ही है - सामायिक ।
यदि यह पूछा जाए -
एक शब्द में भगवान् महावीर का धर्म क्या है ?
तो इसका उत्तर होगा - सामायिक ।
भगवान महावीर ने कहा - पहली आवश्यकता है - सामायिक ।इसकी साधना किए बिना कोई भी आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं तर सकता ।सामायिक भगवान महावीर के समूचे धर्म का सार है । समता कोँ छोड़ने पर महावीर के धर्म में शून्यता रहेगी । आदि से अन्त तक सारा धर्म ही सामायिक है ।जीवन में समता का प्रवेश हो जाए तो फिर कुछ पाना शेष नहीं रहता ।सामायिक की साधना बहुत बड़ी साधना है, बहुत पवित्र साधना है , १८ पापों से दूर होने की साधना है ।सावद्य योगों के प्रत्याख्यान का नाम ही है - सामायिक ।जो क्षण हमारे शांति के बीच बीतते हैं , वह सामायिक है। जीवन का कौन सा क्षण हमारे पूरे जीवन को बदल दे , कहा नहीं जा सकता ।अत: हमें रोजाना पूज्यप्रवर महाश्रमण जी द्वारा निर्देशित एक अभिनव - सामायिक जिसमें ध्यान, कायोत्सर्ग , जप , मौन , स्वाध्याय शामिल हो , अवश्य करके मुक्तिपथ पर अग्रसर होने का प्रयास करना चाहिये । दोला़यमान व कर्मों का बंध हो वो नाममात्र व दिखावे की सामायिक हम न करें -
यदि यह पूछा जाए -
एक शब्द में भगवान् महावीर का धर्म क्या है ?
तो इसका उत्तर होगा - सामायिक ।
भगवान महावीर ने कहा - पहली आवश्यकता है - सामायिक ।इसकी साधना किए बिना कोई भी आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं तर सकता ।सामायिक भगवान महावीर के समूचे धर्म का सार है । समता कोँ छोड़ने पर महावीर के धर्म में शून्यता रहेगी । आदि से अन्त तक सारा धर्म ही सामायिक है ।जीवन में समता का प्रवेश हो जाए तो फिर कुछ पाना शेष नहीं रहता ।सामायिक की साधना बहुत बड़ी साधना है, बहुत पवित्र साधना है , १८ पापों से दूर होने की साधना है ।सावद्य योगों के प्रत्याख्यान का नाम ही है - सामायिक ।जो क्षण हमारे शांति के बीच बीतते हैं , वह सामायिक है। जीवन का कौन सा क्षण हमारे पूरे जीवन को बदल दे , कहा नहीं जा सकता ।अत: हमें रोजाना पूज्यप्रवर महाश्रमण जी द्वारा निर्देशित एक अभिनव - सामायिक जिसमें ध्यान, कायोत्सर्ग , जप , मौन , स्वाध्याय शामिल हो , अवश्य करके मुक्तिपथ पर अग्रसर होने का प्रयास करना चाहिये । दोला़यमान व कर्मों का बंध हो वो नाममात्र व दिखावे की सामायिक हम न करें -
सास - बहू की इस पुरानी कथा से हम अनभिज्ञ नहीं है -
' सामायिक में समता भाव,
गुड़ की भेली कुत्तो खाव ,
बोलूँ तो सामायिक जाव ,
न बोलूँ तो गुड़ की भेली जाव ।।
एक सामायिक का मूल्य- राजा श्रेणिक ने, भगवान महावीर से एक सामायिक का मूल्य पूछा, तो भगवान ने उत्तर दिया- ‘हे राजन् ! तुम्हारे पास जो चाँदी, सोना व जवाहर राशि हैं, उनकी थैलियों को ढेर यदि सूर्य और चाँद को छू जाएँ, फिर भी एक सामायिक का मूल्य तो क्या, उसकी दलाली भी पर्याप्त नहीं होगी।’ ' सामायिक में समता भाव,
गुड़ की भेली कुत्तो खाव ,
बोलूँ तो सामायिक जाव ,
न बोलूँ तो गुड़ की भेली जाव ।।
सामायिक मन को स्थिर रखने की अपूर्व क्रिया है, आत्मिक अपूर्व शांति प्राप्त करने का संकल्प है, परम पद पाने का सरल और सुखद मार्ग है। अखंडानंद प्राप्त करने का गुप्त मंत्र है, दु:ख समुद्र को तिरने का श्रेष्ठ जहाज है। अनेक कर्मों से मलीन हुई आत्मा को परमात्मा बनाने का सामर्थ्य सामायिक क्रिया में ही है। यह क्रिया करने से आत्मा में रहे दुर्गुण नष्ट होकर, सद्गुण प्राप्त होते हैं और परम शांति का अनुभव होता है एक आत्मा प्रतिदिन लाख मुद्राओं का दान करती है और दूसरी मात्र दो घड़ी की शुद्ध सामायिक करती है, तो वह स्वर्ण मुद्राओं का दान करने वाली आत्मा, सामायिक करने वाले की समानता प्राप्त नहीं कर सकती। आर्त और रौद्र ध्यान को त्याग कर संपूर्ण सावद्य (पापमय) क्रियाओं से निवृत्त होना और एक मुहूर्त पर्यन्त मनोवृत्ति को समभाव में रखना- इसका नाम ‘सामायिक व्रत’ है।
सामायिक के लाभ
1- सामायिक करने वाला, दो घड़ी के लिए समस्त पाप क्रियाओं का परित्याग कर देता है, जिससे उसके नए अशुभ कर्मों का बंधन बहुत रुक जाता है। उपरांत पुरानों की निर्जरा होती है तथा उत्तम पुण्यों का संचय होता है।
2- सामायिक से धार्मिक आत्म-गुणों का विकास होता है, क्योंकि उसमें अशुभ तथा अशुद्ध क्रियाओं के वर्जन और शुभ शुद्ध क्रियाओं के सेवन का शिक्षण = अभ्यास किया जाता है।
3- जैसे- जहाँ रानी मधुमक्खी बैठती है, वहाँ दूसरी मधुमक्खियाँ छत्ते को बाँधकर, मधु का संचय करती हैं। वैसे ही, सामायिक भी रानी मधुमक्खी के समान है। सामायिक की साधना प्रारंभ करने पर उसमें स्वाध्याय, जप, ध्यान, भावना आदि साधना के कई अंग गतिशील होते हैं और फिर उसमें भावरूप मधु का संचय होता है।
4- सामायिक धार्मिक-आध्यात्मिक व्यायामशाला के समान है, जिसमें आत्मा भाव-व्यायाम करके, अपने सद्गुणों को पुष्ट करता है।
5- सामायिक वस्तुत: ‘साधुत्व का पूर्व अभ्यास’ है। आत्मा को परमात्म-स्वरूप में रूपांतरण की प्रक्रिया ‘साधुत्व’ है। अत: यह बात सहज में ही सिद्ध हो जाती है कि सामायिक का सच्चा आराधक साधु-स्वरूप तथा परमात्मा-स्वरूप पाने के उपाय का सेवन कर रहा है।
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