Monday, 25 March 2019

मन की बात अपनों से - मेरी कलम –उत्तम जैन (विद्रोही) – अंक -3

 
    मन की बात अपनों से - मेरी कलम –उत्तम जैन (विद्रोही) – अंक -3
           
                    न्यूनतम आय की गेरेंटी अगर कांग्रेस सत्ता मे आयी तो फिर आपातकाल     
गरीबी इस देश में मज़ेदार बहस है.  जब किसी पार्टी के पास कोई मुद्दा शेंष नहीं रहता तब गरीबी हटाओ देश बचाओ का नारा बाजार मे मतदाताओ को लुभाने के लिए लाया जाता है  गरीबी हटाओ देश बचाओ का नारा 1971  के आम चुनाव में  इंदिरा गांधी का प्रमुख नारा था। बाद में उनके बेटे  राजीव गांधी  ने भी इस नारे का उपयोग किया। इस नारे का प्रयोग ( 5 वी ) पंचवर्षीय योजना में किया गया था। हमारे देश मे पंचम पंचवर्षीय योजना में निर्धनता उन्मूलन को योजना के प्रमुख उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया गया था। अब राहुल गांधी ने फिर गरीबी हटाओ देश बचाओ  की घोषणा कर बहुत बड़ा गरीबो को प्रलोभन दिया है देखना हमे यह है एक तरफ मोदी लहर मे राहुल गांधी व कांग्रेस की चुनावी घोषणा मतदाताओ कितना लुभाती है !
1971 के  लोकसभा चुनाव मे इंदिरा जी ने एक नारा दिया था वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ.  अगर इंदिरा जी के कार्यकाल पर नजर डाली जाए तो इंदिरा ने गरीबी हटाने के नाम पर देश को आपातकाल में झोंक दिया था गरीबी हटाओ का नारा भी जुमला ही साबित हुआ. 1973 में मंहगाई के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन शुरू हो गए. इसी दौरान 1974 से 1979 तक चलने वाले पांचवे पंचवर्षीय प्लान की घोषणा हुई. इसमें गरीबी उन्मूलन की के तीन मुख्य प्रोग्राम रखे गए. आर्थिक विकास के लिए जारी कुल फंड का महज चार फीसदी गरीबी उन्मूलन के खाते में गया ! अब देखना है कांग्रेस का गरीबो के प्रति हमदर्दी है या फिर सिर्फ चुनावी झुमला  उस समय ये चंद लाइन खूब गायी जाती थी
                  कांग्रेस की सरकार यहां पर, सालो से सत्ता में बराबर 
              गरीबी हटाओ का नारा लगा कर , गरीब को लूटा है बराबर 
             और जनता पर टैक्स बढ़ाया , बढ़ी अमीरी, बढ़ी गरीबी 
             टाटा, बिड़ला खूब कमाया , 20 सूत्री का मीठा फल तो 
             इनके चमचों ने ही खाया, पंजा के निशान पर इसने 
             गधे को भी चुन कर लाया, गरीब को लूटा है बराबर

     
उत्तम जैन ( विद्रोही ) – प्रधान संपादक – विद्रोही आवाज 

Sunday, 24 March 2019

मन की बात अपनों से - मेरी कलम –उत्तम जैन (विद्रोही) – अंक -2


उत्तम जैन ( विद्रोही ) – प्रधान संपादक – विद्रोही आवाज
          


भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और चुनाव किसी भी लोकतंत्र का महापर्व होते हैं ऐसा कहा जाता है। पता नहीं यह गर्व का विषय है या फिर विश्लेषण का कि हमारे देश में इन महापर्वों का आयोजन लगा ही रहता है । कभी   लोकसभा  कभी विधानसभा तो कभी नगरपालिका के चुनाव। लेकिन अफसोस की बात है कि चुनाव अब नेताओं के लिए व्यापार बनते जा रहे हैं !  




















उत्तम  विद्रोही को माफ़ किजिये चुनावी माहोल व वादो के साथ आरोप प्रत्यारोप एक दूसरी पार्टियो को नीचा दिखाने तो कोई फेंकू ,पप्पू, चोकीदार के साथ मुख्य मुद्दे तो नदारद ही हो गए है ! टीवी चेनलों पर डिबेट देखे इन नेताओ की भाषाशेली पर विचार करने को मजबूर हो जाते है की क्या हमारे यही संस्कार है हमारा देश बुनियादी आवश्यकताओं से आगे क्यों नहीं जा पाया ? किसानो की कर्ज माफी का प्रलोभन देने से अच्छा उन्नत फसल केसे पनपे जिससे किसानो की आय मे व्रद्धि हो   और क्यों हमारी पार्टियाँ रोजगार के अवसर पैदा करके हमारे युवाओं को स्वावलंबी
बनाने से अधिक मुफ्त चीजों के प्रलोभन देने में विश्वास करती हैं?



यह वाकई में एक गंभीर मसला है कि जो वादे राजनैतिक पार्टियाँ अपने चुनावी वादो में करती हैं वे चुनावों में वोटरों को लुभाकर वोट बटोरने तक ही क्यों सीमित रहते हैं। चुनाव जीतने के बाद ये पार्टियाँ अपने चुनावी वादो को लागू करने के प्रति कभी भी गंभीर नहीं होती और यदि उनसे उनके चुनावी घोषणा में किए गए वादों के बारे में पूछा जाता है तो सत्ता के नशे में अपने ही वादों को ‘चुनावी जुमले ‘ कह देती हैं। इस सब में समझने वाली बात यह है कि वे अपने चुनावी वादो को नहीं बल्कि अपने वोटर को हल्के में लेती हैं। 
आमआदमी तो लाचार है शिक्षित चुपचाप है अशिक्षित व् गरीब दो जून की रोटी के लिए संघर्षरत  है और मिडिया चुनावी विज्ञापन लेने में अपनी कलम के साथ गद्दार है !  अब चुने तो चुने किसे आखिर में सभी तो एक से हैं। उसने तो अलग अलग पार्टी को चुन कर भी देख लिया लेकिन सरकारें भले ही बदल गईं मुद्दे वही रहे। पार्टी और नेता दोनों ही लगातार तरक्की करते गए लेकिन वो सालों से वहीं के वहीं खड़ा है। क्योंकि बात सत्ता धारियों द्वारा भ्रष्टाचार तक ही सीमित नहीं है बल्कि सत्ता पर काबिज होने के लिए दिखाए जाने वाले सपनों की है। मुद्दा वादों को हकीकत में बदलने का सपना दिखाना नहीं उन्हें सपना ही रहने देना है

मन की बात अपनों से - मेरी कलम –उत्तम जैन (विद्रोही) -1

भारतीय संविधान के तीन प्रमुख स्तम्भ हैं सत्ता चलाने वाले , कानून बनाने वाले  तथा न्याय देने वाले । इन तीन स्तम्भों के सहारे ही भारतीय राज्य व्यवस्था का सम्पूर्ण तानाबाना बुना हुआ है। मंत्री परिषद् कोई योजना या नियम बनाती है, उसकी अच्छाई-बुराई को जनता के सामने रखना मीडिया की जिम्मेदारी है। जिसे वह अपने जन्मकाल से स्वतंत्र रूप से करती आ रही है। इसके बारे में भारतीय संविधान की 19 वीं धारा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अधिकार के अंतर्गत विस्तार से दिया गया है। इस अनुच्छेद ने मीडिया को सार्वभौमिक शक्ति प्रदान की है जिससे वह प्रत्येक स्थान पर अपनी पैनी नजर रखते हुए स्वविवेक के आधार पर घटना से सम्बन्धित सही-गलत का निर्णय कर सके । यह ओर बात है कि जाने-अनजाने मीडिया की इस नजर से अनेक भष्ट लोग हर रोज आहत होते हैं। ऐसे लोग आए दिन माँग भी करते हैं कि मीडिया पर अंकुश लगना चाहिए। उनका तर्क है कि जब कानून का शिकंजा सभी पर कसा हुआ है फिर मीडिया क्यों उससे अछूती रहे ? खासकर मीडिया और राजनीति के अंतर्सम्बन्धों को लेकर यह बात बार-बार उछाली जाती है।
आज मीडिया के उद्देश्यों को लेकर दो तरह की विचारधाराएँ प्रचलित हैं। एक मीडिया को शुद्ध व्यवसाय मानते हैं तो दूसरा वर्ग इसे जन संचार का शक्तिशाली माध्यम होने के कारण जनकल्याण कारक, नैतिक मूल्यों में अभिवर्धक, विश्व बन्धुत्व और विश्व शांति के लिये महत्वपूर्ण मानता है। दोनों के ही अपने-अपने तर्क हैं। वस्तुत: इन तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान पत्रकारिता जहाँ व्यवसाय है वहीं परस्पर प्रेम, जानकारी और शक्ति बढाने का माध्यम भी है
जब पत्रकार कोई नकारात्मक समाचार लिखता है तब भी वह अप्रत्यक्ष जनता का हित ही साध रहा होता है। आप राजनीति और मीडिया के इन अंर्तसम्बन्धों को चाहें तो स्वार्थ के सम्बन्ध भी कह सकते हैं  स्वाधीनता आंदोलन के समय और उसके बाद भारत में मूल्यों के संरक्षण संवर्धन तथा उनकी स्थापना का कार्य मीडिया निरंतर कर रही है। यही उसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षक बनाता है। जब तक भारत में लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था रहेगी तब तक मीडिया और राजनीति में अंर्तसम्बन्ध बने रहेंगे। इस पर कोई भी बहस की जाए वह अधूरी रहेगी

Saturday, 16 March 2019

एक नजर - मसूद अजहर चीन की मजबूरी ओर पाकिस्तान की ब्लेकमेलिंग- उत्तम जैन (विद्रोही)

चीन ने एक बार फिर पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर 'टेक्निकल होल्ड' लगा दिया है. पूर्व मे  मुंबई में हुए 26/11 हमले के बाद साल 2009 में भारत ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ये प्रस्ताव पेश किया था. साल 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद भारत ने फिर इस प्रस्ताव को पेश किया. 14 फ़रवरी को पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 जवान मारे गए, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने '' जघन्य और कायरतापूर्ण '' अपराध बताया था. जब ये बयान दिया गया तो इस बैठक में चीन भी शामिल था. इस हमले की ज़िम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. 6 फ़रवरी 2019 को भारत ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक किया जिस पर उसे दुनिया की तमाम शक्तियों की ओर से समर्थन मिला. इसके ठीक एक दिन बाद भारत, चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के बीच बैठक चीन में हुई. इस बैठक में आतंकवाद को ख़त्म करने की तय सीमा को आगे बढ़ा दिया गया.
इस बार भारत का साथ दिया यूनाइटेड किंगडम, अमरीका और फ्रांस ने. इन तीनों ही देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी देश का दर्जा प्राप्त है लेकिन ये प्रस्ताव पास नहीं हो सका. साल 2017 में जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सेना के कैम्प में हुए हमले के बाद भारत ने फिर ये प्रस्ताव यूएन में पेश किया और इन तीनों ही बार चीन ने ये कहते हुए 'टेक्निकल होल्ड' लगाया कि उसे इस मुद्दे को समझने के लिए और समय चाहिए. इस बीच दुनिया भर में जारी आतंकवादी हमलों ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ने की भारत की पहल को और मज़बूत किया. अमरीका में हुए 9/11 हमले के बाद साल 2001 में यूएन सुरक्षा परिषद ने कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जिसमें जैश ए मोहम्मद भी शामिल रहा. लेकिन इसके बाद भी मसूद अज़हर ने कई हमले किए और इसकी बकायदा ज़िम्मेदारी भी लेता रहा.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 के तहत स्थापित प्रतिबंध समिति के तहत वैश्विक आतंकवादी घोषित होने के बाद व्यक्ति किसी भी देश की यात्रा नहीं कर सकता. पूरी दुनिया में उसकी संपत्तियां जब्त कर ली जाती हैं और किसी भी देश से हथियार नहीं ख़रीद सकता. चीन ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी है. चीन का कहना है कि उसे '' इस मामले में और ज़्यादा अध्ययन '' करने की ज़रूरत है अब  ज्यादा विस्तार  मे अध्ययन करने की क्या जरूरत उस पर अगर हम मंथन करे  तो मसूद अजहर के आतंकवादी सरगना होने का चीन पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता है. 
ऐसा नहीं है कि चीन आतंकवाद के खिलाफ नहीं है, हालांकि उसने ऐसे फैसले लिए हैं जिससे भारत हीं नहीं, पूरे विश्व के मन में उसके खिलाफ ऐसी धारणा बन जाती है कि वह आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है. ऐसी स्थिति में साफ लगता है कि पाकिस्तान ही चीन के ऊपर दबाव डाल रहा है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का सबसे अधिक फायदा पाकिस्तान की सेना, उनके हुक्मरानों और पंजाब क्षेत्र को होनेवाला है, वहीं चीन के लिए सामरिक दृष्टि से यह परियोजना महत्वपूर्ण है . इसलिए, पाकिस्तान की सेना व हुक्मरान चीन के ऊपर दबाव बनाने में कामयाब होते हैं और मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित नहीं होने  देना चाहता है !
पाकिस्तान चीन को बार-बार कहता है कि सारी परियोजनाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि चीन पाकिस्तान के खिलाफ न जाये. चीन ने खुद को ऐसी स्थिति में फंसा लिया है. 
अगर  अमेरिका, यूरोपीय संघ के मामले में भी देखा जाए तो  जब इनके रिश्ते पाकिस्तान के साथ अच्छे थे, तब पाकिस्तान इन्हें भी तरह-तरह के दबाव में लाता था और अपने खिलाफ वोट नहीं होने देता था. पाकिस्तान अपनी स्थिति का हमेशा फायदा उठाता रहा है. पाकिस्तान के लिए इस समय भारत में आतंकवाद फैलाना प्राथमिकता बनी हुई है. सारे देश मना कर रहे हैं, लेकिन वह नहीं मानता. 
चूंकि, चीन उसके कब्जे में है, इसका वह फायदा उठाता है. चीन की भी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. चीन अगले 20 वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने का सपना देख रहा है. 'वन बेल्ट वन रोड' के बाद अब 'चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर' चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, जिससे चीन को तेल के संसाधन मिलने में आसानी होगी, बाकायदा कॉलोनी बसायी जा रही है जिससे चीन खाड़ी देशों के बहुत करीब हो जायेगा.
इसलिए, पाकिस्तान को साथ रखना चीन के लिए बहुत आवश्यक है कहा जाए तो एक मजबूरी भी है  जहां तक आतंकवाद की बात है, चीन खुद ही आतंकवाद से पीड़ित है.
 पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद के अलावा भी अलकायदा जैसे जितने आतंकी संगठन हैं, उनसे चीन न चाहते हुए भी संबंध बनाकर रखना चाहता है, जिससे वे चीन को तंग न करने लग जायें. ये संगठन कहीं और आतंकवाद फैला रहे हैं, तो चीन इनकी मदद करने को भी तैयार है. यह बहुत कुटिल और निंदनीय रवैया है कि चीन अपने देश में आतंकवाद के खिलाफ है, लेकिन कहीं और आतंक फैले तो उसे कोई परवाह नहीं होती है और आतंकवादियों को बचा लेता है.
 
भारत के अंदर चीन के खिलाफ अभियान छिड़ा हुआ है. लेकिन, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आनेवाले 15-20 सालों में हमें भी दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में उभरकर आना है. चीन के साथ भी हमें दो तरह के रिश्ते निभाने पड़ेंगे.  हमें कुछ मामलों में उनका सहयोग करना पड़ेगा, वहीं कुछ में प्रतिस्पर्धा में शामिल होना पड़ेगा और खिलाफ जाना पड़ेगा. हम यह पूरी तरह से मानकर नहीं चल सकते कि चीन हमारा दुश्मन है और उसे सबक सिखाना है. हालांकि, देश में सबक सिखाने की यह भावना घर कर गयी है. लेकिन, हमें अपने आपको संभालना होगा. पाकिस्तान आतंक फैलाकर निरंतर यही कोशिश कर रहा है कि भारत अपने रास्ते से भटक जाये और चीन भी उसे नहीं रोकता कि भारत धीमी चाल से बढ़ेगा तो चीन अव्वल बना रहेगा. 
 
इसलिए, भारत को प्रगति के रास्ते से हटना नहीं चाहिए और इसी के अनुसार दूरगामी नीतियों को साथ लेकर चलना चाहिए. हमारी वैश्विक साख बढ़ती देखकर चीन में खलबली मच जाती है. हमें इसी नीति को आगे बढ़ाना चाहिए और दुनिया की अन्य शक्तियों के साथ संबंध मजबूत करते रहना चाहिए 
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

हमारे रक्षक जवानो की रक्षा कोन करेगा -हम, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, हमारे हौसले, हमारी संवेदनाएं-- उत्तम जैन( विद्रोही)

मैं एक पत्रकार हु साथ मे अपने अन्तर्मन उभरती पीड़ा ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुंचाने की कोशिश करता हु समाजहित  लेखन , जन समस्या , देशहीत मे अपने विचार प्रेषित करना मेरा अधिकार व कर्तव्य है क्यू की मे  एक आम भारतीय हूं। मैं अपने देश की सेना का अथाह सम्मान करता हूं। मैं राजनीति नहीं जानता।ओर न ही राजनीति को जानना चाहता हु क्यू की आज की जो राजनीति है उससे मुझे सख्त नफरत है  मैं जानता हूं कि मेरे देश के जवान मेरे देश की सुरक्षा करते हैं लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि उनकी सुरक्षा कौन करता है?
वीरों की तरह वे सामने से किए आक्रमण का सामना करते हुए शहीद होने के हकदार थे, इस तरह किसी घिनौनी सोच के नीच,कायराना और पति‍त षडयंत्र का शिकार होकर नहीं... मैं पूछना उनसे भी चाहता हूं जो हमले की जिम्मेदारी लेते हैं..। भला 'जिम्मेदारी' कैसी? इस जिम्मेदारी शब्द के मायने मेरे भारत में कितने खुलते हैं, जानते हैं आप? जिम्मेदारी शब्द के साथ कितने कर्तव्य जुड़े हैं, जानते हैं? बेशर्मी से हमले की जिम्मेदारी लेते हैं? शर्म नहीं आती इस तरह छल, कपट और चोरों की तरह हमला करते हुए?
सामने से आते तो चकनाचूर हो जाते यह बात आप भी जानते हैं....इस समय सरकार पर, विपक्ष पर, प्रशासन पर, सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाने का समय नहीं था पर मेरे जैसी औसत बुद्धि के मन में भी इतने सवाल तो स्वाभाविक रूप से उमड़-घुमड़ रहे हैं कि इतनी चाक-चौबंद व्यवस्था के बावजूद, सुरक्षा एजेंसियों की चेतावनियों के बावजूद, लगातार मिल रही धमकियों के बावजूद यह कैसे और क्यों कर संभव हुआ?
 
जब मेरे देश के जवान देश और देश में रहने वालों की सुरक्षा पर इस तरह न्योछावर होते हैं तो मैं कभी-कभी आत्मग्लानि से भर जाता हूं कि क्या वाकई हम इस 'लायक' हैं कि हमारे लिए देश की इतनी अनमोल जान चली जाए? अपनी क्षुद्र सोच से हम कभी उबर नहीं पाते हैं, हमारी सारी मानवता पत्थरबाजों को लेकर उमड़ती है...अपने देश के लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सत्ता को अपशब्द कहने में हम पीछे नहीं हटते, हमारे लिए क्या बेहतर है यह गहराई से जाने बगैर देश की राजनीति पर लंबी-लंबी बहस को जन्म देते हैं, आरोप प्रत्यारोप लगाना हमारा जेसे एक धर्म हो गया ! अदालत जेसे कुछ विपक्षी हर स्ट्राइक का सबूत मांगते है अपनी राजनीतिक स्वार्थ के लिए हमारी सेना का मनोबल गिरता है बड़े अफसोस की बात है ! इस कठिन घड़ी मे 2-4 दिन सरकार व सेना के  साथ मे रहने के बाद फिर अहसास हुआ चुनाव सामने है किस तरह आरोप लगाकर हिंदुस्तानी जनता मे गलत संदेश भेजा जाये ओर चुनावी फायदे लिए जाये क्या संसद मे पहुँच सरकार बनाना ही राजनीतिक पार्टियो का मिशन है अगर हा तो मेरे लिए व भारत माता के लिए शर्म की बात है !   हम जो काश्मीर समस्या के 'कारणों' पर कोई कार्यवाही नहीं चाहते हैं पर चाहते हैं कि समस्या का हल हो जाए...
 
कहां से हल निकलेगा? आसमान से आएगा या धरती से फूटेगा? पड़ोसी देश के प्रति अपनी तमाम 'कलात्मक भावुकताएं' अर्पित करने वाले हम नहीं जानते हैं कि समस्या का असली कारण वहीं से जन्मा है पर हमें तो बुद्धिजीवी होने के 'लाल कीड़े' ने काट रखा है जो चाहे इस देश का खून चूस ले पर उसका बारीक सा पंख भी नहीं कटना चाहिए.. इस वक्त कहां है वह गैंग जो 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के नारे चीखने वालों की वकालात कर रही थीं? 
 
निहायत ही स्वार्थी और निर्मम हो चले हैं हम...हमें अपनी सोच, अपने आचरण, अपने विचारों को भी खंगालना चाहिए देश इन्हीं सबसे जुड़कर रत्ती-रत्ती होकर बनता है...चाहे सोशल मीडिया हो या चौराहे की बहस अपने विचारों और भावनाओं को लेकर कितने गंभीर हैं हम, यह सवाल अपने आप से पूछने का वक्त है...देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने के विचार अगर आपके मन में भी पलते हैं, अगर आप भी मैं, मेरा, मेरा परिवार, मेरा शहर, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा संप्रदाय, मेरा राज्य, 'मेरा आरक्षण' से ऊपर उठकर नहीं सोच पाते हैं तो माफ कीजिएगा कोई अधिकार नहीं इस मौके पर किसी भी तरह की कोरी भावुकता को परोसने का...44 का आंकड़ा उठाकर देख लीजिए यह सिर्फ आंकड़ा नहीं है हमारे गौरव, सपनों और अरमानों का खून है...
 इनमें कोई हिन्दू, मुस्लिम, जैन, ब्राह्मण,क्षत्रिय, कश्मीरी, पंजाबी नहीं थे ... वे सब एक थे, एक था उनका धर्म और एक था उनका जज्बा...आज उनकी एक ही पहचान है कि वे देश की सच्ची संतान थे.. हम सेना में नहीं जा सकते पर करोड़ों मन एक साथ एक स्वर में यह तो कह सकते हैं कि मेरा देश पहले है, मैं बाद में...
देश की रक्षा करने वालों की 'रक्षा' कौन करेगा? हम, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, हमारे हौसले, हमारी संवेदनाएं...हमारी एकता, हमारी अखंडता...हमारी मजबूती...-----
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )

Thursday, 7 March 2019

समाज को महिला के प्रति सोच बदलने की जरूरत

समाज को महिला के प्रति सोच बदलने की जरूरत


आधुनिक युग की महिलाएं समाज से अपने लिए देवी का संबोधन नहीं मांगती हैं। स्त्रियों को देवी समझा जाए या नहीं लेकिन कम से कम उन्हें मानव की श्रेणी से नीचे न गिराया जाए। हजारों साल पहले महिलाओं की स्थिति पुरुषों से कहीं कमतर नहीं थी। लेकिन कुछ ऐतिहासिक कारणों से वे नीचे धंसती चली गईं।
 आज यह पूरे समाज का दायित्व है कि वह नारी को बराबरी का स्थान दें। अब इसको कोई नारी मुक्ति का नाम दे या नारी शक्तिकरण काउससे कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। नारी और पुरुष एक दूसरे के शत्रु नहीं हैं बल्कि पूरक हैं। कहा भी गया है शिव शक्ति के बिना शव के समान हैं। राधा के बिना कृष्ण आधा हैं। नारियों की समस्या केवल उनकी समस्या नहीं है।
 यह पूरे समाज की समस्या है। या यूं कहिए सामाजिक समस्या का एक अंग है। साफ है कि नारी की स्थिति में बदलाव लाने के लिए पूरे सामाजिक ढांचे एवं सोच में बदलाव लाना जरूरी है। नारी को अग्रिम पंक्ति मे स्थान दे देने से या नारी समाज को हर जगह आरक्षण या कोटा दे देने से कर्तव्य से मुक्त नही हो सकते ! आज भी महिलायें उतनी सुरक्षित और सम्मानित नहीं दिखतींजितने अधिकार और अवसर उन्हें संविधान प्रदत हैं। वह पीड़ितप्रताड़ितभयभीत है और अपने अस्तित्व को लेकर आशंकित भी। हमारे देश की स्थिति स्त्री को लेकर एकदम उलट रही। 
भारतीय मानस का अतीत सिद्धांतस्वीकार्यता और मान्यता तीनों दृष्टि से स्त्री को श्रेष्ठ और सम्माननीय स्थान देता आया है। यहां स्त्रियों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए किसी संघर्ष आंदोलन की जरूरत ही नहीं पड़ी। दरअसल जो समस्या रही है,
वह व्यवहार की है। आज स्त्री की क्षमता को  कम अपितु उसके देहपिंड का आकर्षण अधिक हो गया है। स्थिति यह है कि वह घरबाजार या कार्यस्थल सभी स्थानों पर मानसिक व शारीरिक हिंसा और प्रताड़ना झेलने को मजबूर है। हमे इस ओर ध्यान देना होगा

Saturday, 2 March 2019

युद्द ही लंबे शांतिकाल का स्थाई समाधान है

भारत ओर पाकिस्तान के बीच हाल का तनाव 14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले के बाद उपजा है जिसमे हमे अपने 40 निर्दोष जवानों को खो दिया .. इस समय दोनो देशों मे तनाव चरम पर है ओर एक मिनी युद्द की आशंकाऐ बरकरार है हालांकि अभिनंदन की रिहाई से जंग के आसार थोडे धुंधले पडे है .. लेकिन सवाल यह उठता है कि पुलवामा के 40 जवानों की शहादत क्या एक अभिनंदन की वापसी से संघर्ष विराम के रुप मे व्यय॔ चली जाएगी ? क्या एक दज॔न मिराज से 1 हजार किलो के बम गिराकर हम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से मुक्ति मिल गयी है ? क्या कश्मीर मे मिराज विमानों का यह हमला शांति ले आयेगा ? क्या मिराज का POK मे हमला पत्थरबाजो को शांत कर देगा ? ऐसे कई सवाल है जिनका जवाब अभी अनिश्चितताओ मे भंवर मे उलझा हुआ है .. दरअसल मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी अगर अभिनंदन की रिहाई मात्र को अपनी कूटनीतिक जीत मानकर खुश होकर चुप बैठते है तो शायद मोदी गलती कर रहे है ठीक उसी तरह की गलती जैसी गलतीया पंडित जवाहर लाल नेहरु ;  स्वर्गीय इंदिरा गांधी एंव अटलजी ने की थी .. पहले आपको नेहरु ; इंदिरा एंव अटलजी की जाने अनजाने मे हुई  गलतीयो का स्मरण करवाना चाहता हूं .. दरअसल 1947 मे जब पाकिस्तान की फोज श्रीनगर के बाहरी इलाके तक पहुंच गयी थी तब वहां के तत्कालीन राजा हरिसिंह ने कश्मीर का विलय भारत मे करने का एलान किया था .. भारत की सेना ने विलय के बाद रिएक्शन की ओर पाकिस्तान की सेना को खदेड़ना शुरु किया .. करीब 45% कश्मीर को जब भारतीय सेना अपने कब्जे मे ले चुकी थी तब भारतीय सेना ने महज 3 दिन ओर नेहरु से मांगे थे कि हम 3 दिन मे शेष 55% कश्मीर भी कब्जे मे ले लेंगे लेकिन पंडित नेहरु एक गलती कर गये .. विश्व नेता बनने की चाह मे वह कश्मीर का मसला सयुक्त राष्ट्र संघ मे ले गये जहां स्टे यानी नियमानुसार यथास्थिति बहाल करने के आदेश दिए गये नतीजा भारतीय सेना को वही रुक जाना पडा ओर 55% पाकिस्तान बिना भारत के कब्जे मे आये रह गया जिसे आज हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहते है यानी पीओके .. नेहरु की यही गलती आज सामरिक तोर पर भारत पर भारी पड रही है क्योकि इसी पीओके से पाकिस्तान आतंकीयों के ट्रेनिंग कैप ओर उनके लांच पैड तैयार कर घुसपैठ करवाता है क्योकि भूगोल उसे सुट करता है .. दुसरी गलती स्वर्गीय इंदिरा जी से हुई थी 1971 मे हुई जंग भारत ने एक पखवाडे मे ही जीत ली ओर पाकिस्तान के दो टुकड़े होकर बांग्लादेश का उदय हुआ था ओर पाकिस्तान के 90 हजार सैनिक जनरल नियाजी के नेतृत्व मे भारतीय सैनिकों के समक्ष सरेंडर कर चुके थे ओर पाकिस्तान को शिमला मे इंदिरा गांधी के साथ बैठकर गिडगिडाकर युद्द समाप्ति करनी पडी थी जिसे शिमला समझोता कहा जाता है इसमे यह तय हुआ था कि दोनो देश अपने सभी मसले आपसी बातचीत से हल करेंगे .. लेकिन इंदिरा जी यहा फिर गलती कर गयी उन्होंने पीओके वापिस लिए बिना 90 हजार सैनिक छोड दिए ओर भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान से लोटने का आदेश दे दिया .. यह दो बडी गलतियाँ थी तीसरी गलती थोडी छोटी थी लेकिन सामरिक तोर पर गंभीर थी ..अटलजी के समय कारगिल - बटालिक की पहाड़ियों से भारतीय सेना नीचे उतर आई ओर गरमी मे जब वापिस जाने को हुई तो पता चला कि वहां पाकिस्तानी फोज बैठी है नतीजा कारगिल वार हुई ओर फिर कारगिल ओर बटालिक की पहाड़ियों को खाली करवाया गया ..इसके पहले अटलजी पाकिस्तान पर भरोसा कर शांति का पैगाम लेकर लाहोर बस लेकर गये थे बदले मे कारगिल मिला .. दरअसल कहने का आशय यह है कि जिस पाकिस्तान की पैदाइश की झूठ ओर नफरत से हुई है जिनका डीएनए ही भारत विरोध का है उन पर हमारी सरकारें भरोसा ही क्यो करे ? ओर हम अपनी रक्षा तैयारीया पाकिस्तान को देखकर करने की बजाय हम चीन को देखकर अपनी तैयारियां करे! अब सवाल उठता है कि कश्मीर मे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ओर अलगाववादी भावनाओ का क्या करे ? मै पीएम मोदी से एक सवाल करना चाहता हूं तिब्बत मे चीन ने जो किया क्या वह कश्मीर मे नही कर सकते ? आज तिब्बत पर कोई चुं नही बोलता .. तिब्बत की घेराबंदी चीन ने इतनी सख्ती से कर रखी है मुझे समझ नही आता कि कश्मीर मे इंटरनेट की सुविधा क्यो दी गयी है ? अलगाववादी नेताओ को सुरक्षा क्यो थी ? नजरबंदी कश्मीर मे क्यो सीधे अंडमान की जेल क्यो नही ? सब जानते है कि लातो के भुत बातो से नही मानते फिर क्यो बातों से मनाने की कोशिश करते हो ? एक ही फार्मूला है पीओके से लगने वाली सीमा पर एक साल के अंदर विज्ञान ओर तकनीक की मदद से सुरक्षा वाल बनाई जाऐ ओर सेना बैरकों से निकाल कर कश्मीर मे लगाकर LOC को वार जोन मानकर एक आपरेशन क्लीन चलाया जाये .. लोकतंत्र गया भाड मे ..देशी ओर विदेशी मीडिया पर प्रतिबंध लगाओ ओर कोई कारवाई की Live रिपोर्टिंग सिर्फ डीडी न्यूज करेगा ऐसा कानून बनाया जाये ..कश्मीर पर बहस टीवी पर बंद हो ..ओर बात अब पाकिस्तान की तो पहले हम अपने घर को इतना मजबूत करे कि कोई पडोसी हम पर चोरी छिपे घुसकर ना मार सके ओर उसके बाद अगर कोई देश ऐसी हिमाकत करे तो सुखोई ओर रफाल से जवाब दीजिए ओर मिसाइल से आतंकियो के अड्डे उडाना शुरु करो तब जाकर अक्ल आयेगी .. लेकिन ऐसा ना कर केवल अभिनंदन की रिहाई ओर 12 मिराज पीओके भेजकर अगर आप खामोश बैठ जाओगे मोदीजी तो शायद आपको भी आने वाली पीढिया नेहरु की तरह कोसेंगी ओर माफ नही करेगी क्योकि इससे बेहतर मोका ओर हालात देश ओर आपको फिर कभी शायद ही मिलेंगे क्योकि सभी जानते है इस समय पाकिस्तान कंगाल है उसकी फोज कह चुकी है कि 6 दिन से ज्यादा वह भारत से नही लड पाऐगी .. पाकिस्तान पूरी दुनिया मे अलग थलग पडा है यहां तक की चीन ओर इस्लामिक देश तक पाकिस्तान के साथ नही है .. भारत एक सर्जिकल स्ट्राइक ओर एक एयर स्ट्राइक के जरिऐ अभी बढत मे है .. देश का जनमानस ओर राजनीतिक दल भी सरकार के साथ खडे है सेना तैयार है देश एकजुट होकर पाकिस्तान को स्थाई सबक सिखाने के पक्ष मे है अगर आपने कर दिखाया तो चुनाव सामने है जन आशीर्वाद आपको मिलेगा ..लेकिन ऐसा मोदी नही कर पाए तो चाहे बाते कितनी भी बडी बडी कर ले जनता मे वह सम्मान नही पा सकेंगे जिसे पाने का उनके पास मोका है .. मै नाजीवाद के उस कोटेशन का उल्लेख करना चाहता हूं कि युद्द ही लंबे शांतिकाल के लिए बेहतर उपाय है ..ओर बात जब देश के सम्मान - गोरव ओर स्वाभिमान की आये तो फिर शांति की बाते करना बेमानी है आप डरे हुऐ इमरान की बातो के जाल मे मत फंसिंऐ .. भारत मे भले तथाकथित बुद्धिजीवियों को इमरान की बाते पसंद आई हो .. संभव है कि भारत से इमरान को शांति का नोबल देने की मांग उठे लेकिन मै यह मानता हूं कि इमरान की बाते केवल ओर केवल जंग से डरे एक प्रधानमंत्री की लफ्फाजी है ..।