चीन ने एक बार फिर पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर 'टेक्निकल होल्ड' लगा दिया है. पूर्व मे मुंबई में हुए 26/11 हमले के बाद साल 2009 में भारत ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ये प्रस्ताव पेश किया था. साल 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद भारत ने फिर इस प्रस्ताव को पेश किया. 14 फ़रवरी को पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 जवान मारे गए, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने '' जघन्य और कायरतापूर्ण '' अपराध बताया था. जब ये बयान दिया गया तो इस बैठक में चीन भी शामिल था. इस हमले की ज़िम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. 6 फ़रवरी 2019 को भारत ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक किया जिस पर उसे दुनिया की तमाम शक्तियों की ओर से समर्थन मिला. इसके ठीक एक दिन बाद भारत, चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के बीच बैठक चीन में हुई. इस बैठक में आतंकवाद को ख़त्म करने की तय सीमा को आगे बढ़ा दिया गया.
इस बार भारत का साथ दिया यूनाइटेड किंगडम, अमरीका और फ्रांस ने. इन तीनों ही देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी देश का दर्जा प्राप्त है लेकिन ये प्रस्ताव पास नहीं हो सका. साल 2017 में जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सेना के कैम्प में हुए हमले के बाद भारत ने फिर ये प्रस्ताव यूएन में पेश किया और इन तीनों ही बार चीन ने ये कहते हुए 'टेक्निकल होल्ड' लगाया कि उसे इस मुद्दे को समझने के लिए और समय चाहिए. इस बीच दुनिया भर में जारी आतंकवादी हमलों ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ने की भारत की पहल को और मज़बूत किया. अमरीका में हुए 9/11 हमले के बाद साल 2001 में यूएन सुरक्षा परिषद ने कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जिसमें जैश ए मोहम्मद भी शामिल रहा. लेकिन इसके बाद भी मसूद अज़हर ने कई हमले किए और इसकी बकायदा ज़िम्मेदारी भी लेता रहा.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 के तहत स्थापित प्रतिबंध समिति के तहत वैश्विक आतंकवादी घोषित होने के बाद व्यक्ति किसी भी देश की यात्रा नहीं कर सकता. पूरी दुनिया में उसकी संपत्तियां जब्त कर ली जाती हैं और किसी भी देश से हथियार नहीं ख़रीद सकता. चीन ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी है. चीन का कहना है कि उसे '' इस मामले में और ज़्यादा अध्ययन '' करने की ज़रूरत है अब ज्यादा विस्तार मे अध्ययन करने की क्या जरूरत उस पर अगर हम मंथन करे तो मसूद अजहर के आतंकवादी सरगना होने का चीन पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता है.
ऐसा नहीं है कि चीन आतंकवाद के खिलाफ नहीं है, हालांकि उसने ऐसे फैसले लिए हैं जिससे भारत हीं नहीं, पूरे विश्व के मन में उसके खिलाफ ऐसी धारणा बन जाती है कि वह आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है. ऐसी स्थिति में साफ लगता है कि पाकिस्तान ही चीन के ऊपर दबाव डाल रहा है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का सबसे अधिक फायदा पाकिस्तान की सेना, उनके हुक्मरानों और पंजाब क्षेत्र को होनेवाला है, वहीं चीन के लिए सामरिक दृष्टि से यह परियोजना महत्वपूर्ण है . इसलिए, पाकिस्तान की सेना व हुक्मरान चीन के ऊपर दबाव बनाने में कामयाब होते हैं और मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित नहीं होने देना चाहता है !
पाकिस्तान चीन को बार-बार कहता है कि सारी परियोजनाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि चीन पाकिस्तान के खिलाफ न जाये. चीन ने खुद को ऐसी स्थिति में फंसा लिया है.
अगर अमेरिका, यूरोपीय संघ के मामले में भी देखा जाए तो जब इनके रिश्ते पाकिस्तान के साथ अच्छे थे, तब पाकिस्तान इन्हें भी तरह-तरह के दबाव में लाता था और अपने खिलाफ वोट नहीं होने देता था. पाकिस्तान अपनी स्थिति का हमेशा फायदा उठाता रहा है. पाकिस्तान के लिए इस समय भारत में आतंकवाद फैलाना प्राथमिकता बनी हुई है. सारे देश मना कर रहे हैं, लेकिन वह नहीं मानता.
चूंकि, चीन उसके कब्जे में है, इसका वह फायदा उठाता है. चीन की भी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. चीन अगले 20 वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने का सपना देख रहा है. 'वन बेल्ट वन रोड' के बाद अब 'चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर' चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, जिससे चीन को तेल के संसाधन मिलने में आसानी होगी, बाकायदा कॉलोनी बसायी जा रही है जिससे चीन खाड़ी देशों के बहुत करीब हो जायेगा.
इसलिए, पाकिस्तान को साथ रखना चीन के लिए बहुत आवश्यक है कहा जाए तो एक मजबूरी भी है जहां तक आतंकवाद की बात है, चीन खुद ही आतंकवाद से पीड़ित है.
पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद के अलावा भी अलकायदा जैसे जितने आतंकी संगठन हैं, उनसे चीन न चाहते हुए भी संबंध बनाकर रखना चाहता है, जिससे वे चीन को तंग न करने लग जायें. ये संगठन कहीं और आतंकवाद फैला रहे हैं, तो चीन इनकी मदद करने को भी तैयार है. यह बहुत कुटिल और निंदनीय रवैया है कि चीन अपने देश में आतंकवाद के खिलाफ है, लेकिन कहीं और आतंक फैले तो उसे कोई परवाह नहीं होती है और आतंकवादियों को बचा लेता है.
भारत के अंदर चीन के खिलाफ अभियान छिड़ा हुआ है. लेकिन, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आनेवाले 15-20 सालों में हमें भी दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में उभरकर आना है. चीन के साथ भी हमें दो तरह के रिश्ते निभाने पड़ेंगे. हमें कुछ मामलों में उनका सहयोग करना पड़ेगा, वहीं कुछ में प्रतिस्पर्धा में शामिल होना पड़ेगा और खिलाफ जाना पड़ेगा. हम यह पूरी तरह से मानकर नहीं चल सकते कि चीन हमारा दुश्मन है और उसे सबक सिखाना है. हालांकि, देश में सबक सिखाने की यह भावना घर कर गयी है. लेकिन, हमें अपने आपको संभालना होगा. पाकिस्तान आतंक फैलाकर निरंतर यही कोशिश कर रहा है कि भारत अपने रास्ते से भटक जाये और चीन भी उसे नहीं रोकता कि भारत धीमी चाल से बढ़ेगा तो चीन अव्वल बना रहेगा.
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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