Sunday 30 July 2017

धर्म की पीड़ा …

 आज धर्म के नाम पर जो घिनौने काम किए जाते हैं, क्या उन्हें देखकर आपका दिल सहम जाता है? क्या ऐसे लोगों के बारे में सुनकर आपका खून खौल उठता है जो एक तरफ तो ईश्वर की भक्ति करने का दम भरते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे युद्ध में हिस्सा लेते हैं, आतंकवादी हमले करते हैं और बड़े-बड़े घोटाले करते हैं या दंगा फसाद करते है मुझे तो यह सब देखकर ऐसा क्यों लगता है कि धर्म ही सारी समस्याओं की जड़ है? मगर दरअसल, सारी समस्याओं के लिए सभी धर्म नहीं, बल्कि ऐसे धर्म कसूरवार हैं जो बुरे कामों को बढ़ावा देते हैं। ऐसे धर्मों के बारे में मेरी सोच के मुताबिक जिसकी लोग इज़्ज़त करते हैं, कहा गया है कि “निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। जी हाँ, ऐसे धर्म बुरे फल लाते हैं। मगर ये बुरे फल क्या हैं? अब आप मेरे विचारो पर मंथन करो मुझ जेसे अज्ञानी की बात आपको अगर पल्ले पड़ी तो में खुद को धन्य समझुगा नही तो विद्रोही की बकवास समझ कर भूल जाना …..इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं तो धर्म और ईमान के नाम पर और जि़द की जाती है तो धर्म और ईमान के नाम पर। केसी विडम्बना है की धर्म और धर्म के सिदान्तो को जानें या न जानें, परंतु उनके नाम पर उबल पड़ते हैं आग बबूले और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़नेवाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी समझता-बूझता तो है नही और दूसरे लोग की भीड़ जिधर जा रही है उधर अपना रुख कर देते है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते फिरते पुरज़े पढे़-लिखे लोगों का जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार धर्म के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी। साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजि़ब है। धर्म को खानदानी विरासत समझकर उसकी जिम्मेदारी के बोझ तले दबा हुआ है बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को क्या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत फ़ायदा उठा रहे हैं। चालाक लोग गरीबों की कमाई ही से वे मोटे हो रहे हैं, और उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब व् अशिक्षित सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! हमारे देश में, इस समय, धनपतियों का इतना ज़ोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मन-माना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना। कई नेता आजकल धर्म की राजनीति भी करने लगे है, जो सही नहीं है ! इन नेताओ को किसी भी प्रकार की धर्म राजनीति नहीं करनी चाहिए. आजकल नेता जिन्हें में एक व्यवसायी भी कहू तो अतिश्योक्ति नही होगी कमबख्त इन नेताओ की बुद्धि को मानना पड़ेगा ! क्युकी मेरे व् आप जेसे बनिए से ज्यादा होंशियार है ये है आधुनिक नई विरासत के बनिए जो संतों का इस्तेमाल करते हैं और काम निकलते ही संतों को दरकिनार कर देते हैं!. ऐसे व्यवसायी ऐसे तथाकथित धर्मगुरु को पैसे देकर अपना धंधा चमकाना चाहते हैं. इसी वजह से वह ऐसे धर्मगुरुओं के पीछे भारी भरकम रुपये खर्च करते हैं.! देश में सरकार के नियंत्रण में हो या समाज के नियंत्रण में जितने भी मंदिरों का संचालन हो रहा है, वहां से प्राप्त आमदनी को विकास कार्य में अथवा सामाजिक कार्य में खर्च नहीं किया जाता.वरन इन पैसों को कर्मचारियों की तनख्वाह एवं राजनीतिक दलों के नेताओं के आवभगत में खर्च किया जाता है.! अब इसके मुख्य कारण की तरफ आपको ले चलता हु आज इस आधुनिक युग में शिक्षा तो बढ़ी है मगर इस शिक्षा का स्तर गिरा है, जिसकी वजह से धर्म के प्रति भी लोगों का भरोसा कम हुआ है.! पहले के जमाने में सनातन धर्म के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी. बच्चों के धर्म के प्रति संवेदनशील बनाया जाता था, लेकिन आज के जमाने में शिक्षा में आधुनिकता का समावेश हो गया है. आज शिक्षा से शिक्षा के व्यवसायी झोला भर भर कर रुपये ले जाते हैं, इसमें व्यवसायियों की भी अपनी हित छिपा होता है.शिक्षा का तो नाम मात्र है ! मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेलते और थोड़े-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ हमे विचार व् मंथन करना चाहिए। व् शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा !लोग शिक्षित नही होंगे धर्म के सिदान्त को नही समझेंगे और जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्य-प्रति बढ़ते जाने वाले झगड़े कम न होंगे राजनेता धर्म के नाम पर साधू संतो के सहारे हमे भ्रमित करके झगडाते रहेंगे ! जरुरत है धर्म की उपासना के मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह, किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें, और दूसरों का मन चाहे उस प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्न धर्मो के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पांच वक्त नमाज़ भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझते हैं तो इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी कसौटी केवल आपका आचरण होगी। सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजापाठ और आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी। में समझता हु ऐसे धार्मिक आदमियों से तो नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊॅँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुःख का ख़याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!…..
नोट – उक्त मेरे विचार में मेरी कलम काफी विषयों से भटकते हुए चली है आप भावो को समझे मेरा अनुरोध अगर मेरे विचार आपको सही लगेया गलत तो मुझे व्हट्स अप न – 84607 83401 पर प्रतिक्रिया जरुर प्रदान करे !

उत्तम जैन (विद्रोही )

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