न छंदो का ज्ञान, न गीत न गजल लिखता हु
दिलोदिमाग मे उपजे विचारो को शब्दो मे पिरोता हु !
इसे जो पढ़ सके निपुण वो है प्रबुद्ध ज्ञानी ....
विनम्रता से उन्हे प्रणाम करता हु !
अपने विचारो को संप्रेषित करते हुए
होली की शुभकामना प्रेषित करता हु !!!
दुख दर्द दहन हो होली में,
हो रंग ख़ुशी के होली में।
तन मन आंनदित हो जाये,
जब रंग उड़ेंगे होली में।
सब भेद भाव मिट जायेंगे,
जब गले मिलेंगे होली में।
जब पिया गुलाल लगायेंगे,
तन मन सिहरेगा होली में।
मन से मन का जब रंग मिले,
तन रंग न चाहे होली में।
बचपन गाव की होली आज भी मानसपटल पर एक स्मृति के रूप मे अंकित है ! फटे पुराने कपड़े पहन कर सुबह जल्दी उठकर झुंड के झुंड मित्र सभी इकक्ठे होकर दादा जी द्वारा दिलाई हुई पिचकारी , दादा जी की दुकान से गहरे रंग , गुलाल फटे हाफ पेंट की जेब मे लेकर निकाल जाता था बार बार जेब को टंटोलते हुए हुए की फटी हुई जेब से रंग कही गिर न जाये ! सभी मित्रो को रंग लगाना पूरे गाव मे टोले मे घूमना घर आकार नहाना फिर दोस्तो द्वारा रंग लगा देना शाम को गाव मे गेर खेलना सच मे कहु वो बचपन वो गाव अब इन शहरो मे कहा न वेसे दोस्त न ही गाव जेसा माहोल ... रंग पंचमी , सीतला सप्तमी वो ओलिया ( दहि का विशेष रूप से बनाया हुआ ) आज भले शहरो मे भी गाव की परंपरा अभी तक चल रही है मगर न गाव जेसे ओलिया का स्वाद है न गाव जेसा माहोल अब तो सिर्फ यादे है !
होली रंगों का त्यौहार है लेकिन आज कल रंगों में मिलावट और घटिया रंगों के कारण हर व्यक्ति रंगों से दूर होता जा रहा है / हालाकि होली आपसी भाईचारे का रंग भरा त्यौहार है लेकिन कभी कभी मजाक मस्ती भारी पड़ जाती है / अत इस होली पर घटिया और गहरे रंगों की बजाय गुलाल से होली खेले / आपस में गले मिले और भाईचारे को बढाये / मजाक में भी किसी के साथ जोर जबरदस्ती न करे / इस मोके पर अनेक मनचले मनमानी करते है और आम लोगो को अपनी मस्ती मजाक के कारण परेशान करते है / इसलिए इस होली पर प्यार से मुस्कान के साथ हलके रंगों के साथ होली मनाये / दिल में खुशिया जगाये -----
होली का त्योहार, बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है; जहाँ होलिका बुराई और भक्त प्रहलाद अच्छाई का प्रतीक है. व्यापक अर्थ में देखा जाए तो- होली की अग्नि प्रज्ज्वलित करने में, क्षुद्र सांसारिक इच्छाओं का दमन और आध्यत्मिक उन्नति के पथ पर बढ़ने का संकेत निहित है. उसी तरह- जिस तरह त्रिकालदर्शी भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था. इस दिन झूठे अहम् और शत्रुता को भूलकर लोग, एक दूसरे को गले लगा लेते है. यह भी इस पर्व का सामाजिक /आध्यात्मिक पक्ष ही कहा जाएगा. जाति और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर यह पर्व, इंसान से इंसान के प्रेम को अभिव्यक्ति प्रदान करता है
फिर से सभी को होली की शुभकामना ....
उत्तम जैन ( विद्रोही )
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