आज का दिवस गुरु पुर्णिमा हमे जीवन एक अच्छा संदेश देता है वेसे तो जीवन मे गुरु के प्रति हर पल सन्मान होता है ! जीवन मे अगर देखा जाए तो गुरु मेरी नजर मे प्रथम माँ होती है -- माँ जो जन्म देने के साथ हमारे जीवन मे एक अच्छे संस्कारो के बीज बोती है ! अगर जीवन मे सब कुछ अगर हम प्राप्त करते है तो वह है हमारे संस्कार द्वितीय हमारे गुरु होते है हमारे पिता जो हमारे जीवन मे संस्कार तो प्रदान करते ही है साथ मे लालन पालन कराते हुए हमारे जीवन मे हमारे कर्तव्य का बोध कराते है ओर तृतीय हमारे आध्यात्मिक गुरु जिनका हमारे जीवन मे एक विशेष स्थान होता है गुरु हमारे जीवन मे सुसंस्कारों के बीज तो बोते ही है साथ मे हमारे जीवन मे अधिकारो व कर्तव्य का बोध का पाठ भी पढ़ाते है ! इसलिए हमारे जीवन मे गुरु का विशेष स्थान होता है ! आज गुरु के बारे मे सक्षिप्त मे अगर कहु तो गुरु हमारे जीवन के निर्माता होते है ! शिक्षा से लेकर आध्यात्म तक हमारे मार्गदर्शक हमारे गुरु होते है ! आज मे यह कहना चाहूँगा जीवन मे आप कितनी भी सिद्धि प्राप्त कर लो जीवन के तीन गुरु --- माँ , पिता व आध्यात्मिक गुरु इनका आपने अगर जाने या अनजाने मे अपमान किया दिल दुखाया या सेवा नही की तो अपना जीवन नारकीय हो जाता है ! फिर हम मनुष्य नही पशु कहलाने के अधिकारी है क्यू की मनुष्य को ही प्रकृति ने सोचने समझने व अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने की ऊर्जा प्रदान की है ! आज पशु चाहे तो जन्म से लेकर मरण तक कभी अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त नही कर सकता ! जिस तरह मनुष्य करता है ! मेरा कहने का तात्पर्य यह है जीवन मे मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो जीवन मे अपने गुरु के प्रति ऋण अदा कर सकता है ओर जीवन मे मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकता है अब जीवन को सार्थक करने का अर्थ यह नही की हम सिर्फ आर्थिक रूप से समृद्ध हो... अर्थ भी जीवन मे जीने के लिए बहुत जरूरी है मगर अर्थ का सदुपयोग हो दुरपयोग न हो यह संस्कार हमारे जीवन मे तीन गुरु .. माँ , पिता व आध्यात्मिक गुरु प्रदान करते है ! अर्थात जीवन मे गुरु के बिना जीवन नश्वर है ! अब आपको यह कहना चाहूँगा जीवन मे जो हमे गुरु कर्तव्य का पाठ पढ़ाते है सबसे बड़ा कर्तव्य है सेवा भावना ... जीवन मे हमे परहित सेवा करनी चाहिए जीवन मे सेवा करने से हमारा जीवन सदेव खुशियो से भरा हुआ रहता है ओर यही खुशी हमारे जीवन मे आनंद की अनुभूति कराती है मगर एक कटु बात कह देना चाहूँगा सेवा भावना सिर्फ दिखावे के उदेश्य से न हो मेने बहुत बार देखा है बहुत से पुरुष दिखावे के लिए सेवा के बड़े बड़े आयोजन तो करते है मगर घर पर माँ पिता को उलाहना देते रहते है ऐसी सेवा का से अच्छा है आप अपने माँ पिता व आध्यात्मिक गुरु के चरणों मे सेवा का लाभ लो ! बहुत सी महिलाओ को भी देखा है जिनका प्रथम कर्तव्य होता है सास , ससुर व पति की सेवा करे मगर इन्हे तो अपशब्द बोलती है ओर बाहर समाज को दिखाने के लिए सेवा धर्म का ढिंढोरा पीटती है ! ओर बड़े बड़े फोटो सेवा करते हुए हुए शोशल मीडिया पर डालती है उन्हे आज संदेश देना चाहूँगा ... परहित सेवा से पहले परिवार सेवा का कर्तव्य का निर्वहन करे आपको परम आनंद की प्राप्ति होगी ओर जीवन सफल होगा .... फिर से गुरु पुर्णिमा पर माँ पिता व मेरे जीवन के शेक्षणिक व आध्यात्मिक गुरु को नमन
आपका - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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