Monday, 31 July 2017

धारा 370 और अनुच्‍छेद 35(A) में बदलाव समय की मांग

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शुक्रवार 28 जुलाई को एक कार्यक्रम में चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिले विशेषाधिकारों में यानि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए में किसी भी तरह का बदलाव किया गया, तो राज्य में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि ऐसा करके आप अलगाववादियों पर नहीं, बल्कि आप उन शक्तियों पर निशाना साध रहे हैं, जो भारतीय हैं, भारत पर विश्वास करते हैं, चुनावों में हिस्सा लेते हैं और जो जम्मू-कश्मीर में सम्मान के साथ जीने के लिये लड़ते हैं. उन्होंने एहसान जताते हुए कहा कि मेरी पार्टी और अन्य पार्टियां जो तमाम जोखिमों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय ध्वज हाथों में रखती हैं, मुझे यह कहने में तनिक भी संदेह नहीं है कि अगर जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिले विशेषाधिकारों में कोई बदलाव किया गया, तो कोई भी राष्ट्रीय ध्वज को थामने वाला नहीं होगा. महबूबा मुफ़्ती की बातों को सुनकर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि जम्मू-कश्मीर की अधिकतर राजनीतिक पार्टियों के नेता समय-समय पर ऐसे ही अलगाववादी बोल बोलते रहे हैं. भाजपा की जम्मू-कश्मीर महिला बीजेपी की उपाध्यक्ष डॉ. हिना बट तो यहाँ तक कह चुकी हैं कि अगर धारा 370 के साथ छेड़छाड़ की गई, तो कश्मीर के लोग हाथों में बंदूकें उठा लेंगे. इसके बाद उन्होंने यह भी कहा था कि मैं भी कश्मीर से ही हूं.
संविधान के अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 जैसे प्रावधानों के चलते ही जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य के कई लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया है. जम्मू-कश्मीर में लगभग डेढ़ लाख ऐसे शरणार्थी हैं, जो वर्षों से राज्य की नागरिकता पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अब तक किसी भी केंद्र या राज्य सरकार ने उनकी जायज मांग की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है. उनकी जायज मांग को मानने के लिए धारा 370 और अनुच्‍छेद 35(A) में बदलाव समय की मांग है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए में जब भी किसी बदलाव की बात की जाती है, तो जम्मू-कश्मीर के नेताओं के कान खड़े हो जाते हैं और वे एक सुर में चिल्लाना और धमकी देना शुरू कर देते हैं कि खबरदार, हमारे विशेषाधिकार को ख़त्म करने की बात सोचना भी मत. उनके चिल्लाने और धमकी देने की सबसे बड़ी एकमात्र वजह बस यही है कि सारे विशेषाधिकार का फायदा कश्मीर के आम लोग नहीं, बल्कि नेता लोग उठा रहे हैं. उन्हें चिंता आम जनता की नहीं, बल्कि अपने एकाधिकार, सुख-सुविधा और मौज-मस्ती की है, जिसमें वे कोई भी कमी बर्दाश्‍त नहीं कर सकते हैं.
यह बात सही है कि भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है, लेकिन जम्मू-कश्मीर के नेता यह बात भूल जाते हैं कि ये संवैधानिक प्रावधान अस्थायी और परिवर्तनीय हैं. वक्त की जरूरत के मुताबिक़ अनुच्छेद 370 में समय-समय पर कई बदलाव हुए हैं, जैसे 1965 तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री शब्द का प्रयोग हुआ करता था. वर्ष 1964 में संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 356 तथा 357 को जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी लागू कर दिया गया. इन अनुच्छेदों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू किया जा सकता है. भाजपा ने धारा 370 का हमेशा विरोध किया है.
कश्मीर में अलगाववाद के फलने-फूलने की मूल वजह भाजपा इसे ही मानती है, इसलिए इसको निरस्त किए जाने की मांग पर अड़ी रही है. आज केंद्र और राज्य दोनों ही जगह भाजपा सत्ता पर काबिज है, लेकिन अनुच्छेद 370 और 35 ए के मुद्दे पर राज्यसभा में पर्याप्त बहुमत न होने का बहाना कर चुप्पी साधे हुए है. जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करने का भाजपा के पास एक स्वर्णिम अवसर है, जिसका उसे फायदा उठाना चाहिए और नेहरू की उस ऐतिहासिक भूल को सही करना चाहिए, जिसके लिए वे भी आजीवन पछताते रहे. एक ऐसी गलती जिसने कश्मीर में न सिर्फ अलगाववाद को बढ़ावा दिया है, बल्कि जम्मू-कश्मीर राज्य में दोहरी नागरिकता पाकर रहने वाले नागरिकों और भारत के अन्य राज्यों में रहने वाले नागरिकों के बीच नफरत और भेदभाव की खाई भी चौड़ी की है.
नेहरू ने 27 नवंबर 1963 को अनुच्छेद 370 और 35ए के बारे में संसद में बोलते हुए कहा था, ‘यह अनुच्छेद घिसते-घिसते, घिस जाएगा’. अफ़सोस इस बात का है कि हुआ इसका उल्टा और नेहरू की बात झूठी साबित हुई. डॉ. भीमराव अंबेडकर भी जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे. उन्होंने विशेष राज्य की मांग पर अड़े शेख अब्दुल्ला से कहा था, ‘आप कह रहे हैं कि भारत जम्मू-कश्मीर की रक्षा करे, उसका विकास करे. भारत के नागरिकों को भारत में जो भी अधिकार प्राप्त हैं वे इस राज्य के लोगों को भी मिलें और जम्मू-कश्मीर में भारतीयों को कोई अधिकार नहीं हो, भारत के विधि मंत्री के रूप में मैं देश को धोखा नहीं दे सकता’.
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की बात से तो यही जाहिर होता है कि सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शी सोच और अथक प्रयास से पूर्ण एकीकरण की राह पर चल रहे हिन्दुस्तान के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ. कश्मीर के मामले में सरदार बल्लभभाई पटेल की कोई बात नहीं मानी गई, नतीजा सबके सामने है. वर्ष 1947 ई. में जब पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और कबिलायियों के साथ कश्मीर पर हमला किया, तब जम्मू-कश्मीर रियासत के तत्कालीन राजा हरीसिंह भारत में विलय के लिए पूर्णतः स्वायत्तशासी अलग राज्य बनाने की मांग पर राजी हुए. भारतीय सेना जब पाकिस्तानी सैनिकों और कबिलायियों को ठिकाने लगा रही थी, तभी नेहरू ने एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल करते हुए एकतरफा युद्धविराम घोषित कर दिया और कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले गए. सब जानते हैं कि कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू के बीच गहरी मित्रता थी. नेहरू चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर राज्य की बागडोर उनके परम मित्र शेख अब्दुल्ला के हाथों में हो.
शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर पर एकछत्र राज्य करना चाहते थे, इसलिए मौके का फायदा उठाकर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा या कहिये एक तरह से अलग देश बनाने की मांग कर रहे थे. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए के जरिये नेहरू ने उनकी इच्छा काफी हद तक पूरी कर दी. उनकी यही भूल जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा के पनपने और कश्मीर के मौजूदा विवाद की जननी बनी. अंतरराष्ट्रीय नेता बनने के चक्कर में नेहरू ने कश्मीर समस्या का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया.
लेखक - उत्तम विद्रोही

लघु कथा --- समाधान--- दुपट्टा ( व्यंग )

कानपूर में सुषमा रहती थी वह बहुत ही काली-कलूटी कुरूप थी और उसकी अपनी दो गोरी-गोरी बहंने थी तीनो बहने अपने माता-पिता के साथ रहती थी.सुषमा अपनी कुरूपता से इस कदर दुखी रहती कि दर्पण देखने का साहस भी न जुटा पाती... घर पर बहने भी बहुत बार सुषमा के रंग रूप पर मजाक बनाती थी और राह चलते लोग तो उसे देख ऐसी मुँह बनाते जैसे उन्होंने कोई घृणित चीज देख लिया हो..घरवाले के मजाक का तो ज्यादा बुरा नही लगता पर बाहरवालों की टिपण्णी और उपेक्षा से वह प्रभू के आगे घंटों आँसू बहाती..
एक दिन प्रभू उसकी व्यथा से व्यथित हो प्रगट हुए और बोले- ’ बच्ची..क्यों इतना दुखी होती हो ? तुम्हारी समस्या से मैं वाकिफ हूँ..हर समस्या का समाधान भी होता है..तुमने कभी समाधान की कोशिश की ? ‘

‘ क्या कोशिश नहीं की प्रभू...फेसपेक ,फेयर एंड लवली, पोंड्स, इमामी, तरह-तरह के क्रीम आदि लगाया पर सबने धोखा दिया..मेरे माता-पिता इतने धनी भी नहीं कि माईकल जेक्शन की तरह मेरी प्लास्टिक सर्जरी करवा सके..’
‘ अरे पगली..इसमें धन की क्या जरुरत ? तुम तो मात्र पच्चीस रुपये में इस समस्या से छुटकारा पा सकती हो....अभी और इसी वक्त..’
‘ वो कैसे प्रभू ? ‘ लड़की विस्मित हुई क नयी आशा की किरण जगी सुषमा ने कहा प्रभु जल्दी बताओ उपाय -----प्रभु ने उपाय बताया
से पूछे-‘ क्या हाल है बच्ची ? ‘खरीदो..उसे सिर से लेकर गले के नीचे तक ऐसे लपेटो कि केवल आँखे भर दिखाई दे..लगे तो उस पर भी चश्मा चढ़ा लो और फर्राटे के साथ स्कूटी या सायकल पर उडो..तुम पर ना कोई टिपण्णी करेगा ना ही उपेक्षा करेगा ..उलटे लोग तुम्हारे पीछे भागेंगे...जाओ..समय मत गवांओ...मैं साल भर बाद तुमसे मिलूंगा..’
साल भर बाद प्रभू प्रगट हुए..

सुषमा से पूछे-‘ क्या हाल है बच्ची ? ‘

सुषमा ख़ुशी से चहकते बोली- ‘ बहुत खुश हूँ प्रभू..अमन-चैन से हूँ...शुरू-शुरू में थोड़ी दिक्कतें आई..हर कोई दुपट्टे का रहस्य पूछते..मैं सबको एक ही जवाब देती- धूल-धुंवां आदि के प्रदूषण से बचने मुँह बांधती हूँ..लेकिन अब कोई कुछ नहीं पूछता अब तो यह सजगता शत-प्रतिशत लड़कियों के सिर पर सवार है..अब मैं अकेली ही ( कुरूप ) नहीं, शहर की सारी लडकियां मेरे साथ ( कुरूप ) हैं..सबको नकाब में देखती हूँ तो बहुत ख़ुशी होती है.हम सबमें एकरूपता जो आ गई.. सुषमा ने प्रभू का आभार व्यक्त किया ! प्रभु अद्रश्य हो गये
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

दुष्कर्मी कन्हेयालाल.....लघु कथा ( व्यंग )


"सुषमा के पिता कन्हेयालाल ने।" सुबकते हुए रूपाली ने जवाब दिया।
"तुझे कितनी बार समझाया है कि छाती पूरी तरह ढँक कर अंदर-बाहर कदम रखा कर इन राक्षसों की कामी नज़रें औरतों की नंगी छातियों पर ही पड़ती हैं। नंगी छाती रखने का नतीजा देख लिया न तूने ? मैं तो कहीं की नहीं रही। उस दुष्ट का सत्यानाश हो रब्बा , जीते-जी जमीन में गड़ जाए। मेरी भोली-भाली बेटी का जीवन बर्बाद कर दिया है उस राक्षस ने। अपनी बेटी की उम्र की कन्या का का बलात्कार ... उफ़ , घोर कलयुग आ गया है। "
कन्हेयालाल को गालिया देती हुयी माँ रूपाली का हाथ पकड़ कर बाहर आ गयी। उसका रुदान सुनते ही अड़ोसी-पड़ोसी बाहर निकल आये। सैंकड़ों ही लोग इकट्ठा हो गए। रूपाली के बारे में जिसने भी सूना वह लाल-पीला हो गया। सभी कन्हेयालाल के घर की ओर लपके। उसके घर तक पहुँचते-पहुँचते लोगों का अच्छा-खासा हुजूम हो गया। कन्हेयालाल घर में ही था। कुछ लोगों ने उसे घसीट कर बाहर ज़मीन पर पटक दिया।
वह रोया-चिल्लाया। हाथ जोड़-जोड़ कर उसने बार-बार माफ़ी माँगी, ज़मीन पर बार-बार नाक भी रगड़ी लेकिन गुस्साए लोगों का हुजूम था। किसीने घूँसा मारा और किसीने जूता। ख़ूब धुनाई हुयी उसकी। लहूलुहान हो गया वह। माँ के कलेजे को ठण्डक फिर भी नहीं पडी थी। वह चिल्ला-चिल्ला कर कहे जा रही थी - "मारो और मारो इस पाजी को, दम निकाल दो इसको। "

पंद्रह वर्ष की रूपाली रोते - चिल्लाते घर पहुँची। माँ ने बेटी को अस्त-व्यस्त देखा तो गुस्से में पागल हो गयी - " बोल, तेरे साथ कुकर्म किस पापी ने किया है ? "
लोग कन्हेयालाल को पीटे जा रहे थे। पीटने वालों में कई ऐसे भी थे जिनके हवस की शिकार कई महिलायें हो चुकी थीं। ......
लेखक - उत्तम विद्रोही
( नोट - नाम व चित्र काल्पनिक है )

Sunday, 30 July 2017

मोहबत

अब हमको भी मोहब्बत का इजहार होना चाहिए,
तीर जिगर के उस पार होना चाहिए,

बहुत रह लिए किसी के बिन अकेले-अकेले अब
अपना भी घर संसार होना चाहिए,

हर कोई देख पढ लेता है चेहरा हमारा हमको भी
अब अखबार होना चाहिए,

कि, बस एक नजर मे दिल चुरा लेते है हमको भी
ऐसो से अब खबरदार होना चाहिए,

सुना है, कि वो मोहब्बत मे बडे मकवूल है,यार उनको
तो मोहब्बत का अब इश्तेहार होना चाहिए ........ उत्तम विद्रोही

नारी के अवदान और पीड़ा - उत्तम विद्रोही

भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है नारी शक्ति की चेतना का प्रतीक है। साथ ही यह प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो जड़ स्वरूप पुरुष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। साथ ही संसार की सार्थकता सिद्ध करती है। महिला शब्द में ही महानता, ममता, मृदुलता, मातृत्व और मानवता की कल्याणकारी प्रवृत्तियों का समावेश है । 
महिलाओं के कारण ही सृष्टि में सुख-शांति, सहृदयता, सहयोग के संस्कार से संस्कृति का उत्थान और उत्कर्ष हो रहा है । जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएँ अपनी श्रेष्ठता-विशिष्टता पुरूषों से बढ़-चढ़कर सिद्ध प्रसिद्ध कर रही है । इसके बावजूद भी आज देश-विदेश में महिला उत्पीड़न का ग्राफ बढ़ता जा रहा है तरह-तरह की पीड़ा, हत्या और आत्महत्याओं का दौर थम नहीं रहा है । महिलाओं की सहजता, सहनशीलता और संकोच के दबाव को कमजोरी समझा जा रहा है, जबकि महिलाएँ पुरुषों से किसी तरह कमजोर नहीं है ।
पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं को पहले पाव की जूती समझा जाता था । खरीदी हुई कोई वस्तु समझकर उसे चाहे जब चाहे, कुचल-मसल दिया जाता रहा है । किन्तु जैसे-जैसे महिला जागृति बढ़ी मानवाधिकार की आवाज बुलंद हुई, संयुक्त राष्ट्र संघ, लोकसभा, विधानसभा और पंचायतों में महिलाओं को आंशिक प्राथमिकता दिए जाने के अनुसार हर क्षेत्र में पूर्ण आरक्षण दिए जाने में पुरूषों की आना-कानी, हीले-हवाले व बहानेबाजी रोड़ा बनी हुई है । राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं को आगे बढ़ने में कई बार बाधाएँ उत्पन्न होती है । महिला सशक्तिकरण, कार्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं द्वारा स्थापित कीर्तिमान यह सिद्ध करता है कि महिलाओं के बढ़ते बदलाव के कदम अब रोके नही जा सकते हैं । महिलाओं द्वारा ही देश को भ्रष्टाचारमुक्त किया जा सकता है ।
आज हमे स्वीकार करना होगा महिलाओं को बाल्यकाल से ही अहसास करवाया जाता है कि वे लड़की हैं और उन्हें एक सीमित दायरे में ही कैद रहना है तथा जितनी उड़ान उनके माँ – बाप चाहें बस उतना ही उड़ना है । बाल्यकाल अभिभावकों के संरक्षण में उनके अनुसार ही गुजारना होता हैं लडकियों को इतनी स्वतंत्रता अभी भी नहीं हैं कि वे अपने लिए स्वतंत्र निर्णय ले सकें । एक तरह से उन्हें हर निर्णय के लिए अभिभावकों का मुँह देखना पड़ता है और हर कदम आगे बढ़ाने के लिए उनकी सहमति लेनी पड़ती है । अभिभावक उदारवादी रवैये वाले हुए तो ठीक है कि लड़की अपने हित में सोच सकती हैं और कुछ कर सकती है, परन्तु इसका प्रतिशत अभी ज्यादा नहीं हैं । शहरों और महानगरों को छोड दें तो गाँवो में स्थिति अभी भी ज्यादा नहीं सुधरी है । 
लड़की को साधारण पढा-लिखा कर कम उम्र में ही उनका ब्याह रचा दिया जाता है । गाँवों में अभी भी लड़की की सहमति या असहमति से कोई मतलब नही होता । शहरों में भी कुछ ही परिवार उन्नत विचारों और मानसिकता वाले है, जो एक सीमा तक पढ़ाई-लिखाई की छूट और उन्हें नौकरी करने की आजादी देते है । अभी भी शहर से बाहर जाकर नौकरी बहुत कम लडकियाँ कर पाती हैं ! बचपन से ही लड़कियों का आत्मविश्वास और मनोबल क्षीण या कमजोर कर दिया जाता है कि वे कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाती तथा दब्बू प्रवृत्ति की बन जाती है । यह प्रारम्भिक कमजोरी मन पर सदैव हावी रहती है यदि ससुराल पक्ष और पति उदारवादी दृष्टिकोण के हुए तो ठीक, वरना यहाँ भी उसे परतंत्रता का घूंट पीना पड़ता है । ससुराल वालों के अनुसार ही बहू को चलना पड़ता हैं । वरना जीवन दूभर हो जाता है । वैसे भी प्रारंभ से मिली शिक्षा और व्यवहार उसे अपने आकाश गढ़ने नहीं देते, जिसमें वह मनचाही कल्पनाओं के इन्द्रधनुष रच सकें ।
 जीवन यहाँ भी औरों के बस में ही होता है जिसे वह एक समझौते के साथ अपने रिश्ते-नातों के धागों को सहेजते हुए जीती है । विरोध केवल कलह और अशांति को जन्म देता हैं, इसलिए वह साहस नहीं कर पाती कि अपने हित में निर्णय आसानी से ले सके । यहाँ महिलाओं की कमजोरी साबित होती है कि चाहते हुए भी मनचाहे क्षेत्र में आगे नही बढ़ सकती अपवादस्वरूप कुछ साहस कर पाती है परन्तु उसका प्रतिशत बहुत कम है, क्योंकि प्रवृति उनकी प्रारम्भ से ही ऐसी बना दी जाती है कि वे विरोध कर नहीं सके । इसलिए महिलाओं को दोष नहीं दिया जा सकता है कि वे कमजोर क्यों हैं? बुजुर्ग अवस्था में भी महिलाओं को सुकून नही मिल पाता यहाँ भी उन्हें समझौता करना पड़ता है और दब कर रहना पड़ता है । कई बार तो अपमान सहने तक की नौबत आ जाती है । उस अवस्था में जबकि आर्थिक आधार इतना सुदृढ़ नहीं हो । कुछ भी करने के लिए बेटे या पति का मुँह देखना पड़ता है । अगर अपने हिसाब से जीना चाहें तो नहीं जी सकती हैं । महिलाएँ अपने खातें में परतंत्रता की जंजीरें ही लिखाकर लाई हैं, जिन्हें काटना उनके लिए आसान या संभव नहीं है । हर अवस्था में उन्हें कमजोर बनाया जाता है । इसलिए यह प्रश्न बेमानी सा है कि महिलाओं में कमजोरी क्यों?
इसी प्रकार एक लड़की को किसी भी क्षेत्र में जाने से पहले जूझना है और लोगों के व्यंग्य भी सहने पड़ते हैं, परन्तु जब सफलता मिलती है, तो सब सिर आँखों पर बिठाते हैं । यही महिला जीवन की त्रासदी है क्योंकि सभी लड़कियाँ दृढ़ता से अपने हक में निर्णय नहीं ले पाती । पुलिस विभाग में महिलाओं की नौकरी अच्छी नहीं मानी जाती थी, परन्तु सुश्री किरण बेदी ने जो साहस और क्षमता दिखाई कि वे मील का पत्थर बन गई तथा औरों को भी उन्होंने प्रेरणा दी कि महिलाएँ भी सब कुछ करने में समर्थ है । वैसे तो महिला सशक्तिकरण की बातें तो बहुत हो रही हैं परन्तु बदलाव इतनी जल्दी और आसानी से नहीं होने वाला है, जब तक कि यह जागृति की लहर हर तरफ न फैल जाए ।अभी तो अँगुली पर गिने जाने वाले नाम ही हैं, जो महिलाओं की शक्ति का प्रतीक है और उनके सामर्थ्य को दर्शाते हैं । बेटों की तरह बेटियों का भी दुनिया में आगमन (बैंड बाजे बजवाकर) और पालन-पोषण हो तो निश्चित ही वे अपनी सफलता की बानगी दिखला सकती है ।
महिलाओं को जेवर, कपड़ों का शौक होता है, जो उनकी कमजोरी नहीं, अपितु रूचियाँ हैं, वही कई बार स्त्रियों में ईर्ष्या प्रवृति (किसी में कम, किसी में ज्यादा) भी देखी गई है जो पुरूषों में भी पाई जाती है । देखा-देखी या होड़ा-होड़ी की भावना भी सभी में होती है । जो स्वभाव के अनुसार कम या ज्यादा होती है, इसलिए महिलाओं को सिर्फ कमजोरी का पुतला ही न समझें, बल्कि उनकी क्षमता, सामर्थ्य व परिस्थितियों को भी समझें ।
जहाँ तक भ्रूण हत्या का सवाल है कोई भी महिला अपने अंश को आसानी से जाया नही करेंगी । परन्तु पारिवारिक दबाव और महिलाओं की सामाजिक स्थिति देख वे अपने कलेजे पर पत्थर रखकर ऐसा निर्णय लेने हेतु कमजोर पड जाती है । इसे कमजोरी नहीं कहा जाएगा, क्योंकि वे स्वयं महिला होने के नाते बचपन से पाबंदियों और पक्षपात (बेटे व बेटी में) के दौर से गुजरी है तथा वे नहीं चाहती कि उनकी बेटी को ऐसे त्रासदी भरे दौर से गुजरना पड़े, इसलिए वे ऐसे दुःखद निर्णय ले लेती है । आगे जाकर दहेज प्रथा उनके जीवन का नासूर साबित होती है तथा समाज या जाति के दबाव में कम योग्य वर से ब्याह दी जाती है या दहेज के लालची ऐसे कठोर लोगों का शिकार बन जाती है, ताकि कोई अबला जीवन की कहानी नहीं दोहराई जा सके । इसे कमजोरी नहीं अपितु मजबूरी या विवशता कहा जाएगा कि वे अपना ही अंश गर्भ में ही समाप्त कर दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा । जब तक ऐसी मानसिकता समाज की रहेगी, यह कमजोरी या विवशता रहेगी ।
लेखक - उत्तम जैन विद्रोही

धर्म की पीड़ा …

 आज धर्म के नाम पर जो घिनौने काम किए जाते हैं, क्या उन्हें देखकर आपका दिल सहम जाता है? क्या ऐसे लोगों के बारे में सुनकर आपका खून खौल उठता है जो एक तरफ तो ईश्वर की भक्ति करने का दम भरते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे युद्ध में हिस्सा लेते हैं, आतंकवादी हमले करते हैं और बड़े-बड़े घोटाले करते हैं या दंगा फसाद करते है मुझे तो यह सब देखकर ऐसा क्यों लगता है कि धर्म ही सारी समस्याओं की जड़ है? मगर दरअसल, सारी समस्याओं के लिए सभी धर्म नहीं, बल्कि ऐसे धर्म कसूरवार हैं जो बुरे कामों को बढ़ावा देते हैं। ऐसे धर्मों के बारे में मेरी सोच के मुताबिक जिसकी लोग इज़्ज़त करते हैं, कहा गया है कि “निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। जी हाँ, ऐसे धर्म बुरे फल लाते हैं। मगर ये बुरे फल क्या हैं? अब आप मेरे विचारो पर मंथन करो मुझ जेसे अज्ञानी की बात आपको अगर पल्ले पड़ी तो में खुद को धन्य समझुगा नही तो विद्रोही की बकवास समझ कर भूल जाना …..इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं तो धर्म और ईमान के नाम पर और जि़द की जाती है तो धर्म और ईमान के नाम पर। केसी विडम्बना है की धर्म और धर्म के सिदान्तो को जानें या न जानें, परंतु उनके नाम पर उबल पड़ते हैं आग बबूले और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़नेवाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी समझता-बूझता तो है नही और दूसरे लोग की भीड़ जिधर जा रही है उधर अपना रुख कर देते है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते फिरते पुरज़े पढे़-लिखे लोगों का जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार धर्म के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी। साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजि़ब है। धर्म को खानदानी विरासत समझकर उसकी जिम्मेदारी के बोझ तले दबा हुआ है बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को क्या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत फ़ायदा उठा रहे हैं। चालाक लोग गरीबों की कमाई ही से वे मोटे हो रहे हैं, और उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब व् अशिक्षित सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! हमारे देश में, इस समय, धनपतियों का इतना ज़ोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मन-माना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना। कई नेता आजकल धर्म की राजनीति भी करने लगे है, जो सही नहीं है ! इन नेताओ को किसी भी प्रकार की धर्म राजनीति नहीं करनी चाहिए. आजकल नेता जिन्हें में एक व्यवसायी भी कहू तो अतिश्योक्ति नही होगी कमबख्त इन नेताओ की बुद्धि को मानना पड़ेगा ! क्युकी मेरे व् आप जेसे बनिए से ज्यादा होंशियार है ये है आधुनिक नई विरासत के बनिए जो संतों का इस्तेमाल करते हैं और काम निकलते ही संतों को दरकिनार कर देते हैं!. ऐसे व्यवसायी ऐसे तथाकथित धर्मगुरु को पैसे देकर अपना धंधा चमकाना चाहते हैं. इसी वजह से वह ऐसे धर्मगुरुओं के पीछे भारी भरकम रुपये खर्च करते हैं.! देश में सरकार के नियंत्रण में हो या समाज के नियंत्रण में जितने भी मंदिरों का संचालन हो रहा है, वहां से प्राप्त आमदनी को विकास कार्य में अथवा सामाजिक कार्य में खर्च नहीं किया जाता.वरन इन पैसों को कर्मचारियों की तनख्वाह एवं राजनीतिक दलों के नेताओं के आवभगत में खर्च किया जाता है.! अब इसके मुख्य कारण की तरफ आपको ले चलता हु आज इस आधुनिक युग में शिक्षा तो बढ़ी है मगर इस शिक्षा का स्तर गिरा है, जिसकी वजह से धर्म के प्रति भी लोगों का भरोसा कम हुआ है.! पहले के जमाने में सनातन धर्म के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी. बच्चों के धर्म के प्रति संवेदनशील बनाया जाता था, लेकिन आज के जमाने में शिक्षा में आधुनिकता का समावेश हो गया है. आज शिक्षा से शिक्षा के व्यवसायी झोला भर भर कर रुपये ले जाते हैं, इसमें व्यवसायियों की भी अपनी हित छिपा होता है.शिक्षा का तो नाम मात्र है ! मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेलते और थोड़े-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ हमे विचार व् मंथन करना चाहिए। व् शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा !लोग शिक्षित नही होंगे धर्म के सिदान्त को नही समझेंगे और जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्य-प्रति बढ़ते जाने वाले झगड़े कम न होंगे राजनेता धर्म के नाम पर साधू संतो के सहारे हमे भ्रमित करके झगडाते रहेंगे ! जरुरत है धर्म की उपासना के मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह, किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें, और दूसरों का मन चाहे उस प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्न धर्मो के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पांच वक्त नमाज़ भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझते हैं तो इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी कसौटी केवल आपका आचरण होगी। सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजापाठ और आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी। में समझता हु ऐसे धार्मिक आदमियों से तो नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊॅँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुःख का ख़याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!…..
नोट – उक्त मेरे विचार में मेरी कलम काफी विषयों से भटकते हुए चली है आप भावो को समझे मेरा अनुरोध अगर मेरे विचार आपको सही लगेया गलत तो मुझे व्हट्स अप न – 84607 83401 पर प्रतिक्रिया जरुर प्रदान करे !

उत्तम जैन (विद्रोही )

Saturday, 8 July 2017

गुरु पुर्णिमा ... मेरे विचार ओर शुभकामना

आज का दिवस गुरु पुर्णिमा हमे जीवन एक अच्छा संदेश देता है वेसे तो जीवन मे गुरु के प्रति हर पल सन्मान होता है ! जीवन मे अगर देखा जाए तो गुरु मेरी नजर मे प्रथम माँ होती है -- माँ जो जन्म देने के साथ हमारे जीवन मे एक अच्छे संस्कारो के बीज बोती है ! अगर जीवन मे सब कुछ अगर हम प्राप्त करते है तो वह है हमारे संस्कार द्वितीय हमारे गुरु होते है हमारे पिता जो हमारे जीवन मे संस्कार तो प्रदान करते ही है साथ मे लालन पालन कराते हुए हमारे जीवन मे हमारे कर्तव्य का बोध कराते है ओर तृतीय हमारे आध्यात्मिक गुरु जिनका हमारे जीवन मे एक विशेष स्थान होता है गुरु हमारे जीवन मे सुसंस्कारों के बीज तो बोते ही है साथ मे हमारे जीवन मे अधिकारो व कर्तव्य का बोध का पाठ भी पढ़ाते है ! इसलिए हमारे जीवन मे गुरु का विशेष स्थान होता है ! आज गुरु के बारे मे सक्षिप्त मे अगर कहु तो गुरु हमारे जीवन के निर्माता होते है ! शिक्षा से लेकर आध्यात्म तक हमारे मार्गदर्शक हमारे गुरु होते है ! आज मे यह कहना चाहूँगा जीवन मे आप कितनी भी सिद्धि प्राप्त कर लो जीवन के तीन गुरु --- माँ , पिता व आध्यात्मिक गुरु इनका आपने अगर जाने या अनजाने मे अपमान किया दिल दुखाया या सेवा नही की तो अपना जीवन नारकीय हो जाता है ! फिर हम मनुष्य नही पशु कहलाने के अधिकारी है क्यू की मनुष्य को ही प्रकृति ने सोचने समझने व अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने की ऊर्जा प्रदान की है ! आज पशु चाहे तो जन्म से लेकर मरण तक कभी अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त नही कर सकता ! जिस तरह मनुष्य करता है ! मेरा कहने का तात्पर्य यह है जीवन मे मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो जीवन मे अपने गुरु के प्रति ऋण अदा कर सकता है ओर जीवन मे मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकता है अब जीवन को सार्थक करने का अर्थ यह नही की हम सिर्फ आर्थिक रूप से समृद्ध हो... अर्थ भी जीवन मे जीने के लिए बहुत जरूरी है मगर अर्थ का सदुपयोग हो दुरपयोग न हो यह संस्कार हमारे जीवन मे तीन गुरु .. माँ , पिता व आध्यात्मिक गुरु प्रदान करते है ! अर्थात जीवन मे गुरु के बिना जीवन नश्वर है ! अब आपको यह कहना चाहूँगा जीवन मे जो हमे गुरु कर्तव्य का पाठ पढ़ाते है सबसे बड़ा कर्तव्य है सेवा भावना ... जीवन मे हमे परहित सेवा करनी चाहिए जीवन मे सेवा करने से हमारा जीवन सदेव खुशियो से भरा हुआ रहता है ओर यही खुशी हमारे जीवन मे आनंद की अनुभूति कराती है मगर एक कटु बात कह देना चाहूँगा सेवा भावना सिर्फ दिखावे के उदेश्य से न हो मेने बहुत बार देखा है बहुत से पुरुष दिखावे के लिए सेवा के बड़े बड़े आयोजन तो करते है मगर घर पर माँ पिता को उलाहना देते रहते है ऐसी सेवा का से अच्छा है आप अपने माँ पिता व आध्यात्मिक गुरु के चरणों मे सेवा का लाभ लो ! बहुत सी महिलाओ को भी देखा है जिनका प्रथम कर्तव्य होता है सास , ससुर व पति की सेवा करे मगर इन्हे तो अपशब्द बोलती है ओर बाहर समाज को दिखाने के लिए सेवा धर्म का ढिंढोरा पीटती है ! ओर बड़े बड़े फोटो सेवा करते हुए हुए शोशल मीडिया पर डालती है उन्हे आज संदेश देना चाहूँगा ... परहित सेवा से पहले परिवार सेवा का कर्तव्य का निर्वहन करे आपको परम आनंद की प्राप्ति होगी ओर जीवन सफल होगा .... फिर से गुरु पुर्णिमा पर माँ पिता व मेरे जीवन के शेक्षणिक व आध्यात्मिक गुरु को नमन
आपका - उत्तम जैन ( विद्रोही )          

Tuesday, 4 July 2017

कपड़ा बाजार , GST ओर लाठीचार्ज ...बेमुद्दत बंद

हमारे देश की सरकार द्वारा नवीनतम लागू जीएसटी अनेक प्रकार के टेक्स को हटाकर लागू किया गया । इस टेक्स के लागू करने के संसद भवन के सेंट्रल भवन में एक जश्न एक घंटा बजाकर लागू किया । सरकार अगर कोई भी टेक्स का नया प्रारूप लेकर आती है निसंदेह देश हित के लिए लेकर आती है । कुछ त्रुटी अगर होती है उसे भविष्य में सरकार सुधार भी सकती है । क्यों कि क्या गलत है क्या सही है लागू होने के बाद उसके परिणाम आने पर ही मालूम होता है । सरकार के नए gst का कही स्वागत तो कही विरोध भी हो रहा है । प्रजातांत्रिक देश मे सभी को अपने विचार रखने का अधिकार प्राप्त है । उसी राह में टेक्स्टाइटल जिस पर 5% जीएसटी लगाया गया। व्यापारी को यह उचित नही लगा । सरकार को इसके लिए अपील भी की जो इनके अधिकार क्षेत्र में आता है भले सरकार ने कपड़ा व्यापारी की नही सुनी और न ही किसी तरह का पुनर्विचार हेतु आश्वाशन दिया । हमारा देश लोकतांत्रिक देश है लोकतंत्र में एक अच्छी व्यवस्था है अपने अपने क्षेत्र से जनता प्रतिनिधि चुनकर भेजती है और वह प्रतिनिधि संसद में अपने क्षेत्र की समस्या सरकार के सामने रखता है समस्या के साथ उस क्षेत्र के विकास का कार्य भी प्रतिनिधि देखता है । ओर यही कार्य सूरत के व्यापारियों ने किया प्रतिनिधी के माध्यम से व्यापारियों ने अपनी बात सरकार तक पहुचाने की भरसक कोशिश की। हमारे जनप्रतिनिधि एक व्यापारीयों द्वारा चुने हुए संघर्ष समिति के एक दल को लेकर वित्तमंत्री से मिले भी उसके बाद भी सरकार अडिग रही और gst जश्न के साथ लागू हो गया । स्वाभाविक है जब कपड़ा व्यापारी की आवाज को सरकार ने नही सुना एक आंदोलन ही रास्ता बचा ओर सूरत के व्यापारियों ने वही किया शांतिप्रद आंदोलन । आंदोलन के पूर्व जनप्रतिनिधि ने व्यापारियों आश्वासन व सकारात्मक सहयोग न देकर तोड़ने का प्रयास किया । जब जनप्रतिनिधि से भी व्यापारियों को अपेक्षा नही रही आंदोलन ही एक मात्र रास्ता बचा ओर व्यापारी अग्रसर हो गए आंदोलन की ओर मगर व्यापारी वर्ग हमेशा शांति व विवेक से आंदोलन के पक्षधर रहे है और वही किया । आंदोलन के पहले दिन युवा व्यापारियों जोश से लबालब थे । सभी की एक ही आवाज थी जीएसटी नही चाहिए । तभी लोग हजारो की संख्या में मार्किट परिसर में शांत आंदोलन कर रहे थे । अचानक पोलिस द्वारा बेरहमी से लाठीचार्ज शुरू किया गया । लाठीचार्ज असामाजिक तत्वों पर सुरक्षा के लिए किया जाता है मगर व्यापारियों पर जो गलत तरीके से लाठीचार्ज किया गया । साथ मे सम्पूर्ण व्यापारियों का सबसे बड़ा संगठन फेडरेशन ऑफ ट्रेडर्स एशोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व मार्किट के सन्मानित बुजुर्ग व्यक्ति अत्तर सिंग जी के साथ घसीटते हुए जो लाठीचार्ज का वीडियो जैसे ही वायरल हुआ सभी व्यापारियों सिर्फ सूरत में ही नही सम्पूर्ण राष्ट्र में कपड़ा व्यापारी आक्रोशित हो गए । और स्वयंभू बेमुद्दत बन्द के समाचार प्राप्त होने लगे । यह आक्रोश स्वाभाविक भी था क्यों कि व्यापारियों के स्वाभिमान पर एक बहुत बड़ी चोट थी । मगर सूरत पोलिस आयुक्त ने सूझबूझ का परिचय देते हुए इस लाठीचार्ज पर खेद व्यक्त किया जिसका वीडियो जब वायरल हुआ व्यापारियों का आक्रोश कुछ हद तक कम भी हुआ । मगर व्यापारी gst के सरलीकरण व सिर्फ यार्न पर ही टेक्स लगे उसकी मांग पर आज भी अड़े हुए है । उनकी मांग पर अगर घोर किया जाये कुछ हद तक कपड़े बाजार की व्यवस्था व कार्यप्रणाली को देखा जाए तो उनकी मांग सही भी है । क्यों कि व्यापारी टेक्स का विरोध नही कर रहे है सरलीकरण व यार्न तक ही टेक्स की मांग कर रहे है । सरकार का मुख्य मिशन टेक्स ही है तो टेक्स तो सरकार को मिल ही जायेगा फिर सरकार इस मुद्दे पर क्यों नही विचार कर रही है समझ से परे है । दूसरी बात सरकार ने लाठीचार्ज पर आधिकारिक रुप से कोई खेद व्यक्त नही किया । हा विरोधी पक्ष जरूर अपनी रोटियां सेंकने या समस्या को देखते हुए जरूर सक्रिय हो गयी और लाठीचार्ज को तानाशाही बताया । वैसे विपक्षी पार्टी का साथ आंदोलन को सफलता दिलाने में मददगार भी हो सकता है । साथ मे जनप्रतिनिधि की भी चाहिए अपने क्षेत्र की समस्या को प्रखरता से सरकार तक रखे व सरकार की बाध्य करें कि व्यापारियो की मांग उचित है । सरकार व व्यापारियो के बीच निष्पक्ष रूप से समन्वय स्थापित करे । जिससे उचित निर्णय हो सके । क्यों कि इस बेमुद्दत बन्द से एक सामान्य मजदूर से लेकर लाखो लोगो का इसका नुकसान हो रहा है । आज लूम्स , डाईंग से लेकर मार्किट के सभी कामगारों का नुकसान सूरत की ही नही देश की आर्थिक स्थिति के लिए नुकसान देह है । एक सामान्य कामगार जो मेहनत करके दो समय की रोटी का जुगाड़ करने व अपने परिवार को पालने के लिए अपने वतन से सूरत आया है आज बेरोजगार होकर घर बैठा है । सरकार व कपड़ा बाजार दोनों को समन्वय बिठाकर इस मामले में कोई सुलह का रास्ता अपनाना चाहिए । क्यों कि कोई भी आंदोलन अगर लंबा चला तो वापस इसको पटरी पर आते आते 6 महीने लग जाएंगे आज इस ब्लॉग के माध्यम से सरकार व व्यापारियों से अपील करता हु आप जल्दी से जल्दी आपसी बातचीत द्वारा सुलह व जो हितकारी हो उस ओर अपने कदम बढ़ाए जिससे फिर लाखो लोग अपने कार्य की ओर अग्रसर होकर अपनी रोजी रोटी की ओर ध्यान केंद्रित कर सके । इस आंदोलन का संयोजक श्री ताराचंद कासट है जिन्हें सभी व्यापारियों ने निर्विरोध चुना है जो एक मंझे हुए व्यापारी के साथ एक अच्छी सूझबूझ के धनी है अपनी सूझबूझ से जल्दी ही सभी व्यापारी की समस्या व फायदे को देखते हुए उचित निर्णय तक पहुचायेंगे मुझे पूरा विश्वाश है ।
आपका .. उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज - सूरत