Wednesday 1 March 2017

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देना क्या देश में जहर के बीज बोना नहीं है?

 
मिर्जापुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सारी संवैधानिक और सामाजिक मर्यादाएं तोड़ते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुलेआम को मंच से हि...... और सा....... जैसी गन्दी गालियां दी. कौन कहता है कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीं है? कुछ भी बोलने की भारत जैसी खुली छूट तो दुनिया के अन्य किसी भी देश में नहीं है.
आज हिंदुस्तान में एक ओर जहाँ नेता खुलेआम चुनावी मंचों से बदजुबानी पर उतर आए हैं, वहीँ दूसरी तरफ छात्र नेता कॉलेजों में हंगामे ओर नारेबाजी करके वहां का माहौल खराब किये हुए हैं. अफसोसनाक बात तो यह है कि शिक्षक भी अब धड़ों में बंट न सिर्फ अपने-अपने पसन्दीदा ग्रुप के छात्रों के साथ हो लिए हैं, बल्कि प्रदर्शन और नारेबाजी करते हुए सड़कों तक पर उतर आये हैं. भारत की बिकाऊ व चरित्र से गिरी हुई मीडिया सनसनी फैलाने और हंगामा खड़ा करने में महारत हासिल कर चुकी है ! जेसे देश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का ठेका पूरी मीडिया ने ही ले लिया है और आज के युग में खुली व अमर्यादित बहस का सबसे लोकप्रिय मंच बन चुकी सोशल मीडिया तिल का ताड़ बनाने में पूर्णतः दक्ष हो चुकी हैं.!जिन्हे भले चव्व्नी का ज्ञान नही पर ज्ञान पेलने मे माहिर है
सोशल मीडिया पर सभ्य-असभ्य, संस्कारी-कुसंस्कारी हर तरह के लोंगों का संगम होता है. इसलिए आप कोई बयान दे रहे हैं तो पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया और कड़े विरोध के लिए भी तैयार रहना चाहिए.अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मैं पूरा समर्थन करता हूँ, किन्तु जो स्वतंत्रता अमर्यादित हो और देश को तोड़ने का काम करे, उसका मैं विरोधी हूँ. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाले लोग आतंक से पीड़ित कश्मीर सहित देश के कई नक्सल प्रभावित जगह के वासिंदों को पीड़ित बता उनके हित की बात करते हैं, लेकिन वो शहीद होने वाले पुलिस और सुरक्षाबलों की बात नहीं करते हैं. वो आतंकियों से हमदर्दी रखते हैं, लेकिन आतंकी जिन्हें गोली मारते हैं, उनसे कोई सरोकार नहीं रखते हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें देना क्या देश में जहर के बीज बोना नहीं है? जनता के द्वारा चुने हुए और देश के संवैधानिक पद पर आसीन प्रधानमंत्री को खुलेआम गन्दी गालियां देने वाले लालू प्रसाद यादव का इलाज क्या है? क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग नहीं है? अनेक घोटालों में सजायाफ्ता और जमानत पर रिहा लोग देश के प्रधानमंत्री की बेइज्जती करें यह देश की जनता और माननीय सुप्रीम कोर्ट दोनों को ही कदापि बर्दास्त नहीं करना चाहिए.......
लेखक - उत्तम जैन (विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज़ 

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