Monday 31 July 2017

दुष्कर्मी कन्हेयालाल.....लघु कथा ( व्यंग )


"सुषमा के पिता कन्हेयालाल ने।" सुबकते हुए रूपाली ने जवाब दिया।
"तुझे कितनी बार समझाया है कि छाती पूरी तरह ढँक कर अंदर-बाहर कदम रखा कर इन राक्षसों की कामी नज़रें औरतों की नंगी छातियों पर ही पड़ती हैं। नंगी छाती रखने का नतीजा देख लिया न तूने ? मैं तो कहीं की नहीं रही। उस दुष्ट का सत्यानाश हो रब्बा , जीते-जी जमीन में गड़ जाए। मेरी भोली-भाली बेटी का जीवन बर्बाद कर दिया है उस राक्षस ने। अपनी बेटी की उम्र की कन्या का का बलात्कार ... उफ़ , घोर कलयुग आ गया है। "
कन्हेयालाल को गालिया देती हुयी माँ रूपाली का हाथ पकड़ कर बाहर आ गयी। उसका रुदान सुनते ही अड़ोसी-पड़ोसी बाहर निकल आये। सैंकड़ों ही लोग इकट्ठा हो गए। रूपाली के बारे में जिसने भी सूना वह लाल-पीला हो गया। सभी कन्हेयालाल के घर की ओर लपके। उसके घर तक पहुँचते-पहुँचते लोगों का अच्छा-खासा हुजूम हो गया। कन्हेयालाल घर में ही था। कुछ लोगों ने उसे घसीट कर बाहर ज़मीन पर पटक दिया।
वह रोया-चिल्लाया। हाथ जोड़-जोड़ कर उसने बार-बार माफ़ी माँगी, ज़मीन पर बार-बार नाक भी रगड़ी लेकिन गुस्साए लोगों का हुजूम था। किसीने घूँसा मारा और किसीने जूता। ख़ूब धुनाई हुयी उसकी। लहूलुहान हो गया वह। माँ के कलेजे को ठण्डक फिर भी नहीं पडी थी। वह चिल्ला-चिल्ला कर कहे जा रही थी - "मारो और मारो इस पाजी को, दम निकाल दो इसको। "

पंद्रह वर्ष की रूपाली रोते - चिल्लाते घर पहुँची। माँ ने बेटी को अस्त-व्यस्त देखा तो गुस्से में पागल हो गयी - " बोल, तेरे साथ कुकर्म किस पापी ने किया है ? "
लोग कन्हेयालाल को पीटे जा रहे थे। पीटने वालों में कई ऐसे भी थे जिनके हवस की शिकार कई महिलायें हो चुकी थीं। ......
लेखक - उत्तम विद्रोही
( नोट - नाम व चित्र काल्पनिक है )

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