Saturday 18 March 2017

भूतकाल व वर्तमान ...... बीती ताही बिसार दे

हममें से अधिकतर लोग क्या भूत के विलाप और भविष्य की चिन्ता में ही जीवन  बिता देते है  ओर वर्तमान क्षण के सुख से वंचित रह जाते हैं। हम जीवन के सौन्दर्य व आनन्द को भूल जाते हैं। यह सब हमारी मनःस्थिति के कारण होता है।हमारा   दृष्टिकोण ऐसा ही होना चाहिए की  हमारे पास केवल यही क्षण है। इसमें अपने पूर्वनिर्धारित मतों के साथ प्रवेश न करे । जब हम भूतकाल पर विलाप करते हुए अथवा भविष्य की चिंता में जीते हैं तो वर्तमान क्षण के सौन्दर्य की अनुभूति से चूक जाते हैं।  विषमताओं को देख कर हमें न तो हवा में उड़ना चाहिए और न ही कागज़ की किश्तियों जैसे डूब जाना चाहिए। लिखते समय, हम एक वाक्य के बाद विराम-चिन्ह क्यों लगाते हैं? ताकि नया वाक्य शुरू कर सकें। हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए। पीड़ा के समय लक्ष्य  को कस कर पकड़े रहें। और इससे भी बढ़ कर, जीवन का अन्त करने का प्रयास तो कभी नहीं करना चाहिए। भटकता मन हमें बहुत कुछ कहेगा। पर कठिन समय के चलते हमारा मन टूट कर बिखर न जाए। मन को सम्भालो। काल का पहिया घूमता रहता है। प्रारब्ध कितने ही रूपों में हमारे सामने आता है। परिवर्तन कभी शीघ्र आता है तो कभी देरी से। इसलिए कठिनाइयों के कारण जीवन का अन्त करने का विकल्प कभी अपने मन में न लायें। कठिन समय को प्रार्थना व लक्ष्य  बदल सकता है। प्रार्थना व लक्ष्य के माध्यम को पकड़े रखो। हर समस्या का समाधान होता है। कुछ रोगों का इलाज दवा से होता है, कुछ को ओपरेशन की ज़रूरत होती है। ऐसा ही कठिनाईयों को ले कर भी होता है। अतः लक्ष्य व आत्म विश्वाश को कस कर पकड़े रखो। इसके लिए, प्रयत्न करना होगा। कुछ अच्छा पाने के लिए, प्रयत्न की सदैव आवश्यकता होती है, जबकि चिंता या निराशा में डूबने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। हमें चाहिए – समय, प्रयत्न तथा लक्ष्य की ओर ध्यान दे ।  हमारे पुरुषार्थ का फ़ल भी तत्काल तो नहीं प्राप्त होता, समय से ही होता है।  हमें वर्तमान में ही रहना चाहिए और इसे सुंदर बनाना चाहिए क्योंकि न तो भूतकाल एंव न ही भविष्यकाल पर हमारा नियंत्रण है |“अगर खुश रहना है एंव सफल होना है तो उस बारे में सोचना बंद कर दें जिस पर हमारा नियंत्रण न हो !  
उत्तम जैन (विद्रोही ) 

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