Thursday, 28 September 2017

करारा प्रहार आतंक पर

राजनीतिक नेतृत्व का इरादा स्पष्ट और सशक्त हो, तो उससे कैसे परिणाम प्राप्त होते हैं, इसकी एक ताजा मिसाल भारत-म्यांमार सीमा पर देखने को मिली है। ना तो कश्मीर में आतंकवाद नया है, और ना ही उत्तर-पूर्वी राज्यों में। लेकिन अतीत में कभी दहशतगर्दों पर वैसा प्रहार नहीं होता था, जैसा बीते तीन सालों में देखने को मिला है। जून 2015 में मणिपुर में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) के उग्रवादियों द्वारा किए गए हमले में सेना के 18 जवान शहीद हुए थे। उसके कुछ दिनों के अंदर ही भारतीय सेना ने भारत-म्यांमार सीमा पर दोषी हमलावरों के अड्डों पर धावा बोलकर उन्हें ठिकाने लगा दिया। पिछले साल पाकिस्तान से आए आतंकियों ने उरी में भारतीय सेना के शिविर को निशाना बनाया। उसके दस दिन बाद ही (28-29 सितंबर की रात) जम्मू-कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा के उस पार जाकर हमारे सैनिकों ने बहुचर्चित सर्जिकल स्ट्राइक की। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए सेना ने अब भारत-म्यांमार सीमा पर एनएससीएन (खापलांग) को भारी क्षति पहुंचाई है। सेना ने स्पष्ट किया है कि उसने सरहद पार नहीं की। म्यांमार से भारत के दोस्ताना संबंध हैं। कभी वहां भारतीय उग्रवादियों ने ठिकाने बना रखे थे। लेकिन बाद में म्यांमार सरकार ने उन्हें अपनी जमीन से बेदखल कर दिया। जब पड़ोसी देश सहयोग कर रहा हो, तो उसकी प्रादेशिक संप्रभुता का उल्लंघन करने की जरूरत भी नहीं होती। मकसद तो आतंकी समूहों का खात्मा है। 

भारतीय सुरक्षा बल दशकों से इस प्रयास में जुटे हुए हैं। परंतु नई बात यह है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने उन्हें कार्रवाई करने की पूरी स्वतंत्रता दी है। नतीजतन, उनके रुख में आक्रामकता आई है। ताजा कार्रवाई भारतीय सेना के एक दस्ते पर फायरिंग के बाद की गई। इसके पहले इस महीने के आरंभ में सेना ने अरुणाचल प्रदेश से जुड़ी भारत-म्यांमार सीमा पर एनएससीएन (खापलांग) के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई की थी। उस दौरान आतंकियों के छिपने के कई अड्डे तबाह किए गए। हथियार, गोला-बारूद और रेडियो सेट्स की बरामदगी भी हुई। नगालैंड मसले को हल करने के लिए भारत सरकार व एनएससीएन (इसाक-मुइवा) के बीच शांति वार्ता चल रही है। लेकिन इस संगठन का खापलांग गुट बातचीत में शामिल होने से इनकार करता रहा है। उसने हिंसक गतिविधियां जारी रखी हैं। भारत और म्यांमार के बीच लगभग 1,640 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड व मणिपुर से सटी है। इस इलाके में खापलांग गुट हमले करता रहा है। मगर अब भारतीय सुरक्षा बलों ने उस पर दबाव बढ़ा दिया है। पिछले दो महीनों में खापलांग गुट को काफी क्षति पहुंची है।

साफ है  ऐसा हमारे सुरक्षा बलों की बेहतर रणनीति, नियोजन और सही ठिकानों पर सटीक निशाना साधने की क्षमता के कारण हुआ है। मगर एक हद तक इसका श्रेय केंद्र की मौजूदा सरकार को भी है, जिसने आतंकवाद या उग्रवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति अपना रखी है। भारत-म्यांमार सीमा पर लांग्खू गांव के पास हुई ताजा कार्रवाई इसी नीति का परिणाम है, जिसमें कई उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
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